इसमें भी सबसे पहले हर्बल ट्रीटमेंट के माध्यम से रक्त और लसीका को डिटॉक्सीफाई किया जाता हैं, जो विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। इससे वात दोष दूर होता है और सूजन, जलन और झुनझुनी जैसी समस्या कम होती है।
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बूस्टिंग बॉडी इम्यूनिटी और बॉडी रिज्यूविनेशन
आयुर्वेद के अनुसार कोई भी बीमारी न केवल एक विशेष अंग को प्रभावित करती है, बल्कि कहीं न कहीं पूरे शरीर को प्रभावित करती है। हरपीज एक प्रकार का वायरस है और कई लोगों में इसके होने का करण कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। शरीर के दाेषों को पहले स्टेप में संतुलित करने के बाद शरीर को रिजूवनेट (Rejuvenate) किया जाता है। फिर रसायन (Rasayanas ) विधि द्वारा शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाई जाती है। ताकि शरीर हर्पीस सहित अन्य किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए तैयार रहे।
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प्रभावित त्वचा भागों के लिए आयुर्वेदिक उपचार
हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए, इन दोनों प्रॉसेज यानि कि शरीर के दाेनों दोषों को संतुलन और बाॅडी को रिजूवनेट करने के बाद, शरीर के उस अंग पर ध्यान दिया जाता है। जहां पर हर्पीस की समस्या हो। इस उपचार स्टानिका चिकित्सा कहा जाता है। जननांग से प्रभवित हिस्से में चंदन, गुलाब और नीम आदि के पाउडर से तैयार हर्बल पेस्ट को लगाकर, प्रभावित त्वचा को राहत देने के साथ धीरे-धीरे ठीक भी किया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार डायट
हर्पीस का आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट करने के लिए डायट की तरफ भी विशेष ध्यान दिया जाता है। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग का अलग-अलग कार्य और भूमिका है। इसलिए शरीर को अलग-अलग प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत होती है। यदि आपके शरीर को जरूरत के अनुसार सभी पोषक तत्व नहीं मिलते हैं य उन कमियों को जल्दी पूर नहीं किया जाता है, तो आप कुपोषित हो सकते हैं। जिस कारण भी इम्यूनिटी सिस्टम भी कमजाेर होने लगता है। इसलिए आयुर्वेद में उन जरूरतों को समझते हुए अलग-अलग दोषों के अनुसार खानपान की सलाह दी जाती है। पित दोष को संतुलन करने के लिए फायदेमंद खाद्य पदार्थ हैं, ताजी सब्जियां, फल, बींस, मछली, अंडे और चिकन।
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