मिडवाइफ डे (Midwives Day): मिडवाइफ के कारण माता और शिशु के मृत्यु दर में कमी
भारत में माताओं और शिशुओं को लेकर एक शोध किया गया था। भारत के रजिस्ट्रार जनरल के इस शोध रिपोर्ट यह पता चला था कि साल 2001 और 2003 के बीच प्रसव के प्रत्येक 10 हजार मामलों में से करीब 301 लोगों की मृत्यु हो जाती थी।
साल 2014 से 2016 के बीच किए गए दूसरे सर्वे में यह मृत्यु दर बहुत कम हो गई। पहले जहां प्रत्येक 10 हजार मामलों में 301 लोगों की मृत्यु होती थी। वह संख्या साल 2014 से 2016 के बीच घटकर केवल 130 हो गई। माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) द्वारा लागू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों और मिडवाइफ के सराहनीय योगदान के कारण ऐसा संभव हो पाया है।
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): 85% मामलों में सिजेरियन की जरूरत नहीं
सी-सेक्शन रेट्स पर साल 2015 की डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में भी कहा गया है, “यह सही है कि सी-सेक्शन माताओं और शिशुओं के जीवन को बचाने में प्रभावी होता है, लेकिन यह तभी अमल में लाया जाना चाहिए, जब बहुत जरूरी हों, क्योंकि प्रसव के 85% मामलों में प्रसूति को विशेष इलाज जैसे सिजेरियन की जरूरत नहीं होती है।”
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मिडवाइफ डे (Midwives Day): महिलाओं का पहला संपर्क केंद्र होती हैं मिडवाइफ
मिडवाइफ गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ नवजात शिशु की देखभाल, स्तनपान, परिवार नियोजन और एचआईवी संक्रमण, टीबी और मलेरिया आदि की भी जांच करती हैं। मिडवाइफ महिलाओं के लिए संपर्क का पहला केंद्र होती हैं। इसलिए ये प्रसव से पहले बेहतर तरीके से गर्भवती महिलाओं की जांच करती हैं और उनकी सहायता कर सकती हैं।
साल 2014 की मिडवाइफरी लैंसेट सीरीज़ में भी यह बताया गया है कि मिडवाइफ अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रशिक्षित होती हैं और लोग मिडवाइफ से प्रसव के दौरान की 87% सेवाएं ले सकते हैं।