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जीवनभर रहता है प्रसूति हिंसा का एहसास, जानें क्या है यह और क्या यह आपके साथ भी हो सकता है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Ankita mishra द्वारा लिखित · अपडेटेड 26/03/2020

    जीवनभर रहता है प्रसूति हिंसा का एहसास, जानें क्या है यह और क्या यह आपके साथ भी हो सकता है?

    विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रसूति हिंसा एक वैश्विक समस्या है। जिस पर बहुत ही कम देशों का ध्यान आकर्षित है। प्रसव के दौरान दुर्व्यवहार या प्रसूति हिंसा के बारे में बात प्रति 1,000 महिला में से सिर्फ 1 महिला ही करती है। जबकि, प्रसूति हिंसा हर 10 में से 8 महिला को प्रभावित करती है। फिर चाहे वो महिला पहली बार प्रेग्नेंसी के दौर से गुजर रही हो या दूसरी या तीसरी बार। इतना ही नहीं, प्रसूति हिंसा या प्रसव के दौरान दुर्व्यवहार का सिलसिला प्रेग्नेंसी से लेकर प्रसव के बाद भी जारी रहता है। प्रसूति हिंसा का मुद्दा कितना गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यह प्रेग्नेंसी से प्रसव और प्रसव के बाद भी एक महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से ठोस पहुंचाता रहता है।

    प्रसूति हिंसा या प्रसव के दौरान दुर्व्यवहार को अंग्रेजी में ऑब्स्टेट्रिक वायलेंस (Obstetric Violence) कहा जाता है। प्रसूति हिंसा उपेक्षा, शारीरिक दुर्व्यवहार और प्रसव के दौरान सम्मान की कमी है। प्रसव के दौरान दुर्व्यवहार महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक रूप है। प्रेग्नेंसी के दौरान और प्रसव के बाद महिलाओं को सही उपचार न मिलने और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से यह संबंधित है। ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें गर्भावस्था से लेकर बच्चे के जन्म के बाद भी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया नहीं हो पाती हैं। ऑब्स्टेट्रिक वायलेंस को रोकने और हर महिला को गर्भावस्था के दौरान और बाद में सभी बुनियादी सुविधाएं मिल सके इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई जांच शिवर भी आयोजित किए हैं।

    अक्सर ऐसे मामले भी देखे जाते हैं कि गर्भवती महिला के साथ स्वास्थ्य प्रदाता भी कई तरह के भेदभाव करते हैं फिर चाहे वो आर्थिक कारण हो या फिर किसी तरह का जाति भेदभाव। इस तरह का रवैया भी प्रसूति हिंसा कहलाता है। हालांकि, प्रसूति हिंसा मुख्त तौर पर बच्चे के जन्म के दौरान होने वाले व्यवहारों को इंगति करता है।

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    गर्भवती महिलाओं पर किस तरह का प्रभाव डालती है प्रसूति हिंसा?

    प्रसूति हिंसा गर्भवती महिलाओं को मानसिक और शारीरिक बदलाव के साथ-साथ आस-पास के व्यवहार के तौर पर भी प्रभावित करती है। प्रसूति हिंसा सामाजिक और निजी होने के साथ-साथ सार्वजनिक अस्पतालों से लेकर निजी अस्पतालों में भी हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान एक महिला को प्रसव का अनुभव करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल और सम्मानजनक सहायता की आवश्यकता होती है। हालांकि, ऐसी बहुत ही कम महिलाएं होती हैं जिनका प्रसूति अनुभव हिंसा मुक्त होता है।

    अधिकारों का उल्लंघन

    ऑब्स्टेट्रिक वायलेंस यानी प्रसूति हिंसा महिलाओं के अधिकारों का एक विशेष प्रकार का उल्लंघन है, जिसमें समानता के अधिकार, भेदभाव से मुक्ति, सूचना को अधिकार, स्वास्थ्य और प्रजनन स्वायत्तता जैसे अधिकारओं के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं। जिसके कारण बहुत सी महिलाओं के लिए गर्भावस्था दुखद, अपमानजनक, खराब स्वास्थ्य और यहां तक ​​कि मृत्यु का कारण भी बन जाता है।

    मानसिक स्थिति को प्रभावित कर सकती है

    प्रेग्नेंसी के पूरे दौर में जहां एक महिला का पूरा ख्याल रखा जाता है, वहीं प्रसव के दौरान हुई प्रसूति हिंसा महिला के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। जिसके कारण कई महिलाएं कुछ समय तक डिप्रेशन का भी शिकार हो जाती हैं। यहां तक कि प्रसव के दौरान या किसी जांच के दौरान चिकित्सक द्वारा बरते गए बुरे व्यवहार के कारण महिला दूसरी प्रेग्नेंसी के खिलाफ भी हो सकती है। इसे एक तरह का ट्रामा भी कहा जा सकता है।

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    प्रसूति हिंसा के लक्षण क्या हैं?

    अगर गर्भावस्था, बच्चे के जन्म के दौरान या जन्म के बाद निम्न में से किसी भी तरह की तकलीफ महिला को होती है, तो उसे प्रसूति हिंसा के लक्षण माने जा सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः

    गर्भावस्था में ऑब्स्टेट्रिक वायलेंस के लक्षण:

  • गर्भवती महिला के उपचार से इनकार करना
  • एक महिला की जरूरतों को अनदेखा करना
  • किसी भी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी करना
  • नैदानिक ​​संकेत के बिना सिजेरियन सेक्शन का समय निर्धारण करना
  • अपने निर्णय लेने के लिए गर्भवती महिला के लिए पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं कराना
  • गुणवत्ता की उपेक्षा करना
  • गर्भवती महिला के साथ स्वास्थ्य चिकित्सक का आक्रामक व्यवहार
  • गर्भवति महिला के साथ शारीरिक हिंसा
  • बच्चे के जन्म के समय ऑब्स्टेट्रिक वायलेंस के लक्षण:

    • महिला को अस्पताल में प्रवेश से इनकार करना
    • गर्भवती महिला की सहमति के बिना चिकित्सा प्रक्रियाएं करना
    • पानी और भोजन की कमी
    • बच्चे के साथ मां के संपर्क को रोकना या देरी करना
    • नवजात शिशु को स्तनपान कराने से रोकना
    • महिला के दर्द को अनदेखा करना या किसी अन्य महिला के दर्द से उपेक्षा करना
    • मौखिक अपमान डॉक्टर या नर्स द्वारा किसी तरह के अपशब्दों का इस्तेमाल करना
    • दवा का अनावश्यक उपयोग या उचित दवा मुहैया न करवाना
    • भुगतान में विफलता के चलते उपचार से चिकित्सक का मना करना
    • अमानवीय या अशिष्ट उपचार
    • उचित और स्वस्थ आहार प्रदान न करना
    • नस्ल, जातीय, आर्थिक, आयु, एचआईवी स्थिति या लिंग के आधार पर भेदभाव या अपमान करना
    • नॉर्मल डिलिवरी के दौरान महिला के प्रेशर को बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन का लगातार उपयोग करना, इससे महिला को बहुत ज्यादा दर्द का अनुभव होता है और वह बच्चे को पुश करने में मदद करता है
    • महिला की सहमति के बिना एपीसीओटॉमी
    • महिला की मर्जी के विरुद्ध सिजेरियन सेक्शन द्वारा बच्चे का जन्म करना।

    गर्भपात में ऑब्स्टेट्रिक वायलेंस के लक्षण:

    • देखभाल से इनकार करना या देरी करना
    • महिला के साथ जबरदस्ती करना
    • गर्भपात के कारण के बारे में अनावश्यक प्रश्न पूछना।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मातृ और नवजात मृत्यु दर का एक बड़ा कारण सिजेरियन सेक्शन भी है। संगठन के अनुसार 10 फीसदी से अधिक मातृ और नवजात मृत्यु दर सिजेरियन सेक्शन के कारण होती है। इसके अलावा, सिजेरियन सेक्शन कई तरह की जटिलताओं, विकलांगता का भी कारण बन सकता है।

    जून 2014 में, फ्लोरिडा के एक प्रसूति रोग विशेषज्ञ, डॉ. सारा डिगियोर्गी ने एक टेलीविजन समाचार पर एक इंटरव्यू देते हुए कहा था कि कोई भी अस्पताल, डॉक्टर या परिवार के सदस्य एक महिला को सिजेरियन सेक्शन के जरिए बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। उनके मुताबिक, अगर महिला को पता है कि बच्चे के जन्म के लिए सिर्फ सी-सेक्शन ही आखिरी विकल्प है, लेकिन इसके बाद भी वो सी-सेक्शन से इनकार करती है, तो ऐसा करना उस महिला का पूरा अधिकार है। उस महिला को कोई भी ऑपरेशन के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।

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    प्रसूति हिंसा पर रिसर्च के आंकड़े

    एक शोध में 555 महिलाओं को शामिल किया गया। जिनका प्रेग्नेंसी के दौरान और प्रेग्नेंसी के बाद इंटरव्यू लिया गया। जिनमें से लगभग 13 फीसदी महिलाओं का कहना था कि बच्चे के जन्म के दौरान उन्होंने प्रसूति हिंसा का अनुभव किया। वहीं, लगभग 5 फीसदी महिलाओं का कहना था कि उन्हें नहीं पता कि उन्होंने प्रसव के दौरान किसी भी तरह की हिंसा का अनुभव किया है या नहीं। जबकि, लगभग 49 फीसदी महिलाओं का कहना था कि प्रसव के दौरान उन्होंने प्रसूति हिंसा का पूरा अनुभव किया, जिसके बारे में वे पहले से ही जागरूक थी। जिसके खिलाफ उन्होंने शिकायत भी दर्ज कराई थी।

    भारत में प्रसूति हिंसा के आंकड़े

    एनसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भी प्रसूति हिंसा के मामले अधिक देखे जाते हैं। जिसके तौर पर महिलाओं के साथ प्रसव के दौरान शारीरिक शोषण, यौन शोषण, मौखिक दुर्व्यवहार, भेदभाव, देखभाल के पेशेवर मानकों को पूरा करने में विफलता, महिलाओं और प्रदाताओं के बीच खराब तालमेल, और स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिति और बाधाएं जैसी स्थितियां देखी जाती है। हालांकि प्रसूति हिंसा भारत में भौगोलिक रूप से सीमित है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में सार्वजनिक और निजी दोनों जन्म सुविधाओं में ‘प्रसूति हिंसा’ के विभिन्न रूपों के अलग-अलग प्रचलन देखे जाते हैं। भारत में ‘ऑब्सटेट्रिक वायलेंस’ को सामाजिक और जनसांख्यिकीय कारकों के साथ जोड़ा गया है। जिसमें निम्न सामाजिक महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार का अधिक अनुभव पाया जाता है।

    हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।

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