जन्म के बाद नवजात शिशुओं का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर होता है। जैसे-जैसे उनका विकास होता है, वैसे-वैसे उनका इम्यून सिस्टम भी स्ट्रॉन्ग होने लगता है। ऐसे में नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) का खतरा भी काफी आम हो जाता है। ऐसी कई स्थितियां हैं जो नवजात बच्चों की बीमारी के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। इसलिए, बच्चे के जन्म के बाद उनकी शारीरिक हरकतों, दूध पीने और सोने का समय जैसे सभी बातों पर गौर करना चाहिए। अगर आप भी नवजात शिशु की मां हैं तो अपने शिशु की हर छोटी-छोटी हरकतों को नोटिस करें। साथ ही, अगर यहां नीचे बताए गए किसी भी तरह के लक्षण नवजात शिशु में दिखाई दें, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases):
नवजात बच्चों की बीमारी में डायरिया है कॉमन
नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) में डायरिया के लक्षण भी काफी आम होते हैं। डायरिया होने पर शिशु को पतले दस्त होने लगते हैं। इससे शिशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है। आमतौर पर शिशु को डायरिया बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से होता है। बता दें कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन की गणना के मुताबिक, भारत की जनसंख्या का 40 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम के छोटे बच्चों का है। जिसमें हर 100 बच्चों में से 12 बच्चों की उम्र 5 साल है। इसके अलावा प्रति 100 जवित पैदा होने वाले बच्चों में से 5 की मृत्यु जन्म के एक साल के अंदर हो जाती है। इसके अलावा, अगर भारतीय बच्चों की लंबाई और वजन के अनुसार उनके स्वास्थ्य का आंकलन किया जाए, तो उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है। करीब 40 फीसदी भारतीय बच्चों को उचित वृद्धि करने के लिए उचित और स्वस्थ आहार नहीं मिलता है।
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नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) में सबसे पहले जानें बुखार के बारे में
नवजात बच्चों का इम्यून सिस्टम जन्म के बाद बनना शुरू होता है। ऐसे में उन्हें इंफेक्शन के साथ-साथ अन्य छोटे-मोटे खतरों का जोखिम भी अधिक रहता है। वहीं, नवजात शिशुओं में बुखार एक गंभीर संक्रमण का पहला और एकमात्र संकेत भी हो सकता है। अगर आपके बच्चे का जन्म अभी हुआ है या आपका बच्चा कुछ ही दिनों या हफ्तों का है, तो उसके शरीर का तापमान बढ़ने या घटने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह करें। बुखार के साथ ही अगर बच्चा रोते हुए या सोते हुए सुन्न हो जाए, तो तुरंत इंमरजेंसी सर्विस की मदद लें। बच्चे के तापमान को मापने के लिए कांख का तापमान मापना ज्यादा सुरक्षित विकल्प माना जाता है। अगर आपका बच्चा 3 माह से कम आयु का है, तो उसके शरीर का तापमान मापने के लिए हमेशा कांख चेक करें। अगर कांख का तापमान 99.1℉ से अधिक है या नवजात शिशु के कान का तापमान 100.4℉ से अधिक है, तो आपको तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। कभी-कभार यह निमोनिया के भी लक्षण हो सकते हैं। नवजात बच्चों की बीमारी में बुखार को गंभीरता से लें।
स्किन कंडीशन से भी जानें नवजात बच्चों की बीमारी
अधिकतर बच्चों में बर्थ मार्क यानी जन्म का निशान होता है। कुछ बच्चों में यह जन्म के दौरान ही दिखाई देते हैं, तो कुछ बच्चों में जन्म के कुछ दिनों के बाद भी दिखाई दे सकते हैं। इसके अलावा, होने के कुछ समय बाद ही कुछ बच्चों में कई तरह की त्वचा की स्थिति विकसित हो सकती हैं, जो थोड़े ही समय में अपने आप ठीक भी हो सकते हैं, लेकिन अगर ये स्थितियां बनी रहती हैं, तो आपको डॉक्टर को इसके बारे में बताना चाहिए। यह नवजात बच्चों की बीमारी के लक्षण हो सकते हैं।
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जन्म के दौरान चोट लगना
वैसे तो सी-सेक्शन की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित मानी जाती है, हालांकि, कुछ स्थितियों में कई बार बच्चे ऑपरेशन के दौरान घायल हो जाते हैं। जिसके घाव भी जन्म के बाद बहुत जल्दी ही भर जाते हैं। इसके अलावा, कई बार नॉर्मल डिलिवरी के दौरान भी वॉक्यूम का इस्तेमाल करने से बच्चे के सिर की त्वचा में सूजन आ जाती है, लेकिन अगर ये घाव उपचार के बाद भी ठीक नहीं होते या इनकी वजह से बच्चे को किसी तरह की शारीरिक परेशानी होती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ध्यान रखें कि, नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) भले ही कोई हो, लेकिन कभी भी उनके लिए घरेलू तरीके नहीं अपनाने चाहिए।
जन्म के समय कुछ नवजात शिशुओं के ऊपरी कंधे के हिस्से में चोट लग जाती है। इसे ब्रेकियल प्लेक्सस नर्व इंजरी कहते हैं। इसका पता गले और कन्धों का X-ray या फिर MRI स्कैन या CT SCAN करके लगाया जा सकता है।
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नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) में डायरिया है कॉमन
नवजात बच्चों की बीमारी में डायरिया के लक्षण भी काफी आम होते हैं। डायरिया होने पर शिशु को पतले दस्त होने लगते हैं। इससे शिशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है। आमतौर पर शिशु को डायरिया बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से होता है। बता दें कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन की गणना के मुताबिक, भारत की जनसंख्या का 40 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम के छोटे बच्चों का है। जिसमें हर 100 बच्चों में से 12 बच्चों की उम्र 5 साल है। इसके अलावा प्रति 100 जवित पैदा होने वाले बच्चों में से 5 की मृत्यु जन्म के एक साल के अंदर हो जाती है। इसके अलावा, अगर भारतीय बच्चों की लंबाई और वजन के अनुसार उनके स्वास्थ्य का आंकलन किया जाए, तो उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है। करीब 40 फीसदी भारतीय बच्चों को उचित वृद्धि करने के लिए उचित और स्वस्थ आहार नहीं मिलता है।
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नवजात बच्चों की बीमारी पीलिया
पीलिया की समस्या भी नवजात शिशुओं में काफी आम होता है। पीलिया होने पर बच्चे की त्वचा और आंख पीली हो जाती है। कुछ शिशुओं में, पीलिया जन्म के तुरंत बाद ही हो जाता है, जो कुछ ही दिनों में अपने आप ठीक भी हो जाता है। हालांकि, अगर इसकी स्थिति चार से पांच दिनों बाद भी बनी रहती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा, अधिकांश बच्चों में पीलिया का कारण मां का दूध उचित मात्रा में न पीना भी हो सकता है। इसलिए मां को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शिशु कितनी मात्रा में दिन भर में कितना दूध पीता है। कोशिश करें कि हर दो से तीन घंटे में शिशु को थोड़ी-थोड़ी देर में ब्रेस्टफीडिंग कराते रहें।
जन्म के बाद होने वाली बीमारी: सुस्ती और उनींदापन
नवजात शिशु जन्म के बाद कम से कम 18 से 20 घंटे सोते रहते हैं। हालांकि, इस बीच में बच्चे को जगाकर दूध पिलाने के बाद फिर से सुला देना चाहिए। अक्सर नवजात बच्चे भूख लगने या किसी तरह की शारीरिक परेशानी होने पर ही रोते हैं। तो अगर आपके बच्चे का पेट भरा होने के बाद भी वो रोता है या जागते समय किसी भी तरह की कोई भी शारीरिक हरकत नहीं करता है, तो अपने डॉक्टर को इसके बारे में बताएं। बच्चे के जागने के दौरान उसके साथ थोड़ी बात-चीत करें। अगर बच्चा आपकी आवाज या बात पर किसी भी तरह का कोई रिएक्शन नहीं देता है, तो इसके बारे में भी अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
जन्म के बाद होने वाली बीमारी: सांस लेने में कठिनाई
अगर बच्चा सोते या जागते समय बड़ी और गहरी सांसें लेता है, तो यह नवजात बच्चों की बीमारी (Newborn baby diseases) का लक्षण हो सकता है। सामान्य तौर पर जन्म के बाद लगभग 20 से 40 मिनट बाद नवजात बच्चे सांस लेने की नियमित प्रक्रिया शुरू करते हैं, लेकिन अगर शिशु हांफता हुई दिखाई दे या गले की जगह वह नाक से सांस ले, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।अगर बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और साथ ही बच्चे में निम्नलिखित लक्षण दिख रहे हो तो आपको तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ से बात करनी चाहिए।
- एक मिनट में साठ से ज्यादा बार सांस लेना। आपको बताते चले कि छोटे बच्चे बड़ों की तुलना में तेजी से सांस लेते हैं।
- सांस लेने के दौरान पसलियों का अंदर की ओर खिंचना। अगर ऐसा बच्चे के साथ हो रहा है तो ये गंभीर समस्या का लक्षण हो सकता है। आपको तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
- सांस लेने के दौरान घरघराने की आवाज आना।
- त्वचा के रंग में बदलाव आना। त्वचा का रंग हल्का नीला होना।
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पेट फूलना भी है नवजात बच्चों की बीमारी
अगर नवजात बच्चे का पेट बहुत फूला हुई दिखाई देता है, तो यह काफी सामान्य है। हालांकि, अगर नवजात बच्चे का पेट पूरा दिन फूला हुआ दिखाई दे, तो यह गंभीर समस्या हो सकती है। बच्चे का पेट फूलना गैस, कब्ज या आंतों से जुड़ी समस्या के लक्षण हो सकते हैं।
जन्म के बाद होने वाली बीमारी: सर्दी-खांसी की समस्या
नवजात शिशुओं में सर्दी-खांसी की समस्या भी काफी आम होती है। जो काफी हद तक वातावरण और मौसम पर भी निर्भर कर सकता है। हालांकि, अगर खांसते या छींकते समय बच्चा उल्टी करे या बहुत ज्यादा रोए या चिड़चिड़ा व्यवहार करें, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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जन्म के बाद होने वाली बीमारी: बच्चे का रंग नीला होना
बच्चे पैदा होने बाद हल्के नीले रंग के दिख सकते हैं। उनके हाथ और पैर का रंग ठंड की वजह से भी नीला हो सकता है। साथ ही गर्मी पाकर हाथ और पैर का रंग गुलाबी हो जाता है। जब बच्चा पैदा होने के बाद बहुत ज्यादा रोता है तो उसके हाथ, पैर, चेहरा, जीभ, होंठ आदि का रंग हल्का नीला हो जाता है। जब बच्चा चुप हो जाता है तो त्वचा का रंग सामान्य भी हो जाता है। अगर ऐसा है तो परेशानी की बात नहीं है। अगर बच्चे का रंग हल्का नीला है और बच्चे को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है तो ये खतरे का संकेत हो सकता है। ऐसे में बच्चे ब्रेस्टफीड भी नहीं करते हैं। ये हार्ट या फिर फेफड़ों से जुड़ी हुई समस्या हो सकती है। जब बच्चा सही से सांस नहीं ले पाता है तो ब्लड में ऑक्सीजन की सही मात्रा नहीं पहुंच पाती है, जिसके कारण बच्चे का रंग नीला होने लगता है। अगर आपको बच्चे के जन्म के कुछ दिनों बाद ऐसे लक्षण नजर आते हैं तो तुरंत डॉक्टर से बच्चे की जांच कराएं। ऐसे में नवजात बच्चे को मेडिकल अटेंशन की तुरंत जरूरत होती है।
कोलिक की समस्या
कोलिक की समस्या बच्चों में बहुत कॉमन होती है लेकिन ऐसे में पेशेंट को बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ जाता है। कोलिक की समस्या होने पर बच्चा तेजी से रोता है। जब बच्चे का पेट भरा और नींद भी पूरी हो लेकिन बच्चा फिर भी रो रहा हो तो ये कोलिक की समस्या हो सकती है। कभी-कभी गैस, हार्मोन के कारण स्टमक पेन हो सकता है।ऐसा कई बार मिल्क फॉर्मुला इंटॉलेरेंस के कारण भी हो सकता है। ये समस्या बच्चों में तीन से छह माह तक हो सकती है। करीब 30 प्रतिशत नवजात शिशु कोलिक की समस्या से ग्रसित हो सकते हैं। ऐसी समस्या कम मैच्योर डायजेस्टिव सिस्टम की वजह से भी हो सकती है। ऐसा जन्म के दो सप्ताह के बाद हो सकता है। ऐसे में बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से संपर्क करें।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अगर आपको बच्चे की तबियत सही नहीं लग रही है तो बच्चे की जांच तुरंत कराएं। बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर कभी भी लापरवाही नहीं करें। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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