टेस्ट करने से पहले मरीज को यह समझा दिया जाता है कि यह एक स्क्रीनिंग परीक्षण है। क्योंकि जो रिजल्ट निकलेगा उसी के आधार पर आगे दूसरे परीक्षण किये जायेंगे कि नहीं इस बात का फैसला लिया जायेगा। इसलिए आप समझ ही सकते हैं कि इस अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट के दौरान किसी भी प्रकार के खतरे की आशंका नहीं रहती है। किसी किसी मरीज को हल्का बेहोशी जैसा महसूस या रक्तस्राव हो सकता है। लेकिन आप इस बात के लिए निश्चिंत रह सकते हैं कि अगर हर तरह के हाइजिन का ध्यान रख कर यह परीक्षण किया गया है तो किसी भी प्रकार के संक्रमण मां या शिशु के होने की संभावना ना के बराबर होती है। इसलिए अल्फा भ्रूणप्रोटीन टेस्ट को लेकर ज्यादा टेंशन करने की कोई जरूरत नहीं होती है।
हां, एक दूसरा टेस्ट है एमनियोसेंटेसिस जिससे डाउन सिंड्रोम या किसी भी प्रकार के बर्थ डिफेक्ट का पता लगाने के लिए किया जाता है। उस टेस्ट को करने से गर्भपात यानि मिसकैरेज होने का थोड़ा खतरा होता है। क्योंकि इस टेस्ट को करने से गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है।
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अल्फा फिटोप्रोटीन टेस्ट करने के बाद क्या पता चलता है?
अब बात आती है कि अगर अल्फा भ्रूणप्रोटीन परीक्षण का फल सकारात्मक आया तो क्या होगा। कहने का मतलब यह है कि अगर रिजल्ट में एएफपी का लेवल नॉर्मल लेवल से ज्यादा आया तो शिशु को न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट जैसे स्पाइना बिफिडा होने का खतरा हो सकता है। इस अवस्था में रीढ़ की हड्डी में समस्या हो सकता है या ब्रेन का डेब्लेप्मेंट सही तरह से नहीं हो पाता है। इस वजह से शिशु का मस्तिष्क सही तरह से काम नहीं कर पाता है।
यदि रिजल्ट में प्रोटीन का स्तर कम मिलता है तो उसको जेनेटिक डिसऑर्डर होने का खतरा भी होता है यानि डाउन सिंड्रोम होने की आशंका होती है। इस अवस्था के कारण शिशु का बौद्धिक विकास नहीं हो पाता है।
लेकिन यह भी बात ध्यान रखने की है कि हमेशा ऐसा नहीं होता है। एएफपी का लेवल नॉर्मल नहीं होने पर शिशु को समस्या हमेशा हो ऐसा नहीं है। ऐसा होने पर हो सकता है गर्भवती महिला एक से ज्यादा बच्चों को जन्म दे। या डिलीवरी का समय गलत साबित हो। क्योंकि प्रोटीन के स्तर के असामनता के कारण डॉक्टर निर्धारित डिलीवरी का डेट स्थिर नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा आपको फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट भी मिल सकता है। यह भी हो सकता है कि रिजल्ट समस्या को प्रदर्शित तो कर रहा है, लेकिन शिशु का जन्म सही तरह से और स्वस्थ रूप में हो। डॉक्टर इस टेस्ट से प्रोटीन का जो स्तर देखता है उस आधार पर निदान के लिए दूसरे टेस्ट करने की फैसला लेते हैं।
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