गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में कई तरह की समस्याएं देखने को मिलती हैं उन्हीं में से एक कार्पल टनल सिंड्रोम (हाथ में सुन्न या झुनझुनाहट) भी है। प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम होना वैसे तो सामान्य है। साधारणत: कार्पल टनल सिंड्रोम ज्यादा गंभीर बीमारी नहीं है। गर्भावस्था के बाद यह समस्या दूर हो जाती है, लेकिन बहुत सी गर्भवती महिलाएं हैं इस समस्या से अंजान होती हैं तो आइए जानते हैं कि प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं? इसका उपचार कैसे किया जाता है।
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क्या प्रेग्नेंसी में हाथ में सुन्न या झुनझुनाहट की समस्या सामान्य है?
प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम (Carpal tunnel syndrome (CTS) होना सामान्य है। इस बीमारी को मीडियन नर्व कम्प्रेशन भी कहते हैं। एक रिसर्च के अनुसार 4 प्रतिशत आवादी कार्पल टनल सिंड्रोम से पीड़ित है। वहीं 2015 में हुए एक रिसर्च के अनुसार 31 से 62 प्रतिशत महिलाएं प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम से पीड़ित थीं। हालांकि CTS की समस्या गर्भवती महिलाओं किन कारणों से होता है यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि गर्भावस्था में हॉर्मोन में हो रहे बदलाव की वजह से प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम की बीमारी हो सकती है।
कार्पल टनल सिंड्रोम क्या है?
कार्पल टनल सिंड्रोम कलाई (wrist) से जुड़ी हुई एक बीमारी है। कलाई के बीच में मीडियन नर्व और कई टेंडंस गुजरते हैं। जिसमें किसी कारण प्रेशर और जलन महसूस होती है। जिससे मीडियन नर्व में दर्द, सुन्नपन और कभी-कभी झुनझुनाहट महसूस होती है।
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प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम के क्या लक्षण हैं?
- हाथ की उंगलियों, कलाई और हाथ का सुन्न होना या झुनझुनी महसूस होना। रात के वक्त यह परेशानी और बढ़ जाती है।
- उंगलियों में सूजन होना
- हाथ से काम करने परेशानी होना
ऐसा एक या दोनों हाथों में हो सकता है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन के अनुसार साल 2012 के रिपोर्ट के अनुसार 50 प्रतिशत महिलाएं प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम की समस्या के कारण दोनों हाथों में परेशानी महसूस कर रहीं थीं। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रेग्नेंसी के 30वें हफ्ते में 40 प्रतिशत महिलाओं में कार्पल टनल सिंड्रोम की समस्या देखी गई है। ऐसा ज्यादातर गर्भवती महिला का वजन बढ़ने के कारण हुआ।
डॉक्टर से कब संपर्क करें?
यदि कार्पल टनल सिंड्रोम से जुड़े लक्षण लगातार दिखें जिससे सामान्य गतिविधियां और नींद बाधित हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। उपचार न हो तो इससे नसों और मांसपेशियों को स्थाई क्षति हो सकती है।
प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम होने के कारण हैं
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गर्भावस्था में बढ़ता वजन
प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला का वजन 11 से 16 किलो तक बढ़ना सामान्य होता है। अगर बहुत ज्यादा वजन बढ़ रहा हो तो डॉक्टर से सलाह लें।
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गर्भावस्था में हो रहे हॉर्मोन में बदलाव
प्रेग्नेंसी की शुरुआत से ही शरीर में हॉर्मोनल बदलाव होता है। खासकर इस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रोन के लेवल में हो रहे बदलाव।
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प्रेग्नेंसी में जेस्टेशनल डायबिटीज होना
प्रायः महिलाओं को प्रेग्नेंसी के 24वें हफ्ते से 28वें हफ्ते के बीच जेस्टेशनल डायबिटीज की बीमारी हो सकती है। यह समस्या अस्थायी होती है और बच्चे के जन्म के बाद ठीक हो जाती है।
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प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम के लिए चेकअप कैसे किया जाता है?
लक्षणों के आधार पर डॉक्टर इसका इलाज करते हैं। कई बार फिजिकल चेकअप की जरूरत पड़ सकती है। फिजिकल चेकअप के दौरान जरूरत पड़ने पर इलेक्ट्रोडायगनोस्टिक टेस्ट (electrodiagnostic tests) कर सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान इलेक्ट्रोडायगनोस्टिक टेस्ट सुरक्षित माना जाता है।
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निम्नलिखित तरह से प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम का इलाज किया जाता है:
1. रेस्ट (Rest)
प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम होने पर हाथ से ज्यादा काम न करें। अपने हाथ को पिलो (तकिए) पर रखकर आराम करें।
2. आइस (Ice)
बॉडी के जिन हिस्सों में परेशानी महसूस हो रही है वहां पर आइस पैक रखें। इससे भी फायदा मिलता है।
3. स्लीपिंग पुजिशन (Sleeping position)
सोने के दौरान ध्यान रखें कि पॉश्चर सही हो जिससे परेशानी महसूस न हो।
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4. रिस्ट सपोर्ट (Cyst Report)
रिस्ट सपोर्ट आसानी से मेडिकल स्टोर से खरीदा जा सकता है। फिजियोथेरिपिस्ट की मदद से इसे कैसे इस्तेमाल किया जाता है यह समझा जा सकता है।
5. एक्सरसाइज (Exercise)
आराम करने के कुछ दिनों बाद डॉक्टर की सलाह लेकर धीरे-धीरे एक्सरसाइज की जा सकती है। इससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक होगा और सूजन में कमी आती है।
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प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम होने पर कैसा हो आपका आहार?
विटामिन-बी 6 युक्त आहार जैसे सेस्मे सीड्स, गहरे हरे रंग की सब्जियां, लहसुन, हेजलनट, एवोकाडो और मछलियों का सेवन करना चाहिए।
कार्पल टनल सिंड्रोम से बचाव
प्रेग्नेंसी में कार्पल टनल सिंड्रोम से बचाव के कोई प्रमाणित उपाय नहीं है, लेकिन निम्न तरीकों से कलाईयों और हाथों पर पड़ने वाला दबाव कम कर सकते हैं :
- यदि आप वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं। यदि आपको काम के लिए लगातार कंप्यूटर के की-बोर्ड का इस्तेमाल करना पड़ता है तो उसके बटन हल्के से दबाएं। यदि आपको लंबे समय तक लिखना पड़ता है तो बड़े आकर की पेन से लिखें जिसमें इसे पकड़ने की जगह नरम हो।
- काम करते समय पॉश्चर ठीक रखें। मुद्रा ठीक न हो तो आपकी कलाइयां, उंगलियां और हाथ प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ही ध्यान रखें कि आपके कंप्यूटर का माउस कम्फर्टेबल हो और इससे आपकी कलाई पर जोर न पड़ता हो।
- यदि आप ठंडे वातावरण में काम कर रही हैं तो हाथों में दर्द और अकड़न ज्यादा महसूस हो सकती है। अगर काम की जगह पर तापमान का नियंत्रण करना संभव न हो तो बिना उंगलियों वाले दस्ताने पहनें और अपने हाथ और कलाइयां गर्म रखें।
- काम करने के दौरान बीच-बीच में हाथों को आराम दें। हर कुछ देर पर अपनी कलाइयों और हाथों को फैलाएं और घुमाएं। साथ ही यदि संभव हो तो बीच-बीच में कुछ और तरह का काम कर लें। खास तौर पर तब जबकि आप किसी ऐसे यंत्र का इस्तेमाल करते हैं जिसमें झनझनाहट होती हो या बहुत जोर लगाना पड़ता हो।
- कलाइयों की पॉजिशन पर ध्यान दें। अपनी कलाइयों को सीधा ऊपर या नीचे की ओर मोड़ने से बचें। बीच की आरामदायक मुद्रा सबसे अच्छी है। की-बोर्ड को अपनी कोहनी के बराबर या इससे नीचे रखें।
प्रेग्नेंसी में कार्पल टर्नल सिंड्रोम की समस्या से परेशान न हों लेकिन, अगर आप इससे जुड़े किसी तरह के कोई सवाल जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। यदि इस लेख से जुड़ा आपका कोई सवाल है तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं। आपको हमारा यह लेख कैसा लगा यह भी आप हमें कमेंट कर बता सकते हैं।
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