हाई कोलेस्ट्रॉल न सिर्फ दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ा देती है, बल्कि पित्ताशय यानी गॉलब्लैडर से जुड़ी समस्याओं का भी कारण बन सकती है। पित्ताशय की पत्थरी या गॉलब्लैडर स्टोन का कारण भी गॉलब्लैडर में कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना है। गॉलब्लैडर में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने को कोलेस्टेरोलोसिस (Cholesterolosis) कहते हैं। गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस (Gallbladder cholesterolosis) क्यों होता है और गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस (Gallbladder cholesterolosis) का क्या उपचार है जानिए इस आर्टिकल में।
पित्ताशय क्या है और क्या काम करता है? (What is Gallbladder)
पित्ताशय (Gallbladder) नाशपाती के आकार का एक अंग है जो लिवर के नीचे स्थित होता है। इसका काम पित्त को इकट्ठा करना है। लिवर से निकलने वाला 70 प्रतिशत पित्त छोटी आंत और 30 प्रतिशत गॉलब्लैडर में जमा होता है। जब आप ज्यादा तलाभुना खाते हैं तो लिवर से निकलने वाला कोलेस्ट्रॉल अधिक मात्रा में गॉलब्लैडर में जमा हो जाता है और पथरी का कारण बनता है। इसके अलावा मोटे लोगों में पित्ताशय की पथरी का खतरा अधिक होता है। गॉलब्लैडर स्टोन होने से एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है जिसका अर्थ है पित्ताशय में सूजन।
कोलेस्टेरोलोसिस क्या है? (Gallbladder cholesterolosis)
गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस (Gallbladder cholesterolosis) एक ऐसी स्थिति है जो अक्सर गॉलब्लैडर को प्रभावित करती है। गॉलब्लैडर यानी पित्ताशय लिवर के नीचे मौजूद नाश्पाती के आकार का एक अंग होता है। यह पित्त को एकत्र करता है और भोजन को पचाने में मदद करने के लिए कोलेस्ट्रॉल और फैट को कोलेस्टरल एस्टर्स (cholesteryl esters) में बदलता है। ये कोलेस्टरल एस्टर्स पूरे शरीर में रक्तप्रवाह के जरिए कोलेस्ट्रॉल और फैटी एसिड को जाने में मदद करते हैं। गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस(Gallbladder cholesterolosis) तब होता है जब कोलेस्टरल एस्टर्स बिल्डअप होता जाता है और पॉलिप्स बनाने वाले पित्ताशय की दीवार से चिपक जाते हैं। यह स्थिति व्यस्कों में आम है, लेकिन बच्चों में दुर्लभ ही देखी गई है।
कोलेस्टेरोलोसिस लोक्लाइज्ड (Localized) या डिफ्यूज्ड (Diffused) हो सकता है। लोक्लाइज्ड कोलेस्टेरोलोसिस का मतलब है एक पॉलिप्स (Polyps) और डिफ्यूज्ड कोलेस्टेरोलोसिस का मतलब होता है पॉलिप्स (Polyps) का ग्रुप। गॉलब्लैडर की दीवार पर ऐसे कई ग्रुप हो सकते हैं। डिफ्यूज्ड कोलेस्टेरोलोसिस (strawberry gallbladder) को स्ट्रॉबेरी गॉलब्लैडर भी कहा जाता है।
गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस : क्या है लक्षण? (Gallbladder cholesterolosis symptoms)
गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस (Gallbladder cholesterolosis) होने पर किसी तरह के लक्षण नहीं दिखते हैं, हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि इसके लक्षण गॉलस्टोन यानी पित्ताशय की पथरी जैसे ही होते हैं।
गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस के कारण (Gallbladder cholesterolosis causes)
कोलेस्टेरोलोसिस आमतौर पर कोलेस्टरल एस्टर्स की अधिक मात्रा के कारण होता है। इसका एक कारण नेचुरल एजिंग प्रोसेस के कारण होने वाला डिजनरेशन है। हालांकि कोलेस्टरल एस्टर्स की अधिक मात्रा का कारण अब भी रिसर्चर के बीच बहस का मुद्दा है। इसके कुछ संभावित कारणों में शामिल है-
- शराब का सेवन (Alcohol consumption)
- स्मोकिंग (smoking)
- ऊंचा सीरम कोलेस्ट्रॉल लेवल (elevated serum cholesterol levels)
- बढ़ा हुआ BMI (elevated BMI)
इन संभावित कारणों पर साइंटिस्ट अभी और रिसर्च कर रहे हैं। कुछ अध्ययन बताते हैं कि जिन लोगों को कोलेस्टेरोलोसिस की समस्या है उनके पित्त में सैचुरेटेड कोलेस्ट्रॉल (Saturated cholesterol) की मात्रा अधिक देखी गई है। फिलहाल वैज्ञानिक सामान्य एजिंग की डिजनरेटिव प्रोसेस के अलावा कोलेस्टेरोलोसिस के अन्य कारणों का पता लगाने के लिए रिसर्च कर रहे हैं।
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गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस का निदान (Diagnosis of cholesterolosis)
गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस (Gallbladder cholesterolosis) का निदान आमतौर पर अल्ट्रासाउंड (ultrasound), एमआरआई (MRI) और दूसरे इमेजिंग टेस्ट के दौरान किया जाता है। अक्सर इस स्थिति का पता पित्ताशय की पथरी (gallstones) की जांच के दौरान चलता है।
गॉलब्लैडर के कोलेस्टेरोलोसिस का उपचार (Gallbladder cholesterolosis treatment)
अधिकांश मामलों में मरीज को पता ही नहीं होता कि उसे कोलेस्टेरोलोसिस है जब तक कि उसका अल्ट्रासाउंड या पित्ताशय की पथरी या कोलेसिस्टेक्टॉमी (गॉलब्लैडर निकालना) के बाद कोई इमेजिंग टेस्ट न किया जाए। आमतौर पर कोलेस्टेरोलोसिस (Cholesterolosis) से जुड़ा कोई लक्षण नहीं दिखता है और पॉलिप्स (Polyps) भी आमतौर पर सौम्य (benign) होते है, इसलिए किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है। यदि आपके डॉक्टर को लगता है कि आपको कोलेस्टेरोलोसिस है तो वह एमआरई या साल में एक बार दूसरे स्कैन के लिए कहेगा ताकि पॉलिप्स पर नजर रख सके। कुछ मामलों में यह देखने के लिए पॉलिप्स सौम्य है आपका डॉक्टर बायोप्सी (Biopsy) कर सकता है।
कुछ जानकारों का मानना है कि आप सेहत से जुड़ी दूसरी चीजों को कंट्रोल करके कोलेस्टेरोलोसिस (Cholesterolosis) को मैनेज कर सकते हैं जिसमे शामिल है-
- वजन कम करना (losing weight) और अपना BMI निर्देशित लेवल तक रखना
- हाई कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करना (controlling high cholesterol)
- शराब का सेवन (alcohol consumption) कम करना
- स्मोकिंग से परहेज (not smoking)
हालांकि इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त रिसर्च नहीं है कि ऊपर बताई गई चीजों का कोलेस्टेरोलोसिस से कोई संबंध है, लेकिन सामान्य रूप से यह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
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कोलेस्ट्रॉल और पित्ताशय की थैली में पथरी
लिवर में कोलेस्ट्रॉल अधिक होने पर पित्त की थैली में भी इसकी मात्रा बढ़ने लगती है और इसके कारण पित्त की थैली में स्टोन या गॉलस्टोन की समस्या हो जाती है। 80 प्रतिशत पथरी कोलेस्ट्रॉल से बनी होती है, जो धीरे-धीरे कठोर होकर पत्थर की तरह जम जाती है। कोलेस्ट्रॉल स्टोन पीले या हरे रंग का होता है। कोलेस्ट्रॉल के अलावा बिलरुबीन नामक तत्व की अधिकता भी गॉलस्टोन के लिए जिम्मेदार होती है।
पित्ताशय की थैली में पथरी के लक्षण (Gallstones symptoms)
गॉलस्टोन के कारण पेट में ऊपर दाहिनी तरफ दर्द होता है। जब आप हाई फैट फूड खाते हैं तो गॉलब्लैडर में समय-समय पर दर्द होने लगता है। दर्द कुछ घंटों तक रह सकता है। इसके अलावा आपको निम्न लक्षण दिख सकते हैं-
- मितली (nausea)
- उल्टी (vomiting)
- पेशाब का रंग गहरा (dark urine)
- मिट्टी के रंग का मल (clay-colored stools)
- पेट में दर्द (stomach pain)
- डायरिया (diarrhea)
- अपच (indigestion)
जटिलताएं और लान्ग टर्म रिस्क (Complications and long-term risk)
गॉलस्टोन से कई तरह की जटिलताएं हो सकती हैं और इसका असर लंबे समय तक रह सकता है। पित्त की थैली में पथरी से होने वाली जटिलताओं में शामिल है-
एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस (Acute cholecystitis)
जब गॉलस्टोन उस डक्ट को प्रभावित करता है जहां पित्ताशय से पित्त जाता है, तो यह पित्ताशय में सूजन और संक्रमण पैदा कर देता है। इसे
जब एक पित्ताशय वाहिनी को अवरुद्ध करता है जहां पित्त पित्ताशय की थैली से चलता है, तो यह पित्ताशय में सूजन और संक्रमण का कारण बन सकता है। इसे एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस (Acute cholecystitis) कहा जाता है और यह मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति है।
एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस के लक्षणों में शामिल है-
- पेट के ऊपरी हिस्से के मध्य या दाहिना तरफ तेज दर्द
- बुखार (fever)
- ठंडी लगना (chills)
- भूख न लगना (appetite loss)
- मितली या उल्टी (nausea and vomiting)
गाल्स्टोन का उपचार न कराने पर निम्न जटिलताएं हो सकती हैं-
- जॉन्डिस, त्वचा या आंखों का पीला पड़ना
- कोलेसिस्टाइटिस (cholecystitis), गॉलब्लैडर का एक संक्रमण
- सेप्सिस (sepsis), एक ब्लड इंफेक्शन
- पैनिक्रियाज (pancreas) मं सूजन
- गॉलब्लैडर कैंसर (gallbladder cancer)
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गॉलब्लैडर से जुड़ी अन्य बीमारियां (Types of gallbladder disease)-
पथरी के अलावा पित्ताशय की थैली से जुड़ी कई अन्य बीमारियां भी है जिसमें शामिल हैं-
कोलेडोकोलिथियसिस (Choledocholithiasis)
पित्ताशय की थैली में पथरी या गॉलस्टोन पित्ताशय (gallbladder) के गले ये पित्त नलिका में हो सकता है। जब गॉलब्लैडर इस तरह से प्लगड (plugged) हो जाता है तो पित्त बाहर नहीं निकल पाता। इस वजह से पित्ताशय में सूजन हो सकती है। इस स्थिति को कोलेडोकोलिथियसिस कहते हैं। इसके कारण निम्न परेशानियां हो सकती है-
- ऊपरी पेट (Upper abdomen) के मध्य हिस्से में तेज दर्द
- बुखार (fever)
- ठंडी लगना (chills)
- मितली (nausea)
- उल्टी (vomiting)
- जॉन्डिस (jaundice)
इसका उपचार कई तरीकों से किया जा सकता है जैसे पथरी निकालना (Stone extraction), लिथोट्रिप्सी जिसमें पथरी के टुकड़े-टुकड़े किए जाते हैं और पित्ताशय की थैली और पथरी को सर्जरी के जरिए हटाना।
एकैल्कुल्स गॉलब्लैडर डिसीज (Acalculous gallbladder disease)
यह गॉलब्लैडर की सूजन है, लेकिन इसमें गॉलस्टोन नहीं होता है। लंबे समय से बीमार रहने या गंभीर मेडिकल कंडिशन के कारण यह स्थिति उभरती है। इसके लक्षण एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस (acute cholecystitis) जैसे ही है। इसके कुछ जोखिम कारकों में शामिल है-
- गंभीर शारीरिक आघात (severe physical trauma)
- हार्ट सर्जरी (heart surgery)
- पेट की सर्जरी (abdominal surgery)
- गंभीर रूप से जलना (severe burns)
- ऑटोइम्यून कंडिशन जैसे ल्यूपस (autoimmune conditions like lupus)
- रक्तप्रवाह संक्रमण (blood stream infections)
- बैक्टीरियल या वायरल बीमारी (bacterial or viral illnesses)
इस बीमारी का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि स्थिति कितनी गंभीर है। यदि मरीज बहुत गंभीर है तो उसे पहले स्टैबलाइज्ड किया जाता है। ब्लैडर पर बने दबाव को कम करना पहली प्राथमिकता होती है। इसके साथ ही गॉलब्लैडर में ड्रेनेज ट्यूब डाली जाती है। यदि मरीज को बैक्टीरियल इंफेक्शन है तो उसे एंटीबायोटिक्स दिया जाता है।
बाइलियरी डिसकनिजिया (Biliary dyskinesia)
यह स्थिति तब होती है जब पित्ताशय सामान्य से कम काम करता है। आमतौर पर इसके लिए गॉलब्लैडर की सूजन जिम्मेदार होती है। इसके लक्षणों में शामिल है-
- खाने के बाद पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द
- मितली
- पेट फूलना
- अपच
फैटी फूड खाने के बाद लक्षण और गंभीर हो जाते हैं। बाइलियरी डिसकनेशिया की स्थिति में आमतौर पर पित्ताशय की थैली में पथरी नहीं होती है।
इसका एकमात्र उपचार है गॉलब्लैडर निकालना। दरअसल, यह अंग किसी व्यक्ति के स्वस्थ जीवन जीने केलिए जरूरी नहीं होता है।
गॉलब्लैडर कैंसर (Gallbladder cancer)
गॉलब्लैडर का कैंसर दुर्लभ बीमारी है। यह कई प्रकार का हो सकता है। आमतौर पर इसका उपचार मुश्किल होता है, क्योंकि इसका निदान करना संभव नहीं होता जब तक की बीमारी बहुत न बढ़ जाए। गॉलब्लैडर कैंसर (Gallbladder cancer) के जोखिम कारको में गॉलस्टोन (Gallstones) मुख्य है। गॉलब्लैडर कैंसर अंदर की दीवार से गॉलब्लैडर की बाहरी दीवार और फिर लिवर (liver), लिम्फ नोड (lymph nodes) और दूसरे अंगों तक फैल सकता है।
इसका इलाज सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी, दवा और कीमोथेरेपी के जरिए किया जा सकता है। उपचार का तरीका मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।
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गॉलब्लैडर पॉलिप्स (Gallbladder polyps)
गॉलब्लैडर पॉलिप्स गॉलब्लैडर के अंदर होने वाला घाव या एक तरह का विकास है। यह आमतौर पर सौम्य होता है और इसके कोई लक्षण नहीं होते। हालांकि 1 सेंटीमीटर से बड़े पॉलिप्स के लिए पित्ताशय की थैली को हटाने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह कैंसरस (cancerous) हो सकते हैं।
आधा इंच से छोटे साइज के पॉलिप्स को किसी इलाज की जरूरत नहीं होती है, लेकिन यदि यह बड़े होते हैं तो सर्जरी के जरिए गॉलब्लैडर को हटाया जा सकता है। हालांकि दुलर्भ मामलों में ही पॉलिप्स कैंसरस होते हैं।
कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा पित्ताशय की थैली में कोलेस्टेरोलोसिस या गॉलब्लैडर का कोलेस्टेरोलोसिस (Gallbladder cholesterolosis) के लिए जिम्मेदार हो सकती है। इसके अलावा कई हाय कोलेस्ट्रॉल कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है, इसलिए इसे कंट्रोल में रखने की कोशिश करें। जिसके लिए हेल्दी डायट और एक्सरसाइज जरूरी है।
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