रेटिनल डिटेचमेंट यानी कि आंख का पर्दा का फटना/हटना आंखों से संबंधित एक समस्या है। जिसमें अक्सर लोगों को दिखाई देना कम या बंद हो जाता है। कुछ लोगों के आंखों के सामने तो हमेशा के लिए अंधेरा छा जाता है। वहीं, कुछ लोग ऐसे भी है, जिनका विजन एकदम ही धुंधला हो जाता है। आइए जानते हैं कि रेटिनल डिटेचमेंट क्या है, इसके लक्षण, कारण और उपाय क्या हैं।
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रेटिनल डिटेचमेंट क्या है?
हमारी आंख के पीछे एक पर्दा होता है, जिसकी मदद से हमें दिखाई देता है। इस आंख के पर्दे को रेटिना कहते हैं। आसान भाषा में इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हमारी आंखें आइने की तरह काम करती हैं। जैसे किसी भी कांच में हम अपनी शक्ल को तब तक नहीं देख सकते हैं, जब तक उसके पीछे की तरफ कोटिंग या पॉलिश न की गई हो। जैसे ही कांच के एक तरफ पॉलिशिंग की जाती है, वह आइना बन जाता है और हमारी शक्ल उसमें दिखने लगती है। ठीक उसी तरह से हमारी आंखों में रेटिना भी है, जो आंखों के पीछे की पॉलिश है और हम जो देखते हैं उसकी इमेज या प्रतिबिंब रेटिना पर बनती है। तभी हम देख पाते हैं।
रेटिना कॉर्निया, लेंस और आंखों के अन्य अंगों के साथ मिलकर काम करता है। रेटिना पर जो भी प्रतिबिंब बनता है, उसे रेटिना ब्रेन तक भेजता है। तब जाकर हम कोई चीज को देख के समझ पाते हैं। रेटिना और ब्रेन के बीच ऑप्टिक नर्व सामंजस्य बैठाती है।
जब हमारी आंखों का पर्दा यानी कि रेटिना आंखों से अलग हो जाती है या खिसक जाती है तो इस स्थिति को रेटिनल डिटेचमेंट कहते हैं। जिसके कारण आंखों का विजन आंशिक या पूरी तरह से चला जाता है। रेटिनल डिटेचमेंट के कारण नजर कितनी प्रभावित होगी, ये बात इस बात पर निर्भर करती है कि रेटिना कितना डिटैच हुआ है। जब रेटिना डिटैच हो जाती है तो रेटिना तक ऑक्सीजन पहुंचना बंद हो जाता है। ये स्थिति एक तरह की मेडिकल इमरजेंसी मानी जाती है। जिसमें मरीज को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। अगर रेटिनल डिटेचमेंट का इलाज समय से नहीं कराया गया तो आंखों की रोशनी हमेशा के लिए धुंधली हो सकती है या आंखों की रोशनी हमेशा के लिए खो सकती है।
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रेटिनल डिटेचमेंट के प्रकार क्या हैं?
रेटिनल डिटेचमेंट निम्न प्रकार के होते हैं :
रेगमैटोजेनस रेटिनल डिटेचमेंट (Rhegmatogenous retinal detachment)
रेगमैटोजेनस प्रकार का रेटिना डिटैच है जो धीरे-धीरे समय के साथ होता है। इसमें रेटिना में छेद, फटना या टूटना हो जाता है। इस छेद में से आंखों के बीच में मौजूद जेल लीक होने लगता है और रेटिना पर दबाव बनाने लगता है। दबाव के कारण रेटिना अपनी जगह से खिसकने लगती है। जिसके कारण से आंखों की रोशनी धुंधली या खोती चली जाती है।
पोस्टेरियर विट्रिअस डिटैचमेंट (Posterior vitreous detachment (PVD))
पोस्टेरियर विट्रिअस डिटैचमेंट में सामान्यतः रेटिना फट जाती है। ये एजिंग के कारण होता है, जिसमें विट्रिअस जेल रेटिना को उसके स्थान से खींचने लगता है, लेकिन इस प्रकार के डिटेचमेंट में कोई भी लक्षण सामने नहीं आते हैं। कई बार तो जेल रेटिना को इतनी तेजी से खींचता है कि वह फट जाती है। फिर धीरे-धीरे नजर धुंधली होने लगती है।
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ट्रैक्शनल रेटिनल डिटेचमेंट (Tractional retinal detachment)
ट्रैक्शनल डिटैचमेंट में रेटिना पर स्कार टिश्यू विकसित हो जाते हैं। जो इतने बढ़ते हैं कि रेटिना अपनी लेयर से नीचे खिसक के आ जाती है। इसके कारण आंखों की रोशनी तक चली जाती है। ये समस्या अक्सर डायबिटीज के मरीजों में देखी जाती है।
एक्स्यूडेटिव रेटिनल डिटेचमेंट (Exudative (serous) retinal detachment)
इस प्रकार का डिटैचमेंट काफी दुर्लभ है। इसमें रेटिना में फ्लूइड जमा हो जाता है, लेकिन रेटिना फटता नहीं है। ये दोनों आंखों को प्रभावित करता है। ये डिटैचमेंट प्रायः आई इंजरी के कारण या कई तरह की बीमारियों से होता है। जैसे – लाइम डिजीज, आई ट्यूमर, हाई ब्लड प्रेशर या किडनी डिजीज।
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रेटिनल डिटेचमेंट होने पर कैसा दिखाई देता है?
जब आंख का पर्दा फट जाता है तो आपकी नजरों में फ्लोटर्स ज्यादा नजर आने लगते हैं। जब आप आसमान की तरफ देखते हैं तो कुछ आकृतियां तैरती सी नजर आती है, उन्हें फ्लोटर्स कहते हैं। रेटिना डिटैच होने के शुरुआती समय में ज्यादा फ्लोटर्स नजर आएंगे। फिर नजरों के सामने धीरे-धीरे अंधेरा छाने लगेगा। इसके बाद दिखाई देना बंद हो जाएगा।
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आंख का पर्दा हटने के क्या लक्षण हैं?
रेटिनल डिटेचमेंट होने पर दर्द नहीं होता है, लेकिन कुछ लक्षण दिखाई देते हैं :
- धुंधला विजन
- आंशिक रूप से आंखों की रोशनी का खोना, जिसमें आंखों के सामने कुछ पल के लिए अंधेरा छा जाता है।
- अचानक से कोई लाइट का चमकना और जब आप साइड में देखते हैं तभी ये दिखाई देता है।
- आंखों के सामने कुछ काला या टुकड़ा/धागा तैरते हुए दिखाई देना।
- आंखों का बोझिल हो जाना।
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रेटिना डिटैच होने के कारण क्या हैं?
रेटिना डिटैचमेंट होने का कारण रेटिना द्वारा चीजों को न दिखाई पड़ना है। जैसा ही पहले ही बताया गया है कि हमारी आंखें कैसे काम करती है, लेकिन आपको आंखों की संरचना को भी समझना होगा। हमारी आंखों में रेटिना के आगे एक फ्लूइड भरा होता है, जिसे विट्रिअस जेल कहते हैं। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे विट्रिअस जेल अपना आकार बदलने लगता है। जिसके कारण विट्रिअस जेल रेटिना के एक हिस्से को अपनी ओर खींचने लगता हैं और रेटिना फट जाती है। एक बार जब रेटिना फट जाती है तो विट्रिअस जेल उससे बाहर निकलने लगता है। जिस कारण रेटिना आंखों के पिछले हिस्से से हटने लगती है। इसके अलावा भी रेटिना को डिटैच करने के लिए अन्य कारण भी जिम्मेदार होते हैं। इनमें से आंखों संबंधी कुछ बीमारियां भी कारण हैं।
रेटिना डिटैचमेंट का जोखिम किन लोगों को है?
आंख का पर्दा हटने का रिस्क निम्न लोगों में सबसे ज्यादा होता है :
- जिन्हें नियरसाइटेडनेस की समस्या हो
- पहले कभी मोतियाबिंद, ग्लूकोमा या कोई आई सर्जरी हुई हो
- ग्लॉकोमा की दवा के कारण आंखों की प्यूपिल छोटी हो गई हो
- आंखों में गंभीर चोट लगना
- पहले भी कभी रेटिनल डिटेचमेंट हो चुका हो
- परिवार में किसी को रेटिना डिटैच की समस्या हो
रिस्क को समझें और अपने विजन को बचाएं
ऊपर बताई गई समस्या से अगर आपको रिस्क है तो अपने डॉक्टर से मिलें और अपने आंखों की जांच कराएं। अगर आपके परिवार में किसी को नियरसाइटेडनेस की शिकायत है तो आप डाइलेटेड आई चेकअप जरूर कराएं। इसके अलावा किसी भी स्पोर्ट्स को खेलते समय आप आंखों को जरूर ढंककर रखें। जिससे आपकी आंखों में कोई समस्या न हो। अगर आपको आई या हेड इंजरी हुई है तो डॉक्टर से तुरंत मिलें और आंखों का कम्पलीट चेकअप कराएं।
रेटिनल डिटेचमेंट को डायग्नोस कैसे किया जाता है?
जब आंखों का पर्दा हटने के लक्षण सामने आते हैं तो आपको नेत्र रोग विशेषज्ञ यानी कि ऑफ्थैल्मोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिए। वो आंखों के प्यूपिल को डाइलेट करते हैं। जिसके बाद आंखों के रेटिना का अल्ट्रासाउंड किया जाता है। जिसके बाद रेटिना की साफ तस्वीर कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखाई देती है। जिसके आधार पर पता लगाया जाता है कि आपका रेटिना कितना डिटैच हुआ है।
रेटिनल डिटेचमेंट का इलाज कैसे किया जाता है?
रेटिनल डिटेचमेंट के ज्यादातर मामलों में सर्जरी की जाती है। अगर रेटिना थोड़ा भी डिटैच होता है तो भी उसके लिए लेजर ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है।
टॉर्न रेटिना सर्जरी
ज्यादा रेटिनल टियर यानी कि रेटिना डिटैचमेंट के मामले में डॉक्टर रेटिना को आंखों के पीछे की दीवार पर लेजर से फिक्स करने की कशिश करते हैं। जिससे रेटिना सील हो जाती है और आंखों में पाए जाने वाला विट्रिअस जेल आंख के पर्दे के पीछे नहीं जा पाता है। ये कुछ ही मिनटों में होने वाली सर्जरीज होती हैं। जैसे :
लेजर सर्जरी या फोटोकोआगुलेशन (photocoagulation)
लेजर सर्जरी के लिए डॉक्टर मरीज के आंखों के अंदर लेजर ट्रीटमेंट करते हैं। जिसमें आंखों के अंदर लेजर के द्वारा रेटिना को सील करते हैं और रेटिना तो डिटैच होने से रोकते हैं।
फ्रीजिंग ट्रीटमेंट या क्रायोपेक्सी (cryopexy)
इस सर्जरी के लिए डॉक्टर एक फ्रीजिंग यंत्र का इस्तेमाल करते हैं। जिससे रेटिना फ्रीज किया जाता है और स्कार का निर्माण करके आंख का पर्दा जहां फटा होता है उसे ठीक किया जाता है।
डिटैच्ड रेटिना सर्जरी
ज्यादातर मरीजों में रेटिना को उसी स्थान पर लाने के लिए रेटिना की सर्जरी करनी पड़ती है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो मरीज का विजन धुंधला हो सकता है या हमेशा के लिए खो सकता है। इस सर्जरी में ऑपरेशन की विधियां रेटिना के डिटैचमेंट पर निर्भर करती है, लेकिन लेजर सर्जरी या क्रायोपेक्सी के बाद ही निम्न सर्जरी को किया जाता है।
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स्क्लेरल बकल (Scleral buckle)
स्क्लेरल बकल में आंखों के चारों तरफ एक फ्लेक्सिबल बैंड लगाया जाता है, इस बैंड को स्क्लेरल बकल कहते हैं। स्क्लेरल बकल के प्रेशर से डॉक्टर रेटिना के पीछे गए हुए विट्रिअस जेल को निकालने की कोशिश करते हैं। इसके बाद रेटिना को उसके स्थान पर खिसका के फिक्स करने का प्रयास करते हैं। ये सर्जरी ऑपरेटिंग रूम में की जाती है।
न्यूमेटिक रेटिनोपेक्सी (Pneumatic retinopexy)
न्यूमेटिक रेटिनोपेक्सी में डॉक्टर आपकी आंखों में इंजेक्शन की मदद से एक बुलबुला बनाते हैं। जो आपकी आंखों के पीछे की वॉल में रेटिना पर दबाव बनाकर ऊपर खिसकाता है। इसके बाद सर्जन आपको सिर को एक तरफ ही करने के लिए कहेंगे। जिससे बुलबुले द्वारा रेटिना पर दबाव बनाने में आसानी रहेगी। फिर रेटिना को उसके स्थान पर आने के बाद उसे सील कर दिया जाता है। कुछ समय के बाद आंखों के अंदर से बुलबुला अपने आप गायब हो जाता है।
विट्रेक्टमी (Vitrectomy)
विट्रेक्टमी में रेटिना डिटैचमेंट को फिक्स किया जाता है। इस सर्जरी में रेटिना के अंदर मौजूद विट्रिअस जेल को इंजेक्शन की मदद से बाहर निकाल दिया जाता है। जिसके बाद विट्रिअस जेल के स्थान पर गैस या ऑयल बबल का निर्माण किया जाता है। ये बुलबुला पूरी तरह से आंखों को कवर कर लेता है, जिसके बाद जहां पर आंख का पर्दा फटा होता है, उस जगह पर लेजर के द्वारा उसे बंद किया जाता है। कुछ दिनों के बाद आंखों में डाले गए बबल को निकाल लिया जाता है। कुछ मामले में स्क्लेरल बकल के साथ ही विट्रेक्टमी की जाती है।
ऊपर बताई गई सभी सर्जरी 80 से 90 फीसदी मामलों में सफल रही है। इसलिए डॉक्टर आपके रेटिनल डिटेचमेंट के आधार पर ही सर्जरी के प्रकार का चुनाव करते हैं।
रेटिनल डिटेचमेंट से कैसे बचा जा सकता है?
यूं तो रेटिना के डिटैच होने से बचने का कोई सटीक तरीका नहीं है, लेकिन कुछ तरीकों को अपनाकर हम इससे बहुत हद तक बच सकते हैं। अगर आप कोई भी स्पोर्ट्स खेल रहे हैं तो आप आई वियर पहन कर ही खेलें, जिससे आंखों पर चोट न लग सके। अगर आपको डायबिटीज है तो भी अपने डॉक्टर से रूटीन आई चेकअप कराते रहें। अगर आपको कभी भी हेड इंजरी हो या आई इंजरी हो तो डॉक्टर से तुरंत मिलें और आंखों की पूरी जांच कराएं।