सोशल मीडिया आज हर किसी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। ऐसा हो भी क्यों न। इसने लोगों की दुनिया को कितना आसान बना दिया है। इसके जरिए लोग दूसरे देश में रहकर भी आपस में कनेक्ट रह सकते हैं। सिक्के के दो पहलू की तरह सोशल मीडिया के अच्छे और बुरा दोनों पहलू हैं। ये हम पर निर्भर करता है कि हम लोग क्या स्वीकार करना चाहते हैं। सोशल मीडिया का असर सकारात्मक भी होता है और नकारात्मक भी। हाल ही में एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक इस्तेमाल करने से लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। इन लोगों में अकेलेपन की भावना बढ़ जाती है। यहीं नहीं इसकी लत से लोग अनिद्रा और तनाव के अलावा और भी कई स्वास्थ्य संबंधित समस्या के शिकार हो रहे हैं। आइए जानते हैं सोशल मीडिया से डिप्रेशन को लेकर क्या कहती है स्टडी।
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क्या वाकई लोगों में सोशल मीडिया से डिप्रेशन बढ़ता है?
यह शोध कनाडाई जर्नल ऑफ साइकेट्री (Canadian Journal of Psychiatry) में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा समय बिताने वाले लोगों में चिंता और अवसाद के लक्षण नजर आने लगते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जब ये लोग सोशल मीडिया का उपयोग कम कर देते हैं तो अवसाद के लक्षण में भी कमी आ जाती है।
इस अध्ययन में 12 से 16 वर्ष की उम्र के चार हजार किशोर को शामिल किया गया था। इन किशोरों से हर साल इस बात की जानकारी ली गई कि उन्होंने कितना समय डिजिटल स्क्रीन पर बिताया। इसके साथ ही यह भी नोट किया कि उन्होंने सोशल मीडिया, टीवी, कंप्यूटर और वीडियो गेम में अलग अलग कितना समय बिताया।
मॉन्टियल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पेट्रीसिया कॉनरेड ने बताया कि सोशल मीडिया से होने वाले दुष्परिणामों को लेकर अधिक शोध करने की जरूरत है, जिससे इनके बारे में गहराई से मालूम किया जा सके। शोध में सामने आया कि टीनेजर्स लगभग नौ घंटे ऑनलाइन समय बिता रहे हैं जिसका सीधा असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है। यही कारण है कि युवाओं में डिप्रेशन का स्तर बढ़ता जा रहा है।
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जर्नल ऑफ सोशल एंड क्लीनिकल साइकलोजी (Journal of Social and Clinical Psychology) द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने वाले लोगों में अकेलापन और डिप्रेशन के लक्षण देखने को मिले। इस शोध के सहलेखक जोर्डन यंग ने बताया कि जो लोग सोशल मीडिया पर कम समय व्यतीत करते हैं उनमें डिप्रेशन और अकेलापन कम देखा गया।
इस स्टडी में पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के143 स्टूडेंट्स को शामिल किया गया था। इन्हें दो ग्रूप में बांटा गया। एक ग्रूप में वो लोग थे जिन्होंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल पहले की तरह ही जारी रखा दूसरे वो लोग थे जिन्होंने एक सीमा तक इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। तीन हफ्तों के बाद, इन्हें दिन में आधा घंटा सोशल मीडिया पर बिताने के लिए दिया गया। इसमें 10 मिनट फेसबुक, 10 मिनट इंस्टाग्राम और 10 मिनट स्नैपचैट के लिए दिए गए। शोधकर्ताओं ने इन सभी स्टूडेंट्स के फोन का डेटा यूसेज (data usage) ट्रेक किया कि वह हर एप पर कितना समय बिताते हैं। इस स्टडी के परिणाम एक दम साफ थे। जिस ग्रूप के लोग सोशल मीडिया पर कम समय व्यतीत करते थे उनकी मेंटल हेल्थ पहले से बेहतर देखने को मिली। दूसरे ग्रूप के लोगों में अकेलापन और डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दिए। जोर्डन यंग ने बताया कि भले ही शुरुआत में वो जैसे थे, लेकिन सोशल मीडिया के इस्तेमाल को कम करके उनमें डिप्रेशन के लक्षण पहले से बहुत कम दिखाई दिए।
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सोशल मीडिया से डिप्रेशन के शिकार होने वाले बच्चों को कैसे बचाएं
डिप्रेशन और तनाव संबंधित बीमारियां टीनेजर्स के लिए खतरनाक बनती जा रही हैं। क्या आप जानते हैं कि हर 1 घंटे 40 मिनट में एक टीनेजर आत्महत्या कर रहा है। इस उम्र में बच्चे के शरीर और दिमाग में कई तरह के बदलाव होते हैं। पिछले कुछ सालों में बच्चों में डिप्रेशन की औसत उम्र बढ़ती जा रही है। ऐसे में आप भी अपने बच्चों को एक सीमा में रहकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने दें। अपने बच्चे को सोशल मीडिया से डिप्रेशन होने की संभावना को कम किया जा सकता है। इसके लिए पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ समय-समय पर बातचीत करनी चाहिए। बच्चों के साथ हॉलीडे पर जाएं और इस दौरान उन्हें मोबाइल से दूर रहने के लिए कहे। बच्चे में यदि तनाव के लक्षण नजर आते हैं तो समय-समय पर उनसे कम्युनिकेशन करें। उन्हें हर तकलीफ में सही मार्गदर्शित करें।
सोशल मीडिया से डिप्रेशन ही नहीं फियर ऑफ मिसिंग ऑउट (Fear of Missing Out) का जोखिम बढ़ता है
FOMO यानी अचानक खो जाना: यह भी एक दिमागी बीमारी है, जो सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल से जुड़ी है। युवाओं में यह परेशानी बहुत आम है। इस स्थिति में आपका बच्चा सोशल इवेंट्स को अटेंड करते वक्त नर्वस महसूस करता है। जिस पार्टी को सभी लोग एंजॉय कर रहे होते हैं वो उसी पार्टी में नर्वस एक साइड खड़ा नजर आता है। फोमो से ग्रसित टीन एंग्जायटी महसूस करता है। सोशल पार्टी में जाने से उसे डर लगता है। वे दूसरे लोगों से सोशल मीडिया पर जुड़े रहते हैं। कई शोध के अनुसार, फोमो से ग्रसित लोग ऐसा महसूस करते हैं कि दूसरों की जिंदगी उनसे ज्यादा बेहतर है। इससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इसमें मूड स्विंग्स, हीनता की भावना, आत्म-सम्मान में कमी,अकेलापन और अवसाद के स्तर में वृद्धि होती है।
सोशल मीडिया से डिप्रेशन और अकेलेपन की भावना से बच्चों की ऐसे मदद करें
मानसिक रूप से हेल्दी रहने के लिए अपनों की जरूरत पड़ती है। इसलिए बच्चों के तनाव को दूर करने के लिए जितना हो सके उनके साथ समय बिताएं। अगर बच्चे को किसी तरह की कोई टेंशन है तो बच्चे को समझाएं कि वह आपसे शेयर करें। बेहतर होगा कि वह अपनी हर परेशानी किसी बाहर के इंसान की जगह आपसे शेयर करें।
सोशल मीडिया का असर नकारात्मक होता है क्योंकि लोग अपना ज्यादातर समय वहीं गुजारना चाहते हैं। इससे वह अपनी बातें भी उन्हीं अंजान लोगों से शेयर करने में ज्यादा सही समझते हैं। इससे उनकी अंजान व्यक्ति पर डिपेंडेंसी बढ़ सकती है। सामने वाला अच्छा भी हो सकता है और खराब भी। यदि वहां आपके बच्चे को धोखा मिलेगा तो इसका सीधा असर उनकी मेंटल हेल्थ पर पड़ता है। ऐसे लोग समाज से भी दूरी बनाने लगते हैं और उनका किसी भी काम में मन नहीं लगता है। इसलिए अपने बच्चे को हमेशा वह जोन दें जिससे वह हर बात आपसे आकर शेयर कर सके। कई बार सोशल मीडिया से अधिक लगाव उनको बहुत अकेला कर सकता है। बेहतर होगा आप शुरुआत से उन्हें सोशल मीडिया का अधिक उपयोग न करने दें। इसके अलावा यदि आपको उनके स्वभाव में किसी तरह का बदलाव नजर आता है या स्ट्रेस में लगता है, तो इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश करें। अपने बच्चे की सारी परेशानी को दूर करने की कोशिश करें। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से परामर्श लें।
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हमें उम्मीद है कि सोशल मीडिया से डिप्रेशन पर आधारित यह लेख आपको पसंद आया होगा। यदि आपके बच्चे को भी सोशल मीडिया की लत है तो पहले खुद से उनकी यह आदत छुड़वाने की कोशिश करें। यदि आपका बच्चा सोशल मीडिया से डिप्रेशन या अकेलेपन का शिकार होते नजर आ रहा है तो इस बारे में डॉक्टर से संपर्क करें। सोशल मीडिया से डिप्रेशन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। अधिक समय तक सोशल मीडिया से जुड़े रहने से मेंटल हेल्थ खराब हो सकती है। बेहतर होगा कि इस बारे में डॉक्टर से परामर्श करें। बच्चे को दूसरे काम में व्यस्त करके भी इस लत से उन्हें बचाया जा सकता है।
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