जानें कैसे किया जाता है चारकोट फुट का ट्रीटमेंट (Treatment for Charcot Foot)
चारकोट फुट के इलाज की बात करें तो शुरुआती दिनों में इसकी सूजन और गर्माहट को कम करने के लिए इलाज किया जाता है। वहीं बीमारी का पता चलने के बाद पैर के ऊपर किसी भी प्रकार का वजन डालने से पूरी तरह परहेज किया जाता है, ताकि कोई अतिरिक्त डैमेज न हो। इसे ऑफ लोडिंग भी कहा जाता है।
कई लो-टेक्नोलॉजी के साथ नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट भी चारकोट फुट (Charcot Foot) को बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं, इसके तहत
- खास प्रकार के स्प्लिंट को पहनने के साथ वॉकिंग ब्रेस और कस्टमाइज्ड वॉकिंग बूट का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है
- पैर पर पड़ने वाले सभी प्रकार के वजन को कम कर इलाज किया जाता है, इसके तहत मरीज को व्हील चेयर, बैसाखी और वॉकिंग स्कूटर का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है
- बीमारी से पीड़ित मरीज को ऑर्थोटिक ब्रेस का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, ताकि पैर का एलाइनमेंट सही हो सके
- कांटेक्ट कास्ट को पहनने की सलाह दी जाती है जो पैर में आसानी से फिट हो जाए
बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए इस प्रकार का सपोर्ट उन्हें कुछ महीनों के लिए अपनाना होता है। इस दौरान डॉक्टर से भी समय-समय पर चिकित्सीय सलाह लेने की जरूरत पड़ती है, डॉक्टर मरीज की नियमित जांच कर सही सलाह देते हैं। यदि एक समय पर एक पैर में बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो ऐसे में डॉक्टर दूसरे पैर की भी जांच करते हैं, ताकि उसमें किसी प्रकार का लक्षण होने पर समय पर इलाज किया जा सके। एक बार पैर के ठीक होने पर डॉक्टर मरीज को थेराप्यूटिक शूज और डायबिटिक फुटवियर (therapeutic shoes or diabetic footwear) पहनने की सलाह देते हैं। ऐसा कर डॉक्टर चारकोट फुट (Charcot Foot) के लक्षणों को कम करते हैं, वहीं भविष्य में भी बीमारी न हो उसकी तैयारी करते हैं।
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सर्जरी कर किया जाता है चारकोट फुट का इलाज (Treatment for Charcot Foot)
बीमारी से ग्रसित मरीज के पैर को यदि किसी प्रकार का सपोर्ट न दे पाए, पैर ठीक से खड़ा भी न हो पाए तो उस स्थिति में डॉक्टर मरीज को सर्जरी की सलाह देते हैं। वहीं यदि मरीज के पैर में किसी प्रकार का सोर या अल्सर है तो उस स्थिति में भी डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता पड़ती है।
वैसे तो सर्जरी की आवश्यता तभी पड़ती है, जब अल्सर हड्डियों में चला जाता है। ऐसे में इन डेड टिश्यू को काटकर अलग किया जाता है, ताकि ये शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित न कर सके। कुछ लोग ऐसे हैं जो बीमारी का इलाज नहीं कराते हैं। ऐसे में यह बीमारी और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है। पैर की संरचना बिगड़ने के साथ इंफेक्शन का खतरा भी कहीं ज्यादा बढ़ जाता है। ऐसे मरीजों का आगे चलकर पांव काटना पड़ता है और उन्हें प्रोस्थेसिस (prosthesis ) के सहारे जीवन जीना पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि बीमारी का सही समय पर इलाज कराया जाए। इन सर्जिकल तकनीक से मरीज का किया जाता है इलाज;
- प्रोस्थेटिक फिटिंग: इसके तहत सर्जरी कर बीमारी से प्रभावित पैर को हटा दिया जाता है।
- एक्सोस्टेक्टोमी (Exostectomy) : इसके तहत प्लैंटर प्रोमिनेंसे को ही हटा दिया जाता है, ताकि अल्सर न हो।
- एंकल फ्यूजन : इस प्रॉसिजर के तहत स्क्रू, रॉड और प्लेट लगाकर एंकल के ज्वाइंट को मजबूती प्रदान की जाती है, वहीं मोशन को रोका जाता है। ताकि और ज्यादा समस्या न हो।
- रिकंस्ट्रक्टिव ऑस्टियोटॉमी (Reconstructive osteotomy) : इस सर्जरी को रियल लिगामेंट बोन सर्जरी (realignment bone surgery) भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत पैर और एंकल हड्डियों की लेंथ को और भी ज्यादा शॉर्ट कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत सर्जन हड्डियों को काटने के साथ हड्डियों में कील ठोक उन्हें जोड़ते हैं।