एलजीबीटीक्यू एक ऐसा समुदाय है जिसे कई वर्षों से समाज में जगह और सम्मान नहीं प्राप्त हो पाया है। हालांकि, 21वी शताब्दी में इस समुदाय ने अपने हक की लड़ाई लड़ कर कई देशों के संविधान में अपने लिए जगह बना ली है।
LGBTQ लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर लोगों का समुदाय है। यह समुदाय हमारे बीच कई वर्षों से मौजूद है ,लेकिन भेदभाव और समाज के न अपनाने की धारणा के कारण यह सभी अपनी पहचान को छिपाए रखते थे।
एलजीबीटीक्यू समुदाय को लेकर विश्व भर में कई ऐसे अजीबो गरीब मिथक फैले हुए हैं जो कि असल में सच नहीं हैं। आज हम आपको इस लेख में LGBTQ कम्युनिटी से जुड़े कई रोचक तथ्यों और मिथकों के बारे में बताएंगे।
मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग मानसिक तौर से बीमार होते हैं।
फैक्ट – अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन को साइकियाट्रिक परीक्षण की विश्व भर में मान्यता है। साल 1973 में अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन द्वारा होमोसेक्शुअलिटी को मानसिक विकार की श्रेणी से बाहर कर दिया था, और उन्हें एक स्वस्थ हेट्रोसेक्शुअल (स्ट्रेट) जितना दर्जा दिया गया।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (WHO) ने भी 1977 में होमोसेक्शुअलिटी को मेंटल डिसऑर्डर की लिस्ट में रखा था, लेकिन 1990 में होमोसेक्शुअलिटी को डब्लूएचओ की मेंटल डिसऑर्डर की श्रेणी से भी निकाल दिया गया और एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के सभी सदस्यों को हेट्रोसेक्शुअल (स्ट्रेट) लोगों जितना ही स्वस्थ करार दिया गया।
मिथक – एलजीबीटीक्यू समुदाय में कौन लोग हैं? इन लोगों को मैं नहीं जानता न कभी इनसे मैं मिला।
फैक्ट – LGBTQ कम्युनिटी के कई लोगों से हम रोजाना मिलते हैं, लेकिन समाज की न अपनाने वाली दृष्टि के कारण आज भी यह लोग अपनी सच्चाई के बारे में बताने से डरते हैं। यदि आपको ऐसा लगता है कि आप एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे में नहीं जानते हैं तो ऐसा नहीं है आप इस समुदाय के लोगों से जरूर मिले होंगे और हो सकता है कुछ तो आपके दोस्त भी हों।
मिथक – LGBTQ कम्युनिटी के लोगों का व्यवहार नकारात्मक होता है।
फैक्ट – एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग सामान्य लोगों की ही तरह होते हैं। वह अन्य लोगों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे हेट्रोसेक्शुअल (स्ट्रेट) लोग करते हैं।
मिथक – LGBTQ कम्युनिटी मे आना आसामान्य और अप्राकृतिक होता है। यह प्रकृति के खिलाफ है।
फैक्ट – इस मिथक का बेस बच्चों को पैदा करने की मान्यता पर निर्भर करता है। जिन लोगों का यह मानना है कि दो लोगों के बीच सेक्शुअल रिलेशन बच्चे पैदा करने और मनुष्यों की प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए बनाया जाता है वही होमोसेक्शुलिटी और अन्य एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को आसामान्य और अप्राकृतिक मानते हैं।
ऐसे कई हेट्रोसेक्शुअल लोग हैं जो बच्चे पैदा नहीं करना चाहते हैं, लेकिन फिर भी शारीरिक संबंध बनाते हैं। इसके अलावा कई ऐसे भी कपल होते हैं जो कुछ समस्याओं की वजह से ऐसा नहीं कर पाते हैं, लेकिन इन दोनों ही मामलों में लोगों को आसामान्य और अप्राकृतिक नहीं माना जाता है।
दरअसल क्या प्राकृतिक है और क्या नहीं ये हम तय नहीं कर सकते हैं। यह प्रकृति और व्यक्ति दर व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है।
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मिथक – एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों के रिलेशनशिप में घरेलू हिंसा और दूसरी परेशानियां नहीं होती हैं।
फैक्ट – ऐसा बिलकुल नहीं है क्योंकि ऐसा देखा गया है कि LGBTQ कम्युनिटी के लोगों के रिलेशनशिप में भी उसी प्रकार की समस्याएं आती हैं जिस प्रकार की एक हेट्रोसेक्शुअल रिलेशनशिप में देखने को मिलती हैं। LGBTQ रिलेशनशिप में भी झगड़े होते हैं। वे भी अपना-अपना व्यू रखते हैं जिसके कारण कभी-कभी बहस भी हो सकती है।
इसके अलावा एलजीबीटीक्यू रिलेशनशिप में भी एक पार्टनर के दूसरे पर हावी होने के कारण एक को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ सकता है।
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मिथक – जो पुरुष स्त्री की तरह व्यवहार करते हैं वह गे होते हैं। जो महिलाएं पुरुषों की तरह व्यवहार करती हैं और जिनकी आवाज भारी व शाॅर्ट हेयर होते हैं वे लेस्बियन होती हैं। ट्रांसमेन सीक्रेटली लेस्बियन होते हैं और ट्रांसवीमेन गे पुरुष।
फैक्ट – इस प्रकार की स्टीरियोटाइप सोच सेक्शुअल ओरिएंटेशन (आप सेम सेक्स के साथ संबंध बनाने चाहते हैं या अपोजिट) की धारणा को जेंडर रोल (आप व्यवहार से पुरुष हैं या महिला) के साथ कंफ्यूज कर देती हैं।
ऐसे कई होमोसेक्शुअल पुरुष होते हैं जो कि मैस्कुलिन (मर्दाना) होते हैं और ऐसी कई होमोसेक्शुअल महिलाएं हैं जो फेमिनिन (स्त्री) होती हैं। जबकि कुछ ऐसे हेट्रोसेक्शुअल पुरुष भी होते हैं जिनमें फेमिनिन ट्रेट्स होती हैं और कुछ ऐसी ही महिलाएं भी होती हैं जिनमें मैस्कुलिन ट्रेट्स होते हैं।
ट्रांसमेन वह होते हैं जिनका लिंग जन्म से ही महिलाओं का होता है, लेकिन उनका व्यवहार और पहचान पुरुषों जैसा होता है। ट्रांसमेन को पुरुषों की तरह रहना और संबोधित होना अच्छा लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह पुरुष होते हैं। हालांकि, संभोग के लिए वह महिला या पुरुष किसी को भी अपनी पसंद अनुसार चुन सकते हैं।
ठीक ऐसा ही ट्रांसवीमेन के साथ होता है। वे जन्म से पुरुष लिंग के साथ पैदा होती हैं, लेकिन व्यवहार और पहचान से महिला लगती हैं। उन्हें महिलाओं की तरह बुलाना अच्छा लगता है क्योंकि वे स्त्री होती हैं और वे भी पुरुषों या महिलाओं के प्रति आकर्षित हो सकती हैं।
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मिथक – एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को बच्चे पैदा नहीं करने चाहिए।
फैक्ट – विश्व भर में किए गए किसी भी अध्ययन में ऐसा नहीं पाया गया है कि एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी द्वारा पाले गए बच्चों की सेक्स ओरिएंटेशन पर बुरा या भावनात्मक प्रभाव पड़ता है। इस बात को साबित करने के लिए कोई भी स्पष्ट सबूत नहीं है। बल्कि हकीकत में एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के माता-पिता भी हेट्रोसेक्शुअल पेरेंट्स की ही तरह भावनात्मक और केयरिंग होते हैं।
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मिथक – एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग सेक्स के प्रति अधिक उत्तेजित होने के कारण बाल यौन शोषण का हिस्सा होते हैं।
फैक्ट – ऐसा एक भी सबूत नहीं है जो यह साबित कर सके कि एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग चाइल्ड एब्यूज के भागीदारी होते हैं। बल्कि इसके विपरीत कई वर्षों तक देखा गया है कि एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग चाइल्ड एब्यूज के विक्टिम होते हैं। एलजीबीटीक्यू लोगों के मुकाबले हेट्रोसेक्शुअल लोगों द्वारा किए गए चाइल्ड एब्यूज के मामले अधिक दर्ज किए जाते हैं।
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मिथक – बायसेक्शुअल लोगों के कई पार्टनर होते हैं।
फैक्ट – परिभाषा के अनुसार, उभयलिंगी व्यक्तियों में दूसरे लिंग के व्यक्तियों के साथ-साथ उनके समान लिंग के व्यक्तियों के प्रति रोमांटिक और/या यौन भावनाएं होती हैं। यह एक समय में एक से अधिक साथी के साथ स्वचालित रूप से शामिल नहीं होते हैं।
मिथक – ऐसा माना जाता है कि एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों में क्राइम और हिंसा की दर बेहद कम है।
फैक्ट – ऐसा बिलकुल नहीं है, बल्कि एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों को अधिक हिंसा और क्राइम का सामना करना पड़ता है। एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग वर्कप्लेस, स्कूल और कॉलेज में हिंसा और बुलिंग के विक्टिम अधिक होते हैं। एलजीबीटीक्यू लोगों को साइबर क्राइम, गालियों, मार-पीट और तानों का सामना करना पड़ता है और कई लोगों के साथ ऐसा व्यवहार उनके खुद के माता-पिता व भाई बहन और दोस्त करते हैं।
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मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों में आत्महत्या और डिप्रेशन के मामले कम होते हैं।
फैक्ट – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों में आत्महत्या और डिप्रेशन के मामले अधिक होते हैं। इस विषय पर कई पुख्ता सबूत भी मौजूद हैं। इसके साथ ही इस बात के भी सबूत मौजूद हैं कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग स्ट्रेस, आघात और सोसायटी के कारण खुद को चोट पहुंचाने जैसे कदम उठाते हैं।
मिथक – अगर आपका कोई दोस्त आपको अपने एलजीबीटीक्यू होने के बारे में बताता है तो इसका मतलब है कि वह आप से प्यार करता/करती है या आपके साथ संभोग करना चाहता/चाहती है।
फैक्ट – जब कोई व्यक्ति या दोस्त आप पर विश्वास करता है तो वह आपके सामने अपने लेस्बियन या गे होने की पहचान के बारे में बता पाता है। वह अपने सेक्शुअल ओरिएंटेशन या जेंडर आइडेंटिटी के बारे में आप से शेयर करना चाहता है ना कि आपके साथ यौन संबंध बनाना। वे आप पर इतना भरोसा करता हैं कि आपको अपनी निजी जिंदगी के बारे में बताते हैं जिससे आपका रिश्ता और मजबूत हो सके और आप उन्हें अच्छे से जान सकें।
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मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के सभी लोग शराब और ड्रग का अत्यधिक सेवन करते हैं।
फैक्ट – यह सच नहीं है, लेकिन सोसायटी में उन्हें जगह न मिलना, स्ट्रेस, डिप्रेशन और बुलिंग के कारण एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग ड्रग्स और शराब का सेवन करना शुरू कर देते हैं। समाज में ड्रग्स और शराब को स्ट्रेस से बचने का जरिया माना जाता है जिसके चलते हर कोई इस स्थिति का सामना करने के लिए नशीले पदार्थों का सहारा लेने लगता है। हेट्रोसेक्शुअल लोगों के मुकाबले एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों में स्ट्रेस की दर अधिक होती है।
मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के सभी लोग अमीर और पढ़े लिखे होते हैं।
फैक्ट – ऐसा नहीं है। आपको एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग किसी भी वर्ग के परिवार में देखने को मिल जाएंगे, फिर चाहे वह अपर क्लास हो, मिडल क्लास या लोअर क्लास। एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग भी हेट्रोसेक्शुअल लोगों की ही तरह हर क्लास से संबंध रखते हैं और किसी भी तरह के बैकग्राउंड से हो सकते हैं। इसके साथ ही ऐसा जरूरी नहीं कि इस कम्युनिटी के लोग पढ़े लिखे होते हैं। एजुकेशन के मामले में भी सभी सामान्य जनसंख्या जितने ही क्वालिफाइड होते हैं।
मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों को वर्कप्लेस पर भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता है।
फैक्ट – यह सच नहीं है क्योंकि एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों के मुताबिक और आंकड़ों के अनुसार वर्कप्लेस पर एलजीबीटीक्यू लोगों को भेदभाव का अधिक सामना करना पड़ता है। इसके अलावा उन्हें भी प्रमोशन, प्रोजेक्ट और लीडरशिप की पोस्ट पाने में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों को हेल्थ और मेंटल हेल्थ की सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं।
फैक्ट – दरअलस ऐसा नहीं है, क्योंकि ऐसे कई हेल्थ प्रोफेशनल हैं जो कि LGBTQ कम्युनिटी की भावनाओं और संवेदनशीलता को नहीं समझ पाते हैं। यही कारण है कि कई बार एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग मेंटल और अन्य हेल्थ संबंधी सुविधाओं के लिए हॉस्पिटल भी नहीं जाते हैं।
एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों को विशेष प्रकार के हेल्थ एक्सपर्ट की जरूरत होती है जो कि खासतौर से इसी विषय को लेकर प्रशिक्षित हों। हालांकि, ऐसे प्रोफेशनल और डॉक्टर्स की कमी के कारण एलजीबीटीक्यू के लोग हेल्थ संबंधी सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं।
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मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग नास्तिक होते हैं।
फैक्ट – इस मिथक में कोई सचाई नहीं है। एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोग नास्तिक और आस्तिक दोनों होते हैं ठीक वैसे ही जैसे हेट्रोसेक्शुअल व्यक्ति होते हैं। ऐसा जरूरी नहीं कि कोई व्यक्ति अगर नास्तिक है तो गे या ट्रांसजेंडर होगा या कोई ट्रांसजेंडर नास्तिक ही होगा।
मिथक – एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों को सेक्स संबंधी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है।
फैक्ट – दरअसल एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों में भी अन्य लोगों की तरह शारीरिक समस्या और मानसिक विकार होना आम है। ऐसा नहीं है कि वह सेक्स संबंधी समस्याओं का शिकार नहीं हो सकते हैं। हालांकि, इस विषय पर किसी भी प्रकार के सबूत मौजूद नहीं हैं क्योंकि विशेष रूप से एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों की सेक्स प्रॉब्लम के लिए कोई डॉक्टर या एक्सपर्ट उपलब्ध नहीं होते हैं। उनका इलाज भी हेट्रोसेक्शुअल लोगों की ही तरह किया जाता है।
एलजीबीटीक्यू में इरेक्टाइल डिसफंक्शन, शीघ्रपतन और अन्य यौन संबंधी समस्या हो सकती हैं।
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मिथक – LGBTQ कम्युनिटी के सभी लोगों को एचआईवी/एड्स होता है।
फैक्ट – यह बिलकुल भी सच नहीं है बल्कि कुछ अध्ययनों में यह पाया गया है कि हेट्रोसेक्सुअल लोगों के मुकाबले एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों में एचआईवी और एड्स कम होता है।
मिथक – हमें पता है कोई व्यक्ति होमोसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर कब होता है और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है।
फैक्ट – LGBTQ कम्युनिटी के लोगों को कम उम्र में ही पता चल जाता है कि वे सेम जेंडर के प्रति आकर्षित हैं या उन्हें लोग दूसरे जेंडर की तरह पहचानते हैं। कुछ मामलों में उन्हें अधिक उम्र में पता चलता है या जब वे अपने जीवन में बहुत आगे बड़ चुके होते हैं। एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी का होने का पता चलने की कोई सही उम्र नहीं होती है।
होमोसेक्शुअल लोगों का लिंग जन्म के समय क्या होता है और किन कारणों से वह आगे चल के प्रभावित होता है। इस विषय पर ऐसे कई अध्ययन और शोध किए जा चुके हैं, लेकिन यह केवल संभावनाओं पर आधारित है। अभी तक ऐसी किसी थ्योरी के बारे में पता नहीं लगाया जा सका है जिससे सेक्शुअल ओरिएंटेशन या जेंडर आइडेंटिटी के कारणों के बारे में पता लगाया जा सके।
हमें उम्मीद है कि अब आपको एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी से जुड़े मिथकों की सच्चाई पता चल गई होगी। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से संपर्क करें।
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