लिवर की बीमारी: अध्ययनों में पाया गया है कि विटामिन-ई नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवरी डिजीज के लक्षणों में सुधार कर सकता है। हालांकि, सुबूत यह बताते हैं कि मौखिक रूप से विटामिन-ई का इंसुलिन रेसिस्टेंट में दो साल के लिए सेवन किया जा सकता है।
प्रीक्लेमप्सिया (Preeclampsia): कुछ अध्ययनों में इस बीमारी में विटामिन-ई के फायदे बताए गए हैं। हालांकि, विटामिन-ई की डोज को बढ़ा देने से इस बीमारी में बचाव नहीं होता है। प्रीक्लेमप्सिया एक ऐसी स्थिति है, जब प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और अन्य अंगों के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है।
प्रोस्टेट कैंसर: प्रोस्टेट कैंसर में विटामिन-ई कितना असरदार है, इस पर अभी तक आम सहमति नहीं बनी है। हालांकि, कुछ अध्ययनों में पता चला है कि विटामिन-ई और सेलेनियम सप्लिमेंट्स का सेवन करने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम नहीं होता। कुछ ऐसी भी चिंताए हैं कि विटामिन-ई के सप्लिमेंट्स प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं।
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विटामिन-ई के कुछ साइड इफेक्ट्स क्या हैं?
विटामिन-ई से आपको निम्नलिखित साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं:
उपरोक्त साइड इफेक्ट्स के अलावा भी विटामिन-ई के कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जिन्हें ऊपर सूचीबद्ध नहीं किया गया है। इसकी अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
अंत में हम यही कहेंगे कि बॉडी में किसी भी पोषक तत्व या खनिज की पूर्ति के लिए आपको सप्लिमेंटेशन के बजाय नैचुरल डायट को फॉलो करना चाहिए। यदि आप अपनी बॉडी में विटामिन-ई की कमी को महसूस करते हैं तो अपनी डायट को सुधारें। बिना डॉक्टर की सलाह के विटामि-ई के सप्लिमेंट का सेवन न करें।
हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार मुहैया नहीं कराता।