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क्या सचमुच कारगर होती है एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी?


Toshini Rathod द्वारा लिखित · अपडेटेड 12/05/2021

    क्या सचमुच कारगर होती है एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी?

    आपका पूरा शरीर सही तरह से काम करता रहे इसके लिए कोशिकाएं लगातार जटिल काम करती रहती हैं, मगर आमतौर पर इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। लेकिन कोशिकाओं के स्तर पर जब किसी तरह की समस्या हो जाए तो इसका असर बहुत गंभीर और अधिक होता है। कोशिकाओं के अंदर एक खास तरह का प्रोटीन होता है जिसे एंजाइम्स कहते हैं। यह एंजाइम्स शरीर को सुचारू रूप से काम करते रहने और शरीर में होने वाली केमिकल प्रतिक्रियाओं में मदद करते हैं। जब यह एंजाइम्स सही तरीके से अपना काम नहीं करते हैं, इसमें कोई कमी आ जाती है तो इन्हें रिप्लेस किया जाता है, इसी प्रक्रिया को एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) कहते हैं। एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) किन बीमारियों में की जाती है?  जानिए इस आर्टिकल में।

    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy)

    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी एक तरह का मेडिकल ट्रीटमेंट है जिसमें किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित मरीजों में यदि एंजाइम्स की कमी या खराबी हो गई हो, तो उनके शरीर में दूसरे एंजाइम्स (Enzymes) डाले जाते हैं यानी एंजाइम्स रिप्लेसमेंट किया जाता है। इसका सबसे आम तरीका है आई वी इन्फ्यूजन (IV infusions) जिसमें तरल पदार्थों के कंट्रोल्ड ड्रिप के जरिए एंजाइम को सीधे रक्तप्रवाह (bloodstream) में डाला जाता है। एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) लेने के बाद शरीर फिर से सुचारू रूप से काम करने लगता है। एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) की प्रभावशीलता हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकती है और यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि किस बीमारी का इलाज किया जा रहा है, हालांकि कुछ मामलों में यह एकमात्र इलाज का विकल्प हो सकता है।

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    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी से किन बीमारियों का इलाज किया जाता है? (Conditions Treated by Enzyme Replacement Therapy)

    Enzyme Replacement Therapy- एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी

    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) का इस्तेमाल आमतौर पर लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (Lysosomal storage disease) के उपचार में किया जाता है। यह दुर्लभ अनुवांशिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें एंजाइम्स नहीं होते या वह लाइसोसोमल में ठीक तरह से काम नहीं करते हैं। लाइसोसोमल शरीर में प्रोटीन और दूसरे माइक्रोमॉल्यूकोल्स को तोड़ने का काम करते हैं, तो जब यह काम करने में असमर्थ होते हैं तो कई तरह की स्वास्थ्य स्थितियां और लक्षण दिखते हैं और कई बार यह व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी पर इसका गहरा असर होता है। लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (Lysosomal storage disease) कई प्रकार के हो सकते हैं और हर तरह की बमारी के लक्षण भी अलग होते हैं।

    फैब्री रोग (Fabry Disease)

    यह रोग तब होता है जब शरीर उस एंजाइम को बनाने में असफल रहता है जो ग्लोबोट्रायोसिलसिमाइड (Globotriaosylceramide -Gb3 या GL-3) नामक फैट को तोड़ने के लिए जरूरी है। अल्फा-गैलेक्टोसिडेज़ ए (Alpha-galactosidase A) इस एंजाइम की कमी कोशिकाओं में बिल्डअप का कारण बनता है जिससे को कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और पूरे शरीर में गंभीर लक्षण पैदा करती है। फैब्री रोग (Fabry Disease) के लक्षणों में शामिल है-

    • बहुत तेज दर्द (Chronic pain) होना, खासतौर पर हाथ और पैरों में
    • बेवजह पसीना आना (Infrequent sweating)
    • गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं (Gastrointestinal problems)
    • किडनी फेलियर (Kidney failure)
    • दिल की बीमारी (Heart disease)
    • त्वचा पर गहरे लाल रंग के घाव – एंजियोकार्टोमास (Angiokeratomas) जो आमतौर पर पेट और घुटनों के बीच दिखाई देते हैं।

    फैब्री रोग (Fabry Disease) के लिए एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) में दोषपूर्ण अल्फा-गैलेक्टोसिडेज ए एंजाइम को बदला जाता है। फैब्री रोग (Fabry Disease) के लिए एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी में मुख्य रूप से दो एंजाइम्स रिप्लेस किया जाए हैं वह हैं एगल्सिडिज अल्फा (Agalsidase alfa) और एगल्सिडिज बीटा (Agalsidase beta)। यह दोनों एंजाइम्स उन एंजाइम की तरह व्यवहार करते हैं जिनकी जगह इन्हें रिप्लेस किया गया है। यह और दूसरे वैकल्पिक एंजाइम सिप्लेसेमेंट थेरेपी का इन्फ्यूजन हर दो हफ्ते में दिया जाना चाहिए, हर इन्फ्यूजन (Infusions) को पूरा होने में 2 घंटे का समय लगता है।

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    गौचर रोग (Gaucher Disease)

    गौचर रोग तब होता है जब ग्लूकोसेरेब्रोसिडेज (Glucocerebrosidase (GCase) एंजाइम का डिस्फंक्शन (Dysfunction) हो। यह एंजाइम शरीर में फैटी केमिकल्स को तोड़ने के लिए जिम्मेदार होता है। ग्लूकोसेरेब्रोसिडेज एंजाइम की कमी से शरीर के कुछ अगोंम और बोन टिशू में फैटी सेल्स का बिल्डअप होने लगता है जिसे गौचर सेल्स (Gaucher cells) कहते हैं। गौचर रोग (Gaucher Disease) के लक्षणों में शामिल है-

    • एनीमिया और थकान (Anemia and fatigue)
    • असामान्य ब्लीडिंग या नील का निशान पड़ना (Abnormalities with bleeding and bruising)
    • आंतरिक अंगों में सूजन के कारण पेट संबंधी समस्या (Abdominal issues)
    • हड्डियों में दर्द (Bone pain) और उनका कमजोर होना

    गौचर रोग (Gaucher disease) के लिए एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) में आमतौर पर जेनेटिक रूप से मॉडिफाई किए गए सबस्टीट्यूड को कमी वाले ग्लूकोसेरेब्रोसिडेज (glucocerebrosidase -GCase) एंजाइम की जगह रिप्लेस किया जाता है, जो शरीर को फैटी केमिकल को तोड़ने में मदद करता है और हड्डियों व शरीर के अन्य अंगों में इन्हें जमा नहीं होने देता। एंजाइम रिप्लेसमेंट का इन्फ्यूजन हर दो हफ्ते में किया जाता है, हर इन्फ्यूजन (Infusions) को पूरा होने में 1 से 2 घंटे का समय  लगता है।

    पोम्पे रोग (Pompe Disease)

    पोम्पे रोग (Pompe disease) अल्फा ग्लूकोसिडेस (Alfa glucosidase (GAA) एंजाइम की कमी से होता है, जो शरीर की कोशिकाओं में कॉम्पलेक्स शुगर, ग्लाइकोजन (Complex sugars – glycogen)  को तोड़ने में मदद करता है। इसकी अनुपस्थिति में कोशिकाओं में कॉम्पलेक्स शुगर, ग्लाइकोजन जमा होता जाता है, जिससे कोशिकाओं को सही तरह से काम करने के लिए एनर्जी नहीं मिल पाती है। पोम्पे रोग (Pompe Disease) के लक्षणों में शामिल है-

    • मांसपेशियों का सही तरीके से विकास न होना (Poor muscle development)
    • खाने, सांस लेने और सुनने में समस्या (Trouble eating, breathing, and/or hearing)
    • रेस्पेरिरेटरी समस्याएं (Respiratory problems)
    • लिवर या हृद्य का बड़ा होना (Enlarged liver and/or heart)
    • मोटर फंक्शन (Motor function) से जुड़ी समस्याएं

    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) पोम्पे रोग (Pompe Disease)  का एकमात्र असरदार इलाज है। कमी वाले एंजाइम (GAA) या जेनेटिक रूप से मॉडिफाई किए गए रेप्लिका को शरीर के अंदर डाला जाता है, जिससे यह ग्लाइकोजन को ग्लूकोज (ग्लाइकोजेनोलिसिस) में सफलतापूर्वक बदल देता है। दूसरे लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज (Lysosomal storage diseases) की तरह ही पोम्पे रोग में भी मरीज को हर दो हफ्ते में इन्फ्यूजन की जरूरत होती है।

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    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी की सीमाएं और साइड इफेक्ट (Enzyme Replacement Therapy side effects)

    Enzyme Replacement Therapy- एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी

    लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज (Lysosomal storage disorder) के अधिकांश मामलों में एंजाइम सिप्लेसमेंट थेरेपी ही इलाज का एकमात्र असरदार तरीका होता है, बावजूद इसके उपचार के इस तरीके की कुछ सीमाएं और साइड इफेक्ट है-

    बहुत महंगा है (High cost treatment) – एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी बहुत महंगी है। इसके लिए सालाना हजारों डॉलर तक खर्च करने पड़ सकते हैं। इसलिए कुछ लोगों को इंश्योरेंस की जरूरत पड़ती है।

    इन्फ्यूज्ड एंजाइम के खिलाफ इन्यूनोलॉजिकल रिस्पॉन्स (Immunological response against the infused enzyme)- इन्फ्यूज्ड एंजाइम को लेकर आपका शरीर किस तरह से प्रतिक्रिया करता है इसके आधार पर एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी इम्यून रिस्पॉन्स को ट्रिगर कर सकती है। वैसे हर व्यक्ति में इसका असर अलग-अलग होता है।

    एंजाइम्स से रेसिस्टेंस का विकास (Development of resistance to enzymes)

    यदि शरीर रिप्लेस किए गए एंजाइम्स के प्रति रेसिस्टेंस का विकास करता है यानी उसका प्रतिरोध करता है तो समय के साथ कुछ एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी का प्रभाव कम हो जाता है।

    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी में जीवनभर उपचार की जरूरत पड़ती है, कई बार साइड इफेक्ट होने के बावजूद भी इसे कराना पड़ता है। क्योंकि इस थेरेपी में कमी या दोषपूर्ण एंजाइम को बदला जाता है, लेकिन यह शरीर के अंदर कुदरती रूप से उत्पन्न नहीं होते हैं इसलिए जीवन भर उपचार की जरूरत पड़ती है ताकि लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज (Lysosomal storage disorder) के प्रभावों को कम किया जा सके।

    असमान बायोडिस्ट्रिब्यूशन (Uneven biodistribution)- इसका मतलब है कि रिप्लेस्ड हार्मोन पूरे शरीर और अंगों में समान रूप से नहीं पहुंचते हैं। इसलिए थेरेपी की प्रभावशीलता शरीर के कुछ हिस्सों में कम हो सकती है और थेरेपी के बावजूद लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज (lysosomal storage disorder) के कुछ लक्षण दिख सकते हैं।

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    लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज से बचाव के आयुर्वेदिक तरीके (Prevention from lysosomal storage disorder)

    जानकारों का मानना है कि स्वस्थ जीवनशैली और आयुर्वेद के नियमों का पालन करके इस बीमारी को कुछ हद तक रोका जा सकता है।

    हेल्दी फूड लें- जंक और हाय कैलोरी (High calorie) वाली चीजें खान से बचें, क्योंकि यह पूरे शरीर को सुस्त कर देगा है और ऑर्गन्स बहुत धीमी गति से काम करते हैं। पाचन क्रिया पर भी इसका असर होता है। जंक फूड और चिप्स, नमकीन की बजाय स्प्राउट्स और फ्रूट सलाद खाएं। एक साथ ज्यादा खाने की बजाय थोड़ा-थोड़ा करके खाएं। बैलेंस डायट लें जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, हेल्दी फैट और मिनरल्स होने चाहिए।

    सुबह जल्दी उठें – समय पर सोने और जल्दी उठने से आप स्वस्थ रहते हैं। दरअसल, सोने और उठने के एक ही पैटर्न को फॉलो करने से मन भी खुश रहता है और टिशू को आराम मिलता है।

    रेग्युलर योग और एक्सराइज – फिजिकली और मेंटली फिट रहने के लिए रोजाना योग, मेडिटेशन और एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है। इससे शरीर के केमिकल्स का बैलेंस भी बना रहता है।

    एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) बहुत सी स्वास्थ्य स्थितियों में उपचार का एकमात्र विकल्प होता है, लेकिन इस थेरेपी के बाद पूरी उम्र इलाज करवाना पड़ता है, क्योंकि एंजाइम को कृत्रिम तरीके से शरीर में डाला जाता है।

    डिस्क्लेमर

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    Toshini Rathod द्वारा लिखित · अपडेटेड 12/05/2021

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