नवजात शिशु को स्तनपान से होने वाले फायदों के बारे में तो लगभग हम सभी जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है की स्तनपान करवाने से मां को भी कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिलते हैं। जी हां, दरअसल कई स्टडी इस बात की पुष्टि कर चुकी हैं कि स्तनपान करवाने वाली महिलाओं में किसी भी प्रकार के ट्यूमर के होने का खतरा कम हो जाता है। इसमें मुख्य रूप से ब्रैस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर का खतरा (Risk factor of Ovarian cancer) भी ज्यादा रहता है। इसलिए ओवेरियन कैंसर का खतरा ना हो या समस्या से कैसे दूर रहा जा सकता है यह समझने की कोशिश करते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें की शिशु को 6 महीने तक पोषण मां के दूध से ही प्राप्त होता है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार 6 महीने से कम उम्र के शिशु को स्तनपान के अलावा किसी भी चीज का सेवन नहीं करवाना चाहिए। यह सभी फायदे तो शिशु के लिए हो गए लेकिन मां को स्तनपान से क्या फायदे पहुंचते हैं? तो चलिए जानते हैं –
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ओवेरियन कैंसर का खतरा: स्तनपान बचा सकता है कई जानलेवा बीमारियों से
ब्रेस्टफीडिंग से मां को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं जैसे की जानलेवा बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। स्तनपान करवाने से न केवल ओवेरियन कैंसर का खतरा कम होता है बल्कि यह अन्य बीमारियों जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन, ब्रैस्ट कैंसर और अन्य क्रोनिक रोगों के होने की आशंका को भी कम कर देती है।
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इसके साथ ही स्तनपान के दौरान महिलाओं का कोलेस्ट्रॉल स्तर सामान्य रहता है और उनमें हृदय संबंधी समस्याएं जैसे हार्ट अटैक, दिल की अनियमित धड़कन और रक्तचाप का खतरा कम रहता है।
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स्तनपान और ओवेरियन कैंसर पर क्या कहती है रिसर्च
ऑस्ट्रेलिया में स्थित कर्टिन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में छपी एक स्टडी के मुताबिक ब्रेस्टफीडिंग काफी हद तक ओवेरियन कैंसर का खतरा कम करने में प्रभावशाली होती है।
यह स्टडी 493 चीनी महिलाओं पर की गई जो पहले से ही ओवेरियन कैंसर से ग्रस्त थी। अध्ययन के अनुसार जिन महिलाओं ने 13 महीनों तक स्तनपान करवाया उनमें 7 महीनों से कम समय तक स्तनपान करवाने वाली महिलाओं के मुकाबले ओवेरियन कैंसर का खतरा 63 प्रतिशत कम पाया गया। इससे यह साबित होता है कि जो महिलाएं लंबे समय तक स्तनपान करवाती हैं उनमें कैंसर होने की आशंका उतनी ही कम होती जाती है।
ओवेरियन कैंसर का खतरा: क्या अन्य रिसर्च भी करती हैं यही दावा
वैज्ञानिकों की माने तो ब्रेस्टफीडिंग से ओव्यूलेशन में रुकावट आती है जिसके कारण ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है। अधिक ओव्यूलेशन का मतलब है अधिक सेल म्यूटेशन का खतरा जिसके कारण ओवेरियन कैंसर होने की आशंका बढ़ सकती है।
ब्रेस्टफीडिंग और ओवेरियन कैंसर के बीच के संबंध का पता लगाने के लिए क्यूआईएमआर मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा एक अन्य रिसर्च की गई जिसमें उन्होंने पाया की स्तनपान करवाने वाली महिलाओं में ओवेरियन कैंसर का खतरा 51 प्रतिशत कम होता है। यानी की इस स्टडी का अनुमान भी पिछली स्टडी जैसी ही रहा।
इसके अलावा इस शोध में भी यह पाया गया की जो महिलाएं लंबे समय तक स्तनपान करवाती हैं उनमें ओवरियन कैंसर होने का खतरा उतना ही कम होता जाता है।
क्यूआईएमआर के गाइनेकोलॉजिकल कैंसर ग्रुप के प्रोफेसर पेनेलोप वेब ने बताया कि “स्तनपान करवाने वाली महिलाओं में ओवेरियन कैंसर का खतरा 24 प्रतिशत कम पाया गया। इसके साथ ही जिन माताओं ने अपने बच्चों को तीन महीने या उससे कम समय तक स्तनपान करवाया था उनमें भी 18 प्रतिशत तक ओवेरियन कैंसर का खतरा कम पाया गया।”
“जो महिलाएं अपने शिशु को 12 महीने तक स्तनपान करवाती हैं उनमें ओवेरियन कैंसर का खतरा 34 प्रतिशत कम होता है।”
“सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्तनपान द्वारा होने वाले यह लाभ महिलाओं में स्तनपान छोड़ने के 30 वर्ष बाद तक रहते हैं।”
आखरी में प्रोफेसर वेब ने कहा कि “स्तनपान कैंसर को कैसे प्रभावित करता है” इस विषय को समझने के लिए अन्य अध्ययन करने की आवश्यकता है।
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भारत में कितना प्रभावशाली है ओवेरियन कैंसर
भारत में ओवेरियन कैंसर के आंकड़ों की माने तो यह महिलाओं में होने वाला तीसरा सबसे घातक और सामान्य कैंसर है। देश के हर राज्य में प्रति 1 लाख महिलाओं में लगभग 5 से 8 ओवेरियन कैंसर का शिकार हैं। इसके साथ ही ओवेरियन कैंसर (Ovarian cancer) के 45 प्रतिशत मरीज 5 साल तक ही जीवित रह पाते हैं। यह कैंसर एक उच्च दर्जे का कैंसर है जिसका इलाज अभी पूरी तरह से नहीं मिल पाया है।
स्टेज 4 पर मरीज को बचाने की संभावना मात्र 17 प्रतिशत रह जाती है। हालांकि, अगर इसकी सही समय पर पहचान कर ली जाए तो बचने की संभावना 90 प्रतिशत तक होती है। शुरुआती चरणों में ओवेरियन कैंसर ट्रीटमेंट (Ovarian cancer treatment) की मदद से इसका इलाज किया जा सकता है और मरीज की जान बचाई जा सकती है।
भारत में इसका इलाज मुहैया करवा पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं। सही समय पर कैंसर की पहचान और इलाज से देश में ही मरीज को बचाया जा सकता है।
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ओवेरियन कैंसर को कैसे डायग्नोज किया जाता है? (Diagnosis of Ovarian cancer)
ओवेरियन कैंसर का पता लगाने के लिए डॉक्टर आपको निम्नलिखित टेस्ट रिकमेंड कर सकते हैं:
पेल्विक एग्जाम (Pelvic exam): इसमें डॉक्टर आपकी योनि में गलव्स पहनकर अंगुलियों को डालता है और आपके पेट के अंगों को महसूस करने के लिए पेट पर हाथ दबाता है।
इमेजिंग टेस्ट (Imaging tests): टेस्ट जैसे पेट और श्रोणि के अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन (CT Scan), आपके अंडाशय के आकार और संरचना को निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं।
ब्लड टेस्ट (Blood tests): बल्ड टेस्ट में ओर्गन फंक्शन टेस्ट शामिल हो सकते हैं, जो आपकी ओवरऑल हेल्थ को निर्धारित करने में मदद करते हैं।
सर्जरी (Surgery): कई मामलों में डॉक्टर इसे डायग्नोज करने के लिए आपकी सर्जरी कर सकते हैं। इस सर्जरी में डॉक्टर ओवरी को हटाकर कैंसर के लक्षण देख सकते हैं।
ओवेरियन कैंसर ट्रीटमेंट (Ovarian cancer treatment)
ओवेरियन कैंसर ट्रीटमेंट में सर्जरी और कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा अधिक गंभीर मामलों में रेडियोथेरेपी का भी उपयोग किया जा सकता है। ओवेरियन कैंसर ट्रीटमेंट कैंसर की स्टेज, प्रकार और मरीज पर निर्भर करता है।
ओवेरियन कैंसर ट्रीटमेंट में डॉक्टर सबसे पहले सर्जरी का विकल्प चुनते हैं। सर्जरी की मदद से ट्यूमर वाले अंडो को निकाल दिया जाता है। हालांकि, अभी भी कैंसर फैलने की आशंका रहती है। ऐसे में अन्य उपचार जैसे कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
आंकड़ों की माने तो कीमोथेरेपी (Chemotherapy) रेडियोथेरेपी (Radiotherapy) के मुकाबले अधिक प्रभावशाली मानी जाती है। हम उम्मीद करते हैं कि ओवेरियन कैंसर के खतरे पर आधारित यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा। इस आर्टिकल में हमने ओवेरियन कैंसर के खतरे से जुड़ी जानकारी दी है। ओवेरियन कैंसर ट्रीटमेंट की बेहतर और अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह लेना अनिवार्य है।
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