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बेबी ड्रॉपिंग को लाइटनिंग भी कहा जाता है। यह लेबर का संकेत होता है। शिशु का सिर खिसकर नीचे पेल्विस में आ जाता है। ऐसा होने पर यह प्यूबिक बोन्स से इंगेज हो जाता है। डिलिवरी से कुछ हफ्तों पहले बेबी ड्रॉपिंग शुरू हो जाती है। लेकिन, कुछ मामलों में यह डिलिवरी के कुछ घंटों पहले ही होती है। बेबी के सिर का प्यूबिक बोन्स से इंगेज होने पर महिला को डाइफ्राम में राहत मिलती है और उसे रिबकेज में हल्कापन महसूस होता है। हालांकि कुछ दुर्लभ मामलों में महिलाओं को बेबी ड्रॉपिंग का अहसास नहीं होता है।
अगर आप बेबी ड्रॉपिंग के बारे में बात कर रहे हैं तो लाइटनिंग के बारे में जानना जरूरी है। लाइटनिंग टर्म से मतलब बेबी ड्रॉपिंग से ही है। इसका मतलब लेबर एप्रोचिंग से है। जब बेबी का हेड पेल्विक की ओर खिसकने लगता है, इसे लाइटनिंग कहते हैं। ये लेबर एक हफ्ते पहले भी शुरू हो सकता है और लेबर के एक घंटे पहले भी। ये जरूरी नहीं है कि बेबी ड्रॉपिंग सभी महिलाओं में समान समय में ही हो। सभी महिलाओं की प्रेग्नेंसी डिफरेंट हो सकती है। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि आखिर कैसे बेबी ड्रॉपिंग की प्रोसेस होती है और इन्हें किन स्टेशन्स में बांटा गया है।
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गर्भाशय में शिशु की पुजिशन को -3 से लेकर +3 तक स्टेशन्स में बांटा गया है। -3 सबसे ऊंचा स्टेशन है, जब शिशु हिप्स के सबसे ऊपर रहता है। इस अवधि के दौरान वह पेल्विक में नहीं आता है। उसका सिर पेल्विक के ऊपर होता है। +3 स्टेशन में शिशु सीधे बर्थ कैनाल में होता है।
इस दौरान शिशु का सिर दिखने लगता है। वहीं, 0 स्टेशन यह संकेत देता है कि शिशु का सिर पेल्विक के नीचे आ गया है। इस शिशु का दबाव प्यूबिक बोन्स पर पड़ता है। महिलाएं इस स्थिति को आसानी से महसूस कर सकती हैं। जैसे-जैसे लेबर में प्रोग्रेस बढ़ती है शिशु इन स्टेशन्स में नीचे की तरफ आता है। जुड़वा बच्चों के मामले में वे जल्दी नीचे आ जाते हैं।
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प्रेग्नेंसी के 34वें और 36वें हफ्ते में बेबी ड्रॉपिंग या लाइटनिंग होती है। जैसा कि पहले ही बता दिया गया है कि कुछ मामलों में यह लेबर पेन उठने के वक्त ही होती है। हालांकि, पहली प्रेग्नेंसी के मामले में बेबी ड्रॉपिंग सामान्य होती है। बेबी ड्रॉपिंग का अहसास होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, जिससे शिशु की सही पुजिशन का पता चल सके।
शिशु के पेल्विक में आने से महिलाओं के डाइफ्राम और रिबकेज पर दबाव कम हो जाता है। इस स्थिति में उन्हें सांस लेने में आसानी होती है। शिशु के पेल्विक के ऊपर रहने की स्थिति में रिबकेज पर भारी दबाव रहता है, जिससे महिलाओं को अक्सर सांस लेने में दिक्कत होती है।
बेबी की ड्रॉपिंग या लाइटनिंग पेल्विक में होने से प्यूबिक बोन्स और पेल्विक पर दबाव बढ़ जाता है। अक्सर महिलाओं को बाउल मूवमेंट की फीलिंग आती है। ऐसा होने पर महिलाएं अक्सर पैरों को फैलाकर चलती हैं। जिसे पेंग्विन वॉल्क भी कहा जाता है।
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शिशु के नीचे आने पर उसके सिर का दबाव गर्भाशय ग्रीवा पर पड़ने लगता है। इससे गर्भाशय ग्रीवा पतली और खुलने लगती है। यहीं से लेबर की शुरुआत होती है। म्यूकस प्लग गर्भाशय ग्रीवा को खुलने से रोकता है। इस स्थिति में यह म्यूकस प्लग अलग हो जाता है और गर्भाशय ग्रीवा खुलने के लिए पतली होने लगती है। ऐसा होने पर प्रेग्नेंसी के आखिरी हफ्ते में डिस्चार्ज की मात्रा बढ़ जाती है। यह दिखने में म्यूकस के समान ही होता है।
शिशु जब पेल्विक के ऊपर रहता है तो पेट उठा हुआ नजर आता है। बेबी ड्रॉपिंग होने पर बच्चा गर्भाशय के निचले हिस्से में आ जाता है। ऐसे में महिलाओं का पेट नीचे की तरफ लटकता हुआ नजर आता है। पेट के आकार में हुए इस परिवर्तन को बाहर से आसानी से देखा जा सकता है।
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बेबी ड्रॉपिंग होने पर शिशु का सिर प्यूबिक बोन्स से इंगेज हो जाता है। ऐसा होने पर शिशु का दबाव ब्लैडर पर बढ़ जाता है, जिससे महिला को बार-बार यूरिन के लिए जाना पड़ सकता है।बता दें कि बेबी ड्रॉपिंग से परेशान होने की जरूर नहीं है। इससे यह पता चलता है कि कि बेबी बाहरी दुनिया में आने के लिए तैयार हो रहा है। ज्यादातर मामलों में यह सामान्य बात है। अगर गर्भवती महिला इस दौरान सहज नहीं है और उसे दूसरी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो डॉक्टर से जरूर सलाह लें।
थर्ड ट्राइमेस्टर के दौरान महिलाओं को विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। हो सकता है कि कि आपरो बेबी ड्रॉपिंग के समय इस बारे में जानकारी न हो सक, बेहतर होगा कि आप प्रेग्नेंसी के आखिरी समय में किसी भी तरह के बदलाव को इग्नोर न करें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। साथ ही दर्द का हल्का एहसास होने पर भी डॉक्टर को इस बारे में जानकारी दें। अगर आपको लगातार दर्द की समस्या हो रही है तो ये बेबी ड्रॉपिंग का संकेत हो सकता है। साथ ही फीवर की समस्या, ब्लीडिंग या फिर फ्लूज लॉस होने पर तुरंत डॉक्टर को बताएं। कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के नौंवे महीने के आखिर में भी दर्द नहीं होता है। ऐसे में ड्यू डेट करीब आने पर डॉक्टर को इस बारे में जानकारी दें। बच्चे की हलचल कम लगने पर भी आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। ये आपके लिए और आपके बच्चे के लिए बहुत जरूरी है। बेबी ड्रॉपिंग की अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से भी सलाह ले सकती हैं।
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अपनी नियत तारीख का पता लगाने के लिए इस कैलक्युलेटर का उपयोग करें। यह सिर्फ एक अनुमान है - इसकी गैरेंटी नहीं है! अधिकांश महिलाएं, लेकिन सभी नहीं, इस तिथि सीमा से पहले या बाद में एक सप्ताह के भीतर अपने शिशुओं को डिलीवर करेंगी।
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हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।
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