डॉ. सुभद्रा मेरी एक कॉलेज प्रोफेसर थीं, एक दिन लंच में हम सब साथ बैठे थे, और ‘सोसियो साइकोलॉजी’ पर बात हो रही थी। अचानक बात में मोड़ आ जाता है, और बच्चों को सेक्स के बारे में बताना चाहिए या नहीं, बताएं तो कब जैसे मुद्दों पर बहस होने लगी, जिसे बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना भी कहा जाता है। दरअसल, इस बीच हमारी प्रोफेसर ने अपने बच्चे के बारे में एक बात बताई जो बीती रात घटी थी ‘मॉम, सेक्स क्या जरूरी है? जन्म देने के लिए?’ यह सवाल प्रोफेसर के बेटे (12 वर्ष) ने उनसे पूछा था। जाहिर है, इस तरह अचानक से आए सवाल से प्रोफेसर घबरा गईं, लेकिन उन्होंने सूझ-बूझ का रास्ता अपनाया।
डॉ. सुभद्रा कहती हैं कि “अगले दिन मैंने बेटे को पास बिठाया और सेक्स क्या होता है? साथ-साथ उसकी अच्छाइयों-बुराइयों और क्या ये कानूनी रूप से सही है या नहीं ये सारी बातें बताईं। इसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चे को इनमें से बहुत बातें समझ नहीं आई होंगी, लेकिन इस व्यवहार और कम्युनिकेशन से कभी भी बच्चे के मन में अब ऐसे सवाल परेशानी नहीं बनेगा।
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कब दें बच्चों को सेक्स एजुकेशन?
हर माता-पिता से उनके बच्चों का यह सवाल रहता है, कि बेबी कहां से और कैसे आता है? यह सवाल सुन पेरेंट्स सकपका जाते हैं, और जवाब देने से कतराते हैं। बात जब बच्चों को सेक्स के बारे में बात करने की आती है, तो ऐसा लगता है, जैसे यह कोई बुरा सपना हो। आज जबकि, कई बड़े स्कूल और शिक्षाविद् ‘सेक्स इन एजुकेशन‘ मॉडल की तरफदारी कर रहे हैं, कई पेरेंट्स ऐसे भी हैं, जो इन सबसे कोई वास्ता नहीं रखते।
जब बच्चा होश संभाल लेता है, तो अक्सर वह परिवार में किसी दूसरी महिला या खुद की मां का फुला हुआ पेट देखकर तरह-तरह के सवाल पूछता है। ऐसे में परिवार के सदस्य बच्चों से काल्पनिक कहानी जैसा ताना-बाना बुन कर उनकी जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, यकीन मानिए, यही सही समय होता है जब बच्चों को सेक्स एजुकेशन की प्रक्रिया को धीरे-धीरे शुरू कर देनी चाहिए। माता-पिता को ऐसे सवालों से कतराने की बजाए बैठकर सेक्स से सम्बंधित शिक्षाप्रद जानकारियों पर खुलकर बात करना चाहिए।
मैं हस्तमैथुन के बारे में अपने किशोर से कैसे बात करूँ?
किशोरों के बीच हस्तमैथुन करना एक तरह से सामान्य बात है। हस्तमैथुन सुरक्षित, आनंददायक है, यह तनाव या किसी अन्य कारण से शरीर की ऐंठन को कम करता है और इसका कोई बुरा दुष्प्रभाव भी नहीं है। यह सबसे सुरक्षित सेक्स भी है अगर आपको पता चले कि आपके किशोर हस्तमैथुन कर रहे हैं, तो चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। हस्तमैथुन यौन भावना को संतुष्ट कर सकता है और किशोर अपने शरीर को जानने में मदद कर सकता है।
बच्चे हस्तमैथुन के बारे में कई तरह की मिथक सुनते हैं – कि केवल लोग इसे करते हैं, या यह कि हर कोई ऐसा करता है यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, वे “अजीब’ हैं। सच्चाई यह है कि सभी लिंग के लोग हस्तमैथुन करते हैं, लेकिन हर कोई ऐसा नहीं करता है। यदि आप इसे करते हैं, तो यह सामान्य है और यदि आप नहीं करते हैं तो भी यह सामान्य है। अपने बच्चों को बातों-बातों में हस्तमैथुन से जुड़ी बातें बताएं, जो आप जानते हैं। ये जानकारियां उन्हें मिथकों से निपटने में मदद कर सकते हैं।
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बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने का सही वक्त क्या है ?
माता-पिता ऐसे सवालों को सुन कर, या फिल्म-टीवी में बच्चों के सामने एडल्ट सीन देखते हुए शर्मा जाते हैं। यह नेचुरल है। लेकिन, बच्चों को सेक्स के बारे में बात करना और बताना आज के समय की जरूरत है। सोशल मीडिया के आ जाने से आजकल के बच्चे बहुत स्मार्ट हो गए हैं। जिन पर वह किसी भी चीज की जानकारी के लिए भरोसा करते हैं, लेकिन वहां से मिली जानकारियां अक्सर गलत और अधूरी होती हैं। इसलिए बच्चों को सेक्स के लिए जो जिज्ञासा होती हैं, उन्हें बेसिक परिचय जरूर दें। सारी बातें विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन कम-से-कम उनका परिचय दें। उन्हें इंसान के रीप्रोडक्टिव सिस्टम की बुनियादी समझ दें। लेकिन शुरुआत करनेवालों के लिए यही सलाह है कि उन्हें उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने जितनी ज़रूरी जानकारी दें, क्योंकि बच्चे अब किसी भी तरह की किसी कहानी पर विश्वास नहीं करने वाले हैं।
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यह इंतजार न करें कि सवाल बच्चों से आए
जरूरी नहीं कि, सारे बच्चे अपने पेरेंट्स से सवाल पूछ पाने में सक्षम हो ही। कुछ बच्चों का ही पेरेंट्स के साथ इस तरह का कम्युनिकेशन होता है कि, वे उनसे सेक्स पर कुछ सवाल कर सके। घर पर बच्चों की एक्टिविटी को ध्यान में रखेंगे, तो समझ जाएँगे कि कब बच्चों के साथ सेक्स एजुकेशन देना शुरू करना चाहिए? अगर बच्चे टीवी पे एडल्ट कंटेंट जैसे शोज देख रहा है, तो यह अच्छा संकेत है, जब आपको बच्चों से सेक्स एजुकेशन के बारे में बात करनी चाहिए।
बच्चों को सेक्स एजुकेशन – संबंधों के नतीजों से भी रूबरू कराएं
सेक्स के बारे में बच्चों से बात करते हुए यह बहुत अहम है कि, आप बिलकुल भी बच्चों के लिए जजमेंटल नहीं बनें। 13-14 साल की उम्र में बच्चों में हॉर्मोन सक्रिय हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप बच्चे प्राकृतिक रूप से अपोजिट जेंडर के प्रति उत्सुक रहते हैं। इस समय बच्चों को कम उम्र की संबंधों से रूबरू कराएं और उन्हें एचआईवी/एड्स और अन्य संबंधित बीमारियों के बारे में जानकारी दें। जब आप बच्चे से सेक्स के ऊपर बात कर रहे हों तो उन्हें किसी भी तरह का सवाल पूछने दें और आप यथासंभव उनकी सवालों का न्यूट्रल होकर जवाब दें। आपका बच्चा अब भी माइनर यानी नाबालिग है, तो उसे इस समय संबंध बनाने से होने वाली परिणामों के बारे आगाह करें।
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बच्चों को वास्तविकता तथा कल्पना के बीच अंतर समझाएं
बच्चों से दिल खोलकर बात करें। टीन एज ग्रुप के ज्यादातर बच्चे सेक्स से संबंधित जानकारियों के लिए इंटरनेट, टीवी और फिल्मों पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर अपनी धारणाएं बनाते हैं। डॉ. सुभद्रा कहती हैं, कि “बच्चों को कल्पनाशीलता और वास्तविकता के बीच अंतर को समझाना बहुत आवश्यक होता है। उन्हें यह समझाना चाहिए कि, प्यार अलग अहसास है और सेक्स एक प्रक्रिया। दोनों ही सुनी और देखी गई कहानियों से अलग होती हैं। सेक्स और फिल्मी फंतासी में बहुत अंतर होता है। उन्हें समझाना चाहिए कि, सेक्स ऐसी प्रक्रिया है, जिसके लिए उन्हें कोई भी काम अपने शरीर की सहजता के बिना नहीं करना चाहिए।
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