आज की लाइफ में बढ़ता हुआ स्ट्रेस पति-पत्नी की लाइफ में परेशानी की बड़ी वजह बन गया है। स्ट्रेस के कारण न केवल वैवाहिक जीवन बल्कि शारीरिक संबंध और स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। चिंता और इनफर्टिलिटी एक दूसरे से संबंधित हैं। शायद आप यह नहीं जानते हो कि ज्यादा स्ट्रेस ‘इनफर्टिलिटी’ का कारण बन सकता है। हालांकि इस विषय पर शोधकर्ता अभी स्टडी कर रहे हैं कि स्ट्रेस ‘इनफर्टिलिटी’ को कैसे प्रभावित करता रहा है? लेकिन, इस बारे में कई अध्ययन कहते हैं कि चिंता और इनफर्टिलिटी आपस में एक-दूसरे से जुड़े हैं।
शोधकर्ताओं का यह मानना है कि स्ट्रेस हमारे हॉर्मोन्स पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। कुछ हॉर्मोन्स महिलाओं में ऑव्युलेशन, मैच्यूरेशन और अंडाशय को नियंत्रित करते हैं। वैज्ञानिक तो यह भी मानते हैं कि स्ट्रेस के कारण शरीर में न्यूरो-केमिकल चेंज होते हैं, जो हॉर्मोन्स पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। गर्भाशय और फॉलोपीन ट्यूब, फाइबर नसों द्वारा दिमाग से जुड़ी होती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान तनाव ट्यूब और गर्भाशय में ऐंठन पैदा कर सकता है।
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चिंता और इनफर्टिलिटी
प्रेग्नेंसी प्लानिंग के दौरान चिंता कम करना चाहिए क्योंकि इस दौरान अगर गर्भाशय में अंडा बनता भी है तो ऐंठन होने के कारण स्पर्म गर्भाशय में नही पहुंच पाते। इसके साथ ही कई बार स्ट्रेस होने पर महिलाएं स्मोक करना, शराब पीना, ड्रग्स लेना, व्यायाम और योगा न करना, ऑयली और जंक फूड खाना, जैसी आदतें अपना लेती हैं। जिसके कारण महिलाओं का वजन बढ़ जाता है। यह प्रेग्नेंसी में कई तरह की परेशानी पैदा करता है। इस तरह की सभी आदतें चिंता और इनफर्टिलिटी को बढ़ावा देती हैं।
इनफर्टिलिटी एक्सपर्ट्स का मानना है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे स्ट्रेस भी बढ़ता जाता है और नींद कम आती है। कम सोना और ज्यादा स्ट्रेस लेने से सीधे हॉर्मोन्स पर प्रभाव पड़ता है।
इनफर्टिलिटी का एक और कारण पुरुषों में बढ़ने वाला स्ट्रेस भी हो सकता है। जिसके कारण स्पर्म पर प्रभाव पड़ता है। उनकी गुणवत्ता कम होती है। इस प्रकार की समस्या के लिए डॉक्टर ट्रीटमेंट की भी सलाह देते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक लगभग 40 प्रतिशत कपल्स जो इनफर्टिलिटी से जूझ रहे हैं, उनमें पुरुषों में समस्या होती है।
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प्रेग्नेंसी के दौरान चिंता और इनफर्टिलिटी से बचने के संबंध में शोध के परिणाम:
‘क्या स्ट्रेस से बचने पर इनफर्टिलिटी की समस्या खत्म हो जाती है?’ विषय पर एटलांटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि स्ट्रेस को कंट्रोल में रखने पर इनफर्टिलिटी की समस्या या चांसेस को कम किया जा सकता है।
इस रिसर्च में ऐसी 8 महिलाओं पर अध्ययन गया जो प्रेग्नेंसी में चिंता से दबी हुई थीं। इन सभी महिलाओं में स्ट्रेस के कारण पीरियड्स 6 महीने से रुके हुए थे। इन महिलाओं पर अध्ययन के दौरान 8 में से 6 महिलाओं का ‘स्ट्रेस थेरिपी’ की मदद से इलाज किया गया। परिणाम में इसके सकारात्मक संकेत नजर आए।
ये कुछ महत्वपूर्ण पॉइंट्स हैं जो इनफर्टिलिटी से जूझ रहे कपल्स को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की सफलता पर अनिश्चितता
जब कपल्स चिंता और इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे होते हैं तो इस दौरान उनकी सबसे बड़ी चिंता इसके उपचार की सफलता को लेकर हो सकती है। क्लीनिकल टेस्ट के माध्यम से गर्भ धारण करने की कोशिश ऐसे कपल्स के भावनात्मक असंतुलन का कारण भी हो सकती है। इस अनिश्चितता के दौरान कपल्स को कभी-कभी इस बात पर भी मश्किल में पड़ जाते हैं कि उन्हें (फर्टिलिटी) ट्रीटमेंट के लिए किन विकल्पों को चुनना चाहिए। ये विकल्प हैं :
- एडॉप्शन
- गैमिट डोनेशन
- हाइ-टेक ट्रीटमेंट आदि।
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चिंता और इनफर्टिलिटी: जानिए इनफर्टिलिटी और बढ़ती उम्र के बारे में
अक्सर देखने में आता है कि कपल्स कई कारणों से प्रेग्नेंसी देर से प्लान करते हैं। कई बार इसके पीछे उनके एम्बीशन्स होते हैं तो कई बार आपसी ताल-मेल। वहीं कई बार इसके पीछे उनकी इकोनॉमिकल कंडीशन भी इम्पॉर्टेंट रोल निभाताी है लेकिन यह जानना बहुत जरूरी है कि देर से प्रेग्नेंसी प्लान करने के नेगेटिव असर भी होते हैं। कई बार स्पाउसेस को गर्भ धारण करने में परेशानी होती है। वहीं कई मामलों में बच्चा मरा हुआ जन्म लेता है या जन्म के तुरंत बाद उसकी मौत हो जाती है। अधिक उम्र में बच्चे को जन्म देना और फर्टिलिटी को प्रभावित कर सकता है।
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चिंता और इनफर्टिलिटी: सेल्फ-एस्टीम में कमी:
कई कपल्स इनफर्टिलिटी से ग्रसित होने की बात सुनते ही सेल्फ-एस्टीम को काफी लो महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि वे अपने पार्टनर की नजर में गिर जाएंगे। कपल्स को बच्चों के आसपास रहना अजीब लग सकता है, खासकर फैमिली फंक्शन्स में। ऐसे कपल्स ऐसे पार्टीज में जाने से कतराते हैं कि कहीं कोई कुछ इससे रिलेटेड सवाल न करने लगें। इसके अलावा उन्हें अपने पेरेंट्स के सवालों से भी जूझना पड़ सकता है।
वैवाहिक संबंध में तनाव:
बांझपन (इनफर्टिलिटी) का निदान शादी के रिश्ते को प्रभावित कर सकता है। अक्सर पति-पत्नी जो बांझ होते हैं, उन्हें यह डर होता है कि पार्टनर छोड़ सकता है। शाथ ही उन्हें लगता है कि ऐसे में उनका पार्टनर किसी ऐसे ऑपोजिट पार्टनर के संपर्क में आ सकता जो बच्चे पैदा करने में सक्षम हो।
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चिंता और इनफर्टिलिटी : सेक्शुअल दबाव
सेक्स-ऑन-डिमांड के दौर से गुजरने वाले कपल्स इनफर्टिलिटी की बात सामने आने पर अपनी सहजता खो देते हैं। कभी-कभी इस दौरान दबाव इतना होता है कि पार्टनर इरेक्शन में असमर्थ होता है। इससे भी ऑपोजिट पार्टनर में गुस्सा और चिड़चिड़ापन आना सामान्य है।
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पारिवारिक दबाव:
कभी-कभी परिवार के लोग कपल्स पर बच्चे पैदा करने का दबाव डालते हैं। पति-पत्नी बांझपन (इनफर्टिलिटी) की समस्या के बारे में किसी को बताने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। वे अपने पेरेंट्स या भाई-बहनों पर भी विश्वास करने से हिचकिचाते हैं। यह उस वक्त और भी मुश्किल हो सकती है जब दंपति गर्भधारण (प्रेग्नेंसी) के लिए शुक्राणु या गमेट डोनेटर को चुनते हैं।
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चिंता और इनफर्टिलिटी : वित्तीय दबाव
इनफर्टिलिटी के मामले में कपल्स उपचार में बहुत खर्च कर देते हैं। इनफर्टिलिटी का उपचार स्वास्थ्य इंश्योरेंस द्वारा कवर नहीं किया जा सकता है। जिसके कारण इसकी लागतों का भुगतान या तो खुद करना पड़ता है या परिवार द्वारा। यह उनपर वित्तीय दबाव डालता है।
स्ट्रेस थेरिपी क्या है? ऐसे बचें चिंता और इनफर्टिलिटी से
अगर आप प्रेग्नेंसी की चिंता और स्ट्रेस से परेशान हैं तथा इनफर्टिलिटी के स्ट्रेस से जूझ हैं, तो डॉक्टर की देख-रेख में ‘स्ट्रेस थेरिपी’ से इसे कम कर सकते हैं। ‘स्ट्रेस थेरेपी’ से चिंता और इनफर्टिलिटी से बचने में मदद मिलती है लेकिन, ऐसा नहीं है कि इससे आपको प्रेग्नेंट होने में मदद मिलेगी। स्ट्रेस थेरिपी से आपको प्रेग्नेंसी में चिंता कम करने जैसी एक्टिविटी कराई जाती है। इसकी मदद से स्ट्रेस फ्री हो कर आप अच्छी तरह सो सकते हैं, खा सकते हैं और एक अच्छी जिंदगी जी सकते हैं। प्रेग्नेंसी प्लानिंग के दौरान या कंसीव करने के बाद अच्छी लाइफ के लिए खुद को स्ट्रेस से दूर रखें।
अगर आप स्ट्रेस में हैं तो जितनी जल्दी हो सके, इससे निकलने की कोशिश करें या डॉक्टर से सलाह लें। तभी आप इनफर्टिलिटी से बचकर पैरेंट्स बन सकते हैं।
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