जितना लंबा हम जीते हैं उतनी ही आशंका होती है कि हमारे साथ कोई दुर्घटना घट सकती है। इन्ही दुर्घटनाओं के कारण ही आप ट्रॉमा के शिकार होते हैें। ट्रॉमा (Trauma) एक चिंताजनक या परेशान करने वाली घटना की प्रतिक्रिया है, जो शख्स को लंबे समय तक परेशान कर सकती है। ट्रॉमा एक बार की घटना या घटनाओं की एक श्रृंखला हो सकता है। वहीं किसी समुदाय या देश को प्रभावित करने वाले ट्रॉमा को कलेक्टिव ट्रॉमा (Collective Trauma) कहा जाता है।
ट्रॉमा व्यक्ति के दिमाग में एक झटके की तरह काम करता है और पूरे सिस्टम को बदल देता है। इसमें शामिल है:
- कॉग्निटिव (Cognitive): सोचने की शक्ति और सही फैसला लेने के निर्णयों को ट्रॉमा प्रभावित करता है
- भावनात्मक (Emotional): ट्रॉमा की वजह से शर्म, अपराध, भय, क्रोध और दर्द की भावनाओं का बार-बार दिमाग में आते हैं
- शारीरिक (Physical): यह मांसपेशियों, जोड़ों, डाइजेशन और मेटाबॉलिज्म, तापमान, नींद, इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है
- सामाजिक (Social): यह ट्रॉमा जीवनसाथी, परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों और अजनबियों के साथ संबंधों को प्रभावित करता है
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रेप ट्रॉमा (Rape Trauma)
यौन हिंसा के संपर्क में आने वाले लोग अक्सर ऐसा महसूस करते हैं कि उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया है और वे कभी भी किसी दूसरी परेशानी का सामना नहीं कर पाएंगे। उनकी सोच इस तरह से प्रभावित हो जाती है कि उन्हें लगता है कि वह फिर कभी अपने जीवन में किसी पर भरोसा नहीं कर पाएंगे। खासकर तब जब उनकी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से होती है, जिसके हाव-भाव उस इंसान से मिलते हों, जिसने उनके साथ गलत व्यवहार किया हो। यौन हिंसा के बारे में इतनी सारी अफवाहें सुनने के बाद रेप विक्टिम अक्सर अपने अनुभव को दूसरों के साथ शेयर करने में डरते हैं। यहां तक कि वे जिनके करीब हैं उनसे भी बात करने कतराते हैं। उन्हे ये डर होता है कि उन्हें दोषी ठहराया जाएगा या लोग उन पर विश्वास नहीं करेंगे।
एसिड अटैक ट्रॉमा (Acid Attack Trauma)
भारत में एसिड अटैक की घटनाओं के आंकड़ें डराने वाले हैं। एसिड अटैक से गुजरने वाले लोग अलग तरह का मेंटल ट्रॉमा झेलते हैं। यह ट्रामा व्यक्ति को ना केवल शारिरिक रुप से कमजोर करता है बल्कि मानसिक रूप से कमजोर करता है। इस ट्रॉमा को झेल रहे लोग सामाजिक अलगाव का भी सामना करते हैं। वे सामान्य जीवन जीने में असमर्थ होने लगते हैं, एसिड अटैक अकसर लोगों की आंख की रोशनी चली जाती है। साथ ही चेहरा भी बुरी तरह झुलस जाता है, जिससे उन्हें पहचानना भी मुश्किल हो जाता है। एसिड अटैक विक्टिम के लिए यह किसी से उसकी पहचान छीन लेना जैसा होता है।
हर साल एसिड अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। औपचारिक रूप से रिपोर्ट किए गए मामले 2012 से 2015 के बीच काफी तेजी से बढ़ें। जबकि यह माना जाता है कि कई मामले ऐसे होते हैं, जिन्हें रिपोर्ट नहीं किया गया। पीड़ित ज्यादातर 14 और 35 साल की उम्र के बीच की महिलाएं होती हैं। इसमें ज्यादातर मामले ऐसे हैं जिनमें किसी ने शादी के प्रस्ताव या यौन संबंधों को अस्वीकार कर दिया और उसका बदला लेने के लिए उन पर एसिड अटैक किया गया। पर्याप्त दहेज न मिलने, लड़की पैदा होने, अच्छा खाना ना बनाने के भी कई मामलों का अंत एसिड अटैक के रूप में हुआ। दुनिया भर में इस तरह की छोटी बातों पर बहुत से लोगों को एसिड अटैक का मेंटल ट्रॉमा झेलना पड़ता है।
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बर्न ट्रॉमा (Burn Trauma)
शारीरिक हानि जैसे कि जलना और उसके इलाज के लिए जरुरी दर्दनाक मेडिकल प्रोसीजर के सर्वावाइवर को गहरे ट्रॉमा से गुजरना पड़ सकता है। ट्रॉमा में अक्सर लोग डरा हुआ, खुद को कमजोर और असहाय महसूस करने लगते हैं। बर्न ट्रॉमा झेल चुके लोगों का कॉन्फीडेंस काफी प्रभावित होता है और वे परेशानियों का सामना करने से कतराने लगते हैं। बर्न ट्रॉमा के शिकार अक्सर इसके बारे में बात करने से बचते हैं या उनका विरोध करते हैं। ट्रॉमा के लक्षण कई बार घटना होने के हफ्तों, महीनों, या वर्षों तक दिखते हैं।
एक्सिडेंटल ट्रॉमा (Accidental Trauma)
ज्यादातर लोग जो दुर्घटना से गुजरते हैं, उनके अंदर का डर समय के साथ खत्म हो जाता हैं। कभी-कभी यह डर की भावना लोगों के दिलो-दिमाग में घर कर जाती है। ये भावनाएं आपके सोचने और काम करने के तरीके को बदल सकती हैं। ऐसी ही कुछ ट्रॉमेटिक भावनाएं लंबे समय तक आपके साथ रहती हैं और आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में आड़े आ सकती हैं। ऐसे लोगो में निरंतर बेचैनी की भावना होना, गाड़ी ड्राइव करना या पीछे बैठने के बारे में चिंता होना, चिड़चिड़ापन या अधिक चिंता या गुस्सा होना, बुरे सपने आना या सोने में परेशानी होने जैसी समस्याएं बहुत सामान्य हैं।
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ट्रॉमा थेरिपी (Trauma Therapy)
- संज्ञानात्मक व्यवहार थेरिपी (Cognitive Behavioral Therapy ) में व्यक्ति को उनके ट्रॉमा से जुड़े विचारों और विश्वासों के बारे में और अधिक जागरूक किया जाता है और उन्हें स्वस्थ तरीके से उनके भावनात्मक ट्रिगर पर पॉजिटिव रिस्पॉन्स करना सिखाया जाता है।
- एक्सपोजर थेरिपी (Exposure Therapy) संज्ञानात्मक व्यवहार थेरिपी का एक रूप है जो ट्रॉमा के कारण होने वाले भावनात्मक ट्रिगर से जुड़े डर को कम करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- टॉक थेरिपी (Talk therapy) बातचीत की एक ऐसी थेरिपी है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति को भावनात्मक दर्द से राहत दिलाने और परेशानी से निपटने में मदद करती है।
इन सारी थोरेपी में काफी समय लगता है। कोई चिकित्सक, कोई मोडेलिटी, कोई दवा या पदार्थ पूरी तरह से ट्रॉमा की चोट और दर्द को दूर नहीं कर सकता है। यह संभव है कि आप अपने संसाधनों के साथ अपनी कमजोरियों को पीछे छोड़कर, अपने दर्द को अपने जीवन आनंद के साथ मिलाएं और पॉजिटिव रहें।
17 ऑक्टूबर को हर साल वर्ल्ड ट्रॉमा डे (World Trauma Day) मनाया जाता है। हर साल ट्रॉमा के बारे में जागरुकता फैलाने के उद्देश से मनाया जाता है। इस मौके पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूप भी किया जाता है। ट्रॉमा से होने वाली मौतों का मुख्य कारण सड़क दुर्घटनाएं हैं। इसके अलावा ट्रॉमा के अन्य कारण प्राकृतिक आपदा, युद्ध, रेप, एसिड अटैक या जलना भी हो सकते हैं। लेकिन दुनिया भर में ट्रॉमा का प्रमुख कारण रोड एक्सीडेंट्स ही है। भारत में सड़क दुर्घटना के आंकड़ों की बात की जाए तो यह दुनिया में अन्य देशों की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। हर दिन हम रोड एक्सीडेंट में लोगों की मौत की खबरें सुनते हैं। ज्यादातर मामलों में इनका प्रमुख कारण रोड रेज होता है। यहां हम आपको चौकाने वाले आंकड़ें बताने जा रहे हैं। जो भारतीय युवाओं को जरूर जानने चाहिए और रोड रेज को लेकर जागरूकता फैलानी चाहिए।
अगर आप ट्रॉमा से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।
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