मोलर प्रेग्नेंसी (Molar Pregnancy) गर्भधारण के समय ओवम के फर्टिलाइजेशन में होने वाले आनुवांशिक दोष, कमी या बायोलॉजिकल कमियों की वजह से होती है। यह महिला के गर्भ में शुक्राणु और अण्डों के निषेचन के दौरान हुई गलतियों के कारण भी होती है। इसे अपरिपक्व गर्भ भी कहा जाता है।
मोलर प्रेग्नेंसी को दाढ़ गर्भावस्था भी कहा जाता है। इसमें शिशु उचित विकास नहीं कर पाता। मोलर प्रेग्नेंसी में भ्रूण के बजाए प्लासेंटा के टिश्यूज मोल में बदल जाते हैं। महिलाओं में मिसकैरिज का एक कारण यह भी माना जाता है। क्योंकि जब किसी महिला में अंडे का निषेचन होता है तो उसमें पार्टनर और उसके 23-23 क्रोमोसोम मौजूद होते हैं। कई बार कंप्लीट मोलर प्रेग्नेंसी में निषेचित अंडे में महिला का क्रोमोसोम नहीं होता जबकि पुरुष पार्टनर के दोगुने होते हैं। ऐसी स्थिति में निषेचित अंडा विकसित नहीं हो पाता। देश में हर साल लाखों महिलाएं इस दाढ़ गर्भावस्था का शिकार होती हैं। यह हर 1,000 गर्भवती महिलाओं में हो सकती है। मोलर प्रेग्नेंसी दो तरह की होती है पूर्ण दाढ़ गर्भावस्था और आंशिक दाढ़ गर्भावस्था।
अन्य नाम:
- जेस्टेशनल ट्रोफोब्लास्टिक डिजीज (जीटीडी)
- हाइडैटिडिफॉर्म मोल
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पूर्ण दाढ़ गर्भावस्था (Complete Molar Pregnancy) क्या होती है?
आसान शब्दों में जब शुक्राणु एक खाली अंडे को निषेचित करता है। कंप्लीट मोलर प्रेग्नेंसी में महिला के अंडे में गुणसूत्र यानी क्रोमोसोम पाए जाते हैं और वह पुरुष के एक अथवा दो शुक्राणु से निषेचित होता है। जिस कारण पुरुष के गुणसूत्र दोगुने हो जाते हैं। जबकि निषेचन के दौरान दोनों के अपने-अपने 23 गुणसूत्रों का मिलना आवश्यक माना जाता है। इसकी कमी से भ्रूण (Fetus) ठीक से विकास नहीं कर पाता। कंप्लीट मोलर गर्भावस्था में भ्रूण की जगह गांठ बनने लगती है। जिसका पता सिर्फ सोनोग्राफी से ही चल पाता है।
आंशिक दाढ़ गर्भावस्था (Partial Molar Pregnancy) क्या होती है?
पार्शियल मोलर प्रेग्नेंसी तब होती है जब किसी महिला के एक सामान्य अंडे को गर्भावस्था में दो सामान्य शुक्राणु (स्पर्म) द्वारा फर्टिलाइज किया जाता है। इस स्थिति में अधिक गुणसूत्र (Chromosome) आ जाते हैं। जिसके कारण निषेचित अंडे (Egg) तथा प्लेसेंटा (Placenta) दोनों ही असामान्य रूप से विकसित हो जाते हैं। पार्शियल मोलर प्रेग्नेंसी में भ्रूण का विकास तो होता है लेकिन वह शिशु का आकार नहीं ले पाता।
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मोलर प्रेग्नेंसी के क्या लक्षण हो सकते हैं? (Symptoms of Molar Pregnancy)
- वजायनल इवैकुएशन
- पहली तिमाही में ब्लीडिंग
- पहली तिमाही के दौरान ब्राउन डिस्चार्ज
- योनि से ब्लड आना
- मतली
- उल्टी की समस्या
- प्रारंभिक प्रीक्लेम्पसिया
- एचसीजी का स्तर बढ़ जाना
- भ्रूण की गति या हृदय की गति का पता नहीं चलना
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मोलर प्रेग्नेंसी के क्या कारण हैं? (Causes of Molar Pregnancy)
गर्भावस्था में 20 साल की उम्र से कम और 35 साल से बड़ी महिलाओं को इसका सबसे अधिक खतरा है। मोलर प्रेग्नेंसी एक तरह से जेनेटिक समस्या भी है।
अगर महिला के परिवार में किसी अन्य को गर्भावस्था की यह समस्या हो चुकी है तो दोबारा इसके होने की संभावना बनी रहती है। यदि कोई महिला लंबे समय तक एंटी-प्रेग्नेंसी दवाइयों का सेवन करती है तो उसे ये परेशानी होने की संभावना रहती है। किसी महिला का एक से अधिक बार गर्भपात हुआ हो तो भी दाढ़ गर्भावस्था को खतरा बना रहता है।
कई बार जब महिला के अंडे को निषेचित किया जाता है तो उनके फर्टिलाइज किए गए अंडे में 23 क्रोमोसोम होते हैं। उचित गर्भधारण के लिए पुरुष के शुक्राणुओं में भी 23 क्रोमोसोम की आवश्यकता होती है, जबकि उस समय 46 क्रोमोसोम हो जाते हैं। इस प्रकार दोनों के गुणसूत्रों को मिलाकर 46 के बजाए महिला के ओवम में 69 क्रोमोसोम आ जाते हैं। जिससे प्रेग्नेंसी में गर्भावस्था में भ्रूण के साथ प्लासेंटा में कुछ असामान्य टिश्यूज भी विकसित हो जाते हैं। इसे मल्टीपल प्रेग्नेंसी भी कहा जाता है। इसमें भ्रूण का विकास आखिरी गर्भावस्था के आखिरी समय तक नहीं हो पाता। दुर्भाग्य से यह भ्रूण कुछ ही महीने में खत्म हो जाता है।
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मोलर प्रेग्नेंसी का इलाज क्या है? (Treatment for Molar Pregnancy)
मोलर प्रेग्नेंसी के इलाज में इन निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
सक्शन इवैल्यूएशन या वैक्यूम एस्पिरेशन: जिसमें महिला की योनि के माध्यम से गर्भ तक पतली ट्यूब डाली जाती है और सक्शन से एब्नॉर्मल टिश्यूज को बाहर निकाला जाता है।
डायलेशन एंड क्यूरेटेज (डीएंडसी) सर्जरी: इसके जरिए एब्नॉर्मल टिश्यूज को रिमूव कर दिया जाता है। मोलर प्रेग्नेंसी के इलाज हेतु गर्भवती महिला के प्लासेंटा से निकले हुए एब्नार्मल टिश्यूज को ऑपरेशन करके हटाया जा सकता है। जिसके लिए (डायलेशन एंड क्यूरेटेज) ऑपरेशन किया जाता है। इसमें महिला के सर्विक्स का एक छोटा हिस्सा काट दिया जाता है।
फिर से मोलर प्रेग्नेंसी न हो इसके लिए आपको लगभग 6 महीने तक ध्यान रखने की आवश्यकता है। एक बार इलाज के बाद दोबारा गर्भधारण के लिए कुछ समय का गैप रखें। छह महीने तक लगातार जांच उसके बाद डॉक्टर की सलाह पर ही गर्भधारण की सोचें।
मोलर प्रेग्नेंसी के अलावा भी कुछ दूसरी प्रेग्नेंसीज भी होती हैं। इनके बारे में आपको जानना जरूरी है।
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मोलर प्रेग्नेंसी के लिए टेस्ट (Test for Molar Pregnancy)
मोलर प्रेग्नेंसी की संभावना होने पर डॉक्टर ब्लड टेस्ट (Blood Test) करने की सलाह देते हैं। जिसमें ब्लड में प्रेग्नेंसी के लिए जिम्मेदार ह्यून कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन (HCG) हॉर्मोन के स्तर की जांच की जा सकती है। इसके साथ ही अल्ट्रासाउंड भी कराया जाता है। परीक्षण के दौरान अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) में तीव्र आवृति की ध्वनि तरंगों से पेट के निचले हिस्से और पेल्विक एरिया (Pelvic area) के टिशूज की जांच की जाती है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती दौर में गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब पेट की सतह के मुकाबले योनि के करीब आ जाते हैं। इसमें योनि में विशेष तरह की मशीन के द्वारा अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
एक्टोपिक या ट्यूबल प्रेग्नेंसी (Ectopic or Tubal Pregnancy)
जब एग यूट्रस के बाहर और फैलोपियन ट्यूब में (fallopian tube) डेवलप हो जाता है, तो इस स्थिति को एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं। फैलोपियन ट्यूब में गर्भ ठहरने के कारण ट्यूब फट जाती है और इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है। ऐसे में मिसकैरिज हो जाता है। हालांकि कभी-कभी मिसकैरिज नहीं होने की स्थिति में गर्भवती महिला के लिए यह प्रेग्नेंसी लाइफ थ्रेटनिंग भी हो सकती है। इमर्जेंसी की स्थिति में सर्जरी भी की जा सकती है।
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इंट्रा-एब्डॉमिनल प्रेग्नेंसी (Intra-Abdominal Pregnancy)
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