मनुष्यों में कई तरह के इंफेक्शन होते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि गर्भ में पल रहे बच्चे में इंफेक्शन हो गया हो। इस इंफेक्शन को इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन कहते हैं। इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन को कॉरियोएम्नियॉनिटिस (Chorioamnionitis) भी कहते हैं। ये इंफेक्शन बैक्टीरिया के कारण होता है और इसका गर्भ में पल रहे बच्चे पर सीधा असर होता है। वहीं, गर्भवती महिला को भी कुछ समस्याएं हो सकती हैं। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन क्या है, इसके होने का कारण क्या है और इलाज कैसे हो सकता है?
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इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन क्या है?
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन एक प्रकार का बैक्टीरियल इंफेक्शन है। इसे कॉरियोएम्नियॉनिटिस, एम्नियॉनिटिस या इंट्रा-एम्नियॉटिक इंफेक्शन भी कहते हैं। ये बैक्टीरियल इंफेक्शन प्रसव के पहले या प्रसव के दौरान हो जाता है। गर्भ में बच्चा जिस मेमब्रेन से घिरा रहता है, उसे कॉरिऑन (chorion) कहते हैं और पानी से भरी हुई थैली को एम्निऑन कहते हैं। इसी कॉरिऑन और एम्निऑन के बीच हुए इंफेक्शन को मिला कर कॉरियोएम्नियॉनिटिस कहा जाता है।
कॉरियोएम्नियॉनिटिस ऐसी स्थिति में होता है जब बच्चे के लिए कॉरिऑन, एम्निऑन और एम्निऑन फ्लूइड से बना घेरा इंफेक्टेड हो जाता है। इससे मां और गर्भ में पल रहे बच्चे दोनों को इंफेक्शन होने का रिस्क काफी हद तक बढ़ जाता है। अक्सर ये समय से पहले बच्चे के जन्म के लिए जिम्मेदार होती है, लेकिन 2 से 4 प्रतिशत ही डिलिवरी का समय पूरा होने पर ही बच्चे का जन्म होता है।
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कॉरियोएम्नियॉनिटिस के कारण क्या हैं?
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि कॉरियोएम्नियॉनिटिस एक प्रकार का बैक्टीरियल इंफेक्शन है, तो जाहिर सी बात है कि ये इंफेक्शन बैक्टीरिया के कारण ही होगा। ई. कोलाई, एनेरोबिक बैक्टीरिया और ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकॉकस बैक्टीरिया के कारण होता है। ये बैक्टीरिया एम्नियॉटिक फ्लूइड और प्लेसेंटा के साथ-साथ बच्चे को भी इंफेक्टेड कर सकते हैं।
कॉरियोएम्नियॉनिटिस के लक्षण क्या हैं?
कॉरियोएम्नियॉनिटिस अक्सर दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन कुछ महिलाओं में निम्न लक्षण सामने आ सकते हैं :
- हार्टबीट का असामान्य होना
- ज्यादा पसीना आना
- छूने में यूट्रस मुलायम लगना
- तेज बुखार होना
- वजायना से अजीब महक के साथ डिस्चार्ज होना
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इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन के लिए कुछ रिस्क फैक्टर भी है
कॉरियोएम्नियॉनिटिस होने का जोखिम निम्न लोगों को सबसे ज्यादा होता है :
- पहली प्रेग्नेंसी में
- 21 साल से कम उम्र में मां बनने वाली महिला में
- लंबा प्रसव होना
- प्रीमेच्योर बर्थ
- पानी की थैली फट जाने पर
- प्रसव के दौरान कई बार परीक्षण करने के कारण
- जेनाइटल एरिया में पहले से कोई इंफेक्शन होने के कारण
उपरोक्त में से अगर कोई भी बिंदु आपकी स्थिति से मेल खाता है तो आप इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन का शिकार हो सकती हैं।
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कॉरियोएम्नियॉनिटिस का इलाज क्या है?
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन का इलाज करने से पहले आपको उसकी जांच करानी होगी। इसके लिए डॉक्टर महिला का फिजिकल टेस्ट करते हैं। इसके अलावा एम्नियॉटिक फ्लूइड के माध्यम से लैब में टेस्ट कर के पता लगाया जाता है कि कौन सा बैक्टीरिया इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार है।
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन के लिए शुरू में डॉक्टर लक्षणों के आधार पर इलाज करते हैं। जैसे बुखार होने पर बुखार कम करने की दवा देते हैं। इसके बाद बैक्टीरिया का इलाज करने के लिए इंट्रावेनस इंजेक्शन के द्वारा एंटीबायोटिक्स देते हैं। एंटीबायोटिक्स का इंजेक्शन तब तक लगता रहता है, जब तक आपकी डिलिवरी नहीं हो जाती है। डॉक्टर आपको निम्न एंटीबायोटिक्स दे सकते हैं :
- पेनिसिलीन
- एम्पिसिलीन
- जेंटामाइसिन
- मेट्रोनिडाजोल
- क्लिनडामायसीन
जब डॉक्टर इंफेक्शन का इलाज पूरा कर लेते हैं तो एंटीबायोटिक्स का डोज बंद कर देते हैं। इलाज के बाद आप अपने घर जा सकती हैं, लेकिन डॉक्टर द्वारा दी गई हिदायत पर आप को ध्यान देते हुए उनकी सलाह को फॉलो करना होगा।
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कॉरियोएम्नियॉनिटिस के साथ क्या समस्याएं हो सकती हैं?
सबसे पहले अपने मन में बैठा लीजिए कि इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन एक मेडिकल इमरजेंसी है। ये आपको कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी दे सकती है :
- डिलिवरी के साथ ज्यादा ब्लड लॉस हो सकता है
- एंडोमेट्रिटिस, यूट्रस के लाइनिंग में इंफेक्शन हो सकता है
- सिजेरियन डिलिवरी की जरूरत हो सकती है
- फेफड़े और पेल्विस में खून का जम जाना
3 से 12 प्रतिशत महिलाओं में कॉरियोएम्नियॉनिटिस में सिजेरियन डिलिवरी करने की नौबत आती है। जिसमें से 8 फीसदी तक महिलाओं में घाव के कारण इंफेक्शन हो जाता है। वहीं एक प्रतिशत महिलाओं के पेल्विक में फोड़ा हो जाता है। वहीं बच्चे और मां की मौत बहुत रेयर मामलों में होती है।
कॉरियोएम्नियॉनिटिस से ग्रसित मां से जो बच्चे पैदा होते हैं, उन्हें भी खतरा होता है। बच्चे के ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड में ये इंफेक्शन हो सकता है। हालांकि, ऐसा मात्र एक फीसदी बच्चों में ऐसा होता है। वहीं, कॉरियोएम्नियॉनिटिस से ग्रसित महिला से पैदा हुए बच्चे को निमोनिया होने का खतरा भी रहता है। 5 से 10 फीसदी ऐसे बच्चे निमोनिया से ग्रसित हो जाते हैं। वहीं, अगर कोई बच्चा समय से पहले पैदा हो जाता है तो उसकी जान भी जा सकती है।
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन से कैसे बचा जा सकता है?
इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन बचाने के लिए डॉक्टर कई तरह के प्रयास करते हैं। लेकिन पहली जिम्मेदारी आपकी है कि आप इस इंफेक्शन से कैसे बचें। इसके लिए जब से आप गर्भवती हो तब से डॉक्टर से निम्न जांच कराते रहें :
- अपनी दूसरी तिमाही में बैक्टीरियल वजायनोसिस की जांच कराएं।
- प्रेग्नेंसी के 35 से 37वें हफ्ते में ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकॉकल के संक्रमण की जांच कराएं।
- प्रसव के दौरान बार-बार वजायनल जांच ना की जाए।
इन सभी बातों के अलावा आप डॉक्टर द्वारा कही गई बातों का पालन करें।
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प्रेग्नेंसी में बैक्टीरियल वजायनोसिस क्या है?
बैक्टीरियल वजायनोसिस (BV) योनी में होने वाला एक संक्रमण है। बैक्टीरियल वजायनोसिस का इलाज आसानी से किया जा सकता है। जब बैक्टीरिया की वजह से वजायना में इंफेक्शन होता है। बैक्टीरियल वजायनोसिस होने पर आप कुछ लक्षण महसूस करेंगे जैसे-
- वजायना में खुजली, जलन, या दर्द
- सेक्सुअल इंटरकोर्स के बाद खराब स्मेल आना
- वजायना से आने वाली दुर्गंध
- गहरे रंग का मोटा डिस्चार्ज होना
अगर प्रेग्नेंसी के दौरान इस बैक्टीरियल वजायनोसिस इंफेक्शन का इलाज नहीं कराया जाता है तो प्रीटर्म लेबर, प्रीमेच्योर बर्थ और लोअर बर्थ बेबी का खतरा रहता है।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। इस तरह से आपने इंट्रायूटेराइन इंफेक्शन और उससे जुड़ी सभी बातों के बारे में जान लिया है। उम्मीद है कि आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से बात कर सकती हैं। बिना जानकारी के कोई ऊी ट्रीटमेंट घर में न लें। ये आपके लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
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