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प्लाज्मा डोनेशन की कब पड़ती है जरूरत, जानिए इससे जुड़ी अहम जानकारी

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 02/06/2021

    प्लाज्मा डोनेशन की कब पड़ती है जरूरत, जानिए इससे जुड़ी अहम जानकारी

    कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान हम सभी ने सोशल मीडिया के माध्यम से या फिर अन्य माध्यमों से प्लाज्मा डोनेशन (Plasma donation) के बारे में सुना। कई लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म में अपने प्रियजनों की जान बचाने के लिए प्लाज्मा की मांग की। हम सभी ने ब्लड डोनेशन (Blood donation) के बारे में जरूर सुना है और जानते भी हैं कि ब्लड डोनेट करने से शरीर में किसी तरह की कमजोरी नहीं आती है और न ही किसी तरह का शरीर को नुकसान पहुंचता है। जब बात प्लाज्मा डोनेशन की आती है, तो लोगों के मन में इससे संबंधित बहुत से सवाल पैदा होने लगते हैं। कुछ लोगों के मन में तो ये सवाल भी आता है कि दूसरों की जान बचाने के चक्कर में कहीं खुद को ही नुकसाना न पहुंच जाएं। यानी ऐसे लोगों की संख्या कम ही है, जिन्हें प्लाज्मा डोनेशन के बारे में पूरी जानकारी हो। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कोरोना महामारी के पहले प्लाज्मा डोनेशन के लिए इस तरह आवाज नहीं उठाई गई। आपको बताते चले कि हाल ही में प्लाजमा थेरेपी को लेकर आईसीएमआर (ICMR) और एम्स (AIIMS) ने बड़ा फैसला लिया और कोरोना के इलाज से प्लाज्मा थेरिपी (Plasma therapy) को हटाया गया। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको प्लाज्मा डोनेशन के बारे में पूरी जानकारी देंगे ताकि आपके मन में इसे लेकर कोई सवाल न रहे।

    प्लाज्मा डोनेशन (Plasma donation) से पहले जानिए प्लाज्मा के बारे में

    Plasma

    प्लाज्मा रक्त का लिक्विड पोर्शन होता है। हमारे ब्लड का लगभग 55% प्लाज्मा है, और बाकी बचा हुए 45% रेड ब्लड सेल्स, वाइट ब्लड सेल्स (White blood cells) और प्लेटलेट्स हैं। प्लाज्मा में लगभग 92% पानी होता है। साथ ही इसमें 7% वाइटल प्रोटीन, एल्ब्यूमिन (Albumin), गामा ग्लोब्युलिन (Gamma globulin) और एंटी-हीमोफिलिक कारक (Anti-hemophilic factor)और 1% मिनिरल सॉल्ट, शुगर, फैट्स, हॉर्मोन (Hormones) और विटामिन भी होते हैं।

    प्लाज्मा ब्लड प्रेशर और वॉल्यूम को मेंटेन करने में हेल्प करता है। प्लाज्मा क्रिटिकल प्रोटीन सप्लाई करता है और ब्लड क्लॉटिंग और इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करता है।प्लाज्मा की हेल्प से मसल्स को इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे सोडियम और पोटेशियम मिलते हैं। प्लाज्मा की हेल्प से शरीर का पीएच लेवल बैलेंस बना रहता है। इससे सेल्स को सपोर्ट करने में हेल्प मिलती है।

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    प्लाज्मा डोनेशन (Plasma donation) क्या है?

    जैसे कि ब्लड डोनेशन (blood donation) के दौरान शरीर से रक्त निकाला जाता है, ठीक उसी प्रकार से प्लाज्मा डोनेशन की प्रक्रिया भी होती है। ब्लड से प्लाज्मा हाय टेक मशीन के माध्यम से इकट्ठा किया जाता है। ये प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित होती है और कुछ ही मिनटों में ये प्रोसेस कम्प्लीट हो जाती है। इसके क्लॉटिंग फैक्टर को बनाएं रखने के लिए डोनेशन के 24 घंटों के अंदर इसे प्रिसर्व किया जाता है। प्लाज्मा को करीब एक साल तक संरक्षित रखा जा सकता है और जरूरत पड़ने पर पेशेंट को ट्रांसफ्यूजन किया जाता है। प्लाज्मा डोनेट करने से पहले जरूरी जांच भी की जाती हैं।

    प्लाज्मा का इस्तेमाल मुख्य रूप से ट्रॉमा, बर्न, शॉक, लिवर से संबंधित बीमारी, विभिन्न प्रकार के क्लॉटिंग फैक्टर से संबंधित समस्या आदि के निदान के लिए प्लाज्मा की जरूरत पड़ती है। वहीं इसका इस्तेमाल कुछ कंडीशन जैसे कि इम्यून डिफिसिएंसी और ब्लीडिंग डिसऑर्डर (Blood disorder) में भी किया जाता है। कोरोना के इलाज के दौरान डॉक्टर्स ने कोरोना से रिकवर हुए पेशेंट के प्लाज्मा को ट्रीटमेंट के तौर पर इस्तेमाल किया। कुछ समय बाद इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई।

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    कोरोना के इलाज के दौरान प्लाज्मा का इस्तेमाल

    कोरोना के ट्रीटमेंट (Corona treatment) के दौरान कई पेशेंट्स को प्लाज्मा थेरिपी दी गई। जब कोई व्यक्ति संक्रमण के कारण बीमार हो जाता है, तो उसके शरीर में उस वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनना शुरू हो जाती हैं। प्लाज्मा में एंटीबॉडी होती है। एंटीबॉडी को प्लाज्मा से अलग नहीं किया जा सकता है, इसलिए प्लाज्मा को कोविड पेशेंट में ट्रांसफ्यूज किया जाता है। इस प्रक्रिया को करने के दौरान सौ प्रतिशत सफलता मिलेगी, ये कहा नहीं जा सकता है। कुछ केसेज में ये बात भी सामने आई थी कि कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी (Antibody) नहीं मिल पाएं। कई अन्य दिक्कतों के कारण कोरोना के मरीजों में प्लाज्मा थेरिपी (Plasma therapy) को फिलहाल बंद कर दिया गया है।

    क्या हर कोई कर सकता है प्लाज्मा डोनेट (Plasma donation)?

    प्लाज्मा का डोनेशन सभी लोग नहीं कर सकते हैं। प्लाज्मा डोनेट करने से पहले व्यक्ति की हेल्थ स्क्रीनिंग की जाती है। अगर वो हेल्थ स्क्रीनिंग में पास हो जाते हैं, तो उन्हें प्लाज्मा डोनेट करने की अनुमति मिलती है। प्लाज्मा डोनेशन के लिए अन्य जरूरी बातों में शामिल है,

  • प्लाज्मा डोनर (Plasma donors) की उम्र कम से कम  18 साल होनी चाहिए।
  • प्लाज्मा डोनर (Plasma donors) का वेट 50 किलो तक होना चाहिए।
  • उस व्यक्ति को मेडिकल एक्जामिनेशन (Medical examination) में पास होना बहुत जरूरी है।
  • उस व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री स्क्रीनिंग (Medical history screening) भी जरूरी है।
  • वायरस जैसे कि एचआईवी ( HIV) और हेपेटाइटिस (Hepatitis) की जांच होना जरूरी है।
  • अगर आप प्लाज्मा डोनेट करना चाहते हैं, तो डॉक्टर हेल्थ स्क्रीनिंग और निगेटिव टेस्ट रिजल्ट के बाद आपको प्लाज्मा डोनेट करने की परमीशन दे देते हैं। प्लाज्मा डोनेशन के लिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, बेहतर होगा कि आप इस बारे में डॉक्टर से जानकारी प्राप्त करें।

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    फिलहाल कोरोना के ट्रीटमेंट के लिए प्लाज्मा थेरिपी का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है लेकिन फिर भी कई लोगों को प्लाज्मा की जरूरत हो सकती है। अगर आपको लगता है कि आप स्वस्थ हैं और आप प्लाज्मा डोनेट करना चाहते हैं, तो ये एक बेहतर कदम होगा। अमेरिकन रेड क्रॉस के अनुसार व्यक्ति एक साल में करीब 13 बार प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। यानी अगर आप किसी कारण से एक बार प्लाज्मा डोनेट (Plasma donation) कर चुके हैं, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है कि आप दोबारा प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकते हैं। ये एक हार्मलेस प्रोसेस है और इसे करने से किसी भी तरह का ब्लड लॉस नहीं होता है। प्लाज्मा डोनेट करने के लिए प्लाज्मा डोनेशन बैंक होते हैं, जहां आप प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं।

    अधिक प्लाज्मा डोनेशन का क्या पड़ता है निगेटिव इफेक्ट?

    वैसे तो प्लाज्मा डोनेशन साल में 13 बार करते हैं, तो शरीर में किसी भी तरह का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। प्राइवेट प्लाज्मा डोनेशन कंपनी का मानना है कि दो हफ्ते में एक बार भी प्लाज्मा डोनेट किया जा सकता है। अगर अधिक मात्रा में प्लाज्मा डोनेट (Plasma donation) किया जाता है, तो प्लाज्मा की क्वालिटी में बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसा बॉडी की लिमिटेशंस के कारण होता है। बॉडी में तेजी से प्लाज्मा के कम्पोनेंट बनाने की क्षमता नहीं होती है। साल 2010 में स्टडी के दौरान कई देशों में डोनेशन के बाद प्लाज्मा की क्वालिटी को कंपेयर किया गया। यूनाइटेड स्टेट में की गई स्टडी में ये बात सामने आई कि जिन लोगों ने अधिक मात्रा में प्लाज्मा डोनेट (Plasma donation) किया था, उनके प्लाज्मा में प्रोटीन, एल्बुमिन (Albumin) और अन्य ब्लड मार्कर की संख्या कम हो गई थी।

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    किस टाइप के प्लाज्मा की होती है अधिक जरूरत?

    किसी भी ब्लड ग्रुप का इंसान प्लाज्मा डोनेट कर सकता है लेकिन AB प्लाज्मा डोनेशन को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। AB प्लाज्मा को यूनिवर्सल माना जाता है और किसी भी ब्लड ग्रुप (Blood group) का व्यक्ति ये प्लाज्मा ले सकता है। एक प्रकार का प्लाज्मा जिसे कॉनवेलसेंट प्लाज्मा (convalescent plasma) कहते हैं, उन लोगों द्वारा दिया जाता है, जो किसी बीमारी से ठीक हो चुके हैं। ऐसे प्लाज्मा का इस्तेमाल पोटेंशियल डिजीज को ठीक करने में इस्तेमाल किया जाता है। कोरोना महामारी के दौरान भी इस प्लाज्मा को इस्तेमाल किया जा रहा था लेकिन कुछ कॉन्ट्रोवर्सी के बाद इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया।

    प्लाज्मा डोनेशन के दौरान केवल प्लाज्मा का हिस्सा ही लिया जाता है और बाकी ब्लड को शरीर में रिटर्न कर दिया जाता है। जबकि ब्लड डोनेशन के दौरान खून के सभी कम्पोनेंट की जरूरत पड़ती है। अगर ये कहा जाए कि ब्लड डोनेशन से कही आसान प्लाज्मा डोनेशन है, तो ये गलत नहीं होगा।आप चाहे तो इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से भी संपर्क कर सकते हैं।

    यहां दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको इस आर्टिकल के माध्यम से प्लाज्मा डोनेशन (Plasma donation) के बारे में जानकारी मिल गई होगी।  प्लाज्मा थेरिपी की जरूरत पेशेंट को है या फिर नहीं, ये डॉक्टर सजेस्ट करते हैं। बिना सलाह के किसी भी पेशेंट को ये थेरिपी नहीं दी जाती है। आप इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से भी सलाह ले सकते हैं। हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।

    डिस्क्लेमर

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