मौजूदा दौर में वैसे पदार्थ जो किसी खाद्य पदार्थ में उसकी सेफ्टी, फ्रेशनेस, टेस्ट और टेक्सचर को बढ़ाने के लिए किए जाते हैं उन्हें फूड एडिटिव कहा जाता है। कुछ फूड एडिटिव को लंबे समय तक यूज करने और सेहत पर उसका दुष्प्रभाव न हो इसके लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। उदाहरण के तौर पर नमक को ही ले लीजिए। नमक, मीट में बैकोन या ड्राय फिश, चीनी में मरमालेजड और शराब में सल्फर डायऑक्साइड का इस्तेमाल किया जाना भी फूड एडिटिव कहलाता है।
खाने की सुरक्षा को लेकर अपनाया जाता है यह प्रोसेस
आधुनिकता के इस दौर में समय के गुजरने के साथ कई ऐसे फूड एडिटिव हैं जिनका खोज किया गया। घर पर फूड एडिटिव तैयार करना और बड़े पैमाने पर इसे तैयार करना दोनों ही अलग-अलग चीजें हैं। मौजूदा दौर में इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि फूड एडिटिव से गुजरा कोई भी खाद्य पदार्थ तबतक सुरक्षित और खाने लायक रहे जबतक वो फैक्ट्री से इंडस्ट्रियल किचन और फिर ट्रांसपोटेशन के बाद गोदाम से होते हुए दुकान और लोगों के घरों तक नहीं पहुंच जाता है। इस पूरी प्रक्रिया तक खाना सुरक्षित रहना जरूरी है। ताकि उसके कोई साइड इफेक्ट न हो और वह हेल्दी रहे।
फूड एडिटिव मौजूदा समय की आवश्यकता बनता जा रहा है। इसके जरिए उपभोक्ताओं को गुमराह नहीं किया जाता, बल्कि इसे तैयार करने में तकनीकी मदद ली जाती है। ताकि किसी भी खाद्य पदार्थ की न्यूट्रीशन वैल्यू बनी रहे, वहीं उसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके और सेवन किया जा सके।
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फूड एडिटिव से जुड़े रोचक तथ्य
– फूड एडिटिव उन तत्वों को कहा जाता है जिसे किसी खाद्य पदार्थ में इसलिए डाला जाता है ताकि उसकी सेफ्टी में इजाफा करने के साथ, फ्रेशनेस, टेस्ट, टेक्सचर और अपीयरेंस को बढ़ाया जा सके
– जरूरी है कि फूड एडिटिव को उसके इस्तेमाल के पहले इंसानों के शरीर पर उसके हार्मफुल इफेक्ट की पहचान की जाए
– फूड एडिटिव की सेफ्टी को लेकर अंतरराष्ट्रीय तौर पर एफएओ (Food and Agriculture Organization of the United Nations) और डब्ल्यूएचओ की एक्सपर्ट कमेटी (जेईसीएफए) जिम्मेदार है
– अंतरराष्ट्रीय तौर पर केवल उन्हीं फूड एडिटिव का निर्यात या आयात किया जाता है जो जेईसीएफए द्वारा मान्यता प्राप्त होती है
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12 फूड एडिटिव जिनका सेवन लेबल की जांच कर करना चाहिए
किसी भी प्रकार के खाने पीने चीजे को किचन में ले जाने के पूर्व उसके लेबल की जांच की जानी चाहिए। वहीं उसमें फूड एडिटिव है या नहीं उसका स्वास्थ्य पर कैसा असर पड़ेगा इसकी जांच करने के बाद ही उसका सेवन करना चाहिए। यह एक जागरूक आदमी की पहचान है।
– मोनोसोडियम ग्लूटामेट (Monosodium glutamate)
– आर्टिफिशियल फूड कलरिंग
– सोडियम नाइट्रेट
– ग्लार गम (Guar gum)
– हाई फ्रूटोस कॉर्न सिरप
– आर्टिफिशियल स्वीटनर्स (Artificial sweeteners)
– केरागिनैन (carrageenan)
– सोडियम बेनजोएट (Sodium benzoate)
– ट्रांस फैट
– जैनथैन गम (Xanthan gum)
– आर्टिफिशयल फ्लेवरिंग
– यीस्ट एक्सट्रैक्ट (Yeast extract)
प्लांट, जानवर, मिनरल से प्राप्त किया जाता है फूड एडिटिव
बता दें कि प्लांट, एनिमल, मिनरल से फूड एडिटिव निकाला जाता है या फिर यह सेंथेटिक भी हो सकते हैं। इसमें तकनीकी मदद से खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक टिकाने के लिए तैयार किया जाता है। जाति लोग उसका सेवन कर सकें। वर्तमान में हजारों प्रकार के खाद्य पदार्थ हैं जिन्हेंं फूड एडिटिव कहा जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने एफएओ के साथ मिलकर फूड एडिटिव को तीन खास श्रेणियों में वर्गीकृत (बांटा) है।
पहला है फ्लेवरिंग एजेंट
फ्लेवरिंग एजेंट का मतलब यह है कि खाद्य पदार्थ में ऐसे तत्व डाले जाते हैं जिसके कारण उसका स्वाद और एरोमा में इजाफा होता है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर खाद्य पदार्थ में किया जाता है। वर्तमान में सौ से भी ज्यादा खाद्य पदार्थ हैं जिनमें फ्लेवरिंग एजेंट का इस्तेमाल किया जाता है। हलवाई की दुकान से लेकर सॉफ्ट ड्रिंक, दाल, केक, दही में इसका इस्तेमाल किया जाता है। प्राकृतिक फ्लेवरिंग एजेंट की बात करें तो उसमें नट, फ्रूट्स के साथ मसालों के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है। सब्जियों से लेकर शराब में इसका इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि उसमें नेचुरल फ्लेवर आए।
एंजाइम्स प्रिपरेशन
फूड एडिटिव की श्रेणी में एंजाइम्स प्रिपरेशन उसे कहा जाता है जिसके तहत खाद्य पदार्थ का सीधा सेवन नहीं किया जा सकता है। एंजाइम्स एक प्रकार का प्राकृतिक प्रोटीन है, जो बायोकैमिकल रिएक्शन के जरिए बड़े मॉलिकूल को तोड़ छोटे आकार में परिवर्तित करता है। कैमिकल बेस्ड बायोटेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की बजाय प्लांट या पशु या फिर छोटे माइक्रो ऑर्गेनिज्म जैसे बैक्टीरिया का एंजाइम्स प्रिपरेशन के लिए वैकल्पिक इस्तेमाल किया जा सकता है। ज्यादातर इसका इस्तेमाल बेकिंग करने के लिए किया जाता है, ताकि खाद्य पदार्थ को फूलाया जा सके। फ्रूट जूस तैयार करने के लिए (ताकि इसकी पैदावार बढ़ाई जा सके), शराब में फरमेंटेशन को बढ़ाने के साथ चीज की मैन्युफेक्चरिंग में इसका इस्तेमाल किया जाता है (दही को अच्छे से तैयार करने के लिए)।
अन्य फूड एडिटिव
अन्य प्रकार की फूड एडिटिव का इस्तेमाल कई कारणों के लिए किया जाता है, जैसे लंबे समय तक बचा पाने के लिए , कलरिंग के लिए और फिर और मीठा बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह समय एड किया जाता है जब खाने को तैयार किया जाए, पैक किया जाए, एक से दूसरी जगह पर ले जाया जाए, इन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद वह खुद खाद्य पदार्थ का एक हिस्सा बन जाता है।
हवा, बैक्टीरिया, यीस्ट फूड को समय से पहले खराब कर सकते हैं। यदि कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थ के प्रवेंटेशन को लेकर कदम न उठाया जाए या फिर या उसकी क्वालिटी को न सुधारा जाए तो उस खाद्य पदार्थ का सेवन करने से आप जहां बीमार पड़ सकते हैं वहीं जान जाने का खतरा भी बना रहता है।
कलरिंग का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि फूड एडिटिव प्रक्रिया को अपनाने से खाद्य पदार्थ का नेचुरल कलर चला जाता है, उसे उसके वास्तविक रूप में लाने के साथ और अट्रैक्टिव बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
चीनी के वैकल्पिक तौर पर नॉन शूगर स्वीटर्नस (मिठास) का काफी कम ही इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके कारण खाद्य पदार्थ में किसी प्रकार की कैलोरी में इजाफा नहीं होता है। वहीं सेवन करने पर बुखार भी हो सकता है।
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आखिर क्यों फूड में कलर इंग्रीडिएंट्स डाला जाता है
– फूड की सेफ्टी और फ्रेशनेस को बढ़ाने के लिए
– फूड की न्यूट्रीशनल वैल्यू को बढ़ाने के लिए
– फूड के टेस्ट, टैक्सचर और अच्छा दिखने के लिए
कहीं फूड एडिटिव से स्वास्थ्य को कोई खतरा तो नहीं
फूड एडिटिव को लेकर मानव शरीर पर होने वाले नुकसान को लेकर डब्ल्यूएचओ और फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ यूनाइटेड नेशन (एफएओ) (Food and Agriculture Organization of the United Nations) जिम्मेदार है। इस अंतरराष्ट्रीय साइंटिफिक ग्रुप के एक्सपर्ट बताते हैं कि स्वतंत्र रूप से फूड एडक्टिव के रिस्क का मूल्यांकन किया जाता है।
वहीं सिर्फ उन्हीं फूड एडिटिव का सेवन किया जा सकता है जो जेईसीएफए के सेफ्टी मानकों पर खरा उतरा हो और जिसके सेवन से किसी प्रकार का कोई खतरा न हो। चाहे वो फूड एडिटिव प्राकृतिक तौर पर आया हो या फिर सेंथेटिक रूप से तैयार किया हो, सब मान्यता पर खरे उतरने पर ही इस्तेमाल योग है। नेशनल ऑथोरिटी के साथ जेईसीएफए जैसी संस्थाओं के द्वारा फूड एडिटिव से जुड़े खाद्य पदार्थ के सेवन को लेकर मान्यता देने के बाद ही उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
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फूड के लेबल की करें जांच
बता दें कि नीचे दिए गए तमाम चीजें अप्रूवड आर्टिफिशयल कलर हैं, वहीं यह फूड प्रोडक्ट पर अंकित होती हैं, जैसे
– एफडी व सी नंबर 1 (ब्रिलिएंट ब्लू एफसीएफ)
– एफडी व सी नंबर 2 (इंडीगोटीन-indigotine)
– एफडी व सी नंबर 3 (फास्ट ग्रीन एफसीएफ)
– एफडी व सी रेड नंबर 40 (एलोरा रेड एसी)
– एफडी व सी रेड नंबर 3 (एरथ्रोसीन-erythrosine)
– एफडी व सी येल्लो नंबर 5 (टारट्राजीन-tartrazine)
– एफडी व सी येल्लो नंबर 6 (सनसे येल्लो)
– ऑरेंज बी (हॉट डॉग और सॉसेजेस के साथ इस्तेमाल पर प्रतिबंध)
फूड एडिटिव का किस प्रकार किया जाता है मूल्यांकन
जेईसीएफए की ओर से साइंटिफिक रिव्यू के साथ बायोकैमिकल, टॉक्सीकोलोजिकल और अन्य प्रकार के डाला का इस्तेमाल कर शोध करने के बाद मूल्यांकन किया जाता है। इंसानों पर इसका किस प्रकार असर होगा इसको जानने के लिए शोधकर्ता ने शुरुआती टेस्ट जानवरों पर किए। जेईसीएफए की ओर से एक्यूट, शॉर्ट टर्म, लांग टर्म स्टडी कर फूड एडिटिव का टॉक्सीलॉजिकल टेस्ट भी किया जाता है। इससे यह जाना जाता है कि कहीं इसके डिस्ट्रीब्यूशन, सेवन करने से कहीं कोई दुष्प्रभाव तो नहीं पड़ता।
एक्सेक्टिबल डेली इंटेक (एडीआई) की जांच करने के बाद ही यह तय किया जाता है कि फूड एडिटिव खाने योग्य है भी या नहीं। एडीआई इस बात को प्रमाणित करता है कि फूड एडिटिव से जुड़ा खाद्य पदार्थ या पेय खाने योग्य है भी या नहीं। वहीं स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके दुष्परिणामों के बारे में जाना जाता है।
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फूड एडिटिव के सेफ्टी से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मानक
जेईसीएफए की ओर से उठाया जाने वाला सेफ्टी मेजर डब्ल्यूएचओ और एफएओ के ज्वाइंट इंटरगवर्मेंटल फूड स्टैंडर्ड-सेटिंग बॉडी के अधीन आता है। इसकी स्थापना इसलिए की गई ताकि फूड एडिटिव से जुड़े खाद्य पदार्थ और ड्रिंक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा सके। कंज्यूमर प्रोटेक्शन को लेकर यह नेशनल स्टैंडर्ड के अंदर आता है, वहीं फूड अंतरराष्ट्रीय बाजार के व्यापार को आसान बनाता है। इस प्रक्रिया के कारण ग्राहक संतुष्ट हो जाता है कि फूड एडिटिव खाने योग्य हैं और उसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। वहीं उनको उससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रोडक्ट कहां का है। ग्राहक खाद्य पदार्थ की सेफ्टी और क्वालिटी को लेकर संतुष्ट हो जाते हैं।
नेशनल फूड रेगुलेशन के अंदर कोडेक्स जेनरल स्टैंडर्ड फॉर फूड एडक्टिव की स्थापना इसलिए की गई ताकि जेईसीएफए फूड एडिटिव के सेफ्टी की कई लेवल पर जांच करें। वहीं प्रमाणित करें कि यह ग्राहकों के खाने योग्य है या नहीं।
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कैसे पता करें कि मेरा खाना फूड एडिटिव है या नहीं
कोडेक्स एलीमिनेटेरियस कमीशन (Codex Alimentarius Commission) की स्थापना इसलिए भी की गई ताकि फूड लेबलिंग का स्टैंडर्ड तय करने के लिए गाइडलाइन का पालन हो रहा है या नहीं इसकी जांच की जाए। दुनिया के ज्यादातर देशों में इन स्टैंडर्ड का पालन होता है। वहीं फूड मैन्युफैक्चर की जिम्मेदारी होती है कि फूड एडिटिव से जुड़े प्रोडक्ट में तमाम जानकारी उसके लेबल पर दें। यूरोपियन यूनियन में उदाहरण के तौर पर लेजीसलेशन गवर्निंग लेबलिंग ऑफ फूड एडक्टिव है जो प्रोडक्ट पर ई नंबर अंकित करती है। ऐसे में वैसे लोग जिन्हें एलर्जी है वो फूड एडिटिव के लेबल को देख उसका सेवन करना है या नहीं इसपर निर्णय लेते हैं।
डब्ल्यूएचओ नेशनल अथॉरिटी को प्रोत्साहित करती है कि वो फूड एडिटिव को लेकर अपने देशों में कड़ी निगरानी रखें, परमिट इशू करे और कंडीशन और बाध्यताएं लगाए। वहीं नेशनल अथॉरिटी फूड बिजनेस पर कड़ी नजर रखने के साथ फूड की सेफ्टी को लेकर कानून भी बनाए। ताकि यदि कोई उसका उल्लंघन करें तो उसपर कड़ी कार्रवाई की जा सके।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।
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