के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
चौथे महीने के पहले सप्ताह में आप शिशु में कुछ परिवर्तन देख सकते हैं, जैसे कि शुरूआत में शिशु बस आपकी ही आवाज को पहचानता था, लेकिन अब वे आपका चेहरा भी अच्छे तरह से पहचानने लगा होगा । इसके अलावा, जब कोई अजनबी उससे बात करता हो, तो वह उन्हें भी पहचानने की कोशिश करता होगा। उसके बाद ,वह हसकर या रोकर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि आपका शिशु गुमसुम हो, लेकिन जैसे ही वह आपको देखता होगा तो तुरंत किलकारियां मारना शुरू कर देता होगा।
कई बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में ज्यादा समझदार होते हैं, ये भी देखा गया है कि ऐसे बच्चे जल्दी बोलने लगते हैं। ऐसे में आप कोशिश करें कि शिशु से ज्यादा से ज्यादा बात करते रहें। आप जब भी उसे कहीं बाहर घुमाने ले जाएं तो उसे चीजों का नाम बताते हुए बात करें, जैसे कि य ग्रीन कलर है या ये पार्क है आदि। भले ही आपका शिशु आपकी बातों का जवाब न दें, लेकिन उसका दिमाग कुछ हद तक आपकी बातें समझ रहा होता है, जो कि बच्चे की समझ को बढ़ाता है।
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यहाँ कुछ चीजें दी गई हैं जिनकी जानकारी आपको होनी चाहिए।
गीले डायपर की वजह से शिशु की त्वचा में रैशेज की समस्या हो सकती है। इससे कई तरह के कीटाणु पैदा हो सकते हैं, जो कि त्वचा में कई संक्रमणों का कारण भी बन सकते हैं। शिशु को डायपर के कारण होने वाले रैशेज से बचाने के लिए जरूरी है कि जितना हो सके आप उसे डायपर से दूर रखें। अगर शिशु को डायपर पहना भी रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि डायपर गीला होते ही उसे तरंत बदल दें, गीला ज्यादादेर न पहने रहने दें। शिशु को रैशेज तथा त्वचा संक्रमणों से बचाने के लिए आप जिंकऑक्साइड युक्त क्रीम का भी इस्तेमाल कर सकती हैं। यह क्रीम त्वचा संक्रमण फैलाने वाले कीटाणुओं का खत्म कर त्वचा पर एक तरह का सुरक्षा कवच बना देती है। कई शोध यह भी बतातें हैं कि ज्यादा स्तनपान करने वाले शिशुओं में डायपर रेशेज की संभावना कम होती है।
ध्यान रखें कि अगर आपके शिशु के शरीर पर फंगल इंफेक्शन के कारण ज्यादा रैशेज दिखाई दे रहें हैं, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से प्रभावी उपचार के लिए सलाह लेनी चाहिए।
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वैसे इस बारे में आपको ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह बीमारी काफी दुर्लभ है, जैसे ही आपका शिशु एक साल का हो जाता है, उसे इस बीमारी से कोई खतरा नहीं रहता है।
13 सप्ताह के शिशु या 13 सप्ताह के शिशु की देखभाल के दौरान स्तनपान कराना थोड़ा आसान और आरामदायक हो जाता है। बच्चा अब बेहतर रूप से स्तनपान करने लगेगा और आपके लिए भी यह समझना आसान हो जाएगा की आपका शिशु कब दूध पीना चाहता है और कब नहीं। आप यह भी समझ सकेंगी की वह भूख के कारण रो रहा है या अन्य कोई कारण है।
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तेजी से विकास होने के कारण आपको अपने बच्चे को रात में असमय दूध देने की आवश्यकता हो सकती हैं। स्तनपान करने वाले शिशुओं को बोतल से दूध पीने वाले शिशुओं की तुलना में रात को ज्यादा दूध की आवश्यकता होती है। फिर भी, अधिकांश शिशु रातभर लगातार नींद नहीं लेते हैं। यह केवल 6 से 7 घंटों तक की लगातार नींद ले सकते हैं।
3 महीने तक, आप यह समझने में समय लेते है कि बच्चे के लालन-पालन, भोजन और नींद की पूरी प्रक्रिया कैसे निर्धारित की जाए। लेकिन लगभग 13 सप्ताह बिताने के बाद, आप एक निश्चित रूटीन फॉलो कर सकती हैं । कुछ माता-पिता भाग्यशाली होते हैं क्योंकि उनके बच्चे जल्दी ही दिनचर्या के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं, लेकिन बाकी माता-पिताओं के लिए यही सही समय है कि वे अब एक रूटीन बना लें और फॉलो करें।
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यहां कुछ बातें दी गई हैं, जिनका ध्यान आपको रखना चाहिए-
शिशु के लिए टाइम टेबल निर्धारित करें
बचपन की आदत हमेशा बच्चे व लोगों में बनी रहती है। यह एक समय होता है जब शिशु पर समय की कोई पाबंदी नहीं होती है। वह कभी भी सोते हैं, कभी जागते हैं या फिर खाते हैं। लेकिन, अब वो समय आ गया है जब आपको शिशु को समय का महत्त्व सिखाना चाहिए, क्योंकि इस समय तक शिशु आपकी बातों को समझने लायक हो जाता है। इसलिए उसके खाने और सोने का टाइम टेबल बना देना चाहिए।
लेकिन, आप एक बात का और भी ध्यान रखें कि शिशु के लिए टाइम टेबल निर्धारित करने का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि आप उसकी जरूरतें पूरी नहीं करेंगी। बस उन जरूरतों को पूरा करने का सही समय निधार्रित करें। यह आपके शिशु को छोटी उम्र से ही समय का महत्त्व सीखाने में मदद करेगा, साथ ही आपके और शिशु के बीच के रिश्ते भी मजबूत होंगे।
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