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ओसीडी का दिमाग पर क्या असर होता है?
ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर का असर व्यक्ति के दिमाग पर होता है। जैसे कोई व्यक्ति सोने से पहले अपने घर के दरवाजे को अच्छे से बंद करके उसमें ताला लगा कर सोता है, इस भय से कि कहीं कोई चोर उसके घर में न आ जाए। यह एक आम चिंता है लेकिन, यदि वही व्यक्ति चोरों के भय से रात भर यह सोचता रहे कि कहीं उसने ताला ठीक तरह से लगाया या नहीं और कई बार उठकर चेक करे, तो यह एक विकार है, जिसे हम ओसीडी बोलते हैं।
इस बीमारी में आप वही करते हैं, जो आपका दिमाग उस वक्त आपको करने को कहता है। जैसे, यदि आपके मन में एक बार इस बात का भय बैठ जाए कि आपके हाथ में छुपे हुए जर्म्स होते हैं, तो आपका दिमाग आपको हर काम के बाद हाथ धोने के लिए मजबूर करता है और आप करते हैं।
हर व्यक्ति को चिंता या बुरे ख्याल आते हैं पर ऑब्सेसिव विचार आपके दिमाग को एक जगह रोक देते हैं, मतलब आपका दिमाग उस विचार से आगे नहीं बढ़ पाता। इससे होती है एंग्जायटी, स्ट्रेस। इसके बाद फिर वही ख्याल आपके दिमाग में बार-बार आने लगते हैं। ऐसे विचारों को आप जितना दबाने की कोशिश करते हैं, यह उतने ही बढ़ते हैं।
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ओसीडी से कैसे करें बचाव?
- ऐसे विचारों को दूर करने के लिए आपको अपने मन को स्ट्रॉन्ग बनाना होता है। आपको बार-बार उस काम को करने से खुद को रोकना होता है, जिससे आपका दिमाग दूसरी ओर जाने लगता है और आप धीरे-धीरे इस से बाहर निकल सकते हैं।
- ओसीडी से ग्रस्त होने की वजह से आपको अपने विचारों से एंग्जायटी (anxiety) और स्ट्रेस (stress) होने लगता है, जो आपके दिमाग पर दुष्प्रभाव डालते हैं। व्यक्ति हताश और निराश भी महसूस करने लगता है। व्यक्ति इतनी बार एक ही काम को सोचता और करता है कि वो खुद पर से अपना नियंत्रण खो देता है।
- यह आपके लिए बहुत ही निराशाजनक और थकावट भरा हो सकता है। आपको खुद पर गुस्सा भी आता है, पर आपको अपना धैर्य नहीं खोना है।
- यदि आप इस डिसऑर्डर से खुद को मुक्त करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको अपने दिमाग और मन दोनों को यह विश्वास दिलाना होगा कि यह कोई कलंकित बीमारी नहीं है। यह एक आम बीमारी है, जिसके बारे में बात करने से आपकी निंदा नहीं होगी। तभी आप इसके बारे में खुल के बात कर पाएंगे।