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हर्पीज के इलाज के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट है प्रभावकारी, जानें इसके बारे में

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Niharika Jaiswal द्वारा लिखित · अपडेटेड 04/07/2022

    हर्पीज के इलाज के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट है प्रभावकारी, जानें इसके बारे में

    जरूरी नहीं है कि शरीर में दिखने वाले हर लाल दाने, एलर्जी हो। ये हर्पीस (Herpes) के भी लक्षण हो सकते हैं। हर्पीस जोस्टर वायरस और सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी) के कारण होने वाला एक रोग है, जो महिला या पुरूष, किसी को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए समय रहते इसका इलाज बहुत जरूरी है। वैसे तो, अधिकतर लोग इसके इलाज के लिए एलोपैथिक दवांदयों पर जाेर देते हैं। लेकिन हर्पीस का उपचार, आयुर्वेद चिकित्सा द्वारा भी किया जा सकता है। जानें हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट क्या है।

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     हर्पीस के सामान्य लक्षण (Herpes symptoms)

    • वायरस के संपर्क में आने के 2 से 20 दिन के बाद लक्षण नजर आने लगते हैं।
    • हर्पीस का सबसे पहला लक्षण हैं कि इसमें पानी भरे दाने निकलने लगने हैं। जो धीरे-धीरे शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगते हैं।

      इसकी वजह से शरीर में झुनझुनी, खुजली और जलन जैसी समस्याएं हो सकती है।

    • थकान और अस्वस्थ महसूस करना।

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    आयुर्वेद के अनुसार हर्पीस

    हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट-Herpes ka Ayurvedic treatment

    मानव शरीर में होने वाले रोगों का आयुर्वेद में अलग-अलग कारण होता है। तो आइए, हर्पीस को देखते हैं, आयुर्वेद की नजर से।

    वात

    आयुर्वेद केअनुसार, वात दोष के कारण हुए हर्पीस के निन्मलिखित लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि दर्द, चक्कर, अपच की समस्या, खांसी, आंखों में जलन महसूस करना और भूंख में कमी आदि। इसका आयुर्वेद में उस दोष के अनुसार इलाज किया जाता है।

    पित्त

    बुखार आने के साथ, शरीर के अन्य हिस्सों में रैशेज जैसे पड़ना और लाल रंग के फोड़े फुलसी पित्त दोष के कारण हर्पीज की समस्या की वजह हो सकते हैं।

    कफ

    ऐसा तब होता हे जब आपका कफ बिगड़ जाता है, जब आपके शरीर में जकड़न, संक्रमण दर्द और बुखार बना रहाता है।

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    ग्रंथि विसर्प

    हर्पीस का यह कारण व्यक्ति में तब होता है, जब उनमें वात और कफ दोनों का अंसतुलन देखा जाता है। जिस वजह से उस ग्रंथि का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।

    त्रिदोष

    जब किसी में हर्पीस बहुत तेजी से फैलता है, तो कारण यह त्रिदोष में आया अंसतुलन हाे सकता है। यह इतनी तेजी से फैलता है कि कई बार उपचार मुश्किल हो जाता है और हालत भी गंभीर स्थिति में हो सकती है।

    अग्नि विसर्प दोष

    जब रोगी में वात और कफ, यह दोनों दोष के लक्षण दिखते हैं, तो उनमें अग्नि विसर्प दोष के कारण हर्पीस की समस्या हो सकती है। इसमें दोष वाले व्यक्ति में हर्पीस होने के निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं, जैसे कि बुखार, उल्टी, चक्कर और कमजाेरी महसूस होना आदि।

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    हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट (Ayurvedic treatment for herpes) :

    अंसतुलित दोष को संतुलित किया जाता है

    आयुर्वेद में हर्पीस के उपचार के लिए पहले जिन दोषों के कारण व्यक्ति काे यह समस्या हुई है। उसे संतुलित किया जाता है। इन दोषों केा ठीक करने के लिए आहार में बदलाव करने के साथ लेप के रूप में कुछ जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ डायटरी स्पलिमेंट भी दिया जाता है। इसमें रोगी की त्वचा, खून और लिम्फ (lymph) तीनों को डिटॉक्ट और  हर्बल जड़ी-बूटियों के माध्यम से शुद्व किया जाता है। इससे रक्त संचार तेज और असंतुलित टॉक्सिन को ठीक करता है।

    इसमें भी सबसे पहले हर्बल ट्रीटमेंट के माध्यम से  रक्त और लसीका को डिटॉक्सीफाई किया जाता हैं, जो विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। इससे वात दोष दूर होता है और  सूजन, जलन और झुनझुनी जैसी समस्या कम होती है।

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    बूस्टिंग बॉडी इम्यूनिटी और बॉडी रिज्यूविनेशन

    आयुर्वेद के अनुसार कोई भी बीमारी न केवल एक विशेष अंग को प्रभावित करती है, बल्कि कहीं न कहीं पूरे शरीर को प्रभावित करती है। हरपीज एक प्रकार का वायरस है और कई लोगों में इसके होने का करण कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। शरीर के दाेषों को पहले स्टेप में संतुलित करने के बाद शरीर को रिजूवनेट (Rejuvenate) किया जाता है।  फिर रसायन (Rasayanas ) विधि द्वारा शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाई जाती है। ताकि शरीर हर्पीस सहित अन्य किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए तैयार रहे।

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    प्रभावित त्वचा भागों के लिए आयुर्वेदिक उपचार

    हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए, इन दोनों प्रॉसेज यानि कि शरीर के दाेनों दोषों को संतुलन और बाॅडी को रिजूवनेट करने के बाद, शरीर के उस अंग पर ध्यान दिया जाता है। जहां पर हर्पीस की समस्या हो। इस उपचार स्टानिका चिकित्सा कहा जाता है। जननांग से प्रभवित हिस्से में चंदन, गुलाब और नीम आदि के पाउडर से तैयार हर्बल पेस्ट को लगाकर, प्रभावित त्वचा को राहत देने के साथ धीरे-धीरे ठीक भी किया जाता है।

    आयुर्वेद के अनुसार डायट

    हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट करने के लिए डायट की तरफ भी विशेष ध्यान दिया जाता है। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग का अलग-अलग कार्य और भूमिका है। इसलिए शरीर को अलग-अलग प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत होती है। यदि आपके शरीर को जरूरत के अनुसार सभी पोषक तत्व नहीं मिलते हैं य उन कमियों को जल्दी पूर नहीं किया जाता है, तो आप कुपोषित हो सकते हैं। जिस कारण भी इम्यूनिटी सिस्टम भी कमजाेर होने लगता है। इसलिए आयुर्वेद में उन जरूरतों को समझते हुए अलग-अलग दोषों के अनुसार खानपान की सलाह दी जाती है। पित दोष को संतुलन करने के लिए फायदेमंद खाद्य पदार्थ हैं, ताजी सब्जियां, फल, बींस, मछली, अंडे और चिकन।

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    आयुर्वेद के अनुसार नींद की उचार में भूमिका 

    किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए और शरीर की अच्छी इम्यूनिटी के लिए अच्छे खानपान के साथ अच्छी नींद भी लेना बहुत जरूरी है। नींद हमारे  मन को तरोताजा करती है। अच्छी नींद हमारे शरीर के इम्यून को बढ़ाने वाले हाॅर्मोन को बनाते हैं। उपचार के साथ रोगी को  8 घंटे से अधिक नींद लेने की सलाह दी जाती है। 

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    तनाव को कम किया जाता है

    दाद होने के कई कारणों में तनाव भी एक है। सबसे अधिक बार यह समसया लोगों में मानसिक तनाव के कारण होता है। तनाव को कम करने के लिए व्यायाम और अच्छी नींद के साथ विभिन्न तरह के व्यायाम किए जा सकते हैं। कई अध्ययनों में भी पता है कि 30 मिनट का नियमित एरोबिक व्यायाम जैसे पैदल चलना प्रतिरक्षा को बढ़ाता है।

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    योग 

    योग हर्पीज सहित कई उपचारों के लिए बुहत प्रभावकारी माना गया है। यह मन और दिमाग को शांत करने के साथ शरीर को डिटॉक्स करने का काम करता है। इससे रक्त संचार भी अच्छा होता है। यदि शरीर में रक्तसंचार अच्छा है, तो आप कई बीमारियों से आसानी से लड़ सकते हैं। इससे मोटापा और अन्य कई बीमारियां दूर होती है।

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    अगर आपको हर्पीज की समस्या लगातार बनी रहती है, तो आप आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट को अपना सकती हैं। ये और भी कई रोगों के इलाज के लिए प्रभावकारी है। 

    डिस्क्लेमर

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