रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में तो हम सब ने पढ़ा है। विश्वप्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रवींद्रनाथ टैगोर को स्कूल जाने में कोई रूचि नहीं थी। इसलिए उनके घर वालों ने घर पर ही उनके पढ़ने की व्यवस्था की थी। बाद में खुद टैगोर ने शैक्षणिक पद्धति (Teaching methodology) के लिए जाना जाने वाला ‘विश्वभारती शांति निकेतन’ की स्थापना की।ट्रेडिशनल स्कूल की तुलना में होम-स्कूलिंग काफी फ्लेक्सिबल माहौल देता है।
ट्रेडिशनल स्कूल में जहां क्लास का टाइम-टेबल सभी के लिए एक समान होता है, वहीं होम-स्कूलिंग में बच्चों के इंटरेस्ट और जरूरत को ध्यान में रख कर के टाइम-टेबल बनाया जा सकता है। वहीं, घर पर रह कर होम-स्कूलिंग की मदद से पढ़ाई करने वाले छात्र का कहना है कि वह दो-तीन घंटे की पढ़ाई से स्कूल की पूरी पढ़ाई को क्लियर कर पाते हैं। कई बच्चों के पेरेंट्स कहते हैं कि बच्चे को हर दिन स्कूल के लिए मजबूर करने के बजाए, उसे होम स्कूलिंग एज्युकेशन में स्विच किया जाना चाहिए।
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होम-स्कूलिंग किन बच्चों के लिए आवश्यक ?
माता-पिता इन स्थितियों पर अपने बच्चे के लिए होम स्कूलिंग का मन बना सकते हैं।
- अगर आपका बच्चा मेंटली जल्दी ग्रो कर रहा है। तो उसे होम स्कूलिंग में रखना चाहिए। उसने स्कूल के सिलेबस का अध्ययन जल्दी कर लिया और अब क्लास में बैठने में उसकी रूचि नहीं है या कतराता है। ऐसे बच्चों को अपने से बड़े स्टूडेंट्स के साथ पढ़ने को भी बोला जा सकता है। लेकिन फिर बच्चा शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास में पीछे पड़ सकता है।
- कई बार बच्चों में पढ़ाई के अलावा भी किसी चीज में गहरी रूचि रहती है। ऐसे में पेरेंट्स को बहुत परेशानी होती है कि बच्चों की कला, पढ़ाई और हॉबी को कैसे मैनेज किया जाए? ऐसे पेरेंट्स और बच्चों के लिए होम स्कूलिंग बहुत फायदेमंद है, जो अलग से शौक जैसे खेल, संगीत, गायन आदि में भी गंभीर रूचि रखते हैं। इन शौक और रूचि को स्कूल के साथ कंटिन्यू करना मुश्किल होता है।
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- यदि आप या आपके पार्टनर या दोनों ही किसी ऐसे पेशे में हैं, जहां एक समय के बाद ट्रांसफर होता रहता है। जैसे – बैंकिंग और रेलवे। एक अंतराल के बाद बच्चों का स्कूल बदलवाना बहुत मुश्किल होता है। बच्चे का लगातार स्कूल बदलना उसके लिए बहुत परेशानी से भरा होता है। इससे उनके स्कूल परफॉर्मेंस के साथ कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसे में बच्चों का नए टीचर्स, क्लास मेट्स और स्कूल के नए परिवेश में एडजस्ट करना मनोवैज्ञानिक रूप से थोड़ा कठिन है।
- बच्चे को अगर मॉन्टेसरी स्कूल की शिक्षा देना चाहते हैं, तो आप उसे होम-स्कूलिंग पर जोर दे सकते हैं।
- बच्चे को कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। जिसके कारण वह अन्य सामान्य बच्चों के साथ उनकी तरह स्कूल में रहकर नहीं पढ़ सकते हैं।
होम स्कूलिंग के इन बातों का ख्याल रखना है जरूरी
अक्सर देखा जाता है कि बच्चों के स्कूल छोड़ने के कारण मुख्य रूप से मेडिकल या व्यवहार संबंधी होते हैं। वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों को स्कूल में हो रहीं परेशानियों को लेकर होम स्कूलिंग को नहीं चुनना चाहिए। हालांकि होम स्कूलिंग एक लीगल ऑप्शन लेकिन पेरेंट्स को इसे तभी चुनना चाहिए जब वे घर पर ही बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में सक्षम हों।
होम स्कूलिंग के बच्चों को फायदे
- होम स्कूलिंग को बेहतर मानने वाले लोगों का कहना है कि रेगुलर स्कूल का ऑप्शन तो हमेशा ही खुला है। ऐसे में एक बार बच्चों के लिए एक बार होम स्कूलिंग को भी आजमा लेना चाहिए।
- होम स्कूलिंग करने वाले एग्जाम के डर से आजाद रहते हैं। ऐसे बच्चे दूसरों की जगह खुद से ही कंपटिशन करते हैं।
- होम स्कूलिंग के दौरान बच्चा अगर सिलेबस या किताबों से सहज नहीं है, तो आप उनकी किताबे और सिलेबस को बदल सकते हैं।
- होम स्कूलिंग के दौरान बच्चों को पेरेंट्स से घंटों दूर रहकर स्कूल जाने की जरूरत नहीं होती। इस कारण बच्चे सुरक्षित और फ्रेंडली फील करते हैं।
- बच्चों की होम स्कूलिंग के दौरान उनका लर्निंग प्रोसेस केवल स्कूल के अंदर तक ही सिमित नहीं होता है। इस प्रक्रिया में बच्चे अपने आस-पास की चीजों और गतिविधियों से काफी कुछ सीखते हैं।
- बच्चे जब होम स्कूलिंग करते हैं, तो ऐसे में माता-पिता को उनकी सुरक्षा की चिंता नहीं होती है। क्योंकि सारा दिन ही बच्चे घर पर रहते हैं।
- होम स्कूलिंग का एक बड़ा फायदा यह भी है कि बच्चों के लिए टाइम शेड्यूल की दिक्कत नहीं होती है। वे दिन की अन्य गतिविधियों के साथ ही पढ़ाई के लिए समय को भी मैनेज कर सकते हैं।
- होम स्कूलिंग करने से बच्चे की क्रिएटिविटी बढ़ती है। वे सिर्फ किताबी जानकारी पर ही निर्भर नहीं रहते बल्कि जीवन के अन्य गुणों को भी सीखता है।
होम स्कूलिंग के नुकसान
- ट्रेडिशनल स्कूल में बच्चे शेयरिंग करना सीखते हैं। यहां वे अपनी चीजों के साथ-साथ विचारों को भी शेयर करना सीखते हैं। इसके अलवा वे दूसरो के व्यवहार और अन्य आदतों से काफी कुछ सीखते हैं। इसके अलावा रोजाना स्कूल जाने से वे सामाजिक और व्यवहारिक बनाने में मदद करती है। होम स्कूलिंग करने पर बच्चे इन सभी चीजों से वंचित रह जाते हैं।
- पेरेंट्स ट्रेंड टीचर्स नहीं होते हैं। ऐसे में स्कूल में टीचर्स जिस तरह बच्चों को पढ़ाते हैं, वे बच्चों को उस तरह नहीं पढ़ा पाते हैं। पेरेंट्स को भी टीचर्स की तरह अपने बच्चों को अनुशासन में रखने की जरूरत होती है। कई मामलों में यह ज्यादा मुश्किल होता है।
- साथ ही होम स्कूलिंग के दौरान अगर बच्चों की संख्या एक से अधिक है, तो यह और मुश्किल हो सकता है। इस परिस्थिति में आपको किसी की मदद की जरूरत पड़ सकती है।
- बच्चों की होम स्कूलिंग के दौरान पेरेंट्स को पहले उस विषय की खुद जानकारी होनी चाहिए, जिसे वे बच्चों को पढ़ाने वाले हैं।
- होम स्कूलिंग काफी मंहगी भी साबित हो सकती है। होम स्कूलिंग बच्चे के लिए किताबें, कम्पयूटर और अन्य एजुकेशनल मेटेरियल अलग से मंगवाना पड़ेगा।
नए संशोधन की समीक्षा डॉ. प्रणाली पाटील द्वारा की गई
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