बच्चे के गर्भ में आने से लेकर 9 महीने तक एक महिला की जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं। मां बनने के खुशनुमा एहसास के साथ ही कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का भी उन्हें सामना करना पड़ता है, लेकिन बच्चे जन्म का सबसे मुश्किल समय होता है प्रसव का। प्रसव पीड़ा का समय हर महिला का अलग-अलग होता है, प्रसव पीड़ा होने के तुरंत बाद ही शिशु का जन्म नहीं हो जाता है, इसे कई चरणों में बांटा गया है। प्रसव के दूसरे चरण में जब बच्चे का सिर योनिमार्ग (Vaginal entry) में दिखाई देने लगता है तो इसे बेबी क्राउनिंग (Baby crowning) कहा जाता है। बेबी क्राउनिंग के कुछ ही समय बाद बच्चे का जन्म हो जाता है।
क्या है बेबी क्राउनिंग? (What Is baby crowning?)
बच्चे के जन्म की प्रक्रिया को कई भागों में बांटा जाता है, प्रसव के दूसरे चरण में लगातार संकुचन के कारण बच्चे का सिर बाहर निकलने के लिए तैयार रहता है और यह योनिमार्ग यानी वजाइना (vagina) की ओपनिंग पर दिखने लगता है इसे ही बेबी क्राउनिंग (Baby crowning) कहा जाता है। जब आप कुछ और पुश करती हैं तो बच्चे का जन्म हो जाता है। बच्चे का सिर बाहर आने के बाद डॉक्टर आपको आराम से पुश करने के लिए कहता है ताकि बच्चे का बाकी शरीर भी बाहर आ जाएगा। यदि बच्चे का वजन या आकार ज्यादा है तो वजाइनल ओपनिंग (vaginal opening) को बड़ा करने के लिए छोटा सा चीरा लगाया जाता है जिसे एपिसटलरी (epistolary) कहा जाता है। आपका डॉक्टर चम्मच की तरह दिखने वाला एक टूल जिसे फोरसेप्स कहते हैं का भी इस्तेमाल कर सकता है बच्चे को बाहर निकलाने के लिए यदि वह नेचुरल तरीके से नहीं आ पा रहा है या आप बहुत थक चुकी हैं तो। इसके अलावा वैक्यूम एक्स्ट्रैक्शन (vacuum extraction) का भी विकल्प होता है। आप कह सकते हैं कि बेबी क्राउनिंग (baby crowning) प्रसव का सबसे अहम चरण है।
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बेबी क्राउनिंग कब होता है?
लेबर यानी प्रसव को 4 चरणों में बांटा गया है जो इस प्रकार हैं-
अर्ली और एक्टिव लेबर (early and active labor) – इस चरण में प्रसव पीड़ा शुरू होने के बाद संकुचन होने लगता है और हर संकुचन (contraction) के साथ बच्चा गर्भाशय (uterus) में नीचे की ओर आता जाता है यानी इस चरण में आपका शरीर बच्चे के जन्म के लिए तैयार होता है।
बर्थ कैनल से बच्चे का बाहर आना (fetal descent through the birth canal) – इस चरण में सर्विक्स (cervix) पूरी तरह से फैल जाता है और लगातार संकुचन के साथ ही पहले बच्चे का सिर बाहर आता है और फिर बाकी शरीर।
प्लेसेंटा की डिलीवरी (delivery of the placenta)- बच्चे के जन्म के कुछ ही मिनट बाद प्लेसेंटा (placenta) बाहर आ जाता है और यह प्रसव का तीसरा चरण है।
रिकवरी (recovery)- प्लेसेंटा (placenta) बाहर आने के बाद ब्लीडिंग (bleeding) कम हो जाती है और प्रसव (labor) का दर्द भी। इसके बाद महिला का शरीर धीरे-धीरे रिकवर होने लगता है।
बेबी क्राउनिंग प्रसव के दूसरे चरण में होता है और इसके बाद ही बच्चे का जन्म होता है।
लेबर (labor) के दौरान आपको कई बार संकुचन होता है और इस दौरान आपका सर्विक्स पतला होकर 0 से 6 सेंटीमीटर तक फैल जाता है, जो अर्ली लेबर का हिस्सा है। आमतौर पर इसे ही लेबर का सबसे लंबा समय माना जाता है जो एक घंटे से लेकर 20 घंटे तक का भी हो सकता है। जानकारों की मानें तो दूसरे बच्चे के जन्म के समय किसी महिला के लिए यह समय कम होता है। बेबी क्राउनिंग (baby crowning) तब होती है जब आपका सर्विक्स पूरी तरह से फैल जाता है। प्रसव का दूसरा चरण यानी बच्चे के जन्म में कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटे भी लग सकते हैं। आमतौर पर यह समय मिनट से लेकर 2 घंटे तक का होता है। पहली बार मां बनने वाली महिलाओं के लिए यह समय अधिक होता है। लेबर (labor) के दूसरे स्टेज में डॉक्टर या मिडवाइफ आपकी पूरी तरह से निगरानी करते हैं और आपको निर्देश देते रहते हैं। एक मां के लिए अच्छी बात यह है कि बेबी क्राउनिंग (baby crowning) के बाद एक या दो संकुचन में ही बच्चे का जन्म हो जाता है और उन्हें प्रसव पीड़ा (labor pain) से छुटकारा मिल जाता है।
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बेबी क्राउनिंग (Baby crowning) के समय कैसा महसूस होता है?
बेबी क्राउनिंग (baby crowning) का अनुभव हर महिला का एक सा नहीं होता। बहुत सी महिलाओं को जलन और चुभने जैसा सेंसेशन महसूस होता है, शायद इसलिए इस स्थिति को ‘रिंग ऑफ फायर’ कहा जाता है। हालांकि कुछ महिलाओं को ऐसा अनुभव नहीं होता, जबकि कुछ को ऐसा ही फील होता है, तो प्रसव का अनुभव हर महिला का एक सा नहीं होता। यह उनके शरीर, मेडिकल कंडिशन और बच्चे की हेल्थ पर निर्भर करता है। बेबी क्राउनिंग (baby crowning) के दौरान वजाइना में होने वाले जलन और चुभन की फीलिंग कुछ घंटे से लेकर कई घंटे लंबे हो सकती है। जब आपकी स्किन स्ट्रेच होती है, तो नर्व्स ब्लॉक हो जाते हैं और आपको कुछ महसूस नहीं होता। स्ट्रेच इतना तीव्र होता है कि दर्द की बजाय आपको महसूस होता है कि जैसे सब सुन्न हो गया है।
इस दौरान जहां तक दर्द का सवाल है तो यदि आप एपिड्यूरल (epidural) का चुनाव करती हैं, तो आपको डल्ड डाउन बर्निंग सेंसेशन (dulled-down burning sensation) का अनुभव होगा। दर्द कितना होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको दर्द से राहत के लिए क्या किसी तरह की मेडिसिन दी जा रही है। जहां तक वजाइना में प्रेशर (vagina pressure) यानी दबाव का सवाल है तो ऐसा इसलिए महसूस होता है क्योंकि आपका बच्चा बर्थ कैनल (birth canal) में बहुत नीचे आ चुका होता है।
रिलैक्स रहें और डॉक्टर की सुनें (Relax and listen to your doctor)
बहुत सी महिलाएं प्रसव के दौरान घबरा जाती हैं और इससे उनका दर्द और बढ़ जाता है। एक बातयाद रखें कि जरूरी नहीं कि बेबी क्राउनिंग का आपका अनुभव वैसा ही हो, जैसा कि आपने अपनी मां, बहन या दोस्तों के मुंह से सुना हो। हर किसी के लेबर (labor) और डिलीवरी (delivery) का अनुभव अलग-अलग होता है। जैसे ही आपका डॉक्टर आपको बताए कि बेबी क्राउनिंग हो गई है तो आप पुश करना बंद करके कुच समय के लिए रिलैक्स कर सकती हैं ताकि आपकी बॉडी दोबारा संकुचन (contraction) के लिए तैयार हो सके। हालांकि ऐसा करना आसान नहीं होता, मगर आपको ऐसा करना होगा।
क्यों जरूरी है रिलैक्स करना? (Why relaxing is important)
जब क्राउनिंग हो जाती है तो इसका मतलब है कि बच्चे का सिर बर्थ कैनल में ही रहता है और संकुचन (contractions) के साथ यह वापस अंदर की ओर नहीं जाता। इस दौरान डॉक्टर आपको गाइड करेगा कि किस तरह से और कब पुश करना है। डॉक्टर की सलाह पर अमल करना जरूरी है वरना वजाइना (vagina) और मलाशय (rectum) की स्किन को नुकसान पहुंच सकता है। इस एरिया को पेरिनेम (perineum) भी कहा जाता है और आपको डॉक्टर ने पेरिनेम टियर (perineum tears) यानी उस हिस्से के फटने के बारे में चेतावनी भी दी होगी।
टियर्स यानी त्वचा का फटना क्या है?
कई बार अच्छे डॉक्टर की सलाह पर अमल करने के बावजूद कुछ महिलाओं को डिलीवरी (delivery) के दौरान प्राइवेट पार्ट के आसपास की स्किन कटने/फटने की समस्या हो सकती है। कई बार बच्चे का सिर बड़ा होता है जिसकी वजह से वह बाहर आसानी से नहीं आ पाता ऐसे में डॉक्टर को वजाइना के पास एक चीरा लगाना पड़ता है। जबकि कई बार महिला की स्किन पूरी तरह से स्ट्रेच नहीं हो पाती जिससे त्वचा (skin) या मसल्स (muscle) फट/कट जाती है। वजह चाहे जो भी हो डिलीवरी (delivery) के दौरान चीरा लगाना या स्किन टियरिंग आम है और इससे घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ ही हफ्तों में यह अपने आप ठीक हो जाता है।
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टियरिंग (Tearing) की गंभीरता:
फर्स्ट डिग्री टियर (First-degree tears)- इसमें पेरिनेम (perineum) की त्वचा और टिशू शामिल हैं। यह टांके (stitches) लगाने के बाद या बिना टांके के ही ठीक हो जाता है।
सेक्ड डिग्री टियर (Second-degree tears)- इसमें पेरिनेम (perineum) के साथ ही वजाइना के अंदर के कुछ टिशू को भी नुकसान पहुंचा है। ऐसे चीरे या कट को ठीक होने में समय लगता है और टांके लगवाने पड़ते हैं।
थर्ड डिग्री टियर (Third-degree tears)- इसमें पेरिनेम (perineum) के साथ ही मलाशय के आसपास के मसल्स को भी नुकसान पहुंता है। ऐसे चीरे को ठीक करने के लिए अक्सर सर्जरी की जरुरत पड़ती है और ठीक होने में कुछ हफ्ते का अधिक समय लगता है।
फोर्थ डिग्री टियर (Fourth-degree tears) – पेरिनेम (perineum), एनल स्फिंक्टर्स ( anal sphincter) और रेक्टम (rectum) को लाइन करने वाले म्यूकस मेंमब्रान (mucous membrane) की त्वचा को हानि पहुंचती है। इसमें भी सर्जरी की जरूरत पड़ती है और रिकवरी में भी समय लगता है।
करीब 70 फीसदी महिलाओं को डिलीवरी के समय चीरा या तो लगाया जाता है या अपने आप ऐसा हो जाता है।
क्राउनिंग की तैयारी के लिए टिप्स (Tips to help you prepare for crowning)
लेबर और डिलीवरी से जुड़ी घबराहट, चिंता और डर को खत्म करने के लिए जरूरी है कि आप पहले ही इसकी जानकारी के लिए कोई क्लास जॉइन कर लें। बहुत से चाइल्ड बर्थ क्लास ऑनलाइन भी चलते हैं तो जन्म से जुड़ी सभी तरह की जानकारी प्रदान करके महिलाओं के डर को कम करने का काम करती है। इससे बेबी क्राउनिंग का अनुभव आपके लिए अधिक पीड़ादायक नहीं रहेगा।
अन्य उपाय-
- यदि आपको दर्द बर्दाशत नहीं हो रहा तो डॉक्टर से पेन मैनेजमेंट प्लान के बारे में बात करें जो आपके लिए ठीक हो। दर्द कम करने के कई तरीके हैं जैसे मसाज (massage), ब्रीदिंग तकनीक (breathing techniques), एपिड्यूरल (epidural), लोकल एनिस्थिसिया (local anesthesia) और नाइट्रोस ऑक्साइड (nitrous oxide)।
- जब डॉक्टर क्राउनिंग की जानकारी दे दे, तो बहुत तेजी से पुश करने की जरूरत नहीं है। थोड़ी देर रिलैक्स करें जिससे टिशू (tissues) आसानी से स्ट्रेच हो सकें। इससे त्वचा के क्षतिग्रस्त होने की संभावना कम हो जाती है।
- बच्चे को जन्म देने के अलग-अलग पोजिशन के बारे में जानकारी जुटाएं। चारों तरफ घूमना, एक तरफ करवट लेकर सोना या सेमी सिटिंग पोजिशन (sitting position) सभी सही पोजिशन है। अब आपको जिसमें सहज लगे आप वह पोजिशन चुन सकती हैं। पीठ के बल सोने पर पुश करना मुश्किल हो जाता है और स्क्वैट पोजिशन से टियरिंग की संभावना बढ़ जाती है।
- याद रखिए जैसे ही आपको रिंग ऑफ फायर (ring of fire) यानी क्राउनिंग का अनुभव हो जाए तो समझ लीजिए कि कुछ ही देर में आप अपने बच्चे से मिलने वाली हैं इसलिए हिम्मत मत हारिए और कोशिश करती रहिए।
शिशु के जन्म के बाद क्या होता है? (What happen after delivery)
जैसे ही आपके शिशु का सिर और धड़ दोनों बाहर आ जाते हैं तो प्रसव का तीसरा चरण शरू होता है जिसमें प्लेसेंटा और झिल्लियों का बाहर निकाला जाता है। यह प्रक्रिया 10 से 20 मिनट तक होती है। इस दौरान प्लेंसटा (placenta) गर्भाशय की अंदर की दीवार से अलग हो जाता है और आप उसे बाहर की तरफ पुश कर सकती हैं, लेकिन ऐसा न होने पर नर्स आपके पेट पर हाथ रखकर प्लेसेंटा को बाहर निकालने में मदद करती है। प्लेसेंटा के बाहर आते ही इससे जुड़ी हुई रक्त नलिकाएं बंद हो जाती हैं जिससे ब्लीडिंग बंद हो जाती है (हालांकि थोड़ी ब्लिडिंग होते रहना सामान्य है)।
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नॉर्मल डिलीवरी के लिए रखें इन बातों का ध्यान (Tips for normal delivery)
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि नॉर्मल डिलीवरी (normal delivery) में प्रसव पीड़ा बहुत अधिक होती है, लेकिन इसमें रिकवरी जल्दी होती है। जबकि सिजेरियन डिलीवरी (cesarean delivery) में रिकवरी जल्दी नहीं होती है और बाद में कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, इसलिए हमेशा नॉर्मल डिलीवरी की ही कोशिश करनी चाहिए।
बैलेंस डायट- पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान डायट (pregnancy diet) का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि जो आप खाती हैं उसी से बच्चे को भी पोषण मिलता है। इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान बैलेंस डायट (balance diet) लेना बहुत जरूरी है। आपके भोजन में प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम के साथ ही जरूरी विटामिन्स भी होने चाहिए और डॉक्टर के बताए सप्लिमेंट्स भी लेती रहें।
फिजिकली एक्टिव रहें- नॉर्मल डिलीवरी के लिए बहुत जरूरी है कि आप गर्भावस्था में फिजकली एक्टिव रहें, लेकिन हां, यदि डॉक्टर ने किसी कारण से चलने-फिरने से मना किया है तो उनकी सलाह पर अमल करें। यदि किसी तरह की समस्या नहीं है तो रोजाना वॉक और हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें। हां, इस दौरान ज्यादा झुकने और भारी सामान उठाने से बचें।
तनावमुक्त रहने की कोशिश- तनाव (stress) कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है, खासतौर पर प्रेग्नेंट महिला (pregnant woman) को तो तनाव से बिल्कुल दूर रहना चाहिए, क्योंकि इसका असर न सिर्फ होने वाले बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर होगा, बल्कि डिलीवरी पर भी इसका असर हो सकता है। इसलिए खुद को शांत रखने के लिए मेडिटेशन करें, संगीत सुनें।
वजन कंट्रोल करना- मोटी महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी में दिक्कत होती है, इसलिए इस बात का खास ध्यान रखें कि प्रेग्नेंसी के दौरान आपका वजन बहुत अधिक न बढ़ जाए।
खूब पानी पीएं- पानी शरीर को हाइड्रेट रखता है और शरीर के हर अंग को ऑक्सिजन की आपूर्ति मं भी यह मदद करता है। ज्यादा पानी पीने से लेबर के दौरान होने वाले दर्द को सहन करने की ताकत मिलती है।
बच्चे के जन्म किसी भी महिला की जिंदगी का बहुत खास अनुभव होता है, लेकिन इसे पूरी तरह से स्वस्थ और यादगार बनाने के लिए प्रेग्नेंसी की शुरुआत से ही आपको डॉक्टर की हिदायतों का पूरा ध्यान रखना होगा। हां, यह अनुभव पीड़ादायक जरूर है, लेकिन महिलाएं धैर्य और हिम्मत रखकर लेबर के दर्द को कम कर सकती हैं।
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