पीरियड्स को महामारी या मासिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। इंग्लिश में पीरियड्स को मेंस्ट्रुअल साइकिल भी कहा जाता है। पीरियड्स महिलाओं में होने वाली एक नैचुरल प्रॉसेस है। यह लड़कियों में 12 या 14 साल की उम्र से शुरू होता है और 21 से 35 दिनों के अंतराल में होता है। इस दौरान 5 से 7 दिनों तक वजायना से ब्लीडिंग होती है।
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पीरियड्स के रंग अलग-अलग क्यों होते हैं?
अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑब्स्टट्रिशन एंड गायनेकोलॉजिस्ट (ACOG) के अनुसार पीरियड्स के रंग आपकी अच्छी सेहत या खराब सेहत की ओर इशारा करते हैं। पीरियड्स के रंग के अलावा पीरियड्स के एक से दूसरे महीने का गैप या 21 से 35 दिनों के अंतराल में न आना भी आपको कई बार परेशान कर देता है। दरअसल हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार अगर पीरियड्स 21 से 35 दिनों के अंतराल पर न आए तो ऐसे में डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। रिसर्च के अनुसार अगर पीरियड्स के रंग में बदलाव आता है जैसे काले (ब्लैक) से भूरे (ब्राउन) या नारंगी (ऑरेंज) जैसे अन्य रंग होने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
पीरियड्स के रंग: पीरियड्स में कौन-कौन से कलर का ब्लड आता है?
पीरियड्स के कलर में निम्नलिखित रंग शामिल हैं। जैसे-
- काले (Black)
- भूरा (Brown)
- गहरा लाल (Dark red)
- ब्राइट लाल (Bright red)
- गुलाबी (Pink)
- नारंगी (Orange)
- ग्रे (Grey)
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क्या कहते हैं पीरियड्स के रंग?
पीरियड्स के रंग से सेहत का राज: ब्लैक या ब्राउन कलर का ब्लड आना
पीरियड्स के दौरान अगर ब्लैक कलर की ब्लीडिंग हो तो जरूरी नहीं है कि आप परेशान ही हों। पीरियड्स के दौरान आने वाला काला रंग दरअसल ब्राउन रंग को दर्शाता है। काले या भूरे रंग के ब्लड का मतलब है कि यह पुराना ब्लड है। रिसर्च के अनुसार ब्लैक ब्लड को यूट्रस से आने में ज्यादा वक्त लगता है। पुराना होने की वजह से ब्लड के कलर में बदलाव आता है। पीरियड्स के रंग में ब्राउन ब्लड के अलग-अलग अर्थ भी होते हैं, जिसे समझना बेहद जरूरी है।
पीरियड्स की शुरुआत या पीरियड्स का आखिरी दिन
पीरियड्स के शुरुआती दिन या आखिरी दिनों में ब्लड फ्लो धीमा हो जाता है। ऐसे में ब्लड यूट्रस में ज्यादा समय के लिए रुक जाता है, जिस कारण से ब्राउन कलर में बदल जाता है। कभी-कभी पीरियड्स के आखिरी दिनों में यूट्रस में बचा ब्लड अगले महीने में पीरियड्स आने पर भी ब्राउन कलर के रूप में बाहर आता है।
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लौकिया (Lochia)
लौकिया गर्भवती महिलाओं को होता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार बेबी डिलिवरी के बाद चौथे या छठे दिन तक के पीरियड्स को लौकिया कहते हैं। नवजात के जन्म के बाद सामान्य से ज्यादा हेवी वजायनल ब्लीडिंग होती है। डिलिवरी के चौथे दिनों के बाद लौकिया गुलाबी (Pink) या ब्राउन (Brown) कलर का हो जाता है। हालांकि, गर्भावस्था के दौरान ब्राउन ब्लड की स्पॉटिंग होना या सामान्य ब्लीडिंग होने पर इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
मिसकैरिज
मिसकैरिज होने पर ब्राइट रेड कलर की ब्लीडिंग होती है। ऐसी स्थिति में गर्भ में पल रहा फीटस विकास नहीं कर पाता है और यूट्रस से तकरीबन चार हफ्ते तक बाहर भी नहीं आ पाता है। हर महिलाओं में मिसकैरिज के अलग लक्षण हो सकते हैं और इस दौरान पीरियड्स के रंग डार्क ब्राउन हो सकते हैं। इसके साथ ही हेवी ब्लीडिंग या ब्लड क्लॉट भी हो सकता है।
पीरियड्स के रंग से सेहत का राज: डार्क रेड ब्लड आने का मतलब
पीरियड्स के रंग से सेहत का राज: ब्राइट रेड ब्लड आने का कारण
पीरियड्स की शुरुआत अगर ब्राइट रेड से होती हैं, तो इसका अर्थ है कि ये फ्रेश ब्लड है जो तेजी से फ्लो कर रहा है। अगर फ्लो धीमा हो जाए तो यही ब्लड ब्राउन कलर में बदल जाएगा।
अगर पीरियड्स के रंग में रेड कलर ही आए तो क्लैमाइडिया (Chlamydia) और गोनोरिया (Gonorrhea) जैसे इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। अगर पीरियड्स की डेट के पहले किसी भी महिला को ब्लीडिंग की समस्या होती है, तो ऐसी स्थिति में घरेलू इलाज से बचकर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
पीरियड्स के रंग: पीरियड्स में गुलाबी रंग का ब्लड आना
पीरियड्स के शुरूआती दिनों के साथ-साथ आखरी दिनों में भी पिंक ब्लीडिंग हो सकती है या फिर स्पॉटिंग हो सकती है। जब सर्वाइकल फ्लूइड के साथ पीरियड्स का ब्लड मिलने लगता है तो ब्लड का रंग गुलाबी होने लगता है।
पीरियड्स के रंग से सेहत का राज: ऑरेंज कलर का ब्लड
पिंक और ऑरेंज ब्लीडिंग के पीछे सर्वाइकल फ्लूइड ही माना जाता है, लेकिन अगर ऑरेंज कलर की ब्लीडिंग ज्यादा हो रही है, तो इसके दो कारण हो सकते हैं। इन कारणों में शामिल है इंफेक्शन और इम्प्लांटेशन स्पॉटिंग।
इम्प्लांटेशन स्पॉटिंग- गर्भ ठहरने के 10 से 14 दिनों के आसपास पिंक या ऑरेंज कलर की वजायनल स्पॉटिंग होती हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं की हर गर्भधारण कर चुकी महिला ऐसा महसूस करें। ऐसे वक्त में प्रेग्नेंसी टेस्ट अवश्य करना चाहिए।
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इंफेक्शन- अगर ब्लीडिंग के दौरान किसी अन्य कलर की ब्लीडिंग होती है, तो यह इंफेक्शन या सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन (STI) की ओर भी इशारा करता है। इसलिए ऐसी स्थिति में डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
पीरियड्स के रंग से सेहत का राज: ग्रे कलर का ब्लड आना
अगर महिलाओं को ग्रे कलर की ब्लीडिंग हो रही है, तो इसे बिलकुल भी नजरअंदाज न करें। क्योंकि ऐसी स्थिति में इंफेक्शन, बुखार, दर्द, खुजली और फाउल ऑडोर की समस्या हो सकती है। अगर आप गर्भवती हैं तो गर्भावस्था के दौरान ग्रे ब्लीडिंग होने पर सतर्क हो जाएं। क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान ग्रे ब्लीडिंग मिसकैरिज की संभावना को व्यक्त करती है। ऐसी स्थिति में बिना देर किए डॉक्टर से मिलना आवश्यक है।
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क्या पीरियड्स के रंग को लेकर सतर्क रहना चाहिए?
किसी भी महिला के हेल्दी होने की निशानी समय पर पीरियड्स होने के साथ-साथ पीरियड्स के रंग हो सकते हैं लेकिन, जिस तरह से रिसर्च में पीरियड्स के रंग या मासिक धर्म के रंग में अलग-अलग बदलाव आते हैं उसे समझना जरूरी हैं।
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डॉक्टर से कब संर्पक करना चाहिए?
निम्नलिखित परिस्थितियों में डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक हो जाता है। अगर-
- पीरियड्स रेगुलर न हो या अचानक से पीरियड्स की डेट बदल जाना।
- अगर आपको 24 दिनों के पहले पीरियड्स आता हो या फिर एक पीरियड्स से दूसरे पीरियड्स में 38 दिनों का या इससे ज्यादा गैप रहता हो।
- अगर तीन महीने तक लगातर पीरियड्स न आए।
- अगर पीरियड्स समय पर होने के बावजूद भी बीच-बीच में ब्लीडिंग हो।
- अगर पीरियड्स के दौरान सामान्य से ज्यादा दर्द हो।
- मेनोपॉज होने के बाद भी फिर से ब्लीडिंग शुरू हो जाए।
- कई बार महिलाओं को पीरियड्स के साथ कब्ज की समस्या भी हो जाती है। ऐसे में भी डॉक्टरी सलाह लेना चाहिए।
इन ऊपर बताई गई परिस्थितियों के अलावा कोई और परेशानी महसूस हो, तो हेल्थ एक्सपर्ट से सलाह लें और खुद से इलाज न करें। पीरियड्स के दौरान सामान्य से ज्यादा ब्लीडिंग होने पर दवा के सेवन की सलाह डॉक्टर दे सकते हैं।
अगर आप इससे जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।
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