हमारे सभी ऑर्गन्स और टिश्यूज को काम करने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। हमारा शरीर जिस हवा को सांस के माध्यम से अंदर ले जाता है, उस में से ऑक्सीजन को एब्जॉर्ब करता है। ब्लड में एक प्रोटीन होता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहा जाता है। यह ऑक्सीजन को शरीर के सेल्स तक ले कर जाता है। अगर शरीर के हिस्सों तक ब्लड पर्याप्त ऑक्सीजन डिलीवर नहीं कर पाएं, तो हमें पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) की समस्या हो सकती है। आज हम इसी रोग के बारे में आपको जानकारी देने वाले हैं। आइए जानें पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) के बारे में विस्तार से।
पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis): पाएं इस बारे में पूरी जानकारी
इस कंडिशन का नाम शब्द सयान (Cyan) से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ब्लू, ग्रीन कलर। क्योंकि, इस रोग में जो सबसे पहले लक्षण नजर आता है, वो है स्किन का ब्लू डिस्कलरेशन। सायनोसिस के एक प्रकार को पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) या एक्रोसायनोसिस (Acrocyanosis) कहा जाता है, जो प्रॉयमरली हाथों और पैरों को प्रभावित करती है। कई बार कोल्ड टेम्परेचर से ब्लड वेसल्स नेरौ हो सकते हैं और इससे स्किन का रंग ब्लू हो सकता है। ऐसे में, गर्मी या मालिश से ब्लू एरिया में सामान्य ब्लड फ्लो हो सकता है और स्किन का रंग भी सामान्य हो जाता है।
ठंडे मौसम के साथ ही सर्कुलेशन प्रॉब्लम्स, टाइट ज्वेलरी आदि भी इसका कारण बन सकते हैं। यह समस्या आमतौर पर गंभीर नहीं होती है, लेकिन इसके कुछ कारण सीरियस हो सकते हैं। इसलिए, अगर इसके लक्षण नजर आएं, तो तुरंत मेडिकल हेल्प लेना जरूरी है। आइए जानें इसके लक्षणों के बारे में।
और पढ़ें: ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारण बच्चे का रंग पड़ जाता है नीला, जानिए क्यों?
पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) के क्या हैं लक्षण?
महिलाओं के लिए सामान्य हीमोग्लोबिन लेवल 12.0 से 15.5 ग्राम्स पर डेसीलीटर और पुरुषों के लिए 13.5 से 17.5 g/dL माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) या एक्रोसायनोसिस (Acrocyanosis) की समस्या तब नोटिस की जाती है जब डीऑक्सीजनेटेड हीमोग्लोबिन की कंसंट्रेशन 3 से 5 g/dL.तक हो। यह समस्या हाथों और पैरों को प्रभावित करती है। लेकिन, इसका असर मुंह के आसपास की त्वचा पर भी हो सकता है। कुछ लोगों में प्रभावित एरिया ब्लूइश की जगह पर्पल भी नजर आ सकते हैं। कुछ मामलों में ब्लू लिप्स या स्किन, एमरजेंसी के लक्षण भी हो सकते हैं। अगर डिस्कलरेशन के साथ ही रोगी को अन्य लक्षण भी नजर आएं, तो तुरंत मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए। यह लक्षण इस प्रकार हैं:
- बुखार (Fever)
- सिरदर्द (Headache)
- सांस लेने में समस्या (Shortness of breath)
- छाती में दर्द (Chest pain)
- पसीना आना (Sweating)
- बाजु, टांगों, हाथों, उंगलियों आदि में दर्द या सुन्नपन (Pain or numbness)
- चक्कर आना या बेहोशी (Dizziness or fainting)
यह तो थे इसके कुछ लक्षण। इसके अलावा इसके कुछ अन्य लक्षण भी नजर आ सकते हैं। अब जानते हैं, इस रोग के कारणों के बारे में।
और पढ़ें: पेरीफेरल न्यूरोपैथी में आयुर्वेद : डायबिटीज की इस कॉम्प्लीकेशन्स के लिए आसान उपाय है आयुर्वेद!
पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) के कारण क्या हैं?
कुछ खास मेडिकल कंडिशंस के कारण ऑक्सीजन-रिच ब्लड शरीर में भागों तक नहीं पहुंच पाता। कुछ लोग एक ऐसी समस्या के साथ पैदा होते हैं। जिसके कारण उनमें ऑक्सीजन तक बाइंड होने और इसे सेल्स तक ले जाने की क्षमता सीमित होती है। लोग इस समस्या को एक्सट्रीमिटीज में महसूस करते हैं। पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) के कुछ कारण इस प्रकार हैं:
रेनॉड’स डिजीज (Raynaud’s disease)
इसके कारण ठंडे मौसम में फिंगरटिप्स और टोज सुन्न और ब्लू या सफेद हो जाते हैं। इसमें ब्लड वेसल तंग हो जाती है, जिससे ब्लड एक्सट्रीमिटीज तक नहीं पहुंच पाता।
लो ब्लड प्रेशर (Low blood pressure)
लो ब्लड प्रेशर के कारण हाथों और पैरों तक पर्याप्त खून और ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाते हैं।
हायपोथर्मिया (Hypothermia)
इसमें शरीर का तापमान गंभीर रूप से कम हो जाता है। यह एक मेडिकल एमरजेंसी है।
और पढ़ें: क्या पेरीफेरल नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर्स का मुख्य कारण डायबिटीज है?
आर्टरी में समस्या होना (Problems with an artery)
अगर किसी हेल्थ कंडिशन की वजह से आर्टरी पर प्रभाव पड़ता है जो हाथों और पैरों तक ब्लड व ऑक्सीजन डिलीवर करता है। तो इसका परिणाम पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) यानी एक्रोसायनोसिस (Acrocyanosis) हो सकता है।
हार्ट फेलियर (Heart failure)
इसके कारण हार्ट शरीर के चारों ओर प्रभावी ढंग से रक्त पंप करने में असमर्थ रहता है।
डीप वेन थ्रोम्बोसिस (Deep Vein Thrombosis).
अगर टांगों में वैन में क्लॉट बन जाता है और उस लिम्प में यह समस्या हो सकती है।
हायपोवॉल्मिक शॉक (Hypovolemic shock)
हायपोवॉल्मिक शॉक एक एमरजेंसी कंडिशन है जिसमें अधिक ब्लड या अन्य फ्लूइड के लॉस के कारण हार्ट शरीर तक पर्याप्त ब्लड को पंप करने में सक्षम नहीं हो पाता। इस तरह के शॉक से ऑर्गन काम करना बंद कर सकते हैं।
और पढ़ें: पेरीफेरल न्यूरोपैथी से राहत के लिए ये एक्सरसाइज पहुंचा सकती हैं आपको राहत
पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) का निदान कैसे संभव है?
इस रोग के निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले रोगी से इसके लक्षणों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही इसे इवैल्युएट करने के लिए टेस्ट्स के कॉम्बिनेशन का इस्तेमाल किया जाता है जैसे ब्लड टेस्ट्स, इमेजिंग स्कैन्स आदि। इससे डॉक्टर को ब्लड में ऑक्सीजन के लेवल और इसके कारण के बारे में जानने में मदद मिलेगी। अगर किसी को यह परेशानी है, तो टेस्ट आमतौर पर यह पता लगा सकते हैं कि रोगी में अनसैचुरेटेड हीमोग्लोबिन लेवल कितना है। अनसेचुरेटेड हीमोग्लोबिन लेवल ऑक्सीजन को कैरी नहीं करता है। इन टेस्ट्स से उन कंडिशंस का निदान भी हो सकता है, जो हार्ट और लंग प्रभावित करते हैं या जिनसे ऑक्सीजन लेवल पर असर होता है। डॉक्टर रोगी को इन टेस्ट्स की सलाह दे सकते हैं:
- नॉनइनवेसिव पल्स ऑक्सीमीटर (Noninvasive pulse oximeter)
- आर्टेरिअल ब्लड गैस टेस्ट (Arterial blood gas test)
- चेस्ट एक्स-रे या सीटी स्कैन (Chest X-ray or CT)
अब जानते हैं इसके उपचार के बारे में।
और पढ़ें: Peripheral Neuropathy: पेरीफेरल न्यूरोपैथी क्या है?
पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) का उपचार
पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) का उपचार समस्या के अंडरलायिंग कारणों पर निर्भर करता है। डॉक्टर कुछ दवाइयों की सलाह भी दे सकते हैं, जिनसे हार्ट और लंग कंडिशंस का उपचार हो सके। इनसे ऑर्गन्स और टिश्यूज तक ब्लड फ्लो और ऑक्सीजन सप्लाई तक सुधारने में मदद मिलती है। कुछ लोगों में हेल्दी लेवल को रिस्टोर करने के लिए ऑक्सीजन थेरेपी (Oxygen therapy) की जरूरत हो सकती है। इसके साथ ही डॉक्टर रोगी को उन ट्रीटमेंट्स को बंद करने के लिए भी कह सकते हैं, जिनसे ब्लड फ्लो रिस्ट्रिक्ट हो रहा हो। इसमें बीटा ब्लॉकर्सBeta blockers), बर्थ कंट्रोल पिल्स (Birth control pills) और कुछ एलर्जी मेडिकेशन्स का इस्तेमाल शामिल है। इसके साथ ही डॉक्टर रोगी को हेल्दी लाइफस्टाइल को फॉलो करने की सलाह देते हैं जैसे स्मोकिंग न करना, कैफीन को सीमित मात्रा में लेना आदि।
यह तो थी पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) के बारे में जानकारी। यह समस्या किसी को भी हो सकती है यहां तक की नवजात शिशुओं में भी। शिशुओं में इस समस्या को डिटेक्ट करना मुश्किल है, खासतौर पर नवजात शिशुओं में। क्योंकि, उन्हें होने वाली अन्य समस्या जैसे पीलिया के लक्षण इसके जैसे हो सकते हैं। हालांकि, इस रोग में मेडिकल एमरजेंसी की जरूरत नहीं होती है। सेंट्रल सायनोसिस में तुरंत मेडिकल अटेंशन की आवश्यकता होती है।
और पढ़ें: स्किन के लिए कोजिक एसिड (Kojic Acid) के फायदे और नुकसान दोनों जानें
उम्मीद है कि पेरीफेरल सायनोसिस (Peripheral Cyanosis) के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। इस रोग का उपचार इसके कारण और उसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। अगर किसी को उनकी एक्सटरमिटिज में ब्लू या ग्रीन रंग नजर आए, तो उसे उन एरियाज को गर्म करना चाहिए या मालिश से ब्लड फ्लो को बढ़ाना चाहिए। लेकिन, अगर यह रंग सामान्य न हो, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है। अगर इसके बारे में आपके मन में कोई भी सवाल हो तो डॉक्टर से अवश्य बात करें। आप हमारे फेसबुक पेज पर भी अपने सवालों को पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
[embed-health-tool-heart-rate]