इंट्रावेनस इंजेक्शन (Intravenous Injection) या मेडिकेशन संयुक्त रूप से उस इंजेक्शन या मेथड को कहा जाता है, जिसमें इंजेक्शन के माध्यम से सीधे नसों के अंदर जरूरी दवाईयां इंजेक्ट की जाती हैं। प्रमुख रूप से नसों में इंजेक्ट की जानें वाली दवाओं या डोज को इंट्रावेनस इंजेक्शन की श्रेणी में रखा जाता है। इंट्रावेनस इंजेक्शन को आईवी भी (IV) कहा जाता है।
इंट्रावेनस इंजेक्शन (Intravenous Injection) को ऐसे समझें
इंट्रावेनस शब्द का अर्थ ही है ‘सीधे नसों में’। वहीं ट्यूब के माध्यम से भी सीधे नसों में इंट्रावेनस मेडिकेशन दी जाती हैं। इसके माध्यम से डॉक्टर आपको आपकी बीमारी या जरूरत के मुताबिक इंट्रावेनस इंफ्यूजन दे सकता है, वो भी बिना आपकी नसों में सूई चुभाकर। इसके लिए सिर्फ आपकी नसों में एक बार एक पतला सा ट्यूब फिट कर दिया जाता है और समय अनुसार आसानी से डोज दिए जाती हैं।
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इंट्रावेनस इंजेक्शन (Intravenous Injection) का इस्तेमाल क्यों और कैसे किया जाता है ?
इंट्रावेनस इंजेक्शन का इस्तेमाल उन स्थितियों में किया जाता है, जहां मरीज को नियंत्रित और प्रभावी तरीके से दवा का डोज दिया जाए। यहां नियंत्रण का मतलब है डोज बेहद तेजी से देना या बेहद धीमे। कई बीमारी या गंभीर स्थितियों जैसे कि हार्ट अटैक, फूड प्वाॅइजनिंग और स्ट्रोक में व्यक्ति को बचाने के लिए तेजी से डोज देने की जरूरत होती है। इंट्रावेनस इंजेक्शन का यही फायदा है, नसों में सीधे डोज दिए जाने पर यह खून में तेजी से मिलता और व्यक्ति को तुरंत राहत मिलती है। यह ओरल पिल्स और लिक्विड दवाओं से कई गुना ज्यादा बेहतर है, क्योंकि उन्हें खून में मिलने में ज्यादा समय लगता है।
इसके अलावा कई मामलों में दवा धीमे लेकिन लगातार देने की जरूरत होती है। ऐसे मामले में भी इंट्रावेनस इंजेक्शन का सहारा लिया जाता है। इंट्रावेनस इंजेक्शन देने के पीछे एक कारण यह भी है कि कई दवाओं को मुंह से नहीं दिया जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर वे लिवर और पेट को क्षति पहुंचा सकती हैं। इसी वजह से ऐसी दवाओं को सीधे नसों में इंजेक्ट किया जाता है।
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इंट्रावेनस इंजेक्शन के कितने प्रकार हैं? (Types of Intravenous Injection)
इंट्रावेनस इंजेक्शन के प्रकार उनके डोज और जरूरत पर आधारित हैं। इन्हें आईवी लाइंस (IV lines), आईवी पुश (IV push) और आईवी इंफ्यूजन (IV infusion) भी कहा जाता है।
आईवी लाइंस (IV lines)
इंट्रावेनस इंजेक्शन का पहला प्रकार यानी आईवी लाइंस एक सीमित समय के लिए दी जाती है। उदाहरण के तौर पर आईवी लाइंस की मदद से सर्जरी के दौरना पेनकिलर्स दी जा सकती हैं। जिससे मरीज को सर्जरी के बाद दर्द, घबराहट या उल्टी न हो। आमतौर पर डॉक्टर्स आईवी लाइंस को ज्यादा से ज्यादा चार दिन तक इस्तेमाल कर सकते हैं। आईवी लाइंस में एक बारीक सूई आपके हाथ की नस में फिट कर दी जाती है और उसके ऊपरी छोरी पर एक ट्यूब फिट कर दी जाती है, जो आपको जरूरी दवा पहुंचाती रहती है।
आईवी पुश (IV push)
इंट्रावेनस इंजेक्शन का दूसरा प्रकार है आईवी पुश। पुश का सीधा अर्थ है कि किसी चीज को दबाव के साथ डालना। यहां डॉक्टर हाथ में फिट की गई सूई और ट्यूब में अलग से एक इंजेक्शन का प्रयोग करता है। इसकी मदद से एक तय वक्त में तेजी से दवा का एक नियंत्रित डोज नसों में उतार दिया जाता है।
आईवी इंफ्यूजन (IV infusion)
इंट्रावेनस इंजेक्शन का तीसरा प्रकार है आईवी इंफ्यूजन। इस तरीके से डोज को नियमित और संतुलित मात्रा में मरीज की नसों में पहुंचाया जाता है। इसके भी दो प्रकार है, जिसमें से एक में प्राकृतिक ग्रैविटी की मदद से डोज दिया जाना और पंप की मदद से डोज देना शामिल है।
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इंट्रावेनस इंजेक्शन के साइड इफेक्ट/दुष्प्रभाव क्या हैं?
आमतौर पर इंट्रावेनस इंजेक्शन सुरक्षित होते हैं, लेकिन कई मामलों में इसके सामान्य से लेकर गंभीर साइड इफेक्ट देखने मिल सकते हैं। जिस तरह से इंट्रावेनस इंजेक्शन नसों में जाकर तेजी से असर करते हैं, ठीक उसी तरह भी इसके दुष्प्रभाव तेजी से नजर आते हैं। इंट्रावेनस इंजेक्शन के निम्नलिखित साइड इफेक्ट हो सकते हैं:-
नसों को क्षति पहुंचना
कई बार इंट्रावेनस इंजेक्शन का प्रयोग नसों के लिए खतरनाक हो सकता है। दवा लीक होने से आसपास के टिश्यु को क्षति पहुंचने के साथ-साथ नसों में जलन, दर्द व कुछ रेंगने जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। ऐसे में डॉक्टर को सभी लक्षण तुरंत बताने की आवश्यक्ता होती है।
ब्लड क्लॉट होना
कई बार इसकी वजह से ब्लड क्लॉट होने की समस्या भी होती है। ब्लड क्लॉट यानी खून के थक्के जमना। यह एक बेहद गंभीर साइड इफेक्ट है क्योंकि ब्लड क्लॉट की वजह से नसों में खून जमजाता है और इससे मौत भी हो सकती है।
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एयर एम्बॉलिज्म (Air Embolism, हवा जाना)
यह भी एक गंभीर स्थिति है। अगर सिरिंज या इंट्रावेनस ट्यूब में एयर बबल या हवा चली जाए और यह नस के भीतर पहुंच जाए तो मरीज के लिए ये स्थिति जानलेवा हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि एयर बबल नसों और खून के जरिए दिल तक पहुंच सकता है और वहां पहुंचने पर व्यक्ति को हार्ट अटैक या स्ट्रोक आ सकता है।
संक्रमण/इंफेक्शन
इंट्रावेनस इंजेक्शन का ये बेहद सामान्य साइड इफेक्ट है। जिस जगह पर इंजेक्शन दिया गया हो वहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। जरा सी लापरवाही की वजह से मरीज को इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। त्वचा में जलन, खुजली और सूजन संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं।
हाइपरवोलेमिया (Hypervolaemia)
इंट्रावेनस इंजेक्शन की मदद से शरीर में खून की असामान्य वृद्धि हो जाती है। ज्यादातर ये समस्या प्रेग्नेंट महिलाओं, बच्चे, वृद्धजन और किडनी रोग से ग्रस्त लोगों में हो सकती है।
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क्या अंतःशिरा इंजेक्शन घर पर खुद से ही लगाया जा सकता है?
अंतःशिरा इंजेक्शन खुद से घर पर ही लगाया जा सकता है। लेकिन, इसके जरूरी है कि अंतःशिरा इंजेक्शन लगाने की पूरी प्रक्रिया व्यक्ति को आनी चाहिए। साथ ही, आपको कितनी मात्रा में दवा की खुराक नसों में इंजेक्ट करना ही इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। अगर आपको अंतःशिरा इंजेक्शन लगाने की पूरी प्रक्रिया पता है, तो आप अपने डॉक्टर से इस बारे में निर्देश ले सकते हैं कि आपको कब-कब और कितनी मात्रा में अंतःशिरा इंजेक्शन खुद को या किसी अन्य व्यक्ति को लगाना चाहिए। अगर आप इन सभी बातों का ख्याल रखते हैं, तो घर पर अंतःशिरा इंजेक्शन का इस्तेमाल करना पूरी तरह से सुरक्षित हो सकता है।
अंतःशिरा इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता क्यों होती है?
निम्न स्थितियों के उपचार के लिए आपके डॉक्टर आपको अंतःशिरा इंजेक्शन लगाने की सलाह दे सकते हैं, जिसमें शामिल हैंः
- हार्मोन की कमी के लिए उपचार
- गंभीर मतली की समस्या होने पर
- किसी दवा का ओवरडोज होने पर, जिसके प्रभाव को कम करने के लिए अंतःशिरा इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जा सकता है
- दर्द नियंत्रण के लिए
- कैंसर का इलाज करने के लिए, खासकर कीमोथेरेपी की प्रक्रिया के दौरान
- कुल पैतृक पोषण (Total parenteral nutrition (TPN)) की कमी होने पर। टीपीएन एक पोषण सूत्र है जो एक नस के माध्यम से दिया जाता है।
- शरीर में तरल पदार्थों की कमी होने के उपचार के लिए
घर पर खुद से सुई कैसे लगाएं?
घर पर अंतःशिरा उपचार खुद से करने के दौरान आपको अपने डॉक्टर द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का उचित तरीके से पालन करना चाहिए। साथ ही, आपको निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिसमें शामिल हैंः
सुई लगाने के दो तरीके हो सकते हैं, जिसमें शामिल हैंः
- तेजी से सुई लगाना- जिसमें दवा को एक ही बार में तेजी से नशों में इंजेक्ट कर दिया जाता है।
- धीमी गति से सुई लगाना- जिसमें दवा को धीरे-धीरे लंबी अवधि में दी जाती है।
- सुई लगाने के बाद नसों से सुई बाहर निकाल लेनी होगी।
- इसके बाद आपको उचित तरीके से इस्तेमाल की हुई सुई का निवारण करना चाहिए।
- इसके खुली नाली या सीधे तौर पर कूड़ेदान में नहीं फेंकना चाहिए। ऐसे करना पर्यावरण के साथ-साथ अन्य जीवों के लिए जोखिम भरा हो सकता है।
- ध्यान रखें कि एक सुई का इस्तेमाल आपको सिर्फ एक ही बार करना होता है। हर इस्तेमाल के बाद उस सुई का निवारण कर देना चाहिए।
इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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