दुनियाभर में डायबिटीज (Diabetes) के मामले बढ़ रहे हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के 2017 के डेटा के अनुसार भारत में 7 करोड़ 20 लाख व्यस्क डायबिटीज के साथ जी रहे थे। इस स्टडी के अनुसार डायबिटीज का फैलाव अर्बन एरियाज में ज्यादा है। यानी भारत में शहरों और महानगरीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में डायबिटीज होने की संभावना पहले से कहीं अधिक होती। यह कुछ हद तक लाइफस्टाइल को बढ़ावा देने वाले शहरों के कारण है जो किसी व्यक्ति के बॉडी मास इंडेक्स को बढ़ा सकते हैं।
हालांकि भारत में डायबिटीज के मामले (Diabetes cases in India) ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं। जिसमें टाइप 2 डायबिटीज के मामले ज्यादा हैं। इसके कारण का पता लगाने के लिए अधिक स्टडीज की जरूरत है। इस आर्टिकल में भारत में डायबिटीज के मामले बढ़ने के संभावित कारण, इससे बचने के उपाय के बारे में जानकारी दी जा रही है।
भारत में डायबिटीज के मामले (Diabetes cases in India)
भारत में डायबिटीज के ज्यादातर मामलों में टाइप 2 डायबिटीज के केस सामने आए हैं। जिसका कारण इंसुलिन रेजिस्टेंट और पैंक्रियाज का धीरे-धीरे इंसुलिन को बनाने की क्षमता का कम होना है। इसके अलावा कुछ अन्य फैक्टर्स भी हैं जो टाइप 2 डायबिटीज के डेवलपमेंट में जिम्मेदार होते हैं।
- जीन्स (Genes)
- एनवायरमेंट (Environment)
- लाइफस्टाइल (Lifestyle)
वहीं टाइप 1 डायबिटीज ऑटोइम्यून कंडिशन है जो आपके शरीर द्वारा बीटा कोशिकाओं पर हमले के परिणामस्वरूप होती है जो इंसुलिन बनाती है। एनसीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार इंडिया में टाइप 1 डायबिटीज हर साल 3 से 5% तक बढ़ रही है। वहीं 2016 रिसर्च में पाया गया कि 2006 से डायबिटीज टाइप 2 के मामले तमिलनाडू के अर्बन एरियाज में हर साल लगभग 8% तक बढ़ रहे हैं। इन नंबर्स के और अधिक बढ़ने की आशंका है। 2045 तक ये मामले 13 करोड़ से ज्यादा होने की आशंका जताई जा रही है।
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भारत में डायबिटीज के मामले बढ़ने के कारण क्या हैं? (Why is diabetes prevalence increasing in India?)
दुनियाभर के दूसरे कल्चर्स की तरह ही भारत में भी डेली लाइफ में बदलाव आ रहे हैं। वेस्टर्न डायट ज्यादा पॉपुलर हो चुकी है जिसका मतलब है अधिक रिफाइंड कार्बोहायड्रेट्स, प्रोसेस्ड फूड्स और ट्रांस फैट का सेवन। जैसे-जैसे शहरीकरण (Urbanization) हो रहा है। वैसे-वैसे अधिक लोग कम कम सक्रिय और गतिहीन जीवन जी रहे हैं। इसके अलावा निम्न कारण भारत में डायबिटीज के बढ़ने का कारण बन रहा है।
शारीरिक अंतर (Physiological differences)
एनसीबीआई में छपी स्टडी के अनुसार दक्षिण एशियाई वंश के लोगों में यूरोपीय वंश के लोगों की तुलना में मसल्स के अनुपात में फैट की मात्रा अधिक होती है। जब लोगों में फैट से कम मसल्स होती हैं, तो इंसुलिन शरीर में अधिक समय तक रहता है। क्योंकि टिपिकल वेस्टर्न डायट और फास्ट फूड की लोकप्रियता में बढ़ रही है, खासकर शहरी वातावरण में, फैट और शुगर की खपत भी बढ़ रही है। जब शरीर ग्लूकोज को प्रॉपर तरीके से क्लियर नहीं कर पाता है, तो यह मेटाबॉलिक लोड और इंसुलिन रेजिस्टेंस को बढ़ाता है और एक व्यक्ति को डायबिटीज डेवलपमेंट के रिस्क में डालता है।
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डायबिटीज को लेकर अलग परसेप्शन (Perception of diabetes)
ग्रामीण क्षेत्रों में लोग डायबिटीज को एक “नई” कंडिशन के रूप में देखते हैं, और इस स्थिति के बारे में सामान्य जागरूकता कम है। 2017 के एक छोटी क्वालिटेटिव स्टडी में, लोगों ने कहा कि हेल्थ चेकअप्स बहुत छोटे थे और इसने उन्हें अपने स्वास्थ्य और डायबिटीज के बारे में सवाल पूछने से रोक दिया। चूंकि लोग आमतौर पर डॉक्टरों को डायबिटीज की जानकारी के बेस्ट सोर्स के रूप में देखते हैं और दूसरे सोर्सेस तक ये पहुंच नहीं पाते। ऐसे में छोटे कंसल्टेशन का लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाल कॉम्प्लिकेशन्स पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
मीठे व्यंजन (Sweet cuisines)
मिठाइयों का सेवन भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है और प्राचीन परंपराओं और धार्मिक त्योहारों का एक अभिन्न अंग है।एनसीबीआई के 2014 के एक अध्ययन के अनुसार, बढ़ते शहरीकरण के कारण, लोग अधिक गतिहीन जीवन शैली अपनाने के साथ-साथ अधिक कैलोरी युक्त शुगरी फूड्स और ड्रिंक्स का सेवन कर रहे हैं। शहरों में मीठे पेय और मीठे खाद्य पदार्थ सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं, जिससे लोगों में मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ रहा है।
सोशल स्ट्रेस (Social stress)
बहुत से लोग रिपोर्ट करते हैं कि तनाव उनकी डायबिटीज का कारण था। एनसीबीआई के 2012 के अध्ययन में पाया गया कि मध्यम से उच्च आय वाले आर्थिक समूहों के लोगों ने बताया कि दहेज के लिए बचत जैसे सामाजिक तनाव ने उनकी डायबिटीज में योगदान दिया। हालांकि, कम आय वाले लोगों ने इस अनुभव को शेयर नहीं किया था।
भारतीय डॉक्टर संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में डायबिटीज के लिए जोखिम कारक के रूप में सामाजिक तनाव के बारे में अधिक बात करते हैं, ये विश्वास संभवतः उस जानकारी से उत्पन्न होते हैं जो लोगों के डॉक्टर के पास जाने से प्राप्त होती है। क्योंकि निम्न आय समूहों के पास आमतौर पर स्वास्थ्य सेवा तक कम पहुंच होती है।
इनके अलावा भी भारत में डायबिटीज के बढ़ने के निम्न कारण हैं।
- डायबिटीज प्रिवेंशन नीतियों के बारे में कम जानकारी होना
- शाकाहारी खाने को प्राथमिकता जो कार्ब्स, ऑइल और फैट्स में अधिक होते हैं
- प्रोसेस्ड मीट का उपयोग बढ़ना
- फल, सूखे मेवे, बीज और साबुत अनाज का कम सेवन
- एक्सरसाइज की कमी
- स्क्रीन टाइम का बढ़ना
- तंबाकू का उपयोग
- शराब का उपयोग
- वातावरण का प्रदूषित होना
- हाय ब्लड प्रेशर
- हाय कोलेस्ट्रॉल लेवल
कुछ दूसरे रिस्क फैक्टर्स जो भारत में डायबिटीज का कारण बनते हैं (Risk factors of diabetes in India)
- सिंगल लोगों के कंपेरिजन में शादीशुदा और तलाकशुदा लोगों की संख्या अधिक होना
- मोटापे की समस्या
- कमर पर फैट होना
- डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री
- इसके साथ ही एशियाई मूल के लोगों में आंत की चर्बी की समस्या भी अधिक हो सकती है जो कि ऑर्गन के आसपास होने वाला एब्डोमिनल फैट होता है जो डायबिटीज के रिस्क को बढ़ा सकता है।
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भारत में डायबिटीज के बढ़ते मामले कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?
भारत में डायबिटीज के बढ़ते मामलों के हल निकाले के लिए कई स्टडीज की जा रही हैं। इंडिया में नैचुरल और समग्र स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक जोर दिया जाता है। कुछ लिमिटेड एविडेंस इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि अश्वगंधा जैसी औषधियां और योगा जैसे पारंपरिक व्यायाम ग्लूकोज लेवल को कम करने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा हाय इंटेंसिटी एक्सरसाइज भी मददगार हो सकती हैं।
अन्य रोकथाम और उपचार रणनीतियों में शामिल हैं:
- डायबिटीज की जांच और इसके बारे में शिक्षा (Diabetes screening and education)
- शीघ्र निदान और उपचार (Early diagnosis and treatment)
- मौखिक दवाओं या इंसुलिन के साथ पर्याप्त ब्लड ग्लूकोज कंट्रोल (Blood glucose control with oral medications or insulin)
- डायबिटीज केयर तक पहुंच
- कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर नियंत्रण
- डायबिटीज वाले लोगों के लिए पैर और आंखों की देखभाल
- किडनी की समस्याओं और अन्य डायबिटीज से संबंधित स्थितियों के लिए जांच
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डायबिटीज के लक्षण क्या हैं? (Diabetes symptoms)
डायबिटीज के लक्षणों में निम्न शामिल हैं।
- रात को रोज पेशाब आना
- हमेशा प्यास लगना
- वजन कम होना
- हर समय भूख लगना
- हमेशा थकान लगना
- घाव भरने में समय लगना
- सामान्य से ज्यादा इंफेक्शन होना
डायबिटीज का इलाज (Diabetes treatments)
डायबिटीज का इलाज उस पर निर्भर करता है कि आपको कौन सी डायबिटीज है। नीचे दोनों प्रकार की डायबिटीज के इलाज के बारे में बताया जा रहा है।
टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes)
जब किसी व्यक्ति को टाइप 1 डायबिटीज होती है, तो उसका पैंक्रियाज इंसुलिन का उत्पादन बंद कर देता है। इस स्थिति का इलाज करने के लिए, एक डॉक्टर इंसुलिन का एक आर्टिफिशियल फॉर्म निर्धारित करता है जिसे एक व्यक्ति प्रति दिन में भोजन के साथ कई बार लेता है।
लोग सुई और सिरिंज, या इंसुलिन पेन का उपयोग करके इंसुलिन लेते हैं। यदि किसी को दिन भर इंसुलिन की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है, तो वे इंसुलिन पंप का उपयोग करना पसंद कर सकते हैं। इंसुलिन टैबलेट के रूप में नहीं आता क्योंकि पेट का एसिड इसे नष्ट कर देता है।
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टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes)
टाइप 2 डायबिटीज वाले कई लोगों को अपने लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए दवा और इंसुलिन लेने की आवश्यकता होती है। कुछ उपचार टैबलेट के रूप में आते हैं, और एक व्यक्ति अपने ब्लड शुगर लेवल को स्थिर रखने के लिए विभिन्न दवाओं के कॉम्नबिनेशन का उपयोग भी करना पड़ सकता है।
डायबिटीज का वैश्विक प्रसार हो रहा है, और भारत में तेजी मामले बढ़ रहे हैं। यह जीन्स और फूड हैबिट्स और फिजिकल एक्टिविटीज में हुए बदलाव के कारण है। डायबिटीज केयर और बीमारी के बारे में सही जानकारी का लोगों तक पहुंचना इसके प्रसार को रोक सकता है। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह लें।
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