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बायसेक्सुअल के बारे में जाने हर जरूरी बात, यह कैसे हैं गे और लेस्बियन से अलग

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 16/06/2021

    बायसेक्सुअल के बारे में जाने हर जरूरी बात, यह कैसे हैं गे और लेस्बियन से अलग

    कई लोग बायसेक्सुअल शब्द का इस्तेमाल उनके प्रति करते हैं जो पुरुष व महिलाओं को मानसिक व शारीरिक तौर पर पाना चाहते हैं। लेकिन सही मायनों में बायसेक्सुअल शब्द का इस्तेमाल उनके लिए किया जाता है जिनका मानसिक, रोमेंटिक या फिर सेक्सुअल तौर पर झुकाव पुरुष व महिलाओं दोनों ही के प्रति होता है। द सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के रिपोर्ट के अनुसार 1.3 फीसदी महिलाएं और 1.9 फीसदी पुरुषों ने यह कबूला कि वो खुद होमोसेक्सुअल, गे या लेस्बियन हैं, वहीं 5.5 फीसदी महिलाओं और दो फीसदी पुरुषों ने स्वीकार किया कि वो बायसेक्सुअल हैं। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि एलजीबी कम्युनिटी में बायसेक्सुअल ही एकमात्र ऐसे हैं जो संख्या में ज्यादा होने के साथ पुरुषों और महिलाओं के प्रति इनका आकर्षण होता है।

    मौजूदा समय में लाखों लोग ऐसे हैं जो बायसेक्सुअल कैटेगरी में आते हैं। लेकिन वो अपनी सेक्सुअल इच्छाओं को गुप्त रखते हैं, यही वजह है कि बायसेक्सुअल हमारे समाज में ऐसा ग्रुप है जो समाज में मौजूद होने के बावजूद गुप्त होता है और हमें उसके बारे में पता तक नहीं चलता। गे पुरुष व लेसबियन महिलाओं ने सालों का संघर्ष कर आज एकजुट हुए हैं। वहीं उन्होंने खुद का समाज बनाया है, जिसे राजनीतिक तौर पर भी स्वीकारता है। लंबे संघर्ष के बाद ही इन्हें राजनीतिक के साथ सामाजिक स्पोर्ट मिला है।

    क्या है बायसेक्सुएलिटी?

    बायसेक्सुएलिटी शब्द को लेकर काफी भ्रम है। हमारे समाज में कई लोग सौ फीसदी गे या तो लेस्बियन हैं। अन्य शब्दों में कहा जाए तो वो अपने ही लिंग के अनुसार पार्टनर से इमोशनल व मेंटल तौर पर जुड़े हुए हैं। मान लें यदि कोई गे है तो पुरुष साथी के साथ व लेस्बियन है तो महिला साथी के साथ इमोशनल और फिजिकल  तौर पर अट्रैक्ट होता है। वहीं अन्य हेटेरोसेक्सुअल की श्रेणी में वैसे लोग आते हैं जो विपरीत सेक्स यानि पुरुष हैं तो महिला के प्रति और महिला हैं तो पुरुषों के प्रति (opposite sex) उनका अट्रैक्शन  होता है। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो इन बताई गई कैटेगरी में नहीं आते हैं। क्योंकि वैसे व्यक्ति अपने जीवनकाल में अलग-अलग जेंडर के प्रति इमोशनली व सेक्सुअली तौर पर अट्रैक्ट होते हैं। ऐसे ही लोगों को बायसेक्सुअल कहा जाता है। वैसे बायसेक्सुअल लोग खुद को नॉन प्रेफरेंशियल (non-preferential), सेक्सुअली फ्लूइड (sexually fluid), एंबीसेक्सुअल (ambisexual) या फिर क्वीर (queer) जैसे शब्दों से पुकारा जाना पसंद करते हैं। यह भी सही है कि 40 साल से कम उम्र के युवा खुद को बायसेक्सुअल की श्रेणी में आना पसंद नहीं करते, वो इस शब्द को आउटडेटेड मानते हैं। ऐसे में यह कहा जाता है कि बायसेक्सुअल वो व्यक्ति है जो न तो पूरी तरह से स्ट्रेट है और न ही गे है, जिसे पुरुषों व महिलाओं दोनों ही जेंडर में शारिरिक व मानसिक तौर पर दिलचस्पी है।

    महिला-पुरुष दोनों से ही संबंध बनाने वालों को होती है ज्यादा बीमारी

    बायसेक्सुअल लोगों के मामले में जो व्यक्ति दोनों यानि पुरुष व महिला से शारिरिक संबंध बनाते हैं उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानी भी ज्यादा होती है। वहीं वैसे पुरुष जो सिर्फ महिलाओं से, या फिर वैसे पुरुष जो सिर्फ पुरुषों से संबंध बनाते हैं उनकी तुलना में बायसेक्सुअल लोगों को ज्यादा बीमारी होने की संभावनाएं रहती है। इस मामले में एचआईवी फैलने की भी ज्यादा संभावनाएं रहती है।

    कई लेसबियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) लोगों को स्वास्थ्य संबंधी पेशानी झेलनी होती है। यही वजह भी है कि हमारे कम्युनिटी ऑर्गेनाइजर्स के साथ मेडिकल प्रोफेशनल और रिसर्चर्स के द्वारा बायसेक्सुअल लोगों के स्वास्थ्य को लेकर काफी कम कदम उठाए जाते हैं।

    बायसेक्सुअल लोगों के साथ समस्या यह भी है कि खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें कैंसर, मोटापा, सेक्सुअल ट्रांसमिटेड इंफेक्शन (एसटीडी) और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। शोध से यह पता चला है कि हमारे समाज में सिर्फ आधे ही ऐसे लोग हैं जो लेस्बियन, गे और बायसेक्सुअल के रूप में सामने आते हैं। एलजीबीटी कम्युनिटी में सबसे ज्यादा संख्या बायसेक्सुअल लोगों की होती है।

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    किनसी स्केल क्या है

    सेक्स रिसर्चर और पायोनियर अल्फ्रेड किन्से ने ही द किन्से स्केल का इजात किया था। इन्होंने ने ही सेक्सुअल ऑरिएंटेशन को जीरो से सिक्स के क्रम में समझाया था। अपने कॉन्सेप्ट में इन्होंने बताया हेटेरोसेक्सुअल लोग स्केल पर जीरो हैं, वहीं गे व लेस्बियन लोगों को स्केल पर छठवें स्थान पर रखा है। वहीं एक से पांच तक के क्रम में आने वाले हर एक व्यक्ति को बायसेक्सुअल कैटेगरी में रखा गया है। स्केल पर जो एक व दो पर होते हैं वो एक लिंग के साथ या फिर कुछ मामलों में अपने ही लिंग के साथ अट्रैक्शन महसूस कर सकते हैं। वहीं वैसे लोग जो स्केल में तीसरे स्थान पर होते हैं वो दोनों लिंग यानि पुरुष व महिलाओं में दिलचस्पी दिखाते हैं। वहीं किन्से स्केल पर जो चौथे व पांचवें पायदान पर जो लोग होते हैं वो अपने ही लिंग से आने वाले सेक्स पार्टनर का चयन करते हैं, वैसे व्यक्ति पूर्ण रूप से गे या फिर लेस्बियन होते हैं, वहीं कुछ लोगों में हेटेरोसेक्सुअल टेंडेंसी होती है।

    नोट : इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डॉक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।

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    क्या है क्लिन सेक्सुअल ऑरिएंटेशन ग्रिड

    डॉ फ्रिट्ज क्लीन एक साइकोलॉजिस्ट, रिसर्चर और पायोनियरिंग बायोसेक्सुअ राइट एडवोकेट थे, जिन्होंने 1974 में वार्क्लड में बायसेक्शुअल आर्गेनाइजेशन “बायसेक्सुअल फोरम’’ का गठन किया। इन्होंने यह महसूस किया कि किन्से स्केल कई मायनों में सही है बावजूद इसके इसमें कई लिमिटेशन हैं। यही वजह है कि इन्होंने क्लिन सेक्सुअल ऑरिएंटेशन ग्रिड बनाई। इसके जरिए उन्होंने बताया कि किन्से स्केल में जहां सिर्फ सेक्सुअल अट्रैक्शन और सेक्सुअल बिहेवियर पर केंद्रित था वहीं क्लिन ग्रिड सात महत्वपूर्ण फैक्टर्स पर केंद्रित है। उनमें सेक्सुअल अट्रैक्शन, सेक्सुअल बिहेवियर, सेक्सुअल फेंटेसी, इमोशनल प्रिफ्रेंसेस, सोशल प्रिफ्रेंनसेस-लाइफस्टाइल और सेल्फ आइडेंटिफिकेशन पर केंद्रित था।

    मौजूदा समय में जेंडर को लेकर जटिलताएं और ज्यादा आ गई है। वर्तमान में कई लोग ऐसे भी हैं जो पैदा होते समय एक लिंग के होते हैं और जन्म के बाद अपना लिंग परिवर्तन करा लेते हैं। ऐसे में वर्तमान में हेटेरोसेक्सुअल, गे, लेसबियन, बायसेक्सुअल जैसी कई श्रेणियां है, जो इस बात तो गलत व पुरानी साबित करती है कि लिंग सिर्फ दो ही है, जिसमें एक पुरुष व दूसरी महिला होती है। लेकिन सच तो यही है कि आप जिस लिंग में जन्म लेते हैं वहीं विश्वसनीय होता है। मौजूदा समय में कई ट्रांसजेंडर ऐसे हैं जो पुरुष से महिला बने हैं या फिर महिला से पुरुष बने हैं। इन्हें जेंडर क्विर (genderqueer) कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वो न तो पुरुष और न ही महिला के लिंग में फिट हो पाते हैं। ऐसे में सेक्सुअल ऑरिएंटेशन हमेशा सेक्सुअल पार्टनर के लिंग पर निर्भर करता है।

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    बायसेक्सुअल और उसकी अन्य कैटेगरी को जानें

    बायसेक्सुअल को लेकर वर्तमान में कोई भी पर्याप्त परिभाषा नहीं है। इस ग्रुप से आने वाले लोगों में काफी विविधता देखने को मिलती है। बायसेक्सुअल बिहेवियर को बताने के लिए मौजूदा समय में कई थ्योरी हैं, साइकोलॉजिस्ट जेआर लिटिल ने रिसर्च कर करीब 13 प्रकार के बायसेक्सुएलिटी को खोज निकाला, उसमें क्लिन ग्रिड ने सात फैक्टर्स को बताया, जो इस प्रकार हैं।

    • अल्टरनेटिंग बायसेक्सुअल (Alternating bisexuals) :  इस कैटेगरी में आने वाला व्यक्ति पुरुषों के साथ में संबंध बनाता है व रिलेशनशिप में रहता है, वहीं जब यह रिलेशनशिप खत्म होती है तो कई महिलाओं के साथ भी रिलेशनशिप में आ जाते हैं, वहीं कुछ फिर से पुरुषों के साथ रिलेशन बना लेते हैं।
    • सर्कम्टैंशियल बायसेक्सुअल (Circumstantial bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाला व्यक्ति शुरुआत में हेटेरोसेक्सुअल (heterosexual) होता है, लेकिन यदि उसे दूसरे सेक्स पार्टनर न मिले तो उस स्थिति में वो अपने ही लिंग के सेक्स पार्टनर का चयन कर लेता है। ऐसा जेल में, अलग अलग लिंग के स्कूलों में देखने को मिलता है।
    • कानकरेंट रिलेशनशिप बायसेक्सुअल (Concurrent relationship bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाला व्यक्ति शुरुआत में एक ही जेंडर के साथ रिलेशनशिप में होता है, लेकिन उसी समय पर सेकेंडरी रिलेशनशिप के तौर पर दूसरे लिंग के व्यक्ति के साथ रिलेशनशिप में होता है।
    • कंडीशनल बायसेक्सुअल (Conditional bisexuals) : स्ट्रेट, गे या फिर लेसबियन हो वो किसी अन्य जेंडर के व्यक्ति के साथ खास मकसद के लिए रिलेशनशिप बनाते हैं। जैसे युवा स्ट्रेट पुरुष गे प्रॉस्टीट्यूट बनते हैं ताकि वो पैसा कमा सकें। वहीं लेसबियन सिर्फ इसलिए दूसरे लिंग के व्यक्ति (पुरुष) के साथ शादी कर लेती है ताकि परिवार में स्वीकारता बनी रहे और बच्चे हो सकें।
    • इमोशनल बायसेक्सुअल (Emotional bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाले व्यक्ति पुरुष व महिलाओं के साथ पूरी तरह से डूब कर इमोशनली तौर पर प्यार करते हैं। लेकिन जब बात सेक्स की हो तो सिर्फं एक जेंडर के साथ ही सेक्स करते हैं।
    • इंटरग्रेटेड बायसेक्सुअल (Integrated bisexuals) :  एक ही समय पर पुरुष और महिलाओं के साथ रिलेशनशिप में होते हैं
    • एक्सप्लोरेटरी बायसेक्सुअल (Exploratory bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाले स्ट्रेट, गे या फिर लेसबियन सिर्फ दूसरे जेंडर के व्यक्ति के साथ उत्सुकता में आकर सेक्स करते हैं ताकि दूसरे लिंग के व्यक्ति के साथ सेक्स की अनुभूति हासिल कर सकें, इसलिए वो ऐसा करते हैं।
    • हीडोनिस्टिक बायसेक्सुअल (Hedonistic bisexuals) : इस कैटेगरी में स्ट्रेट, गे या फिर लेस्बियन दूसरे जेंडर के साथ सेक्सुअल तौर पर संतुष्टि पाने के लिए सेक्स करते हैं।
    • रीक्रिशनल बायसेक्सुअल (Recreational bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाला व्यक्ति शुरुआत में हेटेरोसेक्सुअल होता है लेकिन समय के साथ वो गे या फिर लेस्बियनव के साथ शारिरिक संबंध बनाता है। ऐसा वो ड्रग्स या फिर शराब का अत्यधिक सेवन करने के कारण करता है।
    • आइसोलेटेड बायसेक्सुअल (Isolated bisexuals) : लगभग सौ फीससी स्ट्रेट, गे या फिर लेस्बियन ऐसे होते हैं जिन्होंने पूर्व में किसी अन्य जेंडर के साथ सेक्सुअल एक्सपीरिएंस किया होता है। वो इसी श्रेणी में आते हैं।
    • लेटेंट बायसेक्सुअल (Latent bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाले व्यक्ति पूर्ण रूप से स्ट्रेट, गे या लेसबियन हो सकता है जो किसी दूसरे जेंडर के व्यक्ति के साथ सेक्स करने की इच्छा जताता है।
    • मॉटिवेशनल बायसेक्सुअल (Motivational bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाली स्ट्रेट महिलाएं दूसरी महिलाओं के साथ सेक्स करती हैं, वो ऐसा पुरुष साथी के कहने पर व उनकी संतुष्टि के लिए करती हैं।
    • ट्रांसीटिशनल बायसेक्सुअल (Transitional bisexuals) : इस कैटेगरी में आने वाले व्यक्ति शुरुआत में बायसेक्सुअल होते हैं जो आगे चलकर स्ट्रेट, गे या लेसबियन बन सकते हैं। वहीं कई मामलों में गे और लेसबियन से हिटोरोसेक्सुअसल भी बन सकते हैं।

    बायसेक्सुअल के पहचान के स्टेजेस

    • द बायसेक्सुअल एक्सपीरिएंस :  लिविंग इन ए डिकोटुमुअस कल्चर और साइकोलॉजिस्ट डॉ मैरी ब्रेडफोर्ट की रिसर्च से यह पता चला है कि चार स्टेजेस के बाद ही बायसेक्सुअल अपनी पहचान को लेकर कंफर्टेबल महसूस करते हैं।

    एक नजर स्टेज पर

    • सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर कंफ्यूजन (Confusion over sexual orientation)
    • बायसेक्सुअल लेबल की पहचान (Discovery of the bisexual label and choosing to identify as bisexual)
    • बायसेक्सुअल पहचान को बनाए रखना (Settling into and maintaining a bisexual identity)
    • ट्रांसफॉर्मिंग एडवर्सिटी

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    लिंग को लेकर हमें अपनी पहचान नहीं छिपानी चाहिए। अगर हम अपनी पहचान छिपाएंगे तो हमें समाज, घर, दोस्तों के पास रहकर भी दूर रहना पड़ेगा। जरूरत हुई तो मौजूदा समय में हमारे पास डॉक्टरों की टीम के साथ काउंसलर्स हैं, उनसे मदद लेनी चाहिए। इसलिए जैसे है वैसे ही खुद को स्वीकारना अच्छा है।

    डिस्क्लेमर

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