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इस तरह घर में ही बनाएं मिट्टी के बर्तन में खाना, मिलेगा बेहतर स्वाद के साथ सेहत भी

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Shayali Rekha द्वारा लिखित · अपडेटेड 18/05/2021

    इस तरह घर में ही बनाएं मिट्टी के बर्तन में खाना, मिलेगा बेहतर स्वाद के साथ सेहत भी

    बहुत हो गई भविष्य की बातें, जरा अपने अतीत में चलें। जब लोग कच्चे घरों में रहते थे और मिट्टी के बर्तन में खाना पकाते थे। चूल्हे की उस धीमी आंच पर मिट्टी के बर्तनों में पकते हुए खाने की सौंधी सी खूशबू अनायास ही सभी की भूख बढ़ा देती थी। फिलहाल अब दौर बदल चुका है और लोग मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) पकाना छोड़कर अब नॉनस्टिक बर्तनों के जमाने में आ गए हैं। वहीं अब वे मिट्टी के बर्तन में बने भोजन का स्वाद लेने के लिए रेस्टोरेंट में हजारों रूपए देते हैं। 

    कई लोग फिर से उस दौर में लौटना चाहते हैं जिसमें मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) पकाकर खा सके, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) पकाना आज की पीढ़ी को आता ही नहीं है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि मिट्टी के बर्तन में खाना पकाकर खाने के स्वास्थ्य के लिए क्या फायदे होते हैं। इसके साथ ही इस बात को भी जानेंगे कि पहले के लोग इतने हुष्ट-पुष्ट क्यों रहते थे। साथ ही हम जानेंगे कि मिट्टी के बर्तन में कुकिंग के टिप्स के बारे में। 

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    मिट्टी के बर्तन क्या हैं?

    मिट्टी के बर्तन में खाना

    धरती पर पाई जाने वाली मिट्टी को निकालकर उसे एक बर्तन के आकार में ढाला जाता है। फिर इसे सुखा कर आंच में पकाया जाता है। इसके बाद यह सफेद से लाल रंग में बदल जाता है। इसे ही मिट्टी का बर्तन कहते हैं। मिट्टी के बर्तन दो तरह के होते हैं :

    मिट्टी के बर्तन में खाना

    • ग्लेज्ड अर्थन पॉट : ग्लेज्ड अर्थन पॉट का मतलब है, ऐसे मिट्टी के बर्तन, जिन्हें पकाने के बाद पर उस पर चिकनाई या चिकना पेंट चढ़ाया जाता है। ग्लेज्ड अर्थन पॉट अक्सर टेराकोटा के बने होते हैं। ग्लेज्ड अर्थन पॉट ज्यादा आकर्षक,रंग-बिरंगे और टिकाऊ होते हैं। 

    मिट्टी के बर्तन में खाना

    • अनग्लेज्ड अर्थन पॉट : अनग्लेज्ड अर्थन पॉट देखने में लाल, ऑरेंज या ब्रिक कलर दे दिखाई देते हैं। इन पर किसी भी तरह का कोई रंग नहीं चढ़ाया जाता है। अनग्लेज्ड अर्थन पॉट ग्लेज्ड अर्थन पॉट की तुलना में कम आकर्षक और टिकाऊ होते हैं, लेकिन आजकल अनग्लेज्ड अर्थन पॉट को भी कई तरह की डिजाइनों में ढाला जाता है। अनग्लेज्ड अर्थन पॉट में खाना पकाने से पहले हमें उसे पानी में भिगाना पड़ता है। इससे ये मजबूत हो जाता है। 

    हमेशा अनग्लेज्ड अर्थन पॉट में ही खाना पकाना चाहिए। क्योंकि ग्लेज्ड अर्थन पॉट की रंगाई में इस्तेमाल हुए केमिकल बर्तन के गर्म होने के बाद निकलने लगते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। 

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    मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने के क्या फायदे हैं?

    मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाने का चलन भारतीय परंपरा में सदियों से चला आ रहा है। मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) खाकर ही हमारे पूर्वज इतने स्ट्रॉन्ग रहा करते थे और उन्हें जीवनशैली से जुड़ी हुई बीमारियां न के बराबर होती थी। आज भी अगर देखा जाए तो लोग मिट्टी के बर्तन में पके हुए भोजन को खाने के लिए हजारों रुपए खर्च करते हैं। रेस्टोरेंट में जाकर चिकन हांडी, हांडी बिरयानी, हांडी पनीर आदि रेसिपी को ऑर्डर करते हैं। फिर मजे लेकर उसे खाते हैं। 

    वाराणसी और लखनऊ स्थित बाटी चोखा रेस्टोरेंट के डायरेक्टर विवेक का कहना है कि, “हम अपने रेस्टोरेंट में मिट्टी के बर्तनों में ही खाना पकाते हैं। हम मुख्य रूप से मिट्टी की हांडी में दाल, खीर और पनीर आदि बनाते हैं। हमारे यहां खाना खाने वाले लोग कहते हैं कि दाल, खीर और सब्जी का स्वाद काफी अलग लग रहा है। स्वाद के अलग लगने के पीछे का सबसे पड़ा कारण है कि मिट्टी के बर्तन में धीरे-धीरे खाना पकता है, जिसके वजह से उसका स्वाद और बर्तनों में बने हुए खाने की तुलना में अलग होता है। साथ ही मिट्टी के बर्तनों में बना हुआ खाना पूरी तरह से केमिकल रहित होता है, जिसका सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।’

    मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाने से भोजन में पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं

    मिट्टी के बर्तनों में बहुत छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिससे मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने के दौरान नमी बरकार रहती है। ये नमी पूरे बर्तन में सर्कुलेट होती रहती है। जिससे भोजन के जलने का डर न के बराबर होता है। मिट्टी के बर्तनों में नमी के कारण ही भोजन के पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं। इसलिए कहा जाता है कि मिट्टी के बर्तन में बना खाना ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक होता है। वहीं, अगर हम किन्हीं अन्य मेटैलिक बर्तनों में खाना पकाते हैं तो खाने की थोड़ी-बहुत न्यूट्रिएंट्स वैल्यू खत्म हो ही जाती है। अगर आप मिट्टी के बर्तन में मीट पकाते हैं तो वह जूसी और मुलायम बना रहता है। 

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    मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाना से पाचन शक्ति बढ़ती है

    मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से पाचन शक्ति दुरुस्त होती है। भोजन में मौजूद आयरन, कैल्शियम, मैग्निशियम और सल्फर नष्ट नहीं होते हैं और ये पाचन तंत्र के लिए जरूरी मिनरल होते हैं। इसके साथ ही खाने में मौजूद एसिड को भी मिट्टी के बर्तन न्यूट्रीलाइज्ड कर देते हैं।

    दिल के दोस्त हैं मिट्टी के बर्तन

    आजकल दिल की बीमारी होने का सबसे बड़ा कारण बढ़ा हुआ वजन है। ज्यादा मात्रा में तेल का सेवन करने से वजन बढ़ता है। मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाते समय कम मात्रा में तेल का इस्तेमाल होता है। जिससे वजन बढ़ने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। इस तरह से कहा जा सकता है कि मिट्टी का बर्तन हमारे दिल का दोस्त होता है। 

    मिट्टी के बर्तन में तेल का कम इस्तेमाल होने के पीछे का कारण यह है कि मिट्टी के बर्तन में बहुत छोटे-छोटे छेद होते हैं। जिससे बर्तन में नमी सर्कुलेट होती रहती है। इसके साथ ही धीमे-धीमे खाना पकने के कारण भोजन में मौजूद नेचुरल तेल और नमी के कारण खाना कम तेल में भी पक जाता है। 

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    प्रकृति से एल्कलाइन होते हैं मिट्टी के बर्तन

    मिट्टी के बर्तन की प्रकृति एल्कलाइन होती है। मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाने से पीएच बैलेंस बना रहता है। फूड में पीएच बैलेंस खाने में नेचुरल डिटॉक्स की तरह काम करता है। आपको शायद ये जानकर हैरानी हो, लेकिन ये सच है कि मिट्टी में विटामिन बी12 प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाने से हमें विटामिन बी12 मिलता है। 

    मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से भोजन में महक बनी रहती है

    जब हम किसी मेटल के बर्तन में खाना बनाते हैं, तो हमारे खाने की महक वैसी हो जाती है, जैसा मेटल होता है, लेकिन मिट्टी के बर्तन में बना खाना सौंधी सी महक के साथ खाने के महक को नहीं बदलता है। 

    मिट्टी के बर्तन में खाने का स्वाद बेहतरीन हो जाता है

    मिट्टी के बर्तन में भोजन का पीएच बैलेंस मेंटेन रहने के कारण उसका स्वाद बेहतरीन लगता है। इसके पीछे की वजह ये है के धीमी आंच पर खाना पकता है और बर्तन के भीतर की नमी के कारण मिट्टी के स्वाद हल्का-हल्का खाने में घुलता रहता है।  

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    पॉकेट फ्रेंडली है अर्थन पॉट्स

    मिट्टी के बर्तन हमारे देश की पुरानी परंपरा है। हमारे देश में ये बर्तन बहुत आसानी से मिल जाते हैं। आज कल बाजारों में कढ़ाई, तवा और हांडी आदि मिलती है। आपके बजट में मिट्टी का बर्तन आराम से फिट भी हो जाते हैं। इसलिए ये पॉकेट फ्रेंडली कहे जाते हैं। 

    मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल कैसे करें?

    मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाना और उसकी देखरेख करना काफी पेचीदा होता है। इसके लिए आपको उसे खरीदने से लेकर खाना बनाने के बाद धुलने तक कई बातों का ध्यान देना होगा। मिट्टी का बर्तन खरीदते समय उसे दुकान पर ही चेक कर लें कि कहीं कोई छेद तो नहीं है। 

    मिट्टी के बर्तन खरीदने के बाद सबसे पहले क्या करें?

    • मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पहले हमें उसे कई घंटों तक पानी में भिगा देना चाहिए।
    • आप उसे पूरी रात के लिए पानी से भरे टब में छोड़ सकते हैं।
    • पानी को निकालने के बाद आप बर्तन से पानी को पूरी तरह से सूख जाने दें। 

    मिट्टी के बर्तन की सिजनिंग कैसे करें?

    • मिट्टी के बर्तन में कोई भी तेल अच्छी तरह पूरे बर्तन पर लगाएं। 
    • इसके बाद बर्तन का ¾ भाग पानी से भर के ढक्कन लगा दें। 
    • इसके बाद इसे चूल्हे पर एकदम धीमी आंच पर 2-3 घंटे के लिए रख दें। आप चाहें तो इसे 350 डिग्री फारेनहाइट पर भी रख सकते हैं। 
    • इसके बाद आप बर्तन को ठंडा होने दें, फिर धो लें।
    • इस प्रक्रिया से मिट्टी का बर्तन हार्ड हो जाता है, जिससे इसके क्रैक होने का खतरा न के बराबर हो जाता है। 

    खाना पकाने से पहले क्या करें?

    • खाना पकाने के लगभग 15 से 20 मिनट पहले मिट्टी के बर्तन को पानी के टब में डालकर छोड़ दें, ताकि वह पानी अच्छी तरह से सोख ले। ऐसा करने से खाना पकाने के दौरान मिट्टी के बर्तन में नमी बरकरार रहती है, जिससे उसके चटकने का खतरा कम हो जाता है। साथ ही खाने का प्राकृतिक स्वाद भी बना रहता है।
    • इसके अलावा मिट्टी के बर्तन को मध्यम आंच पर ही रखें। अगर आंच ज्यादा तेज रही तो बर्तन टूट सकता है। 

    मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) पकाने के दौरान किन बातों का ध्यान रखें?

    • मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने के लिए खाना बनाते समय तापमान 190 डिग्री से 250 डिग्री सेल्शियस के बीच में होना चाहिए। 
    • मिट्टी के बर्तन में भोजन पकने में सामान्य बर्तन से 15 से 20 मिनट का ज्यादा समय लगता है। 
    • खाना बनाते समय कभी भी ठंडा पानी या ठंडा मसाला नहीं मिलाएं। इससे गर्म हुआ मिट्टी का बर्तन चटक सकता है। इसलिए इसमें सिर्फ पानी को गर्म कर के ही मिलाएं।

    खाना पकने के बाद क्या करें?

    • किसी मोटे कपड़े की सहायता से बर्तन को स्टोव से उतार कर एक तरफ रख दें।
    • लेकिन मिट्टी के बर्तन को कहीं भी रखने से पहले नीचे एक लकड़ी का पैड या तौलिया जरूर रख दें। सीधे जमीन या किसी ठंडी सतह पर रखने से बर्तन क्रैक हो सकता है। 
    • मिट्टी के बर्तन का ढक्कन उठाते समय आप सावधानी बरतें, अन्यथा जल सकते हैं। 

    मिट्टी का बर्तन धोते समय किन बातों का ध्यान रखें?

    मिट्टी के बर्तन में खाना (Earthen pot) बनाते समय जितना ध्यान देना पड़ता है, उतना ही ध्यान उसकी सफाई में भी देना पड़ता है। 

    • मिट्टी के बर्तन को हाथों से ही साफ करें।
    • मिट्टी के बर्तन को धोने से पहले गर्म पानी में भिगा दें। इससे उसमें लगा जूठन साफ हो जाएगा।
    • मिट्टी के बर्तन को धोने के लिए हार्ड डिटर्जेंट और स्क्रब का इस्तेमाल कतई न करें।
    • बेकिंग सोडा और पानी के मिश्रण को मिट्टी के बर्तन को धोने के लिए इस्तेमाल करने से उसमें से खाने की महक निकल जाती है। 
    • बर्तन को धोने के बाद बर्तन में 20 से 30 मिनट तक पानी उबालें। जिससे मिट्टी के बर्तन के छेद खुल जाते हैं।
    • मिट्टी के बर्तन को धोने के लिए कभी भी डिटर्जेंट का इस्तेमाल न करें। इससे साबुन को बर्तन सोख लेता है और इससे भोजन के स्वाद में साबुन का स्वाद मिल जाता है। 

    अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें। इस आर्टिकल में हमने आपको मिट्टी के बर्तन में खाने से संबंधित जरूरी बातों को बताने की कोशिश की है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस बीमारी से जुड़े किसी अन्य सवाल का जवाब जानना है, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे। 

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