बात यही खत्म नहीं हुई वे अपने लड़के को भी अपना नहीं समझतीं। दादी को जब तक याद रहता कि बलदेव उनका लड़का है तब तक तो उनको खूब प्यार-दुलार दिखाती लेकिन, जैसे जब वे उसे भूल जाती हैं तो वही लड़का उनके लिए यमराज की तरह बन जाता है। बलदेव जब भी दादी को कहीं ले जाने लगता है तो “हुड़ अपने घरवालों दे नाल रहना चाहन्दिया (मुझे अभी अपने परिवार के साथ रहना है)’ ऐसा जोर-जोर से कहने लगती हैं और अपने बेटे को ही अपशब्द कह देती। बेटा भी हंसकर मां की गालियां सुनता रहता है।
और तो और दादी कभी-कभी अपने बचपन में चली जाती हैं और उनको लगता है कि वो अपने दोस्तों के साथ रहती हैं। अपने पोता-पोती, बहू-बेटे को ही दोस्त समझकर खेलने के लिए कहती हैं। कई बार तो जब डायपर पहनाने की बात आती है तो दादी कहती हैं कि “अब मुझे पीरियड्स नहीं आते हैं, तो डायपर क्यों पहनना?’
एक बार तो हद्द ही हो गई। दादी को लगा कि उनके पास बहुत पैसे हैं, तो उन्होंने अपनी बहू को नौलक्खा हार दिलाने की ठान ली। फिर क्या था, अपने लड़के से कहने लगी कि अलमारी से रूपए निकालकर लाओ और मुझे मार्केट ले चलो, हार खरीदना है।
दिनभर में ऐसे कई इंसीडेंट्स होते हैं जब दादी अपनी बीमारी में भी लोगों को हंसा देती हैं। हालांकि कभी-कभी दादी को संभालते-संभालते बहू-बेटे परेशान भी हो जाते हैं लेकिन, गुस्सा कंट्रोल करके सभी परिवार वाले दादी की हर स्थिति में साथ देते हैं। अल्जाइमर के पेसेंट्स को सबसे ज्यादा अपनों के साथ की जरूरत होती है। इसलिए उस इंसान की बीमारी को समझें और उन्हें अकेला न छोड़े। उन्हें आपकी और आपके साथ की जरूरत है।
और पढ़ें : जानिए डिमेंशिया के लक्षण पाए जाने पर क्या करना चाहिए
अल्जाइमर (Alzheimer) क्या है?