- वजन बढ़ने में कमी (Lack of weight gain)
- डेवलपमेंट माइलस्टोन में देरी, जैसे लुढ़कना, रेंगना और बात करना
- लर्निंग डिसएबिलिटी (Learning disabilities)
- भावनाओं की कमी, जैसे मुस्कुराना, हंसना, या आंख से संपर्क करना
- डिलेड मोटर डेवलपमेंट (Delayed motor development)
- थकान (Fatigue)
- चिड़चिड़ापन (Irritability)
- किशोरावस्था में प्यूबर्टी का देर से आना
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डॉक्टर को दिखाने की कब पड़ती है जरूरत?
बच्चे का विकास ठीक से हो रहा है या फिर नहीं, इस बात की जानकारी प्रेग्नेंसी के दौरान ही मिल जाती है। जब बच्चे का जन्म हो जाता है, तो उसके बाद नियमित जांच के माध्यम से उसके विकास के बारे में जानकारी मिलती रहती है। समय पर जांच न हो पाने पर बच्चों में बच्चों में फेलियर से थ्राइव (Failure to Thrive) सिचुएशन के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। अगर बच्चे में विकास सही से नहीं हो पा रहा है, तो जांच के दौरान ही इसका पता चल जाता है और डॉक्टर उचित उपाय अपनाकर ट्रीटमेंट करते हैं। बच्चों के विकास का पैटर्न स्थिर नहीं हो सकता है। आपको डॉक्टर से बेहतर इस बारे में जानकारी कोई नहीं दे सकता है। बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास में अगर देरी हो रही है, तो इसका कारण डॉक्टर जांच के बाद ही बता सकते हैं।
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बच्चों में फेलियर से थ्राइव (Failure to Thrive) का डायग्नोज
बच्चे के विकास में किस प्रकार की बाधा पहुंच रही है, इसे डायग्नोज करने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। जानिए इन में कौन से टेस्ट शामिल है।
आपको इस संबंध में डॉक्टर से अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
बच्चों में फेलियर से थ्राइव का ट्रीटमेंट (Treatment options for failure to thrive?)
बच्चों में फेलियर से थ्राइव सिचुएशन यानी स्थिति को कैसे ट्रीट किया जाना है, इस बारे में बीमारी का कारण पता लगने के बाद ही तय किया जाता है। किस प्रकार के लक्षण दिख रहे हैं, बच्चा किस वातावरण में रह रहा है, पैदा हुई समस्या या बीमारी का कारण क्या है, आदि बातों का पता लगाने के बाद बच्चे का ट्रीटमेंट किया जाता है। पोषण की कमी होने पर बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पोषण दिया जाता है। बच्चे का विकास सामान्य स्तर पर पहुंचने के बाद, उन्हें शारीरिक और मानसिक विकास को सही रखने के लिए मदद की आवश्यकता हो सकती है। ऐसे में फिजकल थेरिपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट, डायटीशियन आदि की मदद ली जाती है।