हार्ट फेलियर (Heart failure)
हार्ट फेलियर को कंजेस्टिव हार्ट फेलियर भी कहा जाता है। जब हार्ट ब्लड को सही से पंप नहीं कर पाता है, तो ये स्थिति पैदा हो जाती है। कुछ लोगों को मानना है कि इस कारण से धड़कन भी बंद हो सकती है। लेकिन ये सच नहीं है। हार्ट पंपिंग बंद कर देता है, तो बॉडी पार्ट को ब्लड और ऑक्सीजन पूरी तरह से नहीं मिल पाती है। अगर हार्ट फेलियर प्रॉब्लम का इलाज न कराया जाए, तो पेशेंट को बड़ी समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
हार्ट एरिदमिया (Heart arrhythmia)
जब हार्ट रिदम ठीक प्रकार से काम नहीं करती है, तो अरेथ्मिया की समस्या हो जाती है। ऐसी सिचुएशन में हार्ट बीट या तो बहुत तेजी (Tachycardia) से यानी 100 बीट्स पर मिनट चलती है या फिर धीमी (Bradycardia) गति यानी 60 बीट्स पर मिनट हो जाती है। ऐसा कई कारणों से हो सकता है। हार्ट बीट की अनियमितता के कारण ब्लड की पंपिंग सही तरह से नहीं हो पाती है और शरीर को पर्याप्त मात्रा में ब्लड की सप्लाई नहीं हो पाती है।
इस बारे में एसएल रहेजा अस्पताल, माहिम की सलाहकार चिकित्सक और विशेषज्ञ-आंतरिक चिकित्सा की डॉक्टर परितोष बघेल का कहना है कि फ्लू के प्रभावित ( Flu infection) होने पर हृदय पर बदाव बढ़ जाता है, जिसकी वजह से हृदय गति, रक्तचाप में वृद्धि और कैटेकोलामाइंस नामक तनाव को बढाने वाला हॉर्मोन और कई दूसरे हाॅर्मोनों में भी वृद्धि होने लगती है। यह हृदय पर अत्यधिक तनाव पैदा करता है, और कमजोर हृदय वाले इससे खुद को जल्दी संभाल नहीं पाते हैं। फ्लू के लक्षण (Flu symptoms), अपर एयरवेज और लोअर एयरवेज (Upper airways or Lower airways) में इंफेक्शन के साथ शुरू होते हैं। इससे रोगी का एयरवेज कंजस्टेड हो जाता है और खांसी व बुखार जैसे लक्षण दिखने लगते हैं, जिससे हार्ट पर भी दबाव पड़ने लगता है। ज्यादातर मामलों में, शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और लोगों में हार्ट प्रॉब्लम का रिस्क और बढ़ जाता है। कई स्थितियों में हृदय की गति भी रुक (Heart failure) जाती है। भारत में, लोगों फ्लू संक्रमण के अधिक शिकार होते हैं। जिससे उनके हृदय स्वास्थ्य पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
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हार्ट वॉल्व की प्रॉब्लम (Heart valve problems)
कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज (Cardiovascular disease) में हार्ट वॉल्व की प्रॉब्लम शामिल है। जब किन्हीं कारणों से हार्ट वॉल्व खुल नहीं पाते हैं, तो ब्लड फ्लो ठीक तरह से नहीं हो पाता है। इस कंडीशन को स्टेनोसिस (stenosis) कहते हैं। जब हार्ट वॉल्व ठीक तरह से बंद नहीं हो पाते हैं, तो खून का रिसाव होने लगता है। इसे (regurgitation) रिगर्जिटेशन कहते हैं। अगर वॉल्व बैक चैम्बर में प्रोलेप्स हो जाती है, तो इस कंडीशन को वॉल्व प्रोलेप्स ( prolapse) कहते हैं।
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कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज के कारण क्या हैं? (Cardiovascular disease causes)
कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज का मुख्य कारण एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) होता है, जिस कारण से फैट और प्लाक ( Plaque ) आर्टरी में जमा हो जाता है। इसी वजह से बल्ड फ्लो में रुकावट पैदा होता है और बॉडी को पर्याप्त मात्रा में ब्लड और ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हो पाती है। ये सीरियस कंडीशन है और व्यक्ति की मौत का कारण भी बन सकती है। प्लाक ( Plaque) धमनियों के आसपास बनता है। समय के साथ ही ये कठोर हो जाता है और कोरोनरी ऑर्टरी को नीचे की ओर धकेल देता है। अगर ये रप्चर हो जाता है, तो ब्लड सेल्स टूट जाती हैं और ब्लड क्लॉट का निर्माण करने लगती हैं। इस तरह से पूरे शरीर में बुरा प्रभाव पड़ता है।
कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज हाय ब्लड प्रेशर, स्मोकिंग, हाय कॉलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, मोपाटा बढ़ने के कारण, कार्डियोवैस्क्युलर डिजीजेस की फैमिली हिस्ट्री होने के कारण भी हो सकता है। आपको इस बारे में डॉक्टर से भी जानकारी लेनी चाहिए।
कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज के लक्षण क्या हैं? (Cardiovascular disease symptoms )