मौजूदा समय में डायबिटीज की बीमारी गंभीर रूप ले रही है। कई भारतीय इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। पहले तो 40 वर्ष के बाद के उम्र के लोगों को यह बीमारी होती थी, वहीं अब युवाओं में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है। कारण खराब लाइफस्टाइल, खानपान की वजह से लोग इस बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। सिर्फ एक डायबिटीज की बीमारी के कारण कई प्रकार की बीमारी होने की संभावना रहती है, उसमें से एक है डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) ज्यादातर यह बीमारी पैर में देखने को मिलती है। यदि डायबिटीज को कंट्रोल न किया गया तो डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) की बीमारी होती है। इसके कारण स्किन के टिशू टूटने लगते हैं। डायबिटिक अल्सर पैर की उंगलियों के साथ पैरों के नीचे ज्यादा देखने को मिलता है। यदि इसका इलाज न किया जाए तो घाव हडि्डयों को प्रभावित करते हैं।
डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) शरीर के अन्य हिस्सों जैसे हाथों को मोड़ने वाली जगह के साथ पेट में जहां चर्बी मुड़ती है वहां भी हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि शरीर का अच्छे से ध्यान रखा जाए। हर व्यक्ति जो डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित है उसको डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) और फुट पेन होने की संभावना रहती है। जरूरी है कि मरीज सही समय पर इलाज कराने के लिए आएं। वहीं गंभीर समस्या से बचाव के लिए जरूरी है कि बीमारी के लक्षण दिखने पर जल्द से जल्द डॉक्टरी सलाह लें, ताकि उसका इलाज किया जा सके।
डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer): ज्यादातर बुजुर्गों को होती है बीमारी
डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित बुजुर्गों को यह बीमारी होने की संभावनाएं ज्यादा रहती है। डायबिटीज का सबसे बड़ा लक्षण हाई ब्लड शुगर कहा जाता है, इसे ब्लड ग्लूकोज के नाम से भी जानते हैं। यदि इसका समय पर इलाज न किया जाए तो यह नर्व और ब्लड वैसल्स को डैमेज तक कर सकते हैं। वहीं ऐसे घाव में इंफेक्शन का खतरा भी ज्यादा रहता है। वहीं नर्व डैमेज के कारण भी घाव आसानी से नहीं भरते जिसकी वजह से मरीज को दर्द का एहसास होता है वहीं आगे चलकर यह अल्सर इंफेक्शन में तब्दील होता है। अल्सर इसलिए भी खतरनाक होते हैं यदि इनका इलाज न कराया गया तो यह गैंग्रीन जैसी बीमारी भी हो सकती है, इसके तहत टिशू मर जाते हैं।
डायबिटिक अल्सर के लक्षण (Diabetic ulcer symptoms)
डायबिटिक फुट अल्सर का पहला लक्षण यही है कि पैर में होने वाले घाव से पस निकलने लगता है, यह मौजे के साथ जूते में आपको महसूस हो सकता है। वहीं कई लोग पैर में असमान्य सूजन, इरीटेशन, लालीपन और एक या दोनों पैर से दुर्गंध की शिकायत करते हैं। डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) शरीर के अन्य हिस्सों में हो तो लक्षण समान ही होते हैं।
इस बीमारी के होने का सबसे बड़ा लक्षण यही है कि अल्सर ब्लैक टिशू की तरह दिखता है, जिसे एशर (eschar) कहा जाता है, यह अल्सर के आसपास घिरा होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अल्सर के आसपास की जगह पर ब्लड फ्लो ठीक से नहीं हो पाता। इस अवस्था में पार्शियल या कंप्लीट गैंग्रीन (gangrene) की समस्या होती है। इसका अर्थ टिशू के सड़ने, इंफेक्शन से जुड़ा है। इस कारण लोग बदबूदार डिस्चार्ज के साथ दर्द, सुन्न जैसे लक्षण महसूस करते हैं।
जरूरी नहीं कि डायबिटिक अल्सर के लक्षण हमेशा दिखाई ही दें। कई बार ऐसा हो सकता है कि अल्सर के लक्षण दिखाई ही न दें, जबतक अल्सर इंफेक्टेड न हो। ऐसे में आप पैर और शरीर के अन्य हिस्सों की स्किन पर ध्यान दें, उसका रंग बदलने पर खासतौर पर टिशू का रंग काला पड़ने पर डॉक्टरी सलाह लें। हो सकता है कि आपका डॉक्टर डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) को शून्य से लेकर तीन श्रेणियों में बांटे, जैसे
- शून्य- अल्सर तो नहीं लेकिन घाव होने की संभावना
- पहला – अल्सर मौजूद होने के बाद इंफेक्शन नहीं
- दूसरा- डीप अल्सर, जोड़ों-हड्डियों का दिखाई देना
- तीसरा- व्यापक अल्सर या संक्रमण के कारण हुए फोड़े
जानें इन कारणों से होती है डायबिटिक अल्सर की बीमारी (Diabetic ulcer Causes)
- इरीटेटेड और पैर में घाव के कारण
- नर्व डैमेज की वजह से
- हाई ब्लड शुगर होने के कारण उसे(हाइपरग्लाइसीमिया) कहते हैं
- खराब ब्लड सर्कुलेशन की वजह से
- चोट लगने के कारण
बता दें कि खराब ब्लड सर्कुलेशन की वजह से वैस्कुलर डिजीज होने की संभावना रहती है। इस बीमारी के होने से ब्लड सही से प्रवाह नहीं हो पाता है। खराब ब्लड सर्कुलेशन की वजह से अल्सर ठीक भी नहीं हो पाते हैं। वहीं शरीर में हाई ग्लूकोज लेवल के कारण घाव के ठीक होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इस बीमारी से ग्रसित लोगों का ब्लड शुगर मैनेजमेंट सही नहीं होता है। वैसे लोग जो टाइप 2 डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित होते हैं, यदि उन्हें यह बीमारी होती है तो घाव आसानी से नहीं भरता, उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है।
नर्व डैमेज की वजह से आपको जहां अल्सर हुआ है, जैसे पैर में या अन्य जगहों पर सेंसेशन का एहसास नहीं होता है। क्षतिग्रस्त तंत्रिकाओं के कारण तनावपूर्ण और दर्द का एहसास हो सकता है। नर्व डैमेज की वजह से पैर में सेंसिटिविटी का एहसास कम होता है, इस कारण बिना दर्द के घाव पनपते हैं जो आगे चलकर अल्सर का कारण बनते हैं।
पैर या शरीर के अन्य हिस्सों में हुए घाव से यदि पस निकलने लगता है, वहीं कई बार आपने देखा होगा कि वहां पर लंप बन जाता है, जिसमें दर्द नहीं होता है, यदि इसे नजरअंदाज किया जाए तो आगे चलकर आपको डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) की बीमारी हो सकती है। डायबिटीज की बीमारी में ड्रायनेस सबसे सामान्य है। इस कारण संभावना रहती है कि पैर ज्यादा कटे, कॉल्स, कॉर्न्स और रक्तस्राव के घाव हो सकता है।
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डायबिटिक अल्सर के रिस्क फैक्टर पर नजर (Diabetic ulcer Risk factor)
हर व्यक्ति जो डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित है उसे डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) होने की संभावना रहती है। यह बीमारी कई कारणों से हो सकती है। कुछ फैक्टर्स ऐसे हैं जिसकी वजह से डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) हो सकते हैं, जैसे
- समय पर पैर के नाखूनों को नहीं काटने के कारण
- अत्यधिक शराब का सेवन करने की वजह से
- जूतों का पैर में अच्छे से फिट न होने के कारण, जूतों की खराब क्वालिटी के कारण
- पैर के खराब रख-रखाव की वजह से, जैसे पैर को नियमित तौर पर नहीं धोने के कारण
- मोटापा
- हार्ट डिजीज की वजह से
- किडनी डिजीज की वजह से
- तंबाकू का सेवन करने से खराब ब्लड सर्कुलेशन के कारण
युवाओं की तुलना में यह बीमारी बुजुर्गों में ज्यादा देखने को मिलती है।
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ऐसे में आपका डॉक्टर इन तमाम चीजों को पहनने का सुझाव दे सकता है, जैसे
- कम्प्रेशन रैप्स (compression wraps)
- डायबिटिक शूज
- कॉर्न्स और कॉलस को रोकने के लिए खास जूतों का पहनना
- कास्ट्स
- फुट ब्रेसेस
यदि सही समय पर आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो अल्सर के आसपास वाली जगह से गैर जरूरी त्वचा, मृत त्वचा, अल्सर को बढ़ावा देने वाले संक्रमण को हटा देते हैं।
डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) के केस में इंफेक्शन जटिल समस्या है, इसका तुरंत समाधान जरूरी होता है। लेकिन सभी प्रकार के अल्सर का इलाज समान रूप से नहीं किया जाता है। कई केस में अल्सर के पास के टिशू को निकालकर जांच के लिए लैब में भेजा जाता है, वहीं पता किया जाता है कि कौन सी एंटीबायटिक इसके लिए कारगर है। यदि आपका डॉक्टर गंभीर इंफेक्शन महसूस करता है तो वो आपको एक्स-रे कराने की सलाह दे सकता है। ताकि पता कर सके कि कहीं बोन इंफेक्शन है या नहीं।
- एंजाइम्स ट्रीटमेंट
- फुट बाथ
- अल्सर के आसपास की जगह में इंफेक्शन को कम कर
- अल्सर को ड्राय रखकर, समय-समय पर ड्रेसिंग बदलकर इलाज किया जा सकता है
- ड्रेसिंग में कैल्शियम के तत्व होते हैं, जो बैक्टीरियल ग्रोथ को रोकने में मदद करते हैं
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डायबिटिक अल्सर का ट्रीटमेंट (Diabetic ulcer treatment)
इस बीमारी से ग्रसित मरीजों का इलाज करने के लिए प्रिवेंशन के साथ-साथ एंटी प्रेशर ट्रीटमेंट दिए जाने के बाद भी यदि इंफेक्शन बढ़ते ही जाता है तो डॉक्टर कुछ दवा का सुझाव भी देते हैं। उनमें एंटीबायटिक, एंटी प्लेट्लेट्स, एंटी क्लोटिंग दवा देकर मरीजों का इलाज किया जाता है। इनमें से कई एंटीबॉयटिक्स स्टाफीलोकोकस (Staphylococcus aureus) बैक्टीरिया पर अटैक करने के साथ यह स्टैफ इंफेक्शन रोकने में मदद करते हैं, वहीं हीमोलाइटिक स्टाफीलोकोकस (haemolytic Streptococcus) जो हमारे इंटेस्टाइन में पाए जाते हैं, वैसे बैक्टीरिया पर भी अटैक करते हैं।
इस बीमारी से ग्रसित लोगों को डॉक्टर से सुझाव लेना चाहिए कि कहीं इस इंफेक्शन के कारण और खतरनाक बैक्टीरिया के पनपने के कारण कहीं कोई और गंभीर बीमारी तो नहीं हो सकती है, यहां तक कि एचआईवी और लिवर प्रॉब्लम भी। इन मामलों में इसीलिए डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
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ओवर द काउंटर ट्रीटमेंट का ले सकते हैं सहारा (Over the counter treatment for Diabetic ulcer)
डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) का इलाज करने के लिए कई पारंपरिक दवाइयां हैं, जिसका इस्तेमाल कर बीमारी से निजात पाया जा सकता है, जैसे
- मेडिकल ग्रेड शहद, मरहम या जेल लगाकर कर सकते हैं इलाज
- आयोडीन (प्रोडोन और कैडेक्सोमर) देकर किया जा सकता है इलाज
- ड्रेसिंग जिसमें सिल्वर, सिल्वर सल्फेडियाजीन क्रीम हो
- पॉली हेक्सामेथिलीन बिगुआनाइड (polyhexamethylene biguanide) जेल और सॉल्यूशन का इस्तेमाल कर
किसी भी दवा या ट्रीटमेंट का उपयोग डॉक्टर की सलाह के बिना न करें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।
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सर्जिकल प्रक्रियाओं को अपनाकर
इस बीमारी से ग्रसित मरीजों को उनके डॉक्टर सुझाव दे सकते हैं कि सर्जिकल ट्रीटमेंट कर अल्सर का इलाज किया जा सकता है। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए डॉक्टर अल्सर के आसपास की जगह से प्रेशर को कम करने के साथ अल्सर के आसपास की डिफॉर्मिटी जैसे बनियन्स, हैमर टो आदि को हटा देते हैं।
आप यदि अल्सर की बीमारी से ग्रसित हैं तो आप निश्चित ही इसकी सर्जरी कराना पसंद नहीं करेंगे। वहीं जब ट्रीटमेंट का अन्य कोई विकल्प नहीं बचेगा तो ऐसे में सर्जरी कर इंफेक्शन को रोका जा सकता है। इस कंडीशन में भी सर्जरी न की जाए तो मरीज की स्थिति बद से बदतर हो सकती है।
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डायबिटिक अल्सर से कैसे बचें (Diabetic ulcer Prevention)
अमेरिकन पोडिएट्रिक मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार विश्वभर में काफी लोग डायबिटिक अल्सर न की बीमारी से ग्रसित हैं। ऐसे में बीमारी से बचाव को लेकर कदम उठाया जाना जरूरी हो जाता है। यदि आपको डायबिटीज की बीमारी होने की संभावनाएं है तो ऐसे में जरूरी है कि आप ब्लड ग्लूकोज लेवल को मैनेज रखें। आप लाइफस्टाइल में इन अच्छी आदतों को अपनाकर डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) की बीमारी से कर सकते हैं बचाव, जैसे
- रोजाना अपने पैर को अच्छे से धोकर
- सही साइज के जूतों को पहनकर
- कार्न और कैलस रिमूवल की स्थिति में पोडिएट्रिस्ट की सलाह लेकर
- समय-समय पर पैर के नाखूनों को काटकर, लेकिन ज्यादा छोटे नाखून न काटें, क्योंकि यह ठेस लगनेसे हमारे पैर की रक्षा करते हैं
- हाथों व शरीर के अन्य हिस्सों को चोटिल होने से बचाएं
- अपने पैरे को ड्राय और मॉइस्चराइज रखकर
- सॉक्स को नियमित बदलें
- डायबिटीज के मरीज नियमित रूप से अपने ब्लड शुगर लेवल की जांच कराते रहें
- हमेशा शरीर पर ध्यान दें, वहीं देखें कि कहीं आपके पैर के स्किन का रंग बदल तो नहीं रहा, पैर की नियमित देखभाल करें
- धूम्रपान न करें
- पैर और शरीर के तमाम अंगों को इंज्युरी से बचाएं, पैर को अच्छी तरह से कवर करने वाले जूतों को ही पहनें
संभावना रहती है कि बीमारी एक बार ठीक हो जाए तो मरीज को फिर से भी हो सकती है। क्योंकि स्कार टिशू इंफेक्टेड हो जाते हैं, वहीं यह फिर से इनफेक्टेड हो सकते हैं। तो ऐसे में आपके डॉक्टर आपको डायबिटिक शूज पहनने का सुझाव दे सकते हैं ताकि अल्सर की बीमारी से बचाया जा सके।
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डायबिटिक अल्सर (Diabetic ulcer) का हमें शुरुआती स्टेज में ही चल जाए तो इसका इलाज संभव है। ऐसे में जब भी आपको अपने पैर अजीब दिखाई दे, वहीं ऐसा घाव दिखे जो न भर रहा हो, इंफेक्शन पनप गया हो, उससे पस निकल रहा हो, तो ऐसी स्थिति में आपको जल्द से जल्द इलाज कराने की जरूरत होती है। वहीं जब तक आपका अल्सर ठीक नहीं हो जाता तब तक आपको ट्रीटमेंट कराते रहना चाहिए। बता दें कि डायबिटिक फुट अल्सर ठीक होने में कुछ सप्ताह का समय लग सकता है। यदि किसी मरीज का ब्लड शुगर लेवल ज्यादा है और उसमें लगातार दबाव बनाया जा रहा है तो उसमें अल्सर ठीक होने में समय लग सकता है। इस बीमारी से निजात पाने के लिए सही डाइट का सेवन करने की सलाह दी जाती है। वहीं पैर पर कम से कम प्रेशर डालने को कहा जाता है। यदि डॉक्टरी सलाह को कोई अपनाता है जो जल्द बीमारी से निजात पाता है। एक बार अल्सर की बीमारी ठीक हो जाए तो पैर की देखभाल कर बीमारी से बचाव कर सकते हैं।
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