यदि शरीर रिप्लेस किए गए एंजाइम्स के प्रति रेसिस्टेंस का विकास करता है यानी उसका प्रतिरोध करता है तो समय के साथ कुछ एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी का प्रभाव कम हो जाता है।
एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी में जीवनभर उपचार की जरूरत पड़ती है, कई बार साइड इफेक्ट होने के बावजूद भी इसे कराना पड़ता है। क्योंकि इस थेरेपी में कमी या दोषपूर्ण एंजाइम को बदला जाता है, लेकिन यह शरीर के अंदर कुदरती रूप से उत्पन्न नहीं होते हैं इसलिए जीवन भर उपचार की जरूरत पड़ती है ताकि लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज (Lysosomal storage disorder) के प्रभावों को कम किया जा सके।
असमान बायोडिस्ट्रिब्यूशन (Uneven biodistribution)- इसका मतलब है कि रिप्लेस्ड हार्मोन पूरे शरीर और अंगों में समान रूप से नहीं पहुंचते हैं। इसलिए थेरेपी की प्रभावशीलता शरीर के कुछ हिस्सों में कम हो सकती है और थेरेपी के बावजूद लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज (lysosomal storage disorder) के कुछ लक्षण दिख सकते हैं।
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लाइसोसोमल स्टोरेज डिसीज से बचाव के आयुर्वेदिक तरीके (Prevention from lysosomal storage disorder)
जानकारों का मानना है कि स्वस्थ जीवनशैली और आयुर्वेद के नियमों का पालन करके इस बीमारी को कुछ हद तक रोका जा सकता है।
हेल्दी फूड लें- जंक और हाय कैलोरी (High calorie) वाली चीजें खान से बचें, क्योंकि यह पूरे शरीर को सुस्त कर देगा है और ऑर्गन्स बहुत धीमी गति से काम करते हैं। पाचन क्रिया पर भी इसका असर होता है। जंक फूड और चिप्स, नमकीन की बजाय स्प्राउट्स और फ्रूट सलाद खाएं। एक साथ ज्यादा खाने की बजाय थोड़ा-थोड़ा करके खाएं। बैलेंस डायट लें जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, हेल्दी फैट और मिनरल्स होने चाहिए।
सुबह जल्दी उठें – समय पर सोने और जल्दी उठने से आप स्वस्थ रहते हैं। दरअसल, सोने और उठने के एक ही पैटर्न को फॉलो करने से मन भी खुश रहता है और टिशू को आराम मिलता है।
रेग्युलर योग और एक्सराइज – फिजिकली और मेंटली फिट रहने के लिए रोजाना योग, मेडिटेशन और एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है। इससे शरीर के केमिकल्स का बैलेंस भी बना रहता है।
एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (Enzyme Replacement Therapy) बहुत सी स्वास्थ्य स्थितियों में उपचार का एकमात्र विकल्प होता है, लेकिन इस थेरेपी के बाद पूरी उम्र इलाज करवाना पड़ता है, क्योंकि एंजाइम को कृत्रिम तरीके से शरीर में डाला जाता है।