कुछ टेस्ट और इमेजिंग स्टडीज डॉक्टर के लिए मददगार हो सकते हैं। हाथ और कलाई का एक्सरे शिशु के बोन डेवलपमेंट के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसके साथ ही ब्लड टेस्ट के जरिए हॉर्मोन इंबैलेंस और पेट, किडनी और लिवर से जुड़ी तकलीफों के बारे में पता किया जा सकता है।
कुछ कैसेज में डॉक्टर ब्लड टेस्टिंग के लिए बच्चे को रातभर के लिए हॉस्पिटल में रुकने के लिए कह सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ग्रोथ हॉर्मोन की काफी मात्रा का प्रोडक्शन तब होता है जब बच्चा सो रहा हो। कई बार शिशु के विकास में देरी का कारण कुछ सिंड्रोम होते हैं जिनका परीक्षण किया जा चुका होता है। जैसे कि डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) और टर्नर सिंड्रोम।
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शिशु के विकास में देरी होने पर इसका इलाज कैसे किया जाता है?
बच्चे का ट्रीटमेंट उस कारण पर निर्भर करता है जिसकी वहज से विकास में देरी हो रही है। अगर विकास में देरी का कारण फैमिली हिस्ट्री या कॉन्स्टिट्यूशनल डिले (constitutional delay) है तो डॉक्टर सामान्यत: कोई ट्रीटमेंट रिकमंड नहीं करते। दूसरे कारणों के आधार पर निम्न ट्रीटमेंट शुरू किए जा सकते हैं।
ग्रोथ हॉर्मोन डिफेशिएंसी (Growth hormone deficiency) होने पर
अगर आपके बच्चे में ग्रोथ हॉर्मोन डेफिशिएंसी है तो डॉक्टर जीएच का इंजेक्शन दे सकता है। इंजेक्शन घर में पेरेंट्स के द्वारा दिन में एक बार दिया जाता है। यह इंजेक्शन कई वर्षों तक दिया जाता है जब तक बच्चे का विकास जारी रहता है। डॉक्टर ट्रीटमेंट के प्रभाव पर नजर रखते हैं और उसके अनुसार डोज को घटाते या बढ़ाते हैं।
हायपोथायरॉडिज्म (Hypothyroidism) के कारण शिशु के विकास में देरी होने पर
शिशु के लिए डॉक्टर थायरॉइड हॉर्मोन रिप्लेसमेंट ड्रग्स देते हैं जो कि शिशु के अंडरएक्टिव थायरॉइड ग्लैंड के साथ कंपनसेट करते हैं। ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर शिशु के हॉर्मोन लेवल को रेगुलरली मॉनिटर करते हैं। कुछ बच्चे इस डिसऑर्डर से कुछ समय में ओवरकम कर लेते हैं, लेकिन कुछ बच्चों को जीवनभर ये ट्रीटमेंट लेना पड़ता है।
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