और पढ़ें: बच्चों में फोबिया के क्या हो सकते हैं कारण, डरने लगते हैं पेरेंट्स से भी!
एमएलडी को कैसे किया जाता है डायग्नोज? (Metachromatic Leukodystrophy Diagnosis)
गर आपके बच्चे को उपरोक्त लक्षण दिखते हैं, तो आपको डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। डॉक्टर बीमारी के लक्षणों के बारे में पूछेंगे और फिर शारीरिक जांच भी करेंगे। इसके बाद डॉक्टर मेटाक्रोमैटिक ल्यूकोडिस्ट्रॉफी (Metachromatic Leukodystrophy) का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट (Blood test) करेंगे, ताकि एंजाइम डिफिसिएंसी का पता लगाया जा सके।
डॉक्टर सल्फाइड के निर्माण को जांचने के लिए यूरिन टेस्ट (Urine tests) भी कर सकते हैं। इस डिसऑर्डर का जीन बच्चों को माता-पिता से मिलता है। इसकी जांच करने के लिए डॉक्टर जेनेटिक टेस्ट कर सकते हैं। चूंकि इस डिसऑर्डर के दौरान इलेक्ट्रॉनिक इम्पल्स नर्व और मसल्स तक सही तरह से नहीं पहुंच पाती है, इसलिए नर्व कंडक्शन स्टडी ( nerve conduction study) जरूरी हो जाता है। इससे नर्व डैमेज के बारे में जानकारी मिलती है। एमआरआई ( MRI) की हेल्प से ब्रेन में बनने वाले सल्फाटाइड्स (sulfatides) के बारे में जानकारी मिलती है।
एमएलडी का ट्रीटमेंट कैसे किया जाता है? (Metachromatic Leukodystrophy treatment)
मेटाक्रोमैटिक ल्यूकोडिस्ट्रॉफी (Metachromatic Leukodystrophy) का ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है। यानी इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। इस बीमारी के लक्षणों को कुछ दवाओं की सहायता से कम किया जा सकता है। वहीं थेरिपी की हेल्प से स्पीच, मसल्स मूवमेंट और जीवन की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है। कुछ लोगों को बोन मैरो (Bone marrow) या कॉर्ड ब्लड ट्रांसप्लांट की सहायता भी किया जा सकता है। थेरिपी की हेल्प से एंजाइम शरीर में पहुंचाया जाता है, जो शरीर में उपलब्ध नहीं होता है। ये भविष्य में नर्वस सिस्टम में होने वाले डैमेज को कम करता है।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट (bone marrow transplant) के साथ ही कुछ रिस्क भी जुड़े होते हैं। कई बार ट्रांसप्लांट सेल्स का रिजेक्शन भी हो जाता है। कुछ लोगों में ट्रांसप्लांट की गई कोशिकाएं अटैक करने की कोशिश करती हैं। ऐसे में फीवर (Fever), रैश, डायरिया (Diarrhea), लिवर डैमेज, लंग डैमेज आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
और पढ़ें: सेरेब्रल पाल्सी डिसऑर्डर : जिसकी चपेट में है दुनिया में 17 मिलियन लोग!
एमएलडी (MLD) एक प्रोग्रेसिव डिजीज है। अगर बीमारी का सही समय पर इलाज न काराया जाए, तो लक्षण समय के साथ बढ़ते जाते हैं। जिन लोगों को ये बीमारी होती है, वो समय के साथ मसल्स लॉस के साथ ही मेंटल फंक्शन से संबंधित परेशानियां शुरू हो जाती हैं। अर्ली एज में होने पर ये बीमारी तेजी से बढ़ती है। देर से बीमारी का निदान होने पर मौत का खतरा बढ़ जाता है। अगर किसी बच्चे या एडल्ट में इस बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं, तो डायग्नोज के बाद करीब 20 से 30 साल तक जीने की संभावना होती है। आपको इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करना चाहिए।
क्या मेटाक्रोमैटिक ल्यूकोडिस्ट्रॉफी से बचा जा सकता है?
जैसा कि आपको पहले बताया गया कि ये बीमारी रेयर होती है और फैमिली में किसी सदस्य या फिर माता-पिता से ये बीमारी बच्चे को मिलती है। इस बीमारी से बचना मुश्किल है लेकिन अगर फैमिली में किसी को एमएलडी (MLD) की समस्या है, तो ऐसे में जेनेटिक टेस्ट कराना जरूरी है। अगर कोई इस बीमारी का कैरियर है, तो आगे आने वाले बच्चे में इस बीमारी के संबंध में जानकारी मिल सकती है। आपको इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से जानकारी लेनी चाहिए।
हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता। इस आर्टिकल में हमने आपको मेटाक्रोमैटिक ल्यूकोडिस्ट्रॉफी (Metachromatic Leukodystrophy) के संबंध में जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।