बच्चे के जन्म का पहला घंटा जज्चा और बच्चा दोनों के लिए ही काफी महत्वपूर्ण होता है। बच्चे के जन्म का पहला घंटा शुरू होने से पहले प्रसव के कई चरणों से होकर एक बच्चे का जन्म होता है। प्रसव के सारे चरण कितना समय लेंगे, यह इस बात पर निर्भर कर सकता है कि महिला की पहली प्रेगनेंसी है या दूसरी-तीसरी। अगर यह महिला की पहली प्रेग्नेंसी है, तो जाहिर की प्रसव का समय अधिक हो सकता है, क्योंकि प्रसव के पहले चरण में महिला की योनि की दीवारों का पतला होना, फैलना, खिंचना और धीरे-धीरे करके बच्चे के सिर का खिसकने जैसे कार्य शामिल होते हैं। वहीं, दूसरी बार इस प्रक्रिया में थोड़ा कम समय लग सकता है, क्योंकि महिला की योनि पहले के मुकाबले दूसरी बार अधिक ढीली हो गई होती है। इसी तरह तीसरे बच्चे के प्रसव के दौरान यह चरण और भी कम समय का हो सकता है।
और पढ़ें : अगर बच्चे का रात में रोना बन गया है आपका सिरदर्द, तो पढ़ें ये आर्टिकल
बच्चे के जन्म का पहला घंटा : कैसे होता है बच्चे का जन्म?
प्रसव अगर नॉर्मल डिलिवरी से हो रही है, तो बच्चा महिला के बच्चेदानी से होते हुए योनि के मार्ग से जन्म लेता है। जन्म की प्रक्रिया के दौरान सबसे पहले बच्चे का सिर योनि से बाहर आता है। फिर एक कंधा, इसके बाद दूसरा कंधा और फिर इसके बाद बच्चे का पूरा शरीर महिला की योनि से बाहर निकल जाता है। कुछ मामलों में प्रसव के दौरान बच्चे के पैर सबसे पहले बाहर आने की भी संभवना हो सकती है। जन्म के समय बच्चा एक झिल्ली नुमा चिकने पदार्थ के अंदर होता है। तो आमतौर पर बच्चे का सिर बाहर आने से पहले ही योनि के बाहर निकलकर फट जाता है। इसे शो कहते हैं। फटने के बाद इसमें से एमनीओटिक द्रव निकलने लगता है। लेकिन, अगर बच्चे का जन्म सी-सेक्शन यानी ऑपरेशन के जरिए होता है, तो इसके चरण इससे काफी अलग होते हैं।
बच्चे के जन्म का पहला घंटा : जन्म के बाद क्या होता है?
बच्चे के जन्म का पहला घंटा कई चरणों से गुजरता है, जिसमें शामिल हैंः
नाड़ को काटना
जब बच्चे का जन्म होता है, तो वह एक नाड़ (कोर्ड) से जुड़ा हुआ होता है जिसे नाड़ी भी कहते हैं। इसका रंग सफेद, मटमैला हो सकता है। यह देखने में रस्सी की तरह होता है। इसे छूकर बच्चे की धड़कन महसूस की जा सकती है। यह नाड़ मां के गर्भ में बच्चे के शरीर में खून और ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करता है। यह नाड़ एक सिरे से बच्चे की नाभि और दूसरे सिरे पर मां के बच्चेदानी की दीवार से चिपका रहता है। सामान्य तौर पर देखा जाए तो जब बच्चा जन्म के बाद रोना शुरू करता है, तभी डॉक्टर इसे काटकर मां की बच्चेदानी से अलग करते हैं। रोना शुरू करने के बाद बच्चे की त्वचा का रंग गुलाबी हो जाता है। जो इस बात को साबित करता है कि बच्चे का दिल और फेफड़े उचित तरीके से कार्य लगे हैं। इसकी जांच करने के बाद डॉक्टर या नर्स नाड़ को बच्चे की नाभि से लगभग 8 से 10 सेमी की दूरी पर एक क्लैम्प लगाकर काट देते हैं। जो अगले 24 घंटे तक बच्चे की नाभि से लगी रहकर ही सूखती रहती है। और अगले सात से दस दिनों में यह सूख कर अपने आप ही बच्चे की नाभि से अलग हो जाती है।
और पढ़ें : बच्चों को ग्राइप वॉटर पिलाना सही या गलत? जानिए यहां
बच्चे के मुंह और नाक को साफ करना
बच्चे के जन्म के बाद सबसे पहले बच्चे के मुंह और नाक को साफ किया जाता है। अगर बच्चे के मुंह में किसी तरह का कोई पदार्थ चला गया है या जन्म के दौरान निकलने वाली झिल्ली का द्रव बच्चे के मुंह में चला गया होता है, तो उसे भी डॉक्टर या नर्स साफ करते हैं। कभी-कभी इन पदार्थों को साफ करने के लिए मशीनों का उपयोग किया जा सकता है हालांकि, मशीन का इस्तेमाल तभी किया जाता है, अगर यह पदार्थ बच्चे की सांस लेने वाली नली में चली गई हो। इसके बाद बच्चे की आंखों को साफ किया जाता है।
और पढ़ें : बच्चे के मुंह के छाले के घरेलू उपाय और रोकथाम
बच्चे को कपड़े में लपेटना ताकि शरीर का तापमान बना रहे
बच्चे के शरीर को अच्छे से साफ करने के बाद डॉक्टर बच्चे को एक साफ, मुलायम और हल्के कपड़े में लपेटते हैं, ताकि, बच्चे के शरीर का तापमान बना रहे।
स्वास्थ्य की जांच करना
बच्चे के जन्म का पहला घंटा शुरू होते ही डॉक्टर बच्चे के सांस लेने की कार्यक्षमता, बच्चे के दिल की धड़कन, त्वचा का रंग, हाथ और पैरों का हिलना, बच्चे की त्वचा को छूने पर उसका रवैया, इन सभी बातों की देखरेख करते हैं। जिसे एपगार कहते हैं। अगर बच्चा पूरी तरह से सामान्य है, तो इसके बाद डॉक्टर बच्चे के कान के साथ-साथ बच्चे के शरीर पर लगे खून या किसी भी द्रव को साफ करते हैं।
एपगार की प्रक्रिया में डॉक्टर बच्चे के जन्म के 1 मिनट और 5 मिनट बाद नवजात शिशु की स्थितियों का मूल्यांकन करते हैं। जिसे 10 के अंदर स्कोर देते हैं। इनमें शामिल होता हैः
- बच्चे की शारीरिक गतिविधि
- बच्चे की पल्स दर
- बच्चे का मुंह बनाना या चिड़चिड़ापन होना
- बच्चे के रंग में होने वाले बदलाव
- बच्चे की सांस लेने की दर
अगर बच्चे को 7 से 10 के बीच स्कोर मिलता है, तो इसका मतलब है कि बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ हैं। लेकिन अगर बच्चे को 4 से 6 के बीच स्कोर मिलता है, तो इसका मतलब हो सकता है कि बच्चे को ऑक्सीजन लेने में किसी तरह की परेशानी हो सकती है। जिसकी देखरेख करनी जरूरी हो सकती है। लेकिन, अगर बच्चे को 3 या उससे कम का स्कोर मिलता है, तो इसका मतलब है कि बच्चे का जीवन जोखिम भरा है, जिसकी देखरेख करने के लिए मेडिकल केयर और डिवाइस की मदद की आवश्यकता हो सकती है।
और पढ़ें : बच्चे को सुनाई देना कब शुरू होता है?
बच्चे के जन्म का पहला घंटा : नाड़ काटते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
- सबसे पहले, नाड़ को हमेशा बच्चे की नाभि से 8 से 10 सेमी की लम्बाई पर ही काटना चाहिए।
- काटने से पहले नापी गई दूरी पर एक क्लिप लगाना चाहिए। ताकि नाड़ में बाहर की हवा न जा सके और उससे किसी भी तरह का द्रव न टपके।
- नाड़ काटने के बाद, बच्चे की नाभी से जुड़ी हुई नाड़ को किसी भी वस्तु के संपर्क में आने से बचाना चाहिए। क्योंकि यह बहुत जल्दी संक्रमित हो जाता है और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जोखिम का कारण बन सकता है।
- नाड़ काटने के बाद डॉक्टर इस पर दवा लगाते हैं। जब तक यह बच्चे के शरीर से जुड़ी होती है, हर दिन कीटाणुनाशक दवाओं के इस्तेमाल से इसकी देखरेख करना जरूरी होता है।
और पढ़ें : बच्चे को पसीना आना : जानें कारण और उपाय
[mc4wp_form id=’183492″]
बच्चे के जन्म का पहला घंटा : बच्चे का रोना
जन्म के बाद बच्चे का रोनाबहुत ही जरूरी होता है। क्योंकि रोना शुरू करने के बाद ही बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन और खून का संचार होता है। जिसकी वजह से ही बच्चे का रंग गुलाबी हो जाता है। जो यह बताता है कि बच्चे का शरीर उचित तरीके से कार्य करने लगा है।
जन्म के बाद का टीका
इन सारी प्रक्रिया के पूरी होने के बाद डॉक्टर आपके बच्चे के शरीर में खून के थक्के को ठीक करने और एक रक्तस्राव जैसे गंभीर विकारों को रोकने में मदद करने के लिए विटामिन के का इंजेक्शन लगा सकते हैं। इसके बाद पिता या परिवार की सहमति से बच्चे को जन्म के बाद ही हेपेटाइटिस बी का भी टीका लगा सकते हैं।
और पढ़ें : सोशल मीडिया से डिप्रेशन शिकार हो रहे हैं बच्चे, ऐसे करें उनकी मदद
शारीरिक जांच करना
बच्चे के जन्म का पहला घंटा कैसा होगा यह हर अस्पताल या क्लिनिक में अलग-अलग हो सकता है। कुछ अस्पतालों में बच्चे के जन्म के पहले घंटे के अंदर ही उसकी शारीरिक जांच के तौर पर नवजात शिशु के ब्लड शुगर या बिलीरुबिन के लेवल की भी जांच की जाती है, जिसके लिए डॉक्टर बच्चे के खून का नमूना लेते हैं।
इसके अलावा, पीकेयू (फेनिलकेटोनुरिया) और जन्मजात होने वाली अन्य बीमारियों की जांच करने के लिए नवजात शिशु की स्क्रीनिंग ब्लड टेस्ट भी कर सकते हैं।
बच्चे को मां का दूध पिलाना
बच्चे की शारीरिक जांच लगभग 30 से 40 मिनट के अंदर पूरी कर ली जाती है। जिसके बाद बच्चे को मां के पास दिया जाता है ताकि मां उसे ब्रेस्टफीडिंग करा सके। इस काम में मां की मदद करने के लिए नर्स वहां मौजूद हो सकती है।
अगर आपके बच्चे का जन्म नॉर्मल डिलिवरी से हुई है, तो अगले 48 घंटे बाद आप घर आ सकेंगे, लेकिन अगर बच्चे का जन्म सी-सेक्शन से हुआ होगा, तो लगभग 96 घंटों के बाद घर जा सकेंगे।
अगर बच्चे के जन्म का पहला घंटा कैसा होता है या इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
[embed-health-tool-vaccination-tool]