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बार-बार दुखी होना आखिर किस हद तक सही है, जानें इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/11/2020

    बार-बार दुखी होना आखिर किस हद तक सही है, जानें इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव

    दुखी होना या सुखी होना, ये दोनों फीलिंग हर इंसान के जीवन में आती हैं। दुख और सुख पल भर में इंसान के अंदर बदलने वाले इमोशन होते हैं। हो सकता है कि आप दुखी हों और कुछ देर में ये आर्टिकल पढ़ कर खुश हो जाएं। ये भी हो सकता है कि आज आप बारिश की वजह से खुश थे, लेकिन जरूरी काम बारिश की वजह से बिगड़ गया और आप दुखी हो गए।

    कुछ बातें हमे खुशी देती हैं, वहीं कुछ बातों की वजह से हमे दुख महसूस होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुखी होना हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालता है?

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    दुखी होना आखिर क्या है(Meaning of Feeling sad)?

    बहुत कम ही लोग होते हैं जो ये कहें कि आज मैं पूरे दिन खुश रहा, या फिर आज पूरे दिन मुझे दुखी रहना पड़ा। कई बार ऐसा होता भी है पर बहुत कम। ये जरूरी नहीं है कि दुख का मतलब संकटों का पहाड़ ही टूटना होता है। दुख को कई तरह से परिभाषित किया जा सकता है।

    इतना समझ लीजिए कि मन का न हुआ तो भी इंसान दुखी हो जाता है। बाकी वैलेड रीजन तो बहुत सारे होते हैं। दुख को आप किस तरह से खुद के लिए परिभाषित करेंगे, ये आपकी कल्पना मात्र हो सकती है। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए क्या होता है दुख और क्या ये वाकई हम सबके लिए नुकसानदायक होता है?

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    दुखी होने के कारण

    जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जिसके कारण दुखी का एहसास होता है। दुखी होने के कारण घर-परिवार और बाहर से भी जुड़े हो सकते हैं। अक्सर दुख के बारे में ये बात कही जाती है कि जिन लोगों से ज्यादा प्यार किया जाता है, वही दुख देते हैं। आप भी जानिए कि आखिर किन कारणों से दुख का सामना करना पड़ सकता है।

    • घर में परेशानी जैसे कि पारिवारिक झगड़े या घरेलू हिंसा के कारण दुखी होना
    • स्कूल, घर या फिर कार्यालय में विवाद के चलते दुखी होना। स्कूल में किसी कारणवश बच्चे का दुखी होना।
    • अपने किसी चाहने वाले से या फिर मित्र से दूर होने का दुख।
    • बीमार होना या किसी बीमार व्यक्ति की देखभाल करने के दौरान दुख का उत्पन्न होना।
    • शरीर में कुछ केमिकल चेंजेस की वजह से या फिर दवाओं के अधिक सेवन के कारण दुख होना।
    • अपने विचारों में परिवर्तन महसूस करके दुखी होना। अपने आसपास के हालात को देखकर दुखी होना।
    • सकारात्मक रवैया रखने पर भी इच्छानुसार कार्य न होने पर मन का दुखी होना।

    दुख किसी भी कारण से हो सकता है। अगर मन दुखी है तो पहले उसका कारण जानने का प्रयास करें। फिर उसे हल करने का प्रयास करें। आप चाहें तो ऐसे सोर्स की हेल्प भी ले सकते हैं, जिससे आपका दुख दूर हो सकता हो। आप चाहें तो परिवार के सदस्यों या फिर अपने करीबी दोस्त की मदद ले सकते हैं।

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    दुख के दौरान क्या होता है महसूस ?

    जब हम उदास होते हैं तो विभिन्न शब्दों का प्रयोग करते हैं। पीड़ा, टूटे हुए दिल के कारण उदासी छाना, चोट, आपत्ति, निराशा, गृह कलेश, संकट के साथ ही और भी शब्द हैं जो दुख को प्रकट करते हैं। ये सभी निगेटिव सिचुएशन की ओर इशारा करते हैं।

    दुख भी एक भावना का परिणाम मात्र है। क्रोध, तनाव, अपराधबोध, चिंता, निराशा कभी-कभी इतनी मजबूत होती हैं कि इंसान को एहसास ही नहीं हो पाता है कि वो दुखी है।

    दुख महसूस करने पर क्या कोई लक्षण भी महसूस होते हैं, जैसे सिरदर्द, पेट दर्द या बदन दर्द। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा तो कुछ नहीं होता है। दुख में आंसू निकल सकते हैं। क्रोध भी आ सकता है और निराशा भी हो सकती है।

    दुखी होना और डिप्रेस होने में क्या है अंतर ?

    अगर आप दुखी हैं तो ये जरूरी नहीं है कि आपको डिप्रेशन भी होगा। दुखी होना और डिप्रेशन का शिकार होना दोनों ही अलग बातें हैं। अगर आपका मूड आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में दखल देना शुरू कर दे और आपके काम करने का अंदाज भी बदल जाए तो आप डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं।

    दुखी होने या फिर डिप्रेशन के शिकार होने में बस इतना ही फर्क है कि व्यक्ति अपने दुख को कितना लंबा जी जाता है। दुख का अंत न होने पर व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। अगर आपका मूड हाल ही में हुए ब्रेकअप से जुड़ा हुआ है तो आप दुखी हो सकते हैं। अगर आपका ब्रेकअप महीनों पहले हुआ है और आपका मूड अब भी नहीं बदला है तो आप डिप्रेस हो चुके हैं।

    आपको दुख और डिप्रेशन के बीच के अंतर को समझना बहुत जरूरी है। डिप्रेशन कई बार अन्य बीमारियों को जन्म देने का कारण भी बन सकता है। उचित रहेगा कि आप सबसे पहले अपनी समस्या को पहचानें और फिर उसको अपने ढंग से सुलझाने की कोशिश करें।

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    क्या होते हैं डिप्रेशन के लक्षण

    जब आप दुखी होते हैं तो थोड़े समय के लिए या फिर अधिक समय के लिए घबराहट महसूस हो सकती है। लेकिन आपके पास अगर कुछ ऐसे पल आ गए हैं जिनमें खुशी हो या फिर उत्सुकता हो तो आप दुख को भूल जाते हैं। उदासी से अवसाद यानी डिप्रेशन अलग होता है।

    आपकी जो भावनाएं हैं, वे आपके जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करेंगी। अब तक आप जिन चीजों को देखकर आनंदित हो जाते थे, हो सकता है कि अब आपको उस चीज को देखकर कोई फर्क ही न पड़ता हो। डिप्रेशन में इंसान एक ही चीज को याद करके परेशान होता रहता है।

    डिप्रेशन के लक्षणों में शामिल हैं –

    • हमेशा दुखी रहना
    • चिड़चिड़ापन
    • थकान
    • सोने या खाने के पैटर्न में बदलाव आना
    • किसी भी काम पर ध्यान न दे पाना
    • उन चीजों के लिए रुचि और उत्साह में कमी आना, जो पहले खुशी देती थीं
    • गहरी अपराध की भावना महसूस करना
    • शारीरिक लक्षण, जैसे सिरदर्द या शरीर में दर्द होता है जिसका कोई स्पष्ट कारण नहीं होता है।
    • व्यर्थ की भावनाएं मन में आना
    • मृत्यु के बारे में लगातार विचार करना
    • आत्महत्या की कोशिश करना

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    उदासी के दौरान क्या होता है?

    • उदासी कुछ समय के लिए होती है
    • उदासी स्थिर नहीं होती है
    • उदासी आमतौर पर चिंता का कारण नहीं होती है
    • उदासी समय के साथ कम होती जाती है
    • हंसी और किसी काम की उत्सुकता उदासी को कम कर देते हैं
    • उदासी के दौरान नकारात्मक विचार मन में आ सकते हैं, लेकिन आत्मघाती विचार मन में नहीं आते हैं।

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    डिप्रेशन के रिस्क फैक्टर

    दुख हो या फिर डिप्रेशन, ये किसी भी व्यक्ति, वर्ग को प्रभावित कर सकते हैं। डिप्रेशन यानी अवसाद के रिस्क फैक्टर भी होते हैं। लेकिन ये भी सही नहीं है कि एक या फिर दो लक्षण दिखने पर आप उसको डिप्रेशन मान लें।

  • अर्ली चाइल्डहुड या टीनएज ट्रॉमा
  • किसी भी प्रिय की मृत्यु हो जाने पर उस दर्द से बाहर न निकल पाना। ऐसा अक्सर तब होता है जब बच्चे या फिर जीवनसाथी की मौत हो जाए। इस स्थिति में दुख चरम पर होता है।
  • लो सेल्फ एस्टीम फील करना
  • अगर परिवार में किसी सदस्य को डिप्रेशन की बीमारी है तो आपमें भी इसके बढ़ने के आसार हो सकते हैं।
  • डिप्रेशन के कारण शराब या अन्य नशे की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति
  • किसी बीमारी के कारण किसी अंग का काम न कर पाना
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    इन बातों को रखें ध्यान

    • सभी को कभी न कभी दुख होता है।
    • आप अपनी उदासी को मैनेज करके इससे छुटकारा पा सकते हैं।
    • उदास महसूस करने का मतलब यह नहीं है कि आप डिप्रेशन में चले जाएंगें।
    • यदि आप दो सप्ताह से अधिक समय से लगातार दुखी महसूस कर रहे हैं या आपने अपना अधिकांश समय यूं ही बिता दिया है तो आपको सहायता की जरूरत है। बेहतर होगा कि किसी जानकार की मदद लें।

    किसी के दुख को भी करें कम

    • शायद आप किसी और को जानते हैं जो दुखी महसूस कर रहा है। अगर आप दूसरे व्यक्ति के दुखों को दूर करना सीख जाएंगे तो अपना दुख आपको छोटा लगने लगेगा।
    • अगर कोई व्यक्ति दुखी है तो उससे पूछें कि क्या वो ठीक हैं। उनकी कुछ बातों को सुनकर ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वो उदास हैं भी या नहीं।
    • व्यक्ति की बातें सुनने के बाद उसे जज न करें। पहले इत्मिनान से उसकी बातें सुन लें।
    • अगर वह व्यक्ति किसी भी प्रकार की मदद नहीं लेना चाहता है, या फिर डॉक्टर से भी नहीं मिलना चाहता है तो आप उसे समझाने का काम कर सकते हैं। उस व्यक्ति को समझाएं कि उदासी कुछ समय का इमोशन होता है और बहुत ही जल्द वो इस स्थिति से बाहर आ जाएंगें।

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    क्या दुखी होना सही है ?

    अमेरिका में दुखी रहने को लेकर एक स्टडी की गई और सामने आया कि जो लोग अपने इमोशन को जीते हैं और उन्हें खुलकर बताते भी हैं, उनके स्वास्थ्य के परिणाम बेहतर आते हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के मनोवैज्ञानिकों ने रिसर्च में 1,300 एडल्ट्स का परीक्षण किया और नकारात्मक भावनाओं के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को भी देखा।

    जिन लोगों ने अपनी भावनाएं यानी अपने दुख को लोगों के बीच खुलकर बताया था, उन लोगों को आने वाले समय में गंभीर बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा।

    जबकि जिन लोगों ने अपनी समस्याओं और दुख के बारे में बातें छिपाई थीं, उन्हें आगे चलकर डिप्रेशन की समस्या का शिकार होना पड़ा था।

    उदासी को मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है जबकि डिप्रेशन मेंटल हेल्थ से जुड़ा हुआ मामला है। अगर कोई व्यक्ति उदास है तो कुछ पल के बाद उसका मूड अच्छा भी हो जाएगा जबकि डिप्रेशन में स्थितियां बिगड़ जाती हैं।

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    क्या दुखी रहना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर डालता है बुरा प्रभाव ?

    दुखी रहने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है और बहुत सी बीमारियां घर कर लेती हैं और हम मानसिक तनाव से भी ग्रस्त हो सकते हैं।

    यदि आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में दुखी रहने की आदत डाल लेते हैं तो समझ जाएं कि आप जीवन में कुछ न करने के मार्ग पर हैं और आपका जीना व्यर्थ हो सकता है।

    यदि आप दुखी होते हैं तो ऐसे में न तो आपका कुछ खाने का मन होता है न ही इतनी क्षमता होती है कि आप अपने कार्य को सुचारु रूप से कर सकें।

    महिलाएं अधिक हैं तनाव की शिकार

    तनाव पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। बदलते सामाजिक परिवेश में महिलाएं बड़े पैमाने पर तनाव की शिकार हो रही हैं। इनमें जॉब करने वाली महिलाओं की तादाद सबसे अधिक है। जहां घर पर रहने वाली महिलाओं को घर के माहौल से तनाव होता है, वहीं जॉब करने वाली महिलाएं घरेलू व बाहरी दोनों कारणों से तनाव की शिकार हो रही हैं।

    महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत सहनशील होती हैं पर आज के युग में इतनी जिम्मेदारियों के तले दबकर रह गई हैं जहां उन्हें खुद के लिए न तो वक्त मिलता है और न ही खुश रहने की कोई चाह होती है। घर और परिवार को खुश रखने के लिए वह खुद की खुशी का कोई ख्याल नहीं रख पातीं जिससे उनकी सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

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    ऐसे करें बचाव

    अगर आपको उदासी है तो अपने प्रियजनों के बीच खुलकर अपनी बात रखें। हो सकता है कि कुछ दिन बाद अच्छा महसूस होने लगे लेकिन आप किसी दुख को मन में ही दबाए रखेंगे तो ये डिप्रेशन का कारण बन सकता है।

    हमारी ज्यादातर समस्याओं का इलाज परिवार के सदस्यों के पास ही होता है। अगर आप परिवार के सदस्यों पर भरोसा करते हैं तो उनसे अपना दुख जरूर बांटें। दुख और सुख कुछ समय के मेहमान होते हैं, उन्हें लेकर ज्यादा विचार या फिर नकारात्मक विचारों को मन में न लाएं। अगर फिर भी अपकी समस्या का समाधान न निकल रहा हो तो एक बार डॉक्टर से जरूर संपर्क करें।

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    Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/11/2020

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