क्या आप जानते हैं कि मिडवाइफ क्या होती हैं और ये कौन-सा काम करती है? शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो, जो कि मिडवाइफ की भूमिका के बारे में नहीं जानता हो। भारत में अधिकांश जगहों पर इन्हें गर्भवती महिला का प्रसव कराने वाली दाई भी कहते हैं। आपने देखा होगा कि प्रसव के समय गर्भवती महिलाओं के आसपास कुछ महिलाएं खड़ी रहती हैं, जो प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की मदद करती हैं। इन महिलाओं को मिडवाइफ कहते हैं। प्रसव पीड़ा के दौरान शिशु के सकुशल जन्म लेने में मिडवाइफ की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हर साल इनके योगदान को सराहने और इनको प्रोत्साहित करने के लिए दुनिया भर में मिडवाइफ डे मनाया जाता है। आइए आपको बताते हैं कि जिन्हें आप प्रसव कराने वाली साधारण महिला समझते हैं, उनका आपके जीवन में कितना बड़ा योगदान होता है।
मिडवाइफ डे (Midwives Day): गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशु की देखभाल
मिडवाइफ हजारों वर्षों से दाई के रूप में काम कर रही हैं। आपने देखा भी होगा कि मिडवाइफ व्यक्तिगत रूप से घर, हॉस्पिटल, क्लिनिक या दूसरे स्थानों पर नवजात शिशु और माताओं की देखभाल करती हुई दिखाई देती हैं। पहले के जमाने में इन्हें दाई या दाई मां कह कर पुकारा जाता था। अभी भी कई गांवों में इन महिलाओं को दाई मां ही बोला जाता है। पहले ये महिलाएं अपने अनुभव से प्रसव को आसान बनाती थीं और माताओं और शिशुओं को सुरक्षित रखने का काम करती थीं। आज के समय में अधिकांश मिडवाइव्स प्रशिक्षण प्राप्त होती हैं।
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): प्रसव कराने वाली दाई मां की भूमिका
गांव हो या शहर, गर्भावस्था के समय या प्रसव पीड़ा के दौरान मिडवाइफ की यह भूमिका होती हैः-
- गर्भवती महिलाओं की देखभाल करना।
- गर्भवती महिलाओं को प्रसव से पहले देखभाल संबंधी परामर्श देना।
- प्रसव के दौरान महिलाओं की मदद करना।
- प्रसव के बाद माताओं की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक रूप से देखभाल करना।
- चिकित्सीय परामर्श को कम करने की कोशिश करना।
- जिन महिलाओं को डॉक्टर की मदद चाहिए, उनको डॉक्टर के पास सलाह लेने के लिए भेजना।
मिडवाइफ डे (Midwives Day): प्रसव कराने वाली दाई मां के सहयोग
कई बार शिशु के जन्म होने के छह हफ्ते बाद तक माताओं को मिडवाइफ की जरूरत पड़ती है, क्योंकि दाई मां की सहायता से माताओं और शिशु को ये फायदे होते हैंः-
- इनकी सहायता से लेबर पेन में कमी आती है।
- इनकी मदद से एनेस्थेसिया की संभावना कम हो जाती है।
- ये प्रीमैच्योर डिलीवरी और सिजेरिन डिलीवरी की संभावना को भी कम करने में मदद करती है।
- ये माताओं और शिशु को इंफेक्शन से दूर रखने में मदद करती हैं।
- इनकी मदद से माताओं ओर शिशुओं के जीवन की सुरक्षा बढ़ती है।
- ये सभी तरह की जटिलताओं में भी कमी लाने की कोशिश करती हैं।
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): गर्भधारण से जन्म तक जच्चा और बच्चा की देखभाल
भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों में मिडवाइफ (दाई) ही गर्भधारण के समय से शिशु के जन्म होने तक हर तरह की देखभाल करती हैं। आज के समय अधिकांश महिलाएं प्रसव के लिए सरकारी या प्राइवेट हॉस्पिटल जाती हैं। इन हॉस्पिटल्स में मिडवाइफ ही सभी महिलाओं की मदद करती हैं। मिडवाइफ गर्भवती महिलाओं का पूरा ख्याल रखती हैं। अधिकांश लोगों का तो यह भी मानना है कि मिडवाइफ डॉक्टर से ज्यादा माताओं और शिशु की देखभाल करती हैं। इनकी सहायता पाने वाले लोगों का कहना है कि वे प्रसव के दौरान या प्रसव के बाद मिडवाइफ की भूमिका से बहुत ही अधिक संतुष्ट होते हैं।
मिडवाइफ डे (Midwives Day): सिजेरियन डिलीवरी की संभवाना में कमी
साल 2018 में गर्भवती महिलाओं और मिडवाइफ के योगदान पर किए गए एक शोध में यह बताया गया है कि जो महिलाएं प्रसव के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होती हैं, उनमें से अधिकांश महिलाओं को मिडवाइफ (दाई) की सहायता के कारण सिजेरियन डिलीवरी (सी-सेक्शन या एपीसीओटॉमी) की संभावना कम हुई।
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): नेचुरल डिलीवरी की संभावना अधिक
एक दूसरे शोध में यह भी बताया गया कि मिडवाइफ (नर्स या दाइयों) की सहायता लेने वाली महिलाओं की दूसरी महिलाओं की तुलना में स्तनपान कराने की संभावना अधिक होती है। इनको जन्म के दौरान पेरिनियल लेकेरेशन ट्रस्टेड होने की संभावना भी कम होती है। मिडवाइफ या दाई की सहायता लेने से नेैचुरल डिलिवरी की संभावना अधिक होती है, प्रसव संबंधी समस्या में कमी आती है और माताओं और शिशुओं का जीवन अधिक सुरक्षित होता है।
मिडवाइफ डे (Midwives Day): मिडवाइफ के कारण माता और शिशु के मृत्यु दर में कमी
भारत में माताओं और शिशुओं को लेकर एक शोध किया गया था। भारत के रजिस्ट्रार जनरल के इस शोध रिपोर्ट यह पता चला था कि साल 2001 और 2003 के बीच प्रसव के प्रत्येक 10 हजार मामलों में से करीब 301 लोगों की मृत्यु हो जाती थी।
साल 2014 से 2016 के बीच किए गए दूसरे सर्वे में यह मृत्यु दर बहुत कम हो गई। पहले जहां प्रत्येक 10 हजार मामलों में 301 लोगों की मृत्यु होती थी। वह संख्या साल 2014 से 2016 के बीच घटकर केवल 130 हो गई। माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) द्वारा लागू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों और मिडवाइफ के सराहनीय योगदान के कारण ऐसा संभव हो पाया है।
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): 85% मामलों में सिजेरियन की जरूरत नहीं
सी-सेक्शन रेट्स पर साल 2015 की डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में भी कहा गया है, “यह सही है कि सी-सेक्शन माताओं और शिशुओं के जीवन को बचाने में प्रभावी होता है, लेकिन यह तभी अमल में लाया जाना चाहिए, जब बहुत जरूरी हों, क्योंकि प्रसव के 85% मामलों में प्रसूति को विशेष इलाज जैसे सिजेरियन की जरूरत नहीं होती है।”
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): महिलाओं का पहला संपर्क केंद्र होती हैं मिडवाइफ
मिडवाइफ गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ नवजात शिशु की देखभाल, स्तनपान, परिवार नियोजन और एचआईवी संक्रमण, टीबी और मलेरिया आदि की भी जांच करती हैं। मिडवाइफ महिलाओं के लिए संपर्क का पहला केंद्र होती हैं। इसलिए ये प्रसव से पहले बेहतर तरीके से गर्भवती महिलाओं की जांच करती हैं और उनकी सहायता कर सकती हैं।
साल 2014 की मिडवाइफरी लैंसेट सीरीज़ में भी यह बताया गया है कि मिडवाइफ अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रशिक्षित होती हैं और लोग मिडवाइफ से प्रसव के दौरान की 87% सेवाएं ले सकते हैं।
मिडवाइफ डे (Midwives Day): मिडवाइफ की सेवाओं से अभी भी वंचित हैं लोग
हालांकि, मिडवाइफ (दाई मां) गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के जीवन की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी होती हैं, लेकिन कई जगहों पर अभी भी मिडवाइफ को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
भारत में कई स्थानों पर स्वास्थ्य संबंधी सभी सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे स्थानों पर रहने वाले लोग प्रशिक्षित मिडवाइफ की सेवा पाना चाहते हैं, लेकिन लोगों को यह सुविधा नहीं मिल पाती है।
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): अप्रशिक्षित मिडवाइफ से हो सकता है माताओं और शिशुओं के जीवन को खतरा
कई इलाकों में अभी भी गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराने के लिए प्रशिक्षित मिडवाइफ की सेवाओं को नकार दिया जाता है। इनकी जगह प्रसव कराने वाली अप्रशिक्षित दाई मां को ही बुलाया जाता है। ऐसे में मिडवाइफ की सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी महिलाओं और शिशु की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। प्रशिक्षित मिडवाइफ नहीं होने के कारण जच्चा और बच्चा को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
अब आप जान गए होंगे कि प्रसव पीड़ा के दौरान मिडवाइफ की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है और कैसे प्रसव कराने वाली इन महिलाओं की मदद से जच्चा और बच्चा का जीवन सुरक्षित किया जा सकता है। यही कारण है कि हर साल 5 मई को दुनिया भर में मिडवाइफ डे मनाया जाता है और विश्व की सभी मिडवाइफ को उनके योगदान के लिए सराहा जाता है।
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इसके साथ ही आपने यह भी जाना कि अप्रशिक्षित मिडवाइफ के कारण माताओं और शिशु के जीवन को जोखिम होने की संभावना रहती है, इसलिए हमेशा कोशिश करें कि गर्भवती महिला का प्रसव कराने के लिए प्रशिक्षित मिडवाइफ (दाईं मां) की ही सहायता लें।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से संपर्क करें।
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