के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम किडनी का एक विकार है जिसमें किडनी शरीर से यूरिन के साथ-साथ ज्यादा मात्रा में प्रोटीन भी निकालने लगती है। प्रत्येक किडनी में रक्त साफ करने के लिए 1 मिलियन फिल्टर होते हैं जो विषाक्त को शरीर से निकालने में मदद करते हैं। स्वस्थ किडनी ब्लड में प्रोटीन के सही लेवल को बनाए रखने में मदद करती है। शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम होने पर शरीर में सूजन की समस्या हो जाती है।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन, बच्चों में सबसे ज्यादा यह बीमारी देखी जाती है। इस बीमारी से आसानी से बचा जा सकता है। इसलिए परेशानी महसूस होने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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नेफ्रोटिक सिंड्रोम में प्रायः दर्द नहीं होता है लेकिन, शरीर में पानी की कमी होने से तनाव और बेचैनी महसूस होती है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम के कारण आंखों और हाथों में सूजन की समस्या शुरू हो जाती है। यूरिन का कम आना, कमजोरी महसूस होना और भूख नहीं लगना आदि लक्षण है। इन लक्षणों के अलावा हाई कोलेस्ट्रॉल की भी समस्या हो सकती है। इन लक्षणों के अलावा और भी लक्षण हो सकते हैं। इसलिए डॉक्टर से संपर्क करें।
ऊपर बताए गए लक्षण या कोई और लक्षण अगर आप महसूस करते हैं और अगर इन लक्षणों के साथ-साथ बुखार, ठंड, सांस लेने में परेशानी, सीने में दर्द या पेट और पैर में दर्द होने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलें। हर व्यक्ति के शरीर की बनावट अलग होती है। इसलिए डॉक्टर शरीर के अनुसार इलाज करते हैं। ध्यान रखें किसी भी बीमारी का इलाज शुरुआती दौर में करने से ठीक हो सकती है। इसलिए डॉक्टर के पास जाने में देरी न करें।
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किडनी के छोटे ब्लड वेसल्स (ग्लोमेरुली) के नष्ट होने पर नेफ्रोटिक सिंड्रोम की समस्या शुरू हो जाती है। ऐसा यूरिन में असामान्य प्रोटीन लेवल की वजह से होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार नेफ्रोटिक सिंड्रोम डायबिटीज की वजह से भी होता है। किडनी में जलन और सूजन की समस्या को ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस भी कहा जाता है।
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कारण जो नेफ्रोटिक सिंड्रोम को बढ़ा सकते हैं, उनमें शामिल हैं:
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दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने चिकित्सक से संपर्क करें और सलाह लें।
आमतौर पर पौष्टिक आहार और दवा के साथ उपचार शुरू करने के 2-3 सप्ताह के भीतर लक्षणों में सुधार होने लगता है। हालांकि, कुछ लोगों को दवा ज्यादा दिनों तक भी दी जाती है। नेफ्रैटिस के इलाज में मदद करने के लिए इम्यूनोसप्रेसेरिव दवा, प्रेडनिसोन और साइक्लोफॉस्फेमाइड की आवश्यकता हो सकती है। वा 3 महीने या उससे पहले दी जानी चाहिए। क्योंकि नेफ्रोटिक सिंड्रोम वाले लोगों के पैरों में ब्लड क्लॉट हो जाता है। इसलिए पेशेंट को चलना जरूर चाहिए। ब्लड क्लॉट न हो इसलिए डॉक्टर आपको एंटी-कोगुलेंट दे सकते हैं। प्रोटीन और ब्लड प्रेशर के नुकसान को कम करने के लिए अन्य दवाओं, जैसे एंजियोटेंसिन कनवर्टिंग एंजाइम इनहिबिटर (एसीई) भी दी जा सकती है। कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाओं जैसे स्टैटिन का उपयोग अक्सर नेफ्रोटिक सिंड्रोम में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए किया जाता है।
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डॉक्टर पैरों या चेहरे की सूजन जैसे लक्षणों के आधार पर जैसे पैर, हाथ और चेहरे के सूजन का इलाज करते हैं। यूरिन टेस्ट से प्रोटीन के बढ़े हुए लेवल की जानकारी आसानी से मिल सकती है। ब्लड टेस्ट से किडनी के फंक्शन को समझा जाता है कि किडनी ठीक तरह से काम कर रहा है या नहीं। कभी-कभी स्थिति की गंभीरता को समझते हुए बीओप्सी (किडनी के टिशू का छोटा सा हिस्सा लिया जाता है) भी की जाती है।
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आहार में ऑक्सालेट, प्रोटीन और सोडियम की मात्रा कम करें जैसे – नट्स और इससे बने फूड प्रोडक्ट्स को खाने से परहेज करें। जैसे :
इस आर्टिकल में हमने आपको नेफ्रोटिक सिंड्रोम से संबंधित जरूरी बातों को बताने की कोशिश की है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस बीमारी से जुड़े किसी अन्य सवाल का जवाब जानना है, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे। अपना ध्यान रखिए और स्वस्थ रहिए।
अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर
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