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दूसरे के मुकाबले क्यों ज्यादा दर्द देता है पहला ट्राइमेस्टर?

दूसरे के मुकाबले क्यों ज्यादा दर्द देता है पहला ट्राइमेस्टर?

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में अनेक बदलाव आते हैं। ट्राइमेस्टर के अनुसार यह अलग-अलग हो सकते हैं। ज्यादातर महिलाओं ने पहले ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी के दौरान दिक्कतों का सामना किया तो वहीं दूसरा ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी उन्हें इतना मुश्किल नहीं लगा। आज हम आपको पहले और दूसरे ट्राइमेस्टर के बारे में बताने जा रहे हैं कि क्यों पहला चरण दूसरे की तुलना में कठिन माना जाता है।

गर्भ में शिशु के विकास के लिए पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी सबसे ज्यादा अहम होता है। इस अवधि के दौरान शिशु के शरीर का आकार और उसके अंगों का विकास होता है। इसी अवधि के दौरान मिसकैरिज की भी ज्यादातर घटनाएं होती हैं। पहलेा ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में शिशु महत्वपूर्ण बदलावों से गुजरता है। इन बदलावों के चलते महिलाओं को भी कई बदलावों का सामना करना पड़ता है। जिसमें उन्हें थकावट, उबकाई आना, स्तनों में सूजन और बार-बार टाॅयलेट जाने की समस्या होती है। पहला ट्राईमेस्टर प्रेग्नेंसी दूसरे के मुकाबले ज्यादा कठिन माना जाता है खासकर उनके लिए जो पहली बार मां बनती हैं। हालांकि, यह सभी लक्षण सामान्य हैं, जिनसे हर महिला को होकर गुजरना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर इस अवधि के दौरान कई महिलाओं को शरीर की ऊर्जा बढ़ने का अहसास होता है और कई महिलाओं को शरीरिक और भावनात्मक रूप से थकावट का अहसास होता है।

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पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी होता है मुश्किल

प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में थकावट होना एक आम बात है। प्रेग्नेंसी से लेकर डिलिवरी तक कई महिलाओं को पूरे दिन थकावट रहती है। वहीं, कुछ ऐसी महिलाएं होती हैं, जिन्हें मुश्किल से ही थकावट का अहसास होता है। थकावट का अहसास व्यक्तिगत तौर पर अलग-अलग हो सकता है। दूसरे ट्राइमेस्टर में यह थकावट कम हो जाती है लेकिन, तीसरा ट्राइमेस्टर शुरू होने पर यह वापस आ जाती है। पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी हर किसी के लिए अलग-अलग अनुभव होता है। किसी को ज्यादा परेशानी होती है तो किसी को कम। पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी का समय निकालने के लिए महिलाएं शुरूआत में महिलाओं को परेशानी होती है लेकिन फिर तीसरा ट्राइमेस्टर आने तक उन्हें इसकी आदत हो जाती है।

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पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में हो सकती है ब्लीडिंग

पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी की अवधि पहले हफ्ते से शुरू होकर 12वें हफ्ते तक चलती है। करीब 25 प्रतिशत महिलाओं का पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि उन्हें इस दौरान ब्लीडिंग होती है। प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में हल्की स्पॉटिंग होना संकेत देता है कि फर्टिलाइज्ड भ्रूण का आरोपण गर्भाशय में हो गया है। पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में ब्लीडिंग होना जहां सामान्य है वहीं अगर यह ब्लीडिंग ज्यादा हो तो इससे खतरा हो सकता है।

हालांकि, अगर आपको ज्यादा ब्लीडिंग, ऐंठन या पेट में तेज दर्द का अहसास हो तो यह खतरे का संकेत हो सकता है। ऐसी स्थिति में आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इस तरह के लक्षण एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (गर्भाशय के बाहर भ्रूण का आरोपण) या मिसकैरिज के संकेत हो सकते हैं।

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पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में मॉर्निंग सिकनेस

पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में मॉर्निंग सिकनेस होना बहुत सामान्य है। हार्मोन के बढ़ते स्तर के कारण ऐसा हो सकता है। यह पूरे पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी तक रह सकता है। कुछ गर्भवती महिलाओं को उल्टी कम होती है वहीं कुछ के दिन की शुरुआत उल्टी से ही होती है। उल्टी आमतौर पर सुबह के समय होती है। इससे राहत पाने के लिए, खाली पेट रहने से बचें। हर एक से दो घंटे में धीरे-धीरे और कम मात्रा में खाएं। ऐसे आहार चुनें जिसमें फैट कम हो। उन खाद्य पदार्थों या बदबू से बचें जिनसे उल्टी आती हो। ऐसा माना जाता है कि प्रेग्नेंट महिलाओं को खाने में ज्यादा गैप नहीं लेना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उन्हें एसिडिटी हो सकती है और एसिडीटी ज्यादा होने पर उल्टी भी हो सकती है।

स्तनों में सूजन आना भी पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी के लक्षण हैं

स्तनों में सूजन प्रेग्नेंसी के शुरुआती संकेतों में से एक है। शरीर में हार्मोन्स के बदलाव का असर स्तनों पर होता है। यह बदलाव दूध नालिकाओं को शिशु को स्तनपान कराने के लिए तैयार करने के लिए होता है। जोकि संभवतः पहले ट्राइमेस्टर में शुरू होता है। कई मामलों में महिलाओं के स्तनों का आकार अचानक बढ़ जाता है और उन्हें खुजली का अहसास भी होता है। पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी महिलाओं के लिए अधिक परेशानी भरा होता है क्योंकि उनके शारिरीक बदलावों के साथ हार्मोनल इंबैलेंस की परेशानी भी होती है।

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पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में कब्ज की समस्या

खाने को आंत में पहुंचाने के लिए मांसपेशियों में होने वाला संकुचन धीमा हो जाता है क्योंकि शरीर में प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। वहीं, खाने- पीने में आयरन की मात्रा बढ़ जाने से  कब्ज का अहसास होता है। इस दौरान आपको पेट के फूले होने का अहसास भी होता है। ऐसे में प्रचुर मात्रा में फायबर लेने और पानी पीने से इस समस्या का निदान हो सकता है। प्रेग्नेंसी में कब्ज की समस्या होना बहुत आम है लेकिन पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी का सबसे नाजुक दौर होता है। इस दौरान यह समस्या ज्यादातर महिलाओं को परेशान करती है।

इस अवस्था में शारीरिक गतिविधियां भी मददगार हो सकती हैं। यदि आपको कब्ज की समस्या ज्यादा हो तो आपको डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। वह स्टूल को सॉफ्ट करने की दवाइयां दे सकता है।

दूसरे ट्राइमेस्टर में यह दिक्कतें दूर होती नजर आती हैं लेकिन, दूसरे बदलावों का आना शुरू हो जाता है। दूसरा ट्राइमेस्टर 13वें हफ्ते से शुरू होता है और यह 28वें हफ्ते तक चलता है। बच्चे का विकास होने से इस अवधि के दौरान पेट का आकार बढ़ने लगता है। इस ट्राइमेस्टर के खत्म होने से पहले पेट में शिशु के सक्रिय होने का अहसास होने लगता है। यू तो महिलाओं के लिए सभी ट्राइमेस्टर परेशानी से भरे होते हैं लेकिन पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी के लिए सबसे ज्यादा कठिन माना जाता है। पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में ठीक से देखभाल ना करने का असर सीधे महिला के गर्भ पर पड़ता है और बहुत से केस में पहले ट्राइमेस्टर में मिसकैरिज की परेशानी भी होती है। इसलिए डॉक्टर भी पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी में महिलाओं को सही देखभाल और खानपान ठीक रखने का निर्देश देते हैं।

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हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में पहला ट्राइमेस्टर प्रेग्नेंसी से जुड़ी जानकारी दी गई है। यदि आपका इससे जुड़ा कोई प्रश्न है तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं। हम अपने एक्सपर्ट्स द्वारा आपके प्रश्नों का उत्तर दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे।

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डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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Current Version

03/05/2021

Sunil Kumar द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr. Pooja Bhardwaj

Updated by: Nikhil deore


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Dr. Pooja Bhardwaj


Sunil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 03/05/2021

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