कई मामलों में महिलाओं को लगता है कि वह गर्भवती हैं लेकिन, हकीकत में ऐसा नहीं होता है। जिसे हम झूठी प्रेग्नेंसी (फॉल्स प्रेग्नेंसी) के नाम से जानते हैं। यह वह स्थिति होती है जब आपको उम्मीद होती है कि आप मां बनने वालीं हैं लेकिन, हकीकत अलग होती है। कुछ का मानना है कि इसका कारण शारीरिक है जबकि अन्य का मानना है कि यह मनोवैज्ञानिक है। कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इसका कारण शारीरिक या मानसिक आघात है, जबकि अन्य लोगों का मानना है कि यह एक रासायनिक असंतुलन है। इस आर्टिकल में हैलो स्वास्थ्य फॉल्स प्रेग्नेंसी क्या है और इसके कारण के बारे में बताने जा रहा है।
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फॉल्स प्रेग्नेंसी को ऐसे समझें:
केमिकल प्रेग्नेंसी
कई बार केमिकल प्रेग्नेंसी के वजह से भी आपको लगता है कि आप गर्भवती हैं। यह वह स्थिति है जब एक फर्टाइल अंडा विकसित नहीं हो पाता है। इसके पीछे कई कारण होते हैं।
इसमें फाइब्रॉइड, स्कार टिस्सूज और जन्म से ही गर्भाशय में विसंगति अनियमित गर्भाशय के आकार को विकसित कर देती है। इसके अलावा प्रोजेस्टेरॉन जैसे हार्मोंस की कमी अंडे के विकास को कम कर सकती है।
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इस पर दिल्ली की वरिष्ठ गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर अनीता सभरवाल ने कहा, ‘कई बार प्रेग्नेंसी किट्स को उचित तापमान पर नहीं रखा जाता है, जिसके चलते उनमें तकनीकी गड़बड़ी आ जाती है। इसकी वजह से प्रेग्नेंसी टेस्ट का नतीजा गलत आता है।’
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हालांकि, महिलाओं में यह समस्या आम हो चुकी है। इसके कुछ कारणों का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है। यदि प्रेग्नेंसी टेस्ट न किया जाए तो केमिकल प्रेग्नेंसी का पता नहीं लगाया जा सकता।
शुरुआती दौर में यदि यह टेस्ट गलत साबित होते हैं तो महिला को भावनात्मक रूप से चोट पहुंचती है। इसी कारण के चलते यह सुझाव दिया जाता है कि आप मासिक धर्म के शुरू होने के एक सप्ताह बाद घर में ही प्रेग्नेंसी टेस्ट करें।
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एक्टोपिक प्रेग्नेंसी
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी को भी झूठी प्रेग्नेंसी के नाम से जाना जाता है। इसमें कई बार एक फर्टिलाइज अंडा यूटरस के मुख्य कैविटी वॉल के बाहर विकसित हो जाता है। इससे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी की स्थिति बनती है।
यूटरस तक पहुंचने की यात्रा में फर्टिलाइज अंडा फेलोपियन ट्यूब में रुक जाता है। इस प्रकार की प्रेग्नेंसी को ट्यूबल प्रेग्नेंसी के नाम से भी जाना जाता है।
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फैलोपियन ट्यूब की क्षति या स्कार टिस्सूज की वजह से एक्टोपिक प्रेग्नेंसी होती है। इसके अतिरिक्त यदि विगत समय में आपके गर्भाशय में संक्रमण हुआ है तो एक्टोपिक प्रेग्नेंसी की संभावना बढ़ जाती है। एक्टोपिक प्रेग्नेंसी सरविक्स, ओवरी या अब्डोमिनल केविटी में भी हो सकती है। इस प्रकार की प्रेग्नेंसी सामान्य प्रग्नेंसी में तब्दील नहीं हो सकती क्योंकि गर्भाशय के बाहर ऐसी कोई जगह नहीं होती जहां पर यह भ्रूण विकसित हो सके।
गलत जगह पर विकसित होने के बावजूद यह भ्रूण ह्यूमन क्रॉनिक गोनेडोट्रोपिन (एचसीजी) हार्मोप पैदा करता रहता है। इसके चलते जब घर पर आप प्रेग्नेंसी टेस्ट करती हैं तो आपको गलत जानकारी मिलती है।
इस प्रेग्नेंसी की अवस्था में चिकित्सा की तत्काल जरूरत होती है। यदि इसका उपचार न किया जाए तो यह महिला को नुकसान पहुंचा सकती है। इसकी वजह से भारी मात्रा में रक्त का स्राव या प्रजन्न अंगों को नुकसान पहुंच सकता है।
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के लक्षण
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी में आपको उबकाई आती हैं। स्तनों में सूजन भी आ जाती है, जो आपको सामान्य गर्भधारण के लक्षण लगते हैं। गर्दन, पेल्विस और पेट में तेज दर्द होना भी इसके लक्षण हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, पेट में एक तरफ तेज दर्द भी हो सकता है। चक्कर आना या हल्की से लेकर मध्यम ब्लीडिंग हो सकती है।
आपको रेक्टम पर भारी दबाव का अहसास हो सकता है। डॉ. अनीता ने बताया कि, ‘प्रेग्नेंसी किट के बाद क्लीनिकली टेस्ट से गर्भवती होने की पुष्टि करना जरूरी होता है।’
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कब-कब हो सकती है फॉल्स प्रेग्नेंसी
मिसकैरिज होने के बाद घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट करना भी फॉल्स प्रेग्नेंसी का कारण होता है। इस दौरान महिलाएं जब घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट करती हैं तो नतीजा पॉजिटिव आता है, जो हकीकत में गलत होता है। एक बार फर्टाइल अंडा यूट्राइन वॉल के अंदर विकसित हो जाने पर महिलाओं का शरीर प्रेग्नेंसी हार्मोन एचसीजी को रिलीज करने का संकेत देता है।
वहीं गर्भपात के बाद इस हार्मोन का स्तर कम होने लगता है। इस हार्मोन का स्तर 9 से लेकर 35 दिनों की अवधि के बीच कभी भी कम होने लगता है। इसकी औसत समय अवधि 19 दिन है। इस दौरान यदि आप प्रेग्नेंसी टेस्ट करती हैं तो आपको नतीजा तो पॉजिटिव मिलेगा लेकिन, आप प्रेग्नेंट नहीं होंगी।
डॉ. अनीता का कहना है कि, ‘ ब्लड टेस्ट से प्रेग्नेंसी की पुष्टि की जानी चाहिए। जिससे महिलाओं की भावनाओं को आहत होने से बचाया जा सकता है। कई मामलों में बॉडी में ट्यूमर्स होते हैं, जिसके चलते हकीकत में महिला प्रेग्नेंट तो नहीं होती लेकिन नतीजे पॉजिटिव आते हैं। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या बीटा एचसीजी टेस्ट जरूर किया जाना चाहिए। ऐसे में फॉल्स प्रेग्नेंसी से बचा जा सकता है’
घर पर यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट करते समय जरूरी है कि टेस्ट के लिए दिए जाने वाले इंस्ट्रक्शन को पूरी तरह फॉलो किया जाए। अलग-अगल ब्रांड की किट पर अलग- अलग इंस्ट्रक्शन होते हैं। उन्हें ध्यान से पढ़ना जरूरी है। इसमें यूजर से टेस्ट लेने के 4-5 मिनिट के बाद रिजल्ट देखने के लिए कहा जाता है। 10 या 20 मिनिट के बाद रिजल्ट देखने से परिणाम गलत मिल सकता है। नॉन डिजिटल यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट महिला के प्रेग्नेंट होने पर दो लाइन दिखती हैं वहीं प्रेग्नेंट न होने पर एक। इसके अलावा प्लस और माइनस साइन भी आता है।
अब तो आप फॉल्स प्रेग्नेंसी को समझ गईं होगी। इसमें हमने फॉल्स प्रेग्नेंसी और फॉल्स प्रेग्नेंसी टेस्ट के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देने की कोशिश है। हमें उम्मीद है ये आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से संपर्क करें।
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