स्टमक यानी पेट के पीछे की ओर एक ग्लैंड होती है, जो इंसुलिन को प्रोड्यूस करने का काम करती है। पैंक्रियाज यानी अग्नाशय से इंसुलिन हॉर्मोन प्रोड्यूस होता है। इंसुलिन शरीर को अनुमति देता है कि शरीर ग्लूकोज को एनर्जी के रूप में इस्तेमाल कर सके। ऐसे में इंसुलिन में असंतुलन शरीर में कई प्रकार की समस्याओं को जन्म देना है, जिसके लिए डॉक्टर्स सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) की सलाह देते हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से जानें सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) के बारे में जरूरी बातें।
सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) क्यों किया जाता है?
सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) की सहायता से पैंक्रियाज में बीटा सेल्स से इंसुलिन के उत्पादन के बारे में जानकारी मिलती है। ब्लड में लो ब्लड शुगर या हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia), इंसुलिन रजिस्टेंस के बारे में जानकारी या फिर टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes) में जरूरी इंसुलिन के बारे में जानकारी के लिए सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) किया जाता है। सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) की जरूर तब पड़ती है, जब व्यक्ति में लो ग्लूकोज लेवल के लक्षण दिखाई पड़ते है। कुछ लक्षण जैसे कि पसीना आना (Sweating), धड़कन का अनियमित होना, बेहोशी आना आदि।
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कैसे किया जाता है सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test)?
सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) करने के लिए डॉक्टर आर्म वेन से ब्लड सैंपल लेते हैं। आपको सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) कराने से करीब 8 घंटे पहले तक फास्ट रखना यानी भूखा रहना पड़ता है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर खाली पेट रहने के समय को कम या फिर ज्यादा भी कर सकते हैं। आपको इस बारे में अधिक जानकारी डॉक्टर से प्राप्त करनी चाहिए। टे
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सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) से क्या पता चलता है?
इंसुलिन की नॉर्मल रेंज 2.6 – 24.9 mcIU/mL के बीच औसत होती है। टाइप 1 डाबिटीज से पीड़ित लोगों में ग्लूकोज लेवल लो होता है। वहीं टाइप 2 डायबिटीज की प्राइमरी स्टेज में इंसुलिन लेवल या तो हाय होता है या फिर नॉर्मल होता है। सेकेंड्री लेवल में इंसुलिन लेवल लो हो जाता है।
इंसुलिन लेवल बढ़ने से हो सकती हैं ये समस्याएं
सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) के दौरान अगर इंसुलिन का लेवल बढ़ा होता है, तो आपको निम्न समस्याएं हो सकती हैं।
- टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes)
- इंसुलिन रसिस्टेंस (Insulin resistance)
- हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia)
- कुशिंग सिंड्रोम (Cushing’s syndrome)
इंसुलिन लेवन कम होने से हो सकती हैं ये समस्याएं
इंसुलिन टेस्ट के दौरान अगर इंसुलिन का लेवल अगर कम होता है, तो आपको निम्न समस्याएं हो सकती हैं।
- हायपरग्लाइसेमिया (High blood sugar)
- टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes)
- पेंक्रिएटाइटिस (Pancreatitis)
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क्या सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) में कोई जोखिम है?
सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) पूरी तरह से सुरक्षित होता है लेकिन कुछ लोगों को इंसुलिन टेस्ट के बाद कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वेन के जिन स्थान में सुई इंजेक्ट की गई थी, वहां हल्का नीला निशान पड़ सकता है या फिर ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है। जिन लोगों को इंजेक्शन या फिर खून देखकर चक्कर आते हैं, उनमें बेहोशी का खतरा भी बढ़ जाता है। सुई लगने पर मामूली दर्द का एहसास होता है, जो तुरंत ठीक भी हो जाता है।
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कब होती है सीरम इंसुलिन टेस्ट (Serum insulin test) की जरूरत?
- अगर आपकी लाइफस्टाइल (Lifestyle) ठीक न हो और आपको कई बीमारियों ने घेरा हो।
- शरीर में एचडीएल यानी गुड कोलेस्ट्रॉल (Good cholesterol) की मात्रा कम है और ट्रायग्लीसराइड का लेवल (Triglyceride level) हाय है, तो ऐसे में टेस्ट की जरूरत हो सकती है।
- अगर आपके परिवार में किसी को मधुमेह की बीमारी है, तो ऐसे में आपको भी डॉक्टर से परामर्श करने के बाद टेस्ट कराना चाहिए।
- हाय ब्लड प्रेशर ( High blood pressure) इंसुलिन रसिस्टेंस का लक्षण है, ऐसे में इंसुलिन टेस्ट कराना जरूरी हो जाता है।
- अगर पैदा हुए बच्चे का वजन चार किलो तक है, तो भी आपको टेस्ट की जरूरत पड़ सकती है।
- अगर आपको स्ट्रोक की समस्या है, तो आपको जांच कराने की जरूर है। आप चाहे तो इसके संबंध में डॉक्टर से जानकारी ले सकते हैं।
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अगर आपको इंसुलिन या फिर टाइप 1 डायबिटीज के बारे में अधिक जानकारी चाहिए, तो आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। बेहतर लाइफस्टाइल, वेट को कंट्रोल करके और पौष्टिक आहार का सेवन (Eating nutritious food) कर आप डायबिटीज के खतरे को कम कर सकते हैं।
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