– आर्टिफिशियल स्वीटनर्स (Artificial sweeteners)
– केरागिनैन (carrageenan)
– सोडियम बेनजोएट (Sodium benzoate)
– ट्रांस फैट
– जैनथैन गम (Xanthan gum)
– आर्टिफिशयल फ्लेवरिंग
– यीस्ट एक्सट्रैक्ट (Yeast extract)
प्लांट, जानवर, मिनरल से प्राप्त किया जाता है फूड एडिटिव
बता दें कि प्लांट, एनिमल, मिनरल से फूड एडिटिव निकाला जाता है या फिर यह सेंथेटिक भी हो सकते हैं। इसमें तकनीकी मदद से खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक टिकाने के लिए तैयार किया जाता है। जाति लोग उसका सेवन कर सकें। वर्तमान में हजारों प्रकार के खाद्य पदार्थ हैं जिन्हेंं फूड एडिटिव कहा जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने एफएओ के साथ मिलकर फूड एडिटिव को तीन खास श्रेणियों में वर्गीकृत (बांटा) है।
पहला है फ्लेवरिंग एजेंट
फ्लेवरिंग एजेंट का मतलब यह है कि खाद्य पदार्थ में ऐसे तत्व डाले जाते हैं जिसके कारण उसका स्वाद और एरोमा में इजाफा होता है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर खाद्य पदार्थ में किया जाता है। वर्तमान में सौ से भी ज्यादा खाद्य पदार्थ हैं जिनमें फ्लेवरिंग एजेंट का इस्तेमाल किया जाता है। हलवाई की दुकान से लेकर सॉफ्ट ड्रिंक, दाल, केक, दही में इसका इस्तेमाल किया जाता है। प्राकृतिक फ्लेवरिंग एजेंट की बात करें तो उसमें नट, फ्रूट्स के साथ मसालों के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है। सब्जियों से लेकर शराब में इसका इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि उसमें नेचुरल फ्लेवर आए।
एंजाइम्स प्रिपरेशन
फूड एडिटिव की श्रेणी में एंजाइम्स प्रिपरेशन उसे कहा जाता है जिसके तहत खाद्य पदार्थ का सीधा सेवन नहीं किया जा सकता है। एंजाइम्स एक प्रकार का प्राकृतिक प्रोटीन है, जो बायोकैमिकल रिएक्शन के जरिए बड़े मॉलिकूल को तोड़ छोटे आकार में परिवर्तित करता है। कैमिकल बेस्ड बायोटेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की बजाय प्लांट या पशु या फिर छोटे माइक्रो ऑर्गेनिज्म जैसे बैक्टीरिया का एंजाइम्स प्रिपरेशन के लिए वैकल्पिक इस्तेमाल किया जा सकता है। ज्यादातर इसका इस्तेमाल बेकिंग करने के लिए किया जाता है, ताकि खाद्य पदार्थ को फूलाया जा सके। फ्रूट जूस तैयार करने के लिए (ताकि इसकी पैदावार बढ़ाई जा सके), शराब में फरमेंटेशन को बढ़ाने के साथ चीज की मैन्युफेक्चरिंग में इसका इस्तेमाल किया जाता है (दही को अच्छे से तैयार करने के लिए)।
अन्य फूड एडिटिव
अन्य प्रकार की फूड एडिटिव का इस्तेमाल कई कारणों के लिए किया जाता है, जैसे लंबे समय तक बचा पाने के लिए , कलरिंग के लिए और फिर और मीठा बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह समय एड किया जाता है जब खाने को तैयार किया जाए, पैक किया जाए, एक से दूसरी जगह पर ले जाया जाए, इन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद वह खुद खाद्य पदार्थ का एक हिस्सा बन जाता है।
हवा, बैक्टीरिया, यीस्ट फूड को समय से पहले खराब कर सकते हैं। यदि कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थ के प्रवेंटेशन को लेकर कदम न उठाया जाए या फिर या उसकी क्वालिटी को न सुधारा जाए तो उस खाद्य पदार्थ का सेवन करने से आप जहां बीमार पड़ सकते हैं वहीं जान जाने का खतरा भी बना रहता है।
कलरिंग का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि फूड एडिटिव प्रक्रिया को अपनाने से खाद्य पदार्थ का नेचुरल कलर चला जाता है, उसे उसके वास्तविक रूप में लाने के साथ और अट्रैक्टिव बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
चीनी के वैकल्पिक तौर पर नॉन शूगर स्वीटर्नस (मिठास) का काफी कम ही इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके कारण खाद्य पदार्थ में किसी प्रकार की कैलोरी में इजाफा नहीं होता है। वहीं सेवन करने पर बुखार भी हो सकता है।
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