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कोरोना से तो जीत ली जंग, लेकिन समाज में फैले भेदभाव से कैसे लड़ें?

कोरोना से तो जीत ली जंग, लेकिन समाज में फैले भेदभाव से कैसे लड़ें?

कोरोनावायरस ने दुनिया में सभी को एक दूसरे से दूर कर दिया है। लोग एक दूसरे से मिलने से कतरा रहे हैं, लोग एक-दूसरे से बात तक नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर #COVIDShaming का एक टैग काफी ट्रेंड में हैं। जिसमें ये उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जो कोरोना से बचाव नहीं कर रहे हैं, उल्टा कोरोना को फैला रहे हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी ने फेस मास्क नहीं लगाया है या सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान नहीं रखा है, तो उनके लिए आपको #COVIDShaming जैसे टैग सही है। लेकिन जब कोई कोरोना सर्वाइवर को देख कर #COVIDShaming जैसी बातें करने लगे तो ये बहुत दुखद स्थिति होती है। आइए जानते हैं, कुछ ऐसे लोगों की कहानी जो कोरोना सर्वाइवर रहे हैं और समाज में उनके साथ कैसा व्यवहार हुआ है या हो रहा है?

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कोरोना सर्वाइवर के प्रति खराब व्यवहार को लेकर साइन हो रही है पीटिशन

अर्शिता नाम की एक महिला ने गुगल के द्वारा एक पिटीशन साइन कराने की मुहीम चलाई है, जिसका नाम है स्टॉप कोविड-शेमिंग (Stop COVID-Shaming)। जिसमें अर्शिता ने अपनी स्टोरी बताई कि, “ कोविड-19 का टेस्ट पॉजिटिव होने के बाद मुझे कोरोना वायरस ने उतना दर्द नहीं दिया था, जितना कि लोगों के रवैए ने दिया था। एक तरफ जहां मैं कोरोना वायरस से जंग जीत चुकी थी, वहीं दूसरी तरफ मुझे समाज में फैले हुए भेदभाव और भ्रम से भी लड़ना पड़ा। लोगों ने मेरे घर पर खाना और जरूरी चीजें पहुंचानी भी बंद कर दी और कुछ पड़ोसी तो फोन पर हालचाल लेने से कतराते नजर आए। ऐसा लगता था, जैसे कि मैं इंसान हूं ही नहीं, मैं सभी से अलग हूं।”

कोरोना सर्वाइवर

अर्शिता कहती हैं कि, “एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं लोगों के प्रति इस भेदभाव को खत्म करूं। क्योंकि कोरोना से लड़ना तो बहुत आसान है, लेकिन कोरोना सर्वाइवर के साथ हो रहे भेदभाव से लड़ना बहुत कठिन है। इसलिए #COVIDShaming नहीं, बल्कि #NoToCOVIDShaming होना चाहिए।” अर्शिता की पिटीशन में अपील की गई है कि जिस तरह से पल्स पोलियो के लिए सरकार प्रचार प्रसार करती है, उसी तरह से कोरोना सर्वाइवर के साथ हो रहे भेदभाव के प्रति भी लोगों में जागरूकता फैलाई जाएं। 

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कोरोना सर्वाइवर अश्विन को छोड़ना पड़ा अपना घर

कोविड-19 सर्वाइवर आश्विन - COVID-19 Survivor Ashwin

मुंबई के रहने वाले 32 साल के अश्विन यादव कोरोना के संक्रमण से संक्रमित हो चुके हैं और अब वो पूरी तरह से ठीक भी हो चुके हैं। अश्विन ने अपनी जिंदगी को कोरोना होने के बाद पूरी तरह से बदला हुआ पाया है। कोरोना सर्वाइवर अश्विन ने बताया कि, “कोविड-19 की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद मुझे हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया गया था और मेरे परिवार के सदस्यों को क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया था। जहां पर मेरी फैमिली लगभग 21 दिनों तक थी। इस बीच मैं भी कोरोना से जंग जीत गया था। फिर मैं और मेरा परिवार खुशी-खुशी घर लौट रहे थे। लेकिन हमारी सोसायटी के मेंबर्स ने हमें बिल्डिंग के अंदर जाने ही नहीं दिया। सभी का कहना था कि अभी तुम्हें कोरोना हुआ है, तो तुम इस सोसायटी में नहीं रह सकते हो। मैंने लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की कि मैं अब पूरी तरह से ठीक हो चुका हूं और अब मैं कोविड-19 सर्वाइवर हूं, कोविड-19 कैरियर नहीं। फिर भी सोसायटी के मेंबर्स ने मेरी एक भी नहीं सुनी और मेरी फैमिली को सोसायटी से निकाल दिया गया। अब हम कहीं और रह रहे हैं।”

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पड़ोसियों के तानों से तंग आकर घर पर लिख दिया ‘ये मकान बिकाऊ है’

मध्य प्रदेश के शिवपुरी इलाके के रहने वाले दीपक शर्मा के साथ तो भेदभाव की हद पार हो गई। दीपक बताते हैं कि, “वे पिछले आठ सालों से विदेश में रह कर नौकरी करते हैं। 18 मार्च,2020 को वे अपने घर वापस आए, जिसके बाद एहतियातन उन्होंने अपना कोविड-19 टेस्ट कराया, जिसमें उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। जिसके बाद उनके परिवार के अन्य सदस्यों को क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया और दीपक को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। कोविड-19 पॉजिटिव दीपक कुछ दिनों में ठीक हो कर कोरोना सर्वाइवर बन चुके थे। इसके 21 दिनों के बाद वे जब अपने घर लौटे तो देखा कि उनके परिवार के लोगों को जरूरी सामान तक नहीं मिल पा रहा है। ना ही सब्जी, ना ही राशन सभी दुकानदार उनके परिवार से कतराने लगे। इसके अलावा जहां भी जाते यही सुनने को मिलता कि ये वही है, जिसे कोरोना हुआ है। लोगों के तानों से तंग आकर दीपक के पिता ने घर बेचने का फैसला कर लिया। जिसके बाद उन्होंने घर पर एक पोस्टर लटका दिया ‘ये मकान बिकाऊ है’। हालांकि, इसके बाद पुलिस ने सहयोग किया और हमें जरूरी सामान मुहैया कराया। जिससे हमें अपना घर नहीं बेचना पड़ा।”

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अखिलेश के साथ अछूतों की तरह होता है व्यवहार

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के रहने वाले अखिलेश मौर्य भी एक कोरोना सर्वाइवर हैं। अखिलेश बताते हैं कि “वे 2 जून, 2020 को मुंबई से अपने गांव वापस गए। जिसके बाद उनके घर वालों ने उन्हें होम क्वारंटाइन करने के लिए घर से दूर खेत में एक झोपड़ी बना कर उसमें रखने का फैसला किया। अखिलेश अपने घर जाने से पहले हॉस्पिटल में जा कर अपना कोविड-19 का टेस्ट कराएं। जिसके बाद वे लगभग चार दिनों तक सरकारी क्वारंटाइन सेंटर में रहे थें। उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। जिसके दो हफ्ते के बाद वे डिस्चार्ज होकर घर भी आ गए थे। लेकिन अभी भी उनके परिवार ने उन्हें घर से दूर झोपड़ी में ही रखा है। जहां पर उन्हें खाना भी अछूतों की तरह दिया जाता है।” 

अखिलेश का कहना है कि, “मैं बहुत अकेला महसूस करता हूं। मुझसे लोग बात करने में भी कतराते हैं और खाना भी इस तरह से दिया जाता है कि जैसे मैं इंसान ही नहीं हूं। मैं खुद को मानसिक रूप से काफी परेशान महसूस करता हूं। जहां तक बात रही घरवालों की तो वे मुझे घर में रखना भी चाहते हैं, लेकिन पड़ोसियों के तानों के डर से और दबाव के कारण मुझे खुद से अलग-थलग रखा हुआ है।”

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कोरोना सर्वाइवर के लिए हमारी क्या जिम्मेदारी बनती है?

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वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के सर सुंदरलाल हॉस्पिटल बीएचयू के मनोचिकित्सक डॉ. जयसिंह यादव से हैलो स्वास्थ्य ने ये सवाल पूछा। डॉ. जयसिंह का जवाब था कि, “हमारे फोन की कॉलर ट्यून भी हमें यही सिखाती है कि हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं। लेकिन लोग बीमारी से लड़ने के बजाए बीमार से लड़ रहे हैं। कोरोना को भला बुरा करने के बजाए कोरोना विजेता यानी कि कोरोना सर्वाइवर को भला बुरा कहते हैं।” डॉ. जयसिंह ने कुछ टिप्स दिए हैं, जिससे कोरोना सर्वाइवर के लिए हम अपनी जिम्मेदारी को समझ सकते हैं :

  • सबसे पहली बात हमेशा याद रखिए कि कोई भी कोरोना सर्वाइवर कोरोना संक्रमित होने से पहले आप जैसा एक इंसान था। इसके बाद वह कोरोना से जंग जीतने के बाद भी एक इंसान है। 
  • कोरोना को जब से महामारी का नाम मिला है, तब से लोग ज्यादा पैनिक हो जाते हैं। जरा सोचिए कि आप सिर्फ महामारी का नाम सुनकर पैनिक हो जाते हैं, जो व्यक्ति कोरोना से पीड़ित है, वो कितना डरा हुआ हो सकता है। इसलिए आप उसका साथ दे कर उसके मन का डर दूर करें। 
  • कोरोना सर्वाइवर के साथ प्यार से पेश आएं, क्योंकि वो अभी शारीरिक रूप से ठीक हुआ है। लेकिन मानसिक रूप से उसे ठीक होना है, जिसके लिए आपको उसके साथ सामान्य व्यवहार करने की जरूरत है। 
  • किसी भी कोरोना सर्वाइवर को अकेले ना छोड़ें, क्योंकि अब वो आप जैसा एक आम इंसान है और उसमें कोरोना वायरस नहीं है। क्योंकि अकेलापन उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। जिससे वह एंग्जायटी, स्ट्रेस और डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है।

इस तरह से हम सभी को अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है। अगर आपको लगता है कि किसी को आपकी जरूरत है, तो मदद से पीछे ना हटें, बल्कि आगे आए और मदद करें। क्योंकि कोरोना में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना है ना कि सोशलनेस को खत्म करना है। अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Interview of COVID-19 Survivor Ashwin Yadav, Mumbai. Accessed on 10/7/2020

Sign my petition Stop COVID-Shaming Accessed on 10/7/2020

Interview of COVID-19 Survivor Akhilesh Maurya, Jaunpur Accessed on 10/7/2020

COVID-19 Statewise Status/https://www.mohfw.gov.in/ Accessed on 10/7/2020

Coronavirus/https://www.who.int/health-topics/coronavirus#tab=tab_1/Accessed on 10/7/2020

Total Coronavirus Cases in India /https://www.worldometers.info/coronavirus/country/india/Accessed on 10/7/2020

Recovered COVID-19 patient alleges harassment at hands of neighbours in MP’s Shivpuri, puts house on sale
https://www.aninews.in/news/national/general-news/recovered-covid-19-patient-alleges-harassment-at-hands-of-neighbours-in-mps-shivpuri-puts-house-on-sale20200414065931/Accessed on 10/7/2020

Current Version

10/07/2020

Shayali Rekha द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Shayali Rekha


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के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

डॉ. प्रणाली पाटील

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Shayali Rekha द्वारा लिखित · अपडेटेड 10/07/2020

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