सेंसरी डायट (Sensory Diet) एक फिजिकल एक्टिविटीज और एकोमोडेशन का टेलर्ड प्लान (Tailored Plan) है, जिसे बच्चे के सेंसरी नीडस को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है। इस ट्रीटमेंट का फूड के साथ कुछ लेना-देना नहीं है। इसका उद्देश्य केवल शिशु को सही स्टेट में रखना है। जो बच्चे अधिक ओवरस्टिम्युलेटेड होते हैं, उनके लिए सेंसरी डायट (Sensory Diet) में उन एक्टिविटीज को शामिल किया जाएगा जो उन्हें इस स्टेट से बाहर लाने और शांत महसूस करने में मदद कर सकती हैं। सही सेंसरी इनपुट (Sensory input) होने से बच्चों को स्कूल में ध्यान देने, नए कौशल सीखने और अन्य बच्चों के साथ मेलजोल बढ़ाने में मदद मिलती है। लेकिन, सभी बच्चे यह नहीं पहचान पाते हैं कि वे “बिल्कुल सही” स्थिति में नहीं हैं। नियमित रूप से सेंसरी डायट (Sensory Diet) का उपयोग करने से बच्चों में सेल्फ-अवेयरनेस का निर्माण करने में भी मदद मिल सकती है। आइए जानें सेंसरी डायट के बारे में विस्तार से।
सेंसरी डायट (Sensory Diet) क्यों जरूरी है?
जैसे हमें बैलेंस्ड फूड डायट का सेवन करने से फिट और हेल्दी रहने में मदद मिलती है। वैसे ही, शरीर में सेंसरी इंफॉर्मेशन का बैलेंस्ड अमाउंट में होना भी जरूरी है। ताकि, हमारा शरीर सही से काम कर सके। सेंसरी डायट (Sensory Diet) बच्चे को नियमित रूप से अवसर प्रदान करती है कि वह सेंसरी स्टिमुलेशन में इम्बैलेंस को चेक कर सके। जिससे यह सुनिश्चित होता है कि प्राप्त अमाउंट शरीर के लिए अच्छी तरह से काम करने के लिए पर्याप्त है या नहीं। एक खास टेलर्ड सेंसरी डायट (Tailored sensory diet) को पहले एस्टेब्लिश किया जाता है और समय के साथ इसे मॉडिफाइड किया जा सकता है।
सेंसरी डायट (Sensory Diet) में कई सेंसरी एक्टिविटीज होती है, जो बच्चों को शांत और ऑर्गेनाइज्ड रहने में मदद करते हैं जिससे उन्हें सीखने, ध्यान देने और उचित व्यवहार करने के लिए एक ऑप्टीमल स्टेट प्राप्त करने में मदद करता है। जब बच्चा सेंसरी डायट (Sensory Diet) स्किल्स जैसे कंसन्ट्रेटिंग, शेयरिंग आदि के उपयोग से सेल्फ-रेगुलेट और अन्य चीजें सीख जाते हैं, तो वो और भी अधिक जल्दी मेच्योर हो जाते हैं। ऐसे में बच्चा खुद कामों और सिचुएशंस को मैनेज करना सीख जाता है। आइए जानें क्या हैं सेंसरी इनपुट (Sensory input) और टेक्निक्स?
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सेंसरी इनपुट और टेक्निक्स (Sensory input and techniques)
टर्म “सेंसरी इनपुट (Sensory input)” उन अनुभवों के बारे में बताती है, जो हमारे शरीर के विभिन्न सेंसरी सिस्टम्स को उत्तेजित करते हैं। सेंसरी सिस्टम्स में यह सब शामिल है:
प्रोप्रियोसेप्टिव सिस्टम (Proprioceptive system)
जो बच्चे अधिकतर खेलने और कूदने की इच्छा रखते हैं, उन्हें इस पर्टिकुलर सिस्टम में अधिक इनपुट की आवश्यकता हो सकती है। प्रोप्रियोसेप्शन मूवमेंट सेंसेस में से एक है। यह कोऑर्डिनेशन और बॉडी अवेयरनेस में मदद करता है। प्रोप्रियोसेप्टिव सिस्टम में यह सब शामिल है:
- जंपिंग
- डीप प्रेशर
- रेजिस्टेंस अगेंस्ट वर्किंग
सेंसरी डायट: वेस्टिबुलर सिस्टम (Vestibular system)
यह एक अन्य मूवमेंट सेंस है। यह बैलेंस से रिलेटेड है। कई बच्चों को कांस्टेंट मूवमेंट की जरूरत होती है और वो एक जगह नहीं बैठ पाते हैं। जबकि अन्य सुस्त नजर आते हैं। इन मामलों में, निम्नलिखित वेस्टिबुलर इनपुट बच्चे की जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं:
- स्विंगिंग
- रॉकिंग
- बाउंसिंग
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टेक्टाइल इनपुट (Tactile input)
इस इनपुट में टच की सेंस शामिल है। जो बच्चे लगातार ऑब्जेक्ट्स को टच करते हैं या अन्य चीजों को लगातार टच करते हैं, उन्हें टेक्टाइल इनपुट की जरूरत होती है। इन बच्चों को निम्नलिखित से लाभ हो सकता है:
- टेक्टाइल सेंसरी बिन्स (Tactile sensory bins)
- डीप प्रेशर
सेंसरी डायट: ऑडिटरी इनपुट (Auditory input)
सेंसरी एक्सपीरियंस जिनमें साउंड शामिल हैं, उन्हें ऑडिटरी इनपुट के नाम से जाना जाता है। जब बच्चे लगातार गुनगुना रहे हों, चिल्ला रहे हों और अन्य शोर कर रहे हों, तो उन्हें अन्य बच्चों की तुलना में अधिक ऑडिटरी इनपुट की आवश्यकता हो सकती है। इस तरह के इनपुट जिनबच्चों को चाहिए होते हैं, उन बच्चों के लिए अच्छे ऑडिटरी एक्सपीरियंस में यह सब शामिल हैं:
- हेडफोन्स के साथ म्यूजिक सुनना
- उन खिलौनों से खेलना, जो आवाज निकालते हों
- इंस्ट्रूमेंट को प्ले करना
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विजुअल इनपुट (Visual input)
जिन बच्चों को अधिक विजुअल इनपुट की आवश्यकता होती है, वे वस्तुओं को करीब से देख सकते हैं। वे मूविंग या स्पिनिंग ऑब्जेक्ट्स की तलाश कर सकते हैं। वो एक्टिविटीज जो विजुअल स्टिमुलेशन प्रोवाइड कर सकती हैं, इस प्रकार हैं
- फ्लैशलाइट प्ले
- लाइट वाले टॉयज के साथ खेलना
ध्यान रखें कि जहां सेंसरी प्रोसेसिंग इशूज वाले कुछ बच्चों को इनमें से एक या अधिक एरियाज में अधिक सेंसरी इनपुट (Sensory input) की आवश्यकता होती है, वहीं अन्य बच्चे कुछ प्रकार के सेंसरी अनुभवों के प्रति अतिसंवेदनशील हो सकते हैं। इन बच्चों को कम इनपुट की आवश्यकता हो सकती है। इन अनुभवों पर नेगेटिव रिएक्शंस को रोकने के लिए उन्हें कुछ स्ट्रेटेजीज की भी आवश्यकता हो सकती है। अब जानते हैं की अगर उपचार न कराया जाए तो अपर्याप्त सेंसरी डायट (Sensory Diet) की वजह से क्या समस्याएं हो सकती हैं?
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अपर्याप्त सेंसरी डायट (Sensory Diet) से क्या परेशानियां हो सकती हैं?
जिन बच्चों को पर्याप्त सेंसरी डायट (Sensory Diet) नहीं मिलती है, उन्हें यह परेशानियां हो सकती हैं:
- फिजिकल एक्टिविटी, इमोशन या थॉट की पुअर सेल्फ रेगुलेशन
- ऐकडेमिक एनवायरनमेंट में सीखना या उसे डेमोंस्ट्रेट करने में परेशानी
- स्लीप डिफीकल्टीज, जिससे उनकी लर्निंग एबिलिटी पर असर हो सकता है
- सोशल सेटिंग में कठिनाइयों का सामना करना, जिससे सोशल इंटरेक्शन्स पर प्रभाव पड़ सकता है
- एंग्जायटी और पुअर सेल्फ-एस्टीम इशूज
- सोशल आइसोलेशन। अब जानते हैं सेंसरी डायट (Sensory Diet) प्रोडक्ट्स के बारे में।
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सेंसरी डायट प्रोडक्ट्स (Sensory Diet Products)
ऐसे कई सेंसरी प्रोडक्ट्स हैं जिनकी सलाह थेरेपिस्ट बच्चे की सेंसरी नीडस को पूरा करने के लिए दे सकते हैं। यह प्रोडक्ट्स इस प्रकार हैं:
- सेंसरी सॉक्स (Sensory socks)
- एबिलिटेशंस स्टेN’प्लेस बॉल (Abilitations StayN’Place Ball)
- वाल्डोर्फ रॉकर बोर्ड (Waldorf rocker board)
- वेटेड वेस्ट (Weighted vest)
- वेटेड ब्लैंकेट (Weighted blanket)
- क्रेश पैड़ (Crash pad)
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यह तो थी जानकारी सेंसरी डायट (Sensory Diet) के बारे में। याद रखें, सेंसरी डायट (Sensory Diet) एक टेलर्ड प्रोग्राम है। जिससे बच्चों की जरूरतों को जाना जा सकता है। इससे उन्हें उन्हें बेहतर अटेंशन, लर्निंग और बिहेव करने के मदद मिल सकती है। यह वो स्किल हैं, जो प्रीस्कूल या स्कूल रिडिनेस (readiness) की नींव बनाते हैं। सेंसरी सिस्टम शिशु के सात साल तक होने तक डेवलप होता रहता है। यही कारण है कि जल्दी इलाज कराना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि इस उम्र के बाद इलाज कराना व्यर्थ है, लेकिन यह जानना अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि बच्चे की सेंसरी सिस्टम को क्या चाहिए?
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