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मेडिकल रीजन (जेनेटिक) के कारण क्या मिल सकती है बच्चे का सेक्स चुनने की आजादी?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 05/04/2022

    मेडिकल रीजन (जेनेटिक) के कारण क्या मिल सकती है बच्चे का सेक्स चुनने की आजादी?

    प्रेग्नेंसी के बारे में जानकारी मिलती है, तो उसके बाद सभी के मन में बस एक ही सवाल आता है कि आखिर बच्चे का लिंग क्या होगा? वह लड़का होगा या फिर लड़की, इस बात को लेकर सभी के मन में उत्सुकता रहती है। हम आपको बताते चलें कि भारत देश में लिंग परीक्षण पूर्ण रूप से कानूनी अपराध है। यानी कि बच्चे के गर्भ में रहते हुए आप उसके लिंग की जानकारी नहीं कर सकते हैं। कुछ पुरीने तरीकों जैसे कि पेट का आकार देखकर, महिला की प्रेग्नेंसी के दौरान खाने वाली चीजों के आधार पर या फिर  से बच्चे का लिंग पता करते हैं। इसे आप पुराने तरीके कह सकते हैं लेकिन ये सही हो, इस बारे में नहीं कहा जा सकता है। बच्चे के सेक्स का चुनाव करना भी प्रतिबंधित है।    ये बात तो बच्चे के सेक्स की जानकारी के बारे में थी लेकिन हम आपको आज बच्चे से सेक्स के चुनाव को लेकर अहम जानकारी देंगे। क्या आपको पता है कि बच्चे का सेक्स का चुनाव मेडिकल रीजन के कारण किया जा सकता है? आपको सुनकर हैरानी जरूर हो रही होगी लेकिन इस संबंध में जानकारी होना आपके लिए जरूरी है। हमारे देश में ये मैथड अपनाएं जाते हैं या फिर नहीं, इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। जानिए बच्चे के सेक्स के चुनाव से जुड़ी ये अहम जानकारी।

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    बच्चे का सेक्स (Child sex) क्या चुना जा सकता है?

    बच्चे का सेक्स (Child sex)

    बच्चे के लिंग का चयन करना हमारे देश में मान्य नहीं है। लेकिन आपको उन टेक्नीक के बारे में भी पता होना चाहिए, जो विभिन्न देशों में किन्हीं कारणों से अपानाई जाती है। हमारे देश में ये मान्य है या नहीं, आपको इस बारे में डॉक्टर से जानकारी जरूर लेनी चाहिए। यहां दी गई जानकारी का मकसद केवल आपके ज्ञान को बढ़ाना है। ऐसा भारत में संभव है या नहीं, इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। वहीं यहां कुछ ऐसे भी तरीके दिए गए हैं, जिन पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं किया जा सकता है।

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    ले प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस

    इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के संयोजन में उपयोग किए जाने वाले प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (पीजीडी) डॉक्टर पेट्री डिश में फर्टिलाइज्ड एब्रियो से एक सेल निकाल सकते हैं और लिंग का निर्धारण करने के लिए इसकी जांच कर सकते हैं। केवल डिजायर्ड सेक्स ( desired sex) के भ्रूण को ही मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। वैसे तो इस प्रक्रिया को विवादास्पद माना जाता है लेकिन ये प्रक्रिया उन जोड़ों की मदद करने के लिए विकसित किया गया था, जिन्हें कोई अनुवांशिक बीमारी हो और जो सीरियस जेनेटिक डिजीज के कैरियर का काम करते हो।

    ज्यादातर फर्टिलिटी सेंटर और मेडिकल ऑर्गेनाइजेशन इस प्रोसेस का इस्तेमाल उन पेयर्य के लिए बिल्कुल भी नहीं करते हैं, जिन्हें कोई जेनेटिक डिजीज न हो। कुछ जेनेटिक डिसऑर्डर बच्चे के सेक्स से जुड़े होते हैं, इनमें डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Duchenne muscular dystrophy) भी शामिल है, जो ज्यादातर लड़कों में होता है। ऐसे में डॉक्टर लड़के के बजाय लड़की के भ्रूण को इम्प्लांट करने का फैसला ले सकते हैं। पीजीडी प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (पीजीटी) का हिस्सा है, जिसमें प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग (पीजीएस)है। पीजीएस गुणसूत्रों की संख्या की गणना करता है और गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं के लिए परीक्षण करता है।

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    स्पर्म सॉर्टिंग मैथड (Sperm sorting)

    स्पर्म सॉर्टिंग मैथड को माइक्रोशॉर्ट मैथड भी कहा जा सकता है। इस दौरान फ्लो साइटोमेट्री का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें लड़का पैदा करने वाले स्पर्म को लड़की पैदा करने वाले स्पर्म से अलग किया जाता है। लड़की पैदा करने वाले शुक्राणु में लड़कों की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत अधिक डीएनए होता है। इस मैथड का इस्तेमाल आईयूआई के दौरान किया जा सकता है लेकिन ये कम विश्वश्नीय होता है। वहीं इन विट्रो में एक अंडे को निषेचित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

    शेट्टल्स मैथड (The Shettles Method)

    इस मैथड को लेकर कोई भी मेडिकल डाटा मौजूद नहीं है। आप ये कह सकते हैं कुछ लोगों का मानना है कि उनके लिए इस मैथड ने काम किया है। यानी कि ये मेडिकल अप्रूव मैथड नहीं बल्कि कुछ लोगों द्वारा अपनाया मैथड है। इस मैथड के पीछे ये लॉजिक दिया जाता है कि लड़की पैदा करने वाले शुक्राणु यानी एक्स स्पर्म अधिक धीमी गति से चलते हैं, लेकिन अधिक लचीला होते हैं। ये स्पर्म लड़का पैदा करने वाले स्पर्म की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहते है। वाई स्पर्म तेज गति से चलते हैं लेकिन कम समय तक ही जीवित रहते हैं। जिन लोगों को लड़की की चाहत होती है, वो ऑव्युलेशन के दो से तीन दिन पहले ही सेक्स करना शुरू कर देते हैं, ताकि लड़की होने की संभावना बढ़ जाए। इस बात में कितनी सच्चाई है, ये कहना मुश्किल है।

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    बच्चे को सेक्स को लेकर जेंडर सलेक्शन किट का भी कुछ लोग इस्तेमाल करते हैं। इस किट में नैचुरल सप्लीमेंट्स की मदद से जेंडर सलेक्शन को अपनाने की कोशिश की जाती है। ये वयानल ट्रैक्ट को अधिक रिसेप्टर बनाती है। ज्यादातर वैज्ञानिक इस तरह की किट को मान्यता नहीं देते हैं।

    नोट-  जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि हमारे देश में लिंग का परीक्षण कराना या फिर मनचाहे लिंग का बच्चा टेक्नीक की मदद से पैदा करना अपराध माना जाता है। यहां पर दी गई जानकारी सिर्फ आपका ज्ञान बढ़ाने के लिए थी, जो कि विभिन्न देशों में लोग अपनाते हैं। यह 100% सही है या फिर गलत इस बारे में कहना संभव नहीं है। अगर आपको फिर भी अधिक जानकारी चाहिए तो आप डॉक्टर से इस बारे में जानकारी ले सकते हैं।

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    इस आर्टिकल में हमने आपको बच्चे का सेक्स (Child sex) से संबंधित जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की ओर से दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्स्पर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।

    डिस्क्लेमर

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